गणेश जी की कहानियां|गणेश जी के 20 मजेदार किस्से

Dharma Karma

आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में गणेश जी की कहानियां के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं गणेश जी की कहानी इन हिंदी

1

एक समय की बात है धनपती कुबेर ने भगवान शिव जी एवं माता पार्वती को खाने पर बुलाया, परन्तु प्रभु शिव जी ने कहा कि मैं कैलाश छोड़कर कहीं नहीं जाता हूं एवं पार्वती जी ने कहा कि मैं अपने स्वामी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती, तब उन्होंने कहा कि आप हमारे स्थान पर मेरे पुत्र गणेश को ले जाओ, वैसे भी उन्हें मिठाई एवं भोज बहुत अधिक पसंद हैं।

तब कुबेर गणेश जी को अपने साथ खाने पर ले गए। वहां उन्होंने मन भर कर मिठाई एवं लड्डू खाए। वापस आते समय कुबेर ने उन्हें मिठाई का थाल देकर विदा किया। लौटने समय चन्द्रमा की चांदनी में गणेश जी अपने चूहे पर बैठकर आ रहे थे, परन्तु अधिक भोजन खा लेने की वजह से बहुत बड़ी ही दुविधा से अपने आप को संभाल नही पा रहे थे।

उसी समय अचानक चूहे का पैर किसी पत्थर से टकराकर डगमगाने लगा। इससे गणेशी जी चूहे के ऊपर से गिर गए एवं पेट अधिक भरा होने के कारण वे अपने आप को संभाल नहीं सके और मिठाइयां भी इधर – उधर गिर गईं।

यह सब चन्द्र देव ऊपर से देख रहे थे। उन्होंने जैसे ही गणेश जी को गिरता देखा, तो अपनी हंसी बिल्कुल भी नही रोक पाए एवं उनका हंसी को उड़ाते हुए बोले कि जब स्वयं को संभाल नहीं सकते, तो इतना खाते क्यों हो।

चन्द्रमा की बात सुनकर गणेश जी को बहुत ही क्रोध आ गया। उन्होंने सोचा कि घमंड में चूर होकर चन्द्रमा मुझे उठाने के लिए किसी प्रकार की सहायता नहीं कर रहा है और ऊपर से मेरी खिल्ली उड़ा रहा है। इसलिए, गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप दिया कि जो भी गणेश चतुर्थी के दिन तुमको देखेगा वह लोगों के सामने चोर कहलाएगा।

श्राप की बात सुनकर चन्द्र देव बहुत ही डर गए एवं मन ही मन सोचने लगे कि फिर तो मुझे कोई भी नहीं देखेगा। उन्होंने जल्द ही गणेश जी से क्षमा मांगी। कुछ देर पश्चात जब गणेश जी का क्रोध बिल्कुल शांत हुआ, तब उन्होंने कहा कि मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता, परन्तु तुमको एक वरदान देता हूं कि अगर वहीं व्यक्ति अगली गणेश चतुर्थी को तुमको देखेगा, तो उसके ऊपर से चोर होने का श्राप उतर जाएगा। तब जाकर चन्द्रमा की जान में जान आई।

इसके अलावा एक और कहानी सुनने में आती है कि गणेश जी ने चन्द्रमा को उनका मजाक उड़ाने पर श्राप दिया था कि वह आज के बाद किसी को दिखाई नहीं देंगे। चन्द्रमा के क्षमा मांगने पर उन्होंने कहा कि मैं श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन एक वरदान देता हूं कि तुम माह में एक दिन किसी को भी दिखाई नहीं दोगे और माह में एक दिन पूर्ण रूप से आसमान पर दिखाई दोगे। बस तभी से चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पूरे दिखाई देते हैं एवं अमावस्या के दिन दिखाई नहीं देते हैं।

2

एक दिन माता पार्वती नहाने के लिए गयी परन्तु वहां पर कोई भी उनकी रक्षा करने वाला नहीं था। इसलिए उन्होंने चंदन के पेस्ट से एक लड़के को अवतार दिया और उसका नाम गणेश रखा। माता पार्वती नें गणेश को यह आदेश दिया की तुम मेरी अनुमति के बिना किसी को भी घर के अंदर ना आने देना।

जब शिवजी वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके दरवाजे पर एक एक बालक खड़ा है। जब वे अन्दर की ओर जाने लगे तो उस बालक नें उन्हें रोक लिया एवं अंदर को नहीं जाने दिया। यह देख भगवान शिवजी बहुत अधिक क्रोधित हुए और अपने सवारी बैल नंदी को उस बालक से युद्ध करने के लिए कहा. पर उस युद्ध में उस छोटे से बालक नें नंदी को हरा दिया। यह सब देख कर प्रभु शिव जी और अधिक क्रोधित होकर उस बाल गणेश के सर को धड़ से अलग कर दिया।

अब माता पार्वती वापस लौटी तो वो बहुत अधिक नाराज हुई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। शिवजी को जब पता चला कि वह कोई और नही बल्कि उनका स्वयं का पुत्र था तो उन्हें भी अपनी गलती का बहुत एहसास हुआ। शिवजी नें अपनी पार्वती को बहुत समझाने का प्रयत्न किया पर वह बिल्कुल नहीं मानी एवं अपने पुट गणेश का नाम लेते – लेते और भी दुखी होने लगी।

अंत में माता पार्वती नें क्रोधित होकर भगवान शिवजी को अपनी शक्ति से गणेश को दोबारा जीवित करने के लिए कहा। शिवजी बोले – हे देवी मैं अपने पुत्र गणेश को तभी जीवित कर सकता हूँ जब किसी भी अन्य जीवित प्राणी के सिर को जोड़ा जाय। माता पार्वती रोते-बिलखते हुए बोल उठी – मुझे अपना पुत्र किसी भी हाल में जीवित चाहिए।

यह सुनते ही शिवजी नें नंदी को यह आदेश दिया – जाओ नंदी इस संसार में जिस किसी भी जीवित प्राणी का सिर तुमको मिले उसको काट लाना। जब नंदी किसी सिर को खोज रहा था तो सबसे पहले उसे एक हाथी दिखा तो वो उसका ही सिर काट कर ले आया। तब जाकर प्रभु शिव जी नें उस सिर को गणेश के शरीर से जोड़ दिया एवं अपने पुत्र गणेश जी को जीवन दान दे दिया। शिवजी नें इसीलिए गणेश जी का नाम गणपति रखा एवं बाकि सभी देवताओं नें उन्हें यह वरदान दिया कि इस दुनिया में जो भी कुछ नया शुभ काम करेगा. तो सबसे पहले जय श्री गणेश को हमेशा याद करेगा।

3

जब महर्षि वेदव्यास अपनी महाभारत लिखने को बैठे, तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता आ पड़ी थी जो उनके मुँह से निकले हुए शब्द महाभारत की कहानी को लिख सके. इस काम के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना। श्री गणेश जी भी इस बात के लिए बिल्कुल तैयार हो गए परन्तु उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन को एक पल ले लिए भी बिना रुके पूरा करना होगा। तब गणेश जी कहा – अगर आप एक बार भी रुकेंगे तो मैं भी लिखना बंद कर दुँगा।

महर्षि वेदव्यास नें श्री गणेश जी की इस शर्त को मान लिया। परन्तु महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी के सामने भी एक शर्त रखी एवं उनसे कहा – गणेश आप जो भी लिखोगे सोच – समझ कर ही लिखोगे। गणेश जी भी उनकी शर्त मान गए। दोनों महाभारत के महाकाव्य को लिखने के लिए बैठ गए। वेदव्यास जी महाकाव्य को अपने मुहँ से बोलने लगे एवं गणेश जी सोच-समझ कर जल्दी-जल्दी लिखने लगे। कुछ देर लिखने के पश्चात अचानक से गणेश जी का कलम टूट गया। वो कलम महर्षि वेदव्यास के शब्दों के बोलने की तेजी को संभाल ना सका।

गणेश जी समझ गए कि उन्हें थोड़ा – सा घमंड हो गया था एवं उन्होंने महर्षि के शक्ति एवं ज्ञान को बिल्कुल ना समझा। उसके पश्चात उन्होंने धीरे से अपने एक दांत को तोड़ दिया एव उस स्याही में डूबा कर दोबारा महाभारत की कथा को लिखने लगे। जब भी वेदव्यास को थकान महसूस होता वे एक कठिन – सा छंद व दोहा बोल देते थे, जिसको समझने एवं लिखने के लिए गणेश जी को बहुत अधिक समय लग जाता था एवं महर्षि वेदव्यास को आराम करने का समय भी मिल जाता था।

4

बहुत समय पहले की बात है, एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था जिसका नाम गजमुख था. वह बहुत ही शक्तिशाली बनना एवं धनवान बनना चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए वह सदैव अपने प्रभु शिव जी से वरदान के लिए बहुत कठिन तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्यपाठ व सब कुछ त्याग कर जंगल में जा कर रहने लगा एवं अपने प्रभु शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना भोजन व अन्न , पानी खाए रातदिन अपने प्रभु शिव जी की कठिन से कठिन तपस्या करने लगा।

कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर बहुत अधिक प्रभावित हो गए एवं शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। भगवान शिवजी नें प्रसन्न होकर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान कर दी. जिससे वह और भी बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह थी कि उसे किसी भी अस्त्र – शस्त्र से बिल्कुल भी नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर बहुत अधिक घमंड हो गया एवं वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया.

केवल भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा एवं गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था कि हर कोई देवता उसकी पूजा व अर्चना करे। सभी देवता शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा जी के शरण में जा पहुंचे एवं अपनी जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। यह सब देख कर शिवजी नें गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा।

गणेश जी नें गजमुख के साथ बहुत भयंकर युद्ध किया एवं असुर गजमुख को बहुत बुरी तरह से घायल कर दिया। परन्तु तब भी वह नहीं माना। उस राक्षस  नें स्वयं को एक चूहा के रूप धारण कर लिया और गणेश जी की ओर आक्रमण करने के लिए भागा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए एवं गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के लिए उसे मूषक में बदल दिया तथा अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया। तत्पश्चात गजमुख भी अपने इस रूप से बहुत अधिक प्रसन्न हुआ तथा  गणेश जी का प्यारा दोस्त भी बन गया।

5

एक समय की बात है सभी देवता किसी वजह से बहुत ही कठिनाई में फंसे हुए थे। सभी देवगण भगवान शिवजी के शरण में अपनी दुविधाओं के हल के लिए वहाँ पहुंचे| उस समय भगवान शिवजी के दोनों पुत्र उनके साथ गणेश एवं कार्तिकेय भी वहीं बैठे हुए थे| वहाँ वह दोनों भाई अपने सामने हुई बातों को बल पूर्वक ध्यान से सुन रहे थे.

देवताओं की परेशानी को देखकर भगवान शिवजी नें गणेश एवं कार्तिकेय से एक प्रश्न पूछा – तुममें से कौन देवताओं की कठिनाइयों को हल करेगा एवं उनकी सहायता भी करेगा|

जब दोनों भाई सहायता करने के लिए तत्पर हो गए तब भगवान शिवजी नें उनके सामने एक प्रतियोगिता रखी.

इस प्रतियोगिता के अनुसार दोनों भाइयों में जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा वही देवताओं की कठिनाइयों ने सहायता करेगा.

जैसे ही शिवजी नें यह बात कही तब तुरंत  कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए| परन्तु गणेश जी वही अपनी जगह पर खड़े रहे एवं सोचने लगे कि वह अपनी सवारी चूहे की सहायता से पूरी पृथ्वी का चक्कर कैसे लगा सकते हैं?

उसी समय उनके (गणेश) मन में एक उपाय सूझा, और वे अपने पिता शिवजी और माता पार्वती के पास गए और उनकी सात बार परिक्रमा करके वापस अपनी जगह पर आकर खड़े हो गए.

कुछ समय पश्चात कार्तिकेय पृथ्वी का पूरा चक्कर लगा कर वापस आये और स्वयं को विजेता कहकर पुकारने लगे| तभी शिवजी नें गणेश जी की ओर देखा और उनसे प्रश्न किया – क्यों गणेश तुम क्यों पृथ्वी की परिक्रमा करने नहीं गए?

तभी गणेश जी ने उनको उत्तर दिया – “माता पिता में ही तो पूरा संसार बसा है?” चाहे में पृथ्वी की परिक्रमा करूँ या अपने माता पिता की, एक ही बात है.

यह सुन कर शिवजी बहुत अधिक प्रसन्न हुए तथा उन्होंने गणेश जी को सभी देवताओं की कठिनाइयों को दूर करने की आज्ञा दी| साथ ही भगवान शिवजी नें गणेश जी को यह भी आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष के चतुर्थी में जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा एवं व्रत करेगा उसके सभी दुःख व हर प्रकार की परेशानी दूर होगी तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति भी होगी.

6

एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब एवं दृष्टिहीन भी थीं। उसका एक बेटा एवं बहु थी । वह बुढ़िया हमेशा भगवान गणेश जी की पूजा व अर्चना किया करती थी। एक दिन भगवान गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-

 ‘बुढ़िया मां! तू जो चाहे वो मुझसे माँग सकती है.’

 इस पर बुढ़िया बोली- ‘मुझे तो बिल्कुल मांगना भी नहीं आता। मैं आपसे कैसे एवं क्या मांगू?’ 

तब गणेशजी ने उस बुढ़िया से कहा- ‘कि अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।’ 

तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- ‘कि बेटा भगवान गणेशजी कहते हैं ‘तू कुछ मुझसे मांग ले’ बता मैं भगवान गणेश जी से ऐसा क्या मांगू जो मेरा जीवन व तेरा जीवन खुशी से व्यतीत होने लगें?’ 

तब उसके पुत्र ने कहा- ‘मां! तू अपने भगवान श्री गणेश जी अपार धन मांग ले।’ 

तब उस बुढ़िया ने अपनी बहु से जाकर पूछा तब उसने ने कहा- ‘कि माँ नाती मांग लो।’ 

तब बुढ़िया ने अपने मन में सोचा कि ये तो अपने-अपने स्वार्थ की बात कह रहे हैं। अत: उसने अपने पड़ोसियों से जाकर पूछा, तो पड़ोसियों ने कहा- ‘बुढ़िया! तू तो थोड़े ही दिन जीएगी, क्यों तू धन मांग रही है और क्यों तू अपने नाती को माँग रही है । तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।’

इस पर बुढ़िया अपने भगवान श्री गणेश जी से बोली- ‘यदि आप मुझसे बहुत ही खुश हैं, तो मेरे सभी परिवार को सुख – शान्ति व सम्रद्धि दें और अंत में मुक्ति प्रदान करें.’ 

यह सुनकर तब भगवान गणेशजी बोले- ‘बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग ही लिया। फिर भी जो तूने मांगा है उस वचन के अनुसार सब कुछ तुझे मिलेगा।’ और यह कहकर भगवान गणेशजी तुरंत अंतर्लीन हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ उसे मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही हम सबको भी देना।

7

एक बार ईश्वर ने एक छोटे से बालक का रूप रखकर किसी एक गाँव में गए, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि इस पृथ्‍वी पर कुछ धर्म-कर्म है भी या नहीं? उन्होंने एक अजब लीला रची तथा वे एक चिमटी में चावल एवं एक चमची में दूध लेकर गांव में घर-घर घूमकर सबको यह कहने लगे कि कोई मेरे लिए खीर बना दो। गाँव के लोग उसकी बातों को सुनकर उसे देखते एवं मुस्कुराने लग जाते। सब लोग यह कहने लगते कि इतने से दूध-चावल से कोई खीर बनती है। 

बहुत सारे घरों में जाकर अंत में वे एक बुढ़िया के पास पहुंचे। वहां बहुत सारे बच्चे आपस में खेल रहे थे तथा बुढ़िया बैठी-बैठी बच्चों के खेल का भरपूर आनंद ले रही थी। तब भगवान श्री गणेश जी ने कहा माता जी इन चावल एवं दूध से मेरे लिए खीर बना दो। बुढ़िया ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा, खीर तो बना दूं, परंतु मुझे भी खीर देगा या नहीं। उस बालक रूपी श्री गणेश जी ने कहा कि मैं आपको खीर अवश्य दुँगा एवं इन सभी बच्चों को भी दुँगा। तब तो बुढ़िया घर के अंदर से एक छोटा – सा बर्तन लेकर आई।

उस बालक रुपी श्री गणेश जी ने कहा इतने छोटे – से बर्तन से क्या होगा। आप कोई बड़ा सा बर्तन लाओ, उसमें खीर बनाना। बुढ़िया फिर से एक बहुत बड़ा –सा बर्तन लेकर आई। उसमें दूध एवं चावल डलवा दिए तथा चूल्हे पर खीर बनाने के लिए रख दिया। खीर उफनने लगी तो बुढ़िया ने थोड़ी सी खीर प्याले में निकाल ली। थोड़ी-सी ठंडी करके, गणेश जी का नाम लेकर भोग लगाकर खीर चखी तथा अपने मन में यह सोचने लगी कि ये तो खीर बहुत ही अच्छी व स्वादिष्ट बनी है। 

तभी बुढ़िया ने उन सभी बालकों को आवाज लगाई कि लो बेटा खीर बन गई और इसको सभी लोग आपस में मिलकर खा ले। तब उस बालक रुपी श्री गणेशको भी खीर खाने को दी. तभी उस बालक रुपी श्री गणेश जी ने उन सभी बच्चों को खीर दे दी. और उस बुढ़िया से कहा कि मेरा तो पेट भर गया है. बुढ़िया ने उस बालक से पूछा कि बेटा, तूने खीर तो बिल्कुल खाई ही नहीं, फिर तेरा पेट कैसे भर गया? 

बालक ने कहा आपने मेरा प्रेम से नाम लेकर दरवाजे के पीछे खड़े होकर खीर खाई थी, उसी से मेरा पेट भर गया था । ये बात सुनकर बुढ़िया समझ गई कि यह कोई साधारण बालक तो नहीं बल्कि साक्षात गणेश जी का रूप है। उसने खीर सभी बच्चों को खिलाई। परन्तु बाद में ऐसा क्या देखा कि खीर का बर्तन अभी तक बिल्कुल भरा हुआ था। अब गांव के सभी लोगों को बुलाकर बुढ़िया ने वो खीर सब लोगों को खिलाई।

एक बार की बात है जब कुछ लोगों के मन में कोई शंका उत्पन्न होने लगी कि क्या गणेश को लाढ़-प्यार में ही प्रथमपूज्यनीय बना दिया गया है अथवा वास्तव में वे इस पदवी के अधिकारी हैं. इस सम्बन्ध में अपने दोनों पुत्रों ( कार्तिकेय व गणेश ) की पात्रता परखने की दृष्टि से शिव-पार्वती ने उन दोनों की परीक्षा लेने की ठानी।

दोनों से कहा गया कि जितनी जल्दी पृथ्वी की परिक्रमा करके आयेगा। उसे सर्वप्रथम पूजनीय माना जाएगा. तभी कार्तिकेय ने अपने वाहन मोर के साथ बहुत ही तेज गति से उड़ चले लेकिन श्री गणेश जी ने सोचा कि धीमी गति से चलने वाले चूहे पर सवार होकर वे कहाँ तक जा पायेंगे।

इस प्रकार उन्होंने विचार किया कि सन्तान के लिये तो उसके माता-पिता ही समूची सृष्टि होते हैं, इस कारण श्री गणेश जी ने अपने माता – पिता शिव एवं पार्वती की चारो ओर परिक्रमा की तथा उनसे प्रेमपूर्वक कहा कि मैंने पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है।

जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौट आये तो भगवान श्री गणेश जी की जय-जयकार से चिंतित होकर उसकी असली वास्तविकता जानी। अपनी आयु में छोटे होने के बावजूद भी श्री गणेश की बुद्धिमत्ता से उनकी पात्रता सिद्ध हो गयी। तभी से कोई भी शुभ काम करने से पहले श्री गणेश जी नाम अवश्य लिया जाता है.

एक बार कुबेर धन के अधिक होने के अहंकार में डूबा जा रहा था, वह अपने घमंड में चूर हो शिव परिवार को अपने भोजन में उनको आमंत्रित किया परन्तु किसी न किसी रूप में सभी ने जाने से बिल्कुल मना कर दिया एवं अन्ततः केवल श्री गणेश जी को भेजा गया.

गणेशजी कुबेर के घमंड को तोड़ना चाहते थे, ये खाते गये, खाते गये, कुबेर व्यंजन-फल बुलवाते गये, बुलवाते गये, फिर अचानक कुबेर की सारी सम्पदा व कोष में बहुत ही रिक्तता छा गयी। तब श्री गणेशजी ने उनसे कहा कि मेरा पेट तो अभी तक भरा नहीं तो कुबेर ने अपना घमंड त्याग कर श्री गणेश जी से क्षमा माँगी।

10 

किससे एक घर में सात बहनें थीं। इनमें से छह बहनें सदैव पूजा – आराधना में लीन रहती थीं। परन्तु सातवीं बहन को पूजा – आराधना में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यह देख एक बार श्री गणेश जी ने सोचा कि क्यों न वो सातों बहनों की कठिन परीक्षा लें। फिर श्री गणेशजी ने एक साधु का रूप धारण किया तथा वो उन सातों बहनों के घर आ पहुंचे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया।

श्री गणेश जी ने पहली बहन से कहा कि वो बहुत दूर से आया है तथा उनके लिए खीर बना दो। परन्तु उसने बिल्कुल मना कर दिया। इसी तरह बाकी की पांच बहनों ने भी खीर बनाने से बिल्कुल मना कर दिया। जो छह बहनें सबसे ज्यादा पूजा – आराधना करती है उन्होंने साधु के लिए खीर बनाने से बिल्कुल मना कर दिया। परन्तु जब सातवीं बहन से पूछा गया तो उसने खीर बनाने के लिए हां कर दी।

सातवीं बहन ने चावल से खीर बनाना आरंभ कर दिया। उसने खीर बनाते बनाते अधपकी खीर चखी तथा फिर साधु महाराज को खीर दी। उस साधु रुपी श्री गणेश जी ने कहा कि खीर तुम ही खा लो। तब सातवीं बहन ने उनसे कहा मैंने तो खीर बनाते-बनाते ही खा ली है।

फिर श्री गणेश जी अपने रूप में आए तथा उन्होंने उससे कहा कि मैं तुम्हें स्वर्ग को लेकर जाऊंगा। फिर उस सातवीं बहन ने कहा कि मैं अकेले स्वर्ग नहीं आऊंगी। मेरी छह  बहनों को भी ले चलिए। तब श्री गणेश जी ने प्रसन्न होकर कहा कि वो सभी को स्वर्ग ले जाएंगे। फिर क्या था वो देखते ही देखते सभी को स्वर्ग ले गए।

11 

यह उस समय की बात है जब भगवान विष्णु जी का विवाह लक्ष्मी जी से तय हुआ था । विवाह की खूब तैयारियां की गई। चारो ओर हर्षो उल्लास का वातावरण था। सभी देवी -देवता को बारात में चलने के लिए निमंत्रण दिया गया।

सभी देवी -देवता आये तो सब प्रभु विष्णु जी से यह कहने लगे कि श्री गणेश जी को नहीं ले जायेंगे। वे बहुत मोटे हैं वो तो बहुत सारा खाते है।

इनको साथ ले जाकर क्या करेंगे , इन्हें यही रखवाली के लिए छोड़ जाते हैं तथा  गणेश जी को छोड़कर वे सभी बारात को चले गए  है।

इधर नारद जी ने गणेश जी को भड़का दिया तथा उनसे कहा कि आज तो महाराज ने आपका बहुत बड़ा अपमान किया है। आप से बारात बुरी लगती है इसीलिए आपको साथ नहीं ले गए एवं आपको यहीं छोड़ कर चले गए ।  तब श्री गणेश जी को बहुत अधिक गुस्सा आ गया एवं उन्होंने चूहों की आज्ञा दी कि सारी जमीन को खोखली कर दो । धरती खोखली हो गयी इससे भगवान के रथ के पहिये धंसने लगे।

बहुत कोशिश करके सभी लोग दुखी हो गए किसी भी तरह से पहिये नहीं निकले तो खाती को बुलाया गया. खाती आया और यह सारा दृश्य देखा तथा पहिये को हाथ लगा कर बोला  ” जय गजानन्द जी ” और इतने में तुरन्त रथ का पहिया निकल गया। सब देखते ही दंग रह गए। सबको बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने उससे पूछा कि तुमने गजानन्द जी को क्यों याद किया। खाती बोला  ” गणेश जी को सुमरे बिना कोई काम पूरी तरह सफल नहीं होता ” जो भी सच्चे मन से गजानन्द जी को याद व स्मरण करता है उसके सब काम बड़ी सरलता से सफल हो जाते है।

सब यह सोचने लगे कि हम तो श्री गणेश जी को ही छोड़ आये। उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और एक व्यक्ति को भेज कर श्री गणेश जी को बुलवाया एवं श्री गणेश जी से क्षमा माँगी तथा पहले श्री गणेश जी का रिद्धि -सिद्धि से विवाह करवाया फिर भगवान विष्णु जी का विवाह लक्ष्मी जी के साथ हुआ। सभी बहुत ही अधिक प्रसन्न थे तभी से कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले श्री गणेश जी का स्मरण व याद किया जाता है।

12

एक बार शिवजी की तरह ही श्री गणेशजी ने कैलाश पर्वत पर जाने से श्री परशुरामजी को रोक दिया था। उस समय परशुराम कीर्तीवीर्य अर्जुन का वध करके कैलाश की ओर शिव के दर्शन की अभिलाषा से जा रहे थे। वे भगवान शिव जी के परम भक्त थे। 

श्री गणेशजी के रोकने पर परशुरामजी ‍गणेशजी से विकराल युद्ध करने लगे। तभी गणेशजी ने उन्हें धूल चटा दी तब मजबूरन होकर उन्होंने शिव का दिए फरसे का उन पर प्रयोग किया जिसके चलते श्री गणेशजी का बायां दांत टूट गया। तभी से वह एकदंत कहलाने लगे।

13

ऐसा कहा जाता है कि पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया था । जिसे मोदक को देखकर दोनों बालक (कार्तिकेय तथा गणेश) माता से मांगने लगे। तब माता ने मोदक के महत्व का वर्णन कर उनसे कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके सर्वप्रथम सभी तीर्थों का भ्रमण कर आएगा, उसी को मैं यह मोदक अवश्य दुँगी। माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय ने तुरंत अपने मोर पर सवार होकर मुहूर्त भर में ही सब तीर्थों का स्नान कर लिया। इधर गणेश जी का वाहन चूहा होने की वजह से वे सारे तीर्थों का भ्रमण करने में असमर्थ थे। तब गणेशजी श्रद्धापूर्वक अपने माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख आकर खड़े हो गए।

यह देख माता पार्वतीजी ने कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान एवं सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग तथा संयम का पालन, ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिए यह गणेश सैकड़ों पुत्रों एवं सैकड़ों गुणों से भी बढ़कर है। अतः यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूँ। माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा – आराधना की जायेगी।

14

एक समय की बात है एक भाई – बहन दोनों रहते थे। बहन का यह नियम था कि वह अपने भाई के चेहरे को देखकर ही खाना खाती थी। प्रतिदिन वह सुबह को उठती थी एवं जल्दी-जल्दी अपना सारा काम – काज करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर को जाती थी। एक दिन रास्ते में एक पीपल के नीचे भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति रखी थी। उसने प्रभु के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरे जैसा अमर सुहाग एवं मेरे जैसा अमर पीहर सबको देना। यह कहकर वह आगे की ओर बढ़ जाती थी। जंगल के झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते थे। 

एक दिन वह अपने भाई के घर पहुंची और अपने भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो भाभी ने उससे पूछा कि तेरे पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को उत्तर दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों के गिरे हुए कांटे पांव में छुप गए हैं। जब वह वापस अपने घर आ जाए तब भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ते को साफ करवा दो, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे नुकीले कांटे चुभ गए हैं। भाई ने तब तुरंत कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता बिल्कुल स्वच्छ व साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया। यह देखकर प्रभु को बहुत गुस्सा आ गया तथा उसके भाई के प्राण हर लिए। 

लोग अंतिम संस्कार के लिए जब भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी रोते – बिलखते हुए लोगों से कहा कि थोड़ी देर रुक जाओ, उसकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। यह उसका यह नियम है। तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। रोज दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में गयी । तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे को बढ़ी तो उसने देखा कि भगवान श्री गणेश जी को भी वहां से हटा दिया गया हैं। तब उसने जाने से पहले गणेश जी को एक अच्छे स्थान पर रखकर उन्हें अच्छा – सा स्थान दिया और अपने हाथों को जोड़कर बोली कि हे प्रभु मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको देना और फिर यह सब बोलकर आगे को निकल गई। 

तब भगवान सोचने लगे अगर इसकी नहीं सुनी तो हमें कौन मानेगा, हमें कौन पूजेगा। तब श्री गणेश जी ने उसे आवाज दी, बेटी इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा तथा उसे एक कच्चे दूध में घोलकर भाई के उपर छींटा मार देना वह  तुरंत जीवित होकर बैठ जाएगा। यह सुनकर जब बहन पीछे मुड़ी तो वहां कोई नहीं था। फिर वह यह सोचने लगी कि ठीक है जैसा मैंने सुना मैं वैसा ही कर लेती हूं। फिर वह सात खेजड़ी की पत्तियां लेकर अपने भाई के घर पहुंची। उसने देखा वहां कई लोग बैठे हुए हैं। भाभी बैठी रो रही है एवं भाई की लाश रखी हैं। तब उसने उस पत्तियों को बताए हुए नियम के तहत भाई के उपर  इस्तेमाल किया। तब भाई जीवित होकर बैठ गया। तभी उसका भाई अपनी बहन से बोला मुझे बहुत ही गहरी नींद आ गई थी। तब बहन बोली यह नींद किसी दुश्मन को भी ना आए और उसने सारी बात अपने भाई को बता दी।

15

एक बार की बात है, कि प्रभु श्री गणेश गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी वक्त देवी तुलसी अपनी शादी की इच्छा मन में लिए अपनी यात्रा पर निकलीं। अपनी यात्रा के दौरान उनकी नजर गंगा किनारे तपस्या करते हुए प्रभु श्री गणेश जी पर पड़ी। उस समय प्रभु श्री गणेश एक सिंहासन पर बैठकर तपस्या कर रहे थे, उनके पूरे शरीर पर चंदन लगा हुआ था, उन्होंने जेवर पहन रखे थे एवं बहुत ही सुंदर फूलों की माला पहनी हुई थी। प्रभु श्री गणेश जी को देख देवी तुलसी उन पर बहुत आकर्षित हो गईं तथा उनके सामने अपना विवाह का प्रस्ताव रखा।

देवी तुलसी द्वारा तपस्या भंग होने से प्रभु श्री गणेश बहुत अधिक गुस्से में आ गए एवं विवाह का प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बात से देवी तुलसी भी बहुत क्रोधित हुईं। उन्होंने प्रभु श्री गणेश जी को श्राप दिया कि उनकी दो विवाह होंगें , वो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध। इससे प्रभु श्री गणेश और भी अधिक गुस्सा हो गए तथा उन्होंने भी देवी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह किसी असुर से होगा। यह सुनकर देवी तुलसी बहुत अधिक परेशान हुईं और उन्हें अपनी गलती का तुरंत एहसास हुआ। उन्होंने प्रभु श्री गणेश से क्षमा मांगी।

तब प्रभु श्री गणेश ने क्षमा को स्वीकार किया एवं उससे कहा कि श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता है, परन्तु तुम प्रभु विष्णु एवं प्रभु श्री कृष्ण की प्रिय बनोगी। भविष्य में तुम्हें एक पवित्र पौधे के रूप में पूजा जाएगा, परन्तु तुम्हे मेरी पूजा में बिल्कुल भी शामिल नहीं किया जाएगा।

16

प्राचीन काल में हर जगह राक्षसों का बड़ा आतंक फैला हुआ था। राक्षस देवी – देवताओं एवं ऋषि मुनियों को बहुत दुखी किया करते थे। ऐसा ही एक राक्षस अनलासुर नाम का था । अनलासुर ने हर जगह तवाही मचा रखी थी। सभी देवतागण उससे बहुत अधिक घबराते थे। जब अनलासुर के पाप बहुत अधिक बढ़ गए तब सभी देवतागण प्रभु शिव जी के पास पहुंचे। शिव जी ने उनसे कहा कि अनलासुर का विनाश सिर्फ गणेश जी के द्वारा हो सकता है।

तब शिव जी की यह बात सुनकर सभी देवतागण भगवान श्री गणेश जी के पास पहुंचे। श्री गणेश जी के सामने सभी देवतागण अपने हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले कि हे भगवन ! हमें इस निर्दयी राक्षस से बचाओ। देवताओं की ऐसी दैन्य स्थिति को देखकर श्रीगणेश जी उनकी सहायता के लिए तैयार हो गए.

इस घटना के पश्चात अनलासुर एवं श्री गणेश जी के बीच भयानक युद्ध होता है। गुस्से में आकर श्री गणेश अनलासुर को निगल जाते हैं। तभी अनलासुर का अंत हो जाता है, परन्तु श्री गणेश जी के पेट में बहुत ही तकलीफ होने लगती है। इस तकलीफ को ठीक करने के लिए सभी देवता एवं ऋषि-मुनि उपचार खोजने में लग जाते हैं, परन्तु किसी भी उपचार से श्री गणेश जी के पेट की परेशानी बिल्कुल कम नहीं होती।

तब कश्यप ऋषि दूर्वा की 21 गांठ खाने के लिए प्रभु श्री गणेश जी को देते हैं। और श्री गणेश जी को दूर्वा के सेवन से बिल्कुल आराम मिलता है और उनके पेट की परेशानी बिल्कुल शांत हो जाती है। इससे प्रसन्न होकर श्री गणेश जी उनसे कहते हैं कि आज के बाद जो कोई भी मुझे दूर्वा चढ़ाएगा, मैं उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।

17

एक गाँव में माँ-बेटी दोनों रहती थीं। एक दिन वह अपनी माँ से कहने लगी कि गाँव के सब लोग गणेश मेला देखने जा रहे हैं, मैं भी मेला देखने को जाऊँगी। माँ ने उससे कहा कि वहाँ बहुत अधिक भीड़ – भाड़ होगी कहीं गिर जाओगी तो चोट भी लगेगी। लड़की ने माँ की बात नहीं सुनी तथा मेला देखने को चल पड़ी।

माँ ने जाने से पहले उसने अपनी बेटी को दो लड्डू दिए तथा एक घड़े में पानी भी दिया। माँ ने उससे कहा कि एक लड्डू तो प्रभु श्री गणेश जी को खिला देना तथा थोड़ा – सा पानी भी पिला देना। दूसरा लड्डू तुम खा लेना और बचा पानी भी पी लेना। लड़की मेले को चली गई। मेला खत्म होने पर सभी गाँववाले वापस आ गए परन्तु वह लड़की वापस नहीं आई।

लड़की मेले में गणेश जी के पास बैठ गई एवं उनसे कहने लगी कि एक लड्डू तथा थोड़ा – सा पानी गणेश जी तुम्हारे लिए एवं एक लड्डू और बाकी बचा हुआ पानी मेरे लिए है। इस तरह कहते-कहते सारी रात बीत गई।

गणेश जी यह देखकर सोचने लगे कि अगर मैने यह एक लड्डू एवं पानी नहीं पिया तो यह अपने घर बिल्कुल भी नहीं जाएगी। यह सोचकर प्रभु श्री गणेश जी एक लड़के के भेष में आए एवं उससे एक लड्डू लेकर खा लिया तथा साथ ही थोड़ा पानी भी पी लिया फिर वह कहने लगे कि माँगो तुम मुझसे क्या माँगती हो?

लड़की मन ही मन सोचने लगी कि मैं इनसे क्या माँगू? अन्न – धन माँगू या अपने लिए एक अच्छा –सा वर माँगू. वह मन में सोच रही थी तो प्रभु श्री गणेश जी उसके मन की बात को समझ गए। वह लड़की से बोले कि तुम अपने घर को जाओ तथा तुमने जो भी अपने मन में सोचा है वह सब तुम्हें अवश्य मिल जाएगा।

लड़की घर पहुँची तो उसने अपनी माँ ने पूछा कि इतनी देर कैसे हो गई? बेटी ने कहा कि आपने जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया है और देखते ही देखते जो भी लड़की ने सोचा था वह सब कुछ अपने आप परिवर्तित हो गया।

18

एक सास और बहु थी | सास अपनी बहु को भोजन नहीं देती थीं | बहु प्रतिदिन नदी पर जाती तो जाते वक्त अपने घर से आटा ले जाती | नदी के पानी से आटा गूंधती | फिर प्रभु श्री गणेश जी के मन्दिर के दीपक से घी लेती तथा भोग में से गुड़ लेती एवं पास के श्मशान में रोटी सेकती | फिर रोटी में घी गुड मिलाकर चूरमा बनाती एवं प्रभु श्री गणेश जी को भोग लगा कर खा लेती | ऐसा करते उसे बहुत दिन हो गये यह देखकर प्रभु श्री गणेश जी को बहुत आश्चर्य हुआ एवं उन्होंने अपने नाक पर ऊँगली रख ली |

बहु तो अपने घर को आ गई परन्तु जब दूसरे दिन मन्दिर के दरवाजे खुले तो लोगो ने देखा कि प्रभु श्री गणेशजी की नाक पर ऊँगली हैं तो मन्दिर में भीड़ एकत्रित होने लगी| गाँव के लोगो ने हवन ,पूजा – अर्चना की परन्तु प्रभु श्री  गणेशजी ने अपनी ऊँगली नाक से नहीं हटाई | तब सारे गाँव में यह कहलवा दिया कि जों कोई प्रभु श्री गणेश जी के नाक से ऊँगली हटवायेगा उसे राजाजी सम्मानित करेंगे | बहु ने अपनी सास से कहा सासुजी मैं प्रयत्न करके देखुंगी तब उसकी सास बोली इतने बड़े – बड़े विद्धवान व ज्योतिषियों ने बहुत प्रयत्न किया फिर भी प्रभु श्री गणेश जी नाक से उंगली नहीं हटा पाए फिर तू क्या करेगी |

सब लोग मन्दिर के बाहर एकत्रित हो गये बहु घुंघट निकाल कर मन्दिर के अंदर गयी और पर्दा लगाया एवं प्रभु श्री गणेश जी से हाथ जोड़ कर बोली हे विघ्नहर्ता मैं अपने घर से आटा लाती , लोगो का चढाया घी , गुड़ लेती, श्मशान में रोटी सेकती फिर उससे आपको क्या आपति हुई | आपको अपनी नाक पर से से ऊँगली हटानी पड़ेगी | तब प्रभु श्री गणेश जी ने सोचा इसकी बात तो मान नी पड़ेगी | इसने पहले मुझे भोग लगाया | यह तो मेरी सर्वप्रथम भक्त हैं | प्रभु श्री गणेश जी ने तुरंत अपनी ऊँगली हटा ली |और बहू को आशीर्वाद दिया  कि इस गाँव में सभी प्रेम से रहेंगे | बहू मन्दिर से बाहर को आ गई.

सब गाँव वालो ने कहा बहू तूने ऊँगली कैसे हटवाई तू तो बहुत भाग्यशाली हैं | तब बहु ने सारी बात गाँव वालो को बताई कि मेरी सास मुझे बिल्कुल भोजन नहीं देती थी , तब मैं घर से आटा लाकर , तथा श्मशान में रोटी बनाकर प्रभु श्री गणेशजी को भोग लगाकर स्वयं खा लेती इसलिये प्रभु श्री गणेशजी को यह आश्चर्य हुआ तथा उन्होंने अपनी नाक पर ऊँगली रख ली , और मेरी प्रार्थना पर ऊँगली हटा ली एवं मुझे यह वरदान भी दिया कि अब इस गाँव में सभी लोग प्यार – मोहब्बत से रहेंगे |

19

एक समय की बात है, एक गांव में भोला नाम का व्यक्ति रहता था, वह अपने भगवान श्री गणेश जी की पूजा – आराधना किया करता था, वह प्रतिदिन सुबह उठकर मंदिर में जाया करता था, जब वह बीमार पड़ जाता था, तब भी वह पूजा – पाठ करना बिल्कुल भी नहीं छोड़ता था, एक दिन की बात है, भोला की पत्नी अपने घर पर गयी हुई थी, भोला अपने घर पर बिल्कुल अकेला ही था, उसकी तबियत बहुत बिगड़ गयी थी,

भोला बहुत ही कठिनाई से उठ पाया था, भोला की तबियत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी, कि भोला घर पर बिल्कुल अकेला था, और कुछ भी कर न पा रहा था भोला यह सोच रहा था कि आज तबियत भी ठीक नहीं है, और घर पर भी कोई नहीं है, आज पता नहीं क्या होगा कुछ खाने के लिए भी अभी नहीं बना पाया हूँ,  अगर मुझे पता होता कि मेरी तबियत ठीक नहीं होगी तो मैं अपनी पत्नी को बिल्कुल नही भेजता, परन्तु अब क्या किया जा सकता है,

भोला की तबियत इतनी ठीक नहीं थी की वो अपने घर से भी बहार की ओर चला जाए, तभी उसके दरवाजे पर एक दस्तक हुई, और भोला ने आवाज लगा कर पूछा कि कौन है भई, तभी बाहर से आवाज आयी कि मैं तुम्हारी काकी हूँ , भोला ने जब सुना कि काकी आयी है, तो भोला को थोड़ा अच्छा लगा था, भोला ने काकी से कहा कि मेरा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है, और मेरी पत्नी भी यहाँ नहीं है, काकी ने कहा कि कोई बात नहीं मैं सब कुछ बना दूंगी तुम्हे भूख भी लगी होगी, काकी ने सब भोजन तैयार कर लिया था, 

भोला एवं काकी ने साथ में ही भोजन खाया था, भोला को अब अच्छा लग रहा था, भोला की तबियत भी कुछ ठीक – ठाक हो रही थी, अगले दिन काकी वापस अपने गांव की तरफ चली गयी थी, भोला की अब तबियत बिल्कुल ठीक थी, भोला ने अपने प्रभु को धन्यवाद दिया, दो दिन बाद उसकी पत्नी वापस आ गयी थी, परन्तु जब भोला ने देखा तो उसकी पत्नी के साथ उसकी काकी भी आयी है तो भोला को कुछ अजीब – सा महसूस हो रहा था, भोला इससे पहले कुछ पूछता, भोला की पत्नी ने कहा कि काकी भी मेरे साथ आने की ज़िद कर रही थी,

क्योकि बहुत समय बीत गया था, काकी हमसे मिली ही नहीं थी, भोला कुछ देर तक तो सोचता रहा फिर उसकी समझ में आ गया था, जब वो बीमार था तब हमारे प्रभु हमारी सहायता करने आये थे, वो प्रभु श्री गणेश ही थे जिन्होंने मेरी सेवा की थी, भोला ने अपनी पत्नी को सब कुछ सच बतला दिया था, प्रभु ही उसके घर आये थे, तथा उन्होंने ही मुझे बहुत जल्दी ठीक कर दिया था, अब भोला की पत्नी भी भोला के साथ ही पूजा – अर्चना करती थी, अब दोनों ही प्रभु श्री गणेश जी की कृपा से बहुत अधिक प्रसन्न थे, उनका जीवन भी बहुत अच्छे तरीके से चल रहा था.

20

कहा जाता है कि एक बार प्रभु श्री गणेश, भगवान शिव एवं माता पार्वती के साथ अनुसुइया के घर पर गए. उस समय प्रभु श्री गणेश , भगवान शिव एवं  माता पार्वती तीनों को बहुत जोर की भूख लगी हुई थी तो माता अनुसुइया ने भगवान भोलेनाथ से कहा कि मैं पहले बाल गणेश को भोजन करा दूं, तत्पश्चात आप लोगों को कुछ खाने को देती हूं.

वो लगातार बहुत देर तक प्रभु श्री गणेश जी को भोजन कराती रहीं, परन्तु फिर भी उनकी भूख बिल्कुल भी शांत नहीं हो रही थी. इससे वहां उपस्थित सभी लोग हैरान थे. इधर भोलेनाथ अपनी भूख को काबू में किए बैठे थे. आखिर में अनुसुइया ने सोचा कि उन्हें कुछ मीठा खिलाया जाए. भारी वजन होने के कारण मीठे से शायद प्रभु श्री गणेश जी की भूख अवश्य मिट जाए. ये सोचकर उन्होंने प्रभु श्री गणेश जी को मिठाई का एक टुकड़ा दिया, जिसको खाने के पश्चात प्रभु ने जोर से एक डकार मारी एवं उनकी भूख बिल्कुल शांत हो गई.

उसी समय भोलेनाथ ने भी जोर – जोर से तकरीबन इक्कीस बार डकार ली तथा कहा उनका भी पेट भर गया, और बाद में देवी पार्वती ने अनुसुइया से उस मिठाई का नाम पूछा जो उन्होंने अपने बाल गणेश को परोसी थी, तब माता अनुसुइया ने उनसे कहा कि इस मिठाई को मोदक कहते हैं. तब से प्रभु श्री  गणेश जी को कम से कम इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाने की परंपरा आरंभ हो गई है. माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु श्री गणेश जी के साथ – साथ सभी देवी – देवताओं का पेट भर जाता है और वे अत्यधिक प्रसन्नचित होते हैं.