Jain Religion– दोस्तों ये बात तो सर्वविदित है की Parshwanath Chalisa जैन धर्म की महानताओं की जितनी तारीफ की जाये वो कम ही हैं. अहिंसा पे सर्वाधिक बल देने वाला ये धर्म अनेकों विशेषताओं से भरा हुआ है. अहिंसा के बाद इस धर्म की एक विशेषता ये भी है कि ये ज्ञान पर आधारित है न कि सिर्फ पुस्तकों पर. अर्थात विवेक ही धर्म है. जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं जिन्होंने विश्व को अनेकों प्रकार से अद्भुत ज्ञान प्रदान किया है.
आज हम बात करेंगे भगवान् पार्श्वनाथ जी की आराधना की अर्थात पार्श्वनाथ चालीसा की. इस चालीसा के माध्यम से आप अपने सत्कर्मों में वृद्धि कर सकते हैं तथा मानसिक शान्ति प्राप्त कर सकते हैं.
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Lord Parshvanath– जिन्हें पार्श्व और पारस के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 23वें तीर्थंकर थे. कहा जाता है की भगवन पार्श्वनाथ जी की मूर्ति के दर्शन कर लेने से ही जीवन में शांति का अनुभव होने लगता है. वे वाकई में एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे. उनके प्रयासों से पहले श्रमण धर्म की धारा को आम लोग नहीं पहचानते थे. उनके प्रयासों से ही ही श्रमणों को पहचान मिली. वे श्रमणों के प्रारंभिक आदर्श बनकर उभरे. Lord Parasnath के प्रमुख चिह्न हैं सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी आदि.
तीर्थंकर बनने से पूर्व पार्श्वनाथ जी को नौ पूर्व जन्म लेने पड़े थे. प्रथम जन्म में ब्राह्मण, द्वितीय में हाथी, तृतीय में स्वर्ग के देव, चतुर्थ में राजा, पंचम में देव, षष्टम जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सप्तम में देवता, अष्टम में राजा और नवम जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग) का जन्म लिया तत्पश्चात दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. आइये ऐसे महान व्यक्तित्व के लिए Parasnath Chalisa पढ़कर शान्ति का अनुभव करें-
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यहाँ हम Parasnath Chalisa in Hindi text देने जा रहे हैं उम्मीद है आप पार्श्वनाथ चालीसा को अवश्य सच्चे man से पढ़कर प्रभु पार्श्वनाथ से प्रेरणा हासिल करेंगे-
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Parasnath Chalisa Hindi
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम |
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार |
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मन्दिर में धार ||
|| चौपाई ||
पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी |
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा |
तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा |
अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखो के तारे |
काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये |
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे |
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गई सवारी |
एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर |
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते |
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया |
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे |
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया |
मरकर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये |
तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थों में गाया |
एक समय श्रीपारस स्वामी, राज छोड़ कर वन की ठानी |
तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहां पर आये |
फौरन ; ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना |
बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई |
बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तन को नहीं हिलाये |
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा मे चित लाए |
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया |
पद्मावति ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया |
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया |
यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहां पर आये |
शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना |
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया सबने जैन धरम अपनाया |
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी |
राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाये |
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया |
वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता |
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया |
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना |
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है |
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर |
उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी |
जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे |
पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इक दम घटती हो |
है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी |
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी नर |
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये |
सोरठा:
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन |
खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के |
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो |
जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ||
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