मेरा विद्यालय निबंध हिंदी में Mera Vidyalaya Short Essay

मेरा विद्यालय निबंध हिंदी में | Mera Vidyalaya Short Essay

NIBANDH IN HINDI

दोस्तों इस पोस्ट में हम मेरा विद्यालय  पर हिंदी में निबंध प्रस्तुत करने जा रहे हैं. उम्मीद है कि मेरा विद्यालय Essay in Hindi आपका ज्ञान वर्धन अवश्य करेगा. हिंदी निबंध का हिंदी भाषा के अध्ययन में अपना ही एक महत्वपूर्ण स्थान है. तो आइये अब पढ़ते हैं  मेरा विद्यालय  पर हिंदी में निबंध. 

प्रस्तावना

आपको यह बता दें कि विद्यालय को प्राचीन काल से ही मंदिर का स्थान दिया गया है।  प्राचीन काल में छात्र 6, 8 अथवा 11 वर्ष की अवस्थाओं में गुरुकुलों (विद्यालयों) में ले जाए जाते थे एवं गुरु के पास बैठकर ब्रह्मचारी के रूप में शिक्षा प्राप्त भी करते थे। गुरु उनके शारीरिक एवं बौद्धिक संस्कारों को पूर्ण करता हुआ, उन्हें सभी शास्त्रों तथा उपयोगी विद्याओं की शिक्षा भी देता और अंत में दीक्षा देकर उन्हें विवाह कर गृहस्थाश्रम के विविध कर्तव्यों का पालन करने के लिए वापस भेजता था। वर्तमान के विद्यालय, प्राचीन काल के गुरुकुलों से बहुत अलग अवश्य हैं परन्तु आज भी विद्यालयों को मंदिरों का एवं अध्यापकों को भगवान् का दर्जा अवश्य दिया जाता है।

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विद्यालय स्थल

मेरा विद्यालय एक बड़ा स्कूल है। इसमें लगभग पचास कक्षाएँ, ऑफिस एवं एक बड़ा पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय में सभी प्रकार की पुस्तकें हैं। हम वहाँ जाकर पढ़ते भी हैं। हम पुस्तकें उधार’ भी ला सकते हैं। यहाँ पर पत्रिकाएँ और समाचार पत्र भी होते हैं

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यह एक सहशिक्षा विद्यालय है। परन्तु इसमें छात्रों की संख्या छात्राओं से बहुत ही अधिक है। विद्यालय से जुड़ा हुआ एक बडा-सा खेल का मैदान भी है। हम यहाँ पर खेल खेलते हैं। फुटबाल मेरा बहुत ही प्रिय खेल है।

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विद्यालय इमारत

मेरे विद्यालय की इमारत चार मंजिला है। जो अंग्रेज़ी के L आकार में निर्मित अवश्य की गई है। विद्यालय में कम से कम 80 कमरे हैं। प्रत्येक कमरे में हवादार खिड़कियाँ भी लगी हुई हैं। इन कमरों की चपरासी द्वारा रोज सफाई की जाती है जिससे हम स्वच्छ माहौल में पढ़ाई कर पाते हैं। मेरे विद्यालय में कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की पढ़ाई अवश्य होती है। मैं कक्षा आठ में पढ़ता हूँ। मेरी कक्षा विद्यालय के द्वितीय मंजिल पर स्थित है।

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विद्यालय परिसर

दरअसल मेरे विद्यालय के पीछे की ओर एक बहुत बड़ा मैदान भी है। जिसमें हम सभी विद्यार्थी खेल-कूद का भरपूर आनंद लेते हैं। यही पर हमारा प्रार्थना स्थल है जहां पर हम सुबह को प्रार्थना भी करते हैं और अपने दिन की शुरुआत भी बढ़िया तरीके से करते हैं। विद्यालय के मैदान के चारों ओर बड़े-बड़े वृक्ष भी लगे हुए हैं और छोटी-छोटी घास भी लगी हुई है। विद्यालय परिसर में कई छोटी-छोटी वाटिकाएँ भी उपस्थित हैं, जिनमें रंग-बिरंगे फूल खिले होते हैं। इससे हमारे विद्यालय का वातावरण बहुत ही अच्छा व सुंदर रहता है तथा यह देखने में भी बहुत सुंदर भी लगता है।

हमारे स्कूल के प्रधानाचार्य बहुत ही विद्वान् पुरुष हैं। वह बुद्धिमान, चुस्त एवं प्रसिद्ध भी हैं। वह छात्रों को अपने पुत्रों एवं पुत्रियों के समान प्यार करते हैं। परन्तु अनुशासन के विषय में वह बहुत सख्त रहते हैं। यहाँ पर कम से कम 45 अध्यापक हैं। इसके अलावा दफ्तर के कर्मचारी तथा चपरासी इत्यादि हैं। शिक्षक उच्चशिक्षित तथा अनुभवी भी हैं। यह पढ़ाने में बहुत रुचि अवश्य लेते हैं तथा विद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी रुचि भी ध्यानपूर्वक रखते हैं। हमारी कक्षा अध्यापिका कुमारी नीलिमा पुरोहित हैं। वह हमें हिन्दी खूब अच्छी तरह से पढ़ाती हैं। वह एक बुद्धिमान महिला भी हैं। वह अक्सर हमारी शिक्षा-संबधी तथा व्यक्तिगत कठिनाइयों को सुलझाने में बहुत ही सहायता भी करती हैं। । मैं अपने स्कूल से बहुत प्रेम करता हूँ। मैं अपने शिक्षकों का आदर व सम्मान भी निष्ठापूर्वक करता हूँ तथा उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन भी करता हूँ। मेरे विद्यालय की गौरवपूर्ण परम्परा है। यहाँ से अनेक तेजस्वी व्यक्तित्व, अधिकारी तथा व्यवसायी निर्मित भी हुए हैं।

हमारे विद्यालय का पुस्तकालय बहुत ही बड़ा है। उसमें विभिन्न विषयों की हजारों पुस्तकें हैं। हमें पढ़ने के लिये बहुत-सी पत्रिकायें हमेशा उपलब्ध रहती हैं। प्रत्येक विद्यार्थी का एक पुस्तकालय कार्ड अवश्य बनाया जाता है। एक समय पर विद्यार्थी दो पुस्तकें प्राप्त कर सकता है।

विद्यालय में अनुशासन

ऐसा कहा गया है कि अनुशासन किसी भी व्यक्ति की सफलता में अहम् भूमिका निभाता है। जब बच्चा छोटा होता है तो वह पहले परिवार से तथा बाद में विद्यालय में जाकर अनुशासन के महत्त्व को भलीभांति समझता है। अनुशासन की दृष्टि से हमारा विद्यालय बहुत कठोर है। विद्यालय में अगर कोई विद्यार्थी अनुशासन का उल्लंघन करता है तो उसे बहुत ही कड़ा दंड दिया जाता है। प्रतिदिन वर्दी, नाखून एवं दाँतों का निरिक्षण किया जाता हैं। प्रत्येक विद्यार्थी के घर पर उसके अनुशासन की मासिक रिर्पोट भी अवश्य भेजी जाती है।

उपसंहार

आपको बता दें कि किसी भी राष्ट्र की सर्वोत्तम निधि उस राष्ट्र के बच्चों को कहा जाता है। राष्ट्र के विकास के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि बच्चों का सर्वांगीण विकास अच्छे से हो एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालय एक उपयुक्त स्थान होता है। जहाँ पर बच्चा पढ़-लिख कर सुसंस्कृत एवं सभ्य नागरिक बनता है तथा देश की प्रगति में अपना पूर्ण सहयोग भी देता है। विद्यालय एवं शिक्षा का एक व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अतः हम सभी को चाहिए कि हम प्रत्येक बच्चे को विद्यालय एवं शिक्षा के समीप लाएँ ताकि वह देश की प्रगति में अपना अथाह सहयोग अवश्य प्रदान कर सकें।