आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में Kalyug ki Shuruaat के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं कलयुग में मनुष्य की लंबाई पांच फिट पांच इंच अर्थात लगभग साढ़े तीन हाथ बताई गई है इस युग में धर्म का सिर्फ एक चौथाई अंश ही रह जाता है इस युग में पाप की मात्रा 75% जबकि पुण्य की मात्रा 25% होती है.
Kalyug ki shuruaat kab hui thi
आप सभी के मन में भी यह विचार आ रहा होगा कि कलयुग अपने चरम पर है और यही जीवन का अंत है परंतु यह सत्य नहीं है हिन्दू शास्त्र सूर्य सिद्धांत में वर्णन के अनुसार वास्तव में कलयुग का आरंभ हुए अभी ज्यादा अरसा नहीं हुआ है बल्कि यह तो कलयुग का आरंभ है और इसका अंत होने में अभी काफी समय शेष है
कलयुग का आरंभ कैसे हुआ इस विषय पर वर्णन हेतु यदि हम अपने हिंदू शास्त्रों और पुराणों , महाभारत , मनुस्मृति , विष्णु स्मृति और सूर्य सिद्धांत जैसे ग्रंथों के पन्ने पलटे तो हमें कलयुग काल के भयाभय प्रभाव के बारे में पता चलता है.और ऐसी बहुत सी गाथाएं सामने आती है जो कि कलयुग से जुड़ी है इनमें से सबसे प्रसिद्ध गाथा के अनुसार कलयुग का पृथ्वी पर आगमन राजा परीक्षित की एक भूल से जुड़ी है
इस पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए आइए जानते हैं कि वह कौन सी भूल थी जिसके परिणाम स्वरूप कलयुग धरती पर आया बल्कि यहीं का होकर रह गया मित्रों आज की हमारी यह पोस्ट कलयुग के आरंभ से जुड़ी इसी सत्यता को प्रखर करती है.उस संदर्भ के बारे में जो कलयुग के आरंभ से जुड़ा है सबसे प्रचलित संदर्भ है जी हां महाराजा परीक्षित से जुड़ी वो गाथा जिसकी चर्चा हमने इस पोस्ट के आरंभ में की थी जिसके फलस्वरूप ही राजा परीक्षित को पृथ्वी पर कलयुग के डेरा जमाने का जिम्मेदार ठहराया गया है क्या थी वो भूल आइए जानते है इस पोस्ट के इस भाग में.
क्या आपने कभी सोचा है ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिसके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा महाभारत की समाप्ति के साथ द्वापर युग की समाप्ति के दिन भी समीप आ रहे थे तब धरती पर अपनी भूमिका पूरी कर रहे श्री कृष्ण वैकुण्ठ धाम लौट गये तब पांडवों का मन भी इतने रंच और हिंसा के बाद धरती पर नहीं लग रहा था.
और उन्होंने सब कुछ त्याग मोक्ष यात्रा पर जाने का निर्णय लिया और धर्मराज युधिष्ठिर ने अपना पूरा राजपाठ परित्याग कर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परीक्षित को सौंप दिया जिसमें उन्होंने परीक्षित को सर्व अधिकारियों के साथ सम्राट घोषित कर दिया और अन्य पांडवों और द्रौपदी सहित महाप्रयाण हेतु हिमालय की ओर निकल गए अब धरती पर राजा परीक्षित का राज था जो भगवान कृष्ण माता लक्ष्मी और भीष्म जैसे विधुर जैसे विद्वानों के अभाव में अच्छे से राजपाठ चलाने का प्रयास कर रहे थे.
कहा जाता है कि पांडव और द्रौपदी जब हिमालय मोक्ष यात्रा पर चले गए तब एक दिन स्वयं धर्म बैल का रूप लेकर और गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी सरस्वती नदी के किनारे एक – एक छोर पर बैठे वार्तालाप कर रहे थे गाय के रूप में बैठी पृथ्वी के नयन आसुओं से भरे हुए थे उनकी आंखों से लगातार अश्रु बहे जा रहे थे पृथ्वी को दुखी देख धर्म रूपी बैल ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा धर्म ने कहा देवी कहीं तुम यह देख कर तो नही घबरा गई कि मेरा बस एक ही पैर है या फिर तुम इस बात से दुखी हो अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा यह सवाल का जवाब देते हुए प्रथ्वी देवी बोली हे धर्म तुम तो सब कुछ जानते हो ऐसे में मुझसे मेरे दुखों का कारण पूछने से क्या लाभ. सत्य , मित्रता , त्याग , दया , शास्त्र , विचार , ज्ञान , वैराग्य , ऐश्वर्य , निर्भीकता , कोमलता , धैर्य आदि के स्वामी भगवान श्री कृष्ण के अपने धाम चले जाने की वजह से कलयुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है श्री कृष्ण के चरण कमल मुझ पर पड़ते थे जिसकी वजह से मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती थी परंतु अब ऐसा नहीं है अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो चुका है धर्म और प्रथ्वी आपस में बात चीत कर ही रहे थे इतने में असुर रुपी कलयुग वहाँ आ पहुँचा और धर्म और पृथ्वी रुपी गाय और बैल को मारने लगा उसी समय राजा परीक्षित उसी मार्ग से गुजर रहे थे जब उन्होंने अपनी आंखों से यह दृश्य देखा तो वह कलियुग पर बहुत क्रोधित हुए राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा दुष्ट पापी तू कौन है और क्यों इस निपराध गाय और बैल को मार रहा है तू महा अपराधी है तेरा अपराध क्षमा योग्य भी नही इसलिए तेरी मौत निश्चित है.
इतना कहते हुए राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलयुग को मारने के लिए आगे बड़े राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलयुग थरथर कांपने लगा भय भीत कलयुग अपनी राष्ट्रीय वेशभूषा पुकार राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा राजा परीक्षित ने भी अपनी शरण में आए कलयुग को अपने जीवन की भींख मागता देख उसे मारना उचित नहीं समझा और उसे चेतावनी देते हुए कहा कि कलयुग तू मेरी शरण में आ गया है इसलिए मैं तम्हें जीवनदान दे रहा हूँ किंतु अधर्म , पाप , झूट , चोरी , कपट , दरिद्रता आदि अनेक द्रवों का मूल्य कारण तू ही है तू मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौट कर नहीं आना कलयुग ने राजा परीक्षित की बात सुनकर बड़ी चतुरता से कहा कि पूरी पृथ्वी पर आप का निवास है पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं जहां आप का राज नहीं हो ऐसे में मुझे से तुक्ष को पृथ्वी पर रहने के लिए आप स्थान प्रदान कीजिए कलयुग के यह कहने पर राजा परीक्षित ने काफी सोच विचार कर कहा असत्य , मध्य , काम , क्रोध का निवास जहाँ भी होता है इन चार स्थानों पर तुम रह सकते हो.
परन्तु इस पर कलयुग बोला हे राजन यह चार स्थान मेरे रहने कि के लिए अपर्याप्त हैं मुझे अन्य क्ज्घ भी प्रदान कीजिए कलयुग की यह माँग सुन राजा परीक्षित ने विचार कर कलयुग को रहने के लिए स्वर्ण के रूप में पांचवा स्थान प्रदान किया कलयुग में स्थानों के मिल जाने पर प्रत्यक्ष रूप से तो वहां से चला गया किन्तु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा और फिर इसी तरह से कलयुग का आगमन धरती पर हुआ.
मार्कंडेय पुराण में वर्णन मिलता है कि कलयुग के शासक मनमानी ढंग से जनता पर राज करेंगे , मनचाहे ढंग से उससे लगान वसूल करेंगे , शासक ने राज्य में धर्म की जगह डर और भय का प्रचार करेंगे , बड़ी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा , लोग सस्ती चीजों की तलाश में अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो जायेंगे , धर्म को नजरअंदाज किया जाएगा और लालच , झूठ और कपट सबके दिमाग के ऊपर हावी रहेगा , लोग बिना किसी पक्षपात के हत्यारों बनकर लोगों की हत्या भी करेंगे , संभोग ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत बन जायेगी , लोग बहुत जल्दी कसमें खाएंगे और उसे तोड़ भी देंगे , लोग मदिरा और अन्य नशीली चीजों की चपेट में आ जाएंगे , गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा भी समाप्त हो जाएगी , ब्राह्मण ज्ञानी नहीं रहेगी , क्षत्रियों का साहस खत्म हो जाएगा और वह वैश्य अपने व्यापार में ईमानदार नहीं रहेगा , जीवन में अनुभव कर रहे हर एक बुरी स्थति के लिए कोसे जाने वाला यह कलयुग किन कारणों की वजह से मनुष्य के किये हर कुर्ति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है.
इसके पीछे का क्या कारण है कि इसकी वजह से चाहे किसी व्यक्ति की आपसी द्वेष के कारण हत्या कर दी गई हो , किसी नाबालिक कन्या के साथ दुष्कर्म हुआ हो , अपने ही पुत्र ने माता-पिता को घर से निकाल दिया हो या धन के लोग में पत्नी ने पति की हत्या कर दी हो या धन प्राप्ति की लालसा मनुष्य को अपने ही प्रिय को मारने पर विवश कर दें और किसी भले पुरुष की की गई भलाई उसी पर भारी पड़ जाए तो ऐसे में उस दोषी से ज्यादा कलयुग को यह कहकर दोषी ठहराया जाता है कि ऐसा ना हो ना तो निश्चित था कलयुग जो है हर एक कुकरती के लिए कलयुग ही जिम्मेदार है.
मित्रों आपने शास्त्रों और पुराणों में युग चक्र के बारे में सुना ही होगा एक युग लाखो वर्षों का होता है जो एक चक्र के समान गतिमान है जिसके फलस्वरूप प्रत्येक युग के समय काल समाप्त होने के पश्चात एक निश्चित समय अंतराल की क्रमानुसार दूसरे युग का आरंभ होना निश्चित है साथ ही आपको यह भी बता दें कि पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष , त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष , द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलयुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है.
काल गणना के अनुसार चार युवकों की अवधारणा में सतयुग , द्वापर युग , त्रेता युग के बाद चौथा और सबसे अंतिम कलयुग ही है कलयुग का अर्थ है कली की आयु , अन्धकार का युग , उपदुःख की उम्र या झगड़े और पाखंड की उम्र होता है.
कलयुग के इस अर्थ को आप संभवता वर्तमान में चल रही भया भय स्थति से जोड़ पा रहे होंगें वैसे अगर प्राचीन पुराणों को उठाकर देखा जाए तो उसमें इस संसार के अंत को लेकर कई बातें बताई गई है गीता में भी भगवान विष्णु ने कलयुग के आरंभ होने और इस संसार के अंत के बारे में कई बातें बताई हैं ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव ने विष्णु जी को इस संसार की जिम्मेदारी सौंपी थी और भगवान विष्णु ने गीता के कुछ भागों में कलयुग के आरंभ और अंत के बारे में बताया है और जिसके अनुसार इस संसार के अंत के पीछे का कारण एक महिला को बताया है और कलयुग के आरंभ में कुछ संकेत देते हुए क्रत्यों कास वर्णन किया है.
जो आपके कलयुग के आरंभ में संकेत देता है गीता में वर्णन के अनुसार जब एक स्त्री अपने श्रंगार रुपी बाल काटने लगेगी जिस दिन बेटा अपने पिता पर हाथ उठा देगा जब चारों ओर सिर्फ असत्य का बोलबाला होगा और सत्य का कोई महत्व नहीं रह जाएगा जब स्त्रियां अपने घर में ही सुरक्षित महसूस नही करेंगी , लोगों के अंदर से भय खत्म हो जाएगा और उनकी अकाल मृत्यु होना आरंभ हो जाएगी जो कि बहुत कष्टदायी होगी.
गीता में कठित भगवान विष्णु के अनूसार तब समझ ले कि काल रूपी कलयुग आपके दरवाजे पर खड़ा है आप यह सोच रहे होंगे कि यह सभी संकेत तो हमारी वर्तमान स्थिति को कहीं ना कहीं शब्दों के रूप में बयां कर रहे हैं तो मित्रों प्रतीक्षा कीजिए इसका और भी विकराल रूप अभी आना बाकी है क्या हम सब ने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि ऐसे क्या कारण होंगे जिसके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभट्टीयम में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वे तेईस वर्ष के थे तब कलयुग का तीन हजार छ सौ वर्ष चल रहा था.
आंकड़ो के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसापूर्व में हुआ था मध्यकाल की भारतीय ज्योतिषियों ने माना है कि कलयुग एवं कल्प के प्रारंभ में सभी ग्रह सूर्य एवं चंद्र को मिलाकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार की सूर्य उदय के समय एक साथ एकत्र थे अधिकतर विद्वानों के अनुसार कलयुग का प्रारंभ तीन हजार एक सौ दो ईसापूर्व हुआ था इस मान से कलयुग का काल चार लाख छत्तीस हजार साल लंबा चलेगा अभी कलयुग का प्रथम चरण ही चल रहा कलयुग का प्रारंभ चार लाख छत्तीस हजार , तीन हजार एक सौ दो ईसापूर्व हुआ था जब 5 ग्रह मंगल , बुध , शुक्र , बृहस्पति और शनि मेष राशि पर शून्य डिग्री पर हो गए थे.
गणना की जाए तो 5122 वर्ष कलयुग के बीत चुके हैं और 426882 वर्ष अभी बाकी है श्रीमद्भागवत पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है इसके अनुसार सुखदेव जी राजा परीक्षित को कलयुग के संदर्भ में चर्चा करते हुए बताते हैं कि जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में विश्राम कर रहे थे तब कली काल का प्रारंभ हो गया था कलयुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से बारह सौ वर्ष की अर्थात मनुष्य की गणना अनुसार चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की है यदि इन चारों कालो में अंतर करने में आपको कोई कठिनाई हो रही हो तो उसका विस्तार करते हुए हम आपको बता दें
सतयुग – सतयुग में मनुष्य की लंबाई 32 फीट अर्थात इक्कीस हाथ बताई गई है इस युग में पाप की मात्रा 0% और पुण्य की मात्रा सौ फीसदी होती है.
त्रेता युग – त्रेता युग में मनुष्य की लंबाई इक्कीस फिट अर्थात लगभग चौदह हाथ बताई गई है इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% होती है.
द्वापर युग – द्वापर युग में मनुष्य की लंबाई ग्यारह फिट अर्थात लगभग सात हाथ बताई गई है इस युग में पाप की मात्रा 50% जबकि पुण्य की मात्रा 50% होती है.
कलयुग – कलयुग में मनुष्य की लंबाई पांच फिट पांच इंच अर्थात लगभग साढ़े तीन हाथ बताई गई है इस युग में धर्म का सिर्फ एक चौथाई अंश ही रह जाता है इस युग में पाप की मात्रा 75% जबकि पुण्य की मात्रा 25% होती है.