sita ka shraap SITA KA SHRAP|ये 5 लोग आज भी भुगत रहे हैं सीता माता का श्राप

SITA KA SHRAP|ये 5 लोग आज भी भुगत रहे हैं सीता माता का श्राप

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सीता माता का श्राप

आज यहाँ SITA KA SHRAP माता सीता की एक ऐसी घटना के बारे में बतायेंगे जिसमें माता सीता ने क्रोधित होकर इन पांच को श्राप दे दिया था जो आज कलयुग में भी यह पांचो भुगत रहे हैं. माता सीता ने क्यों दिया गाय ,कौआ ,तुलसी फल्गु नदी और ब्राह्मण को श्राप तथा क्यों माता सीता ने किया दशरथ जी का पिंडदान .

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सीता माता के श्राप की कहानी

जब श्री राम माता सीता और लक्ष्मण जी वनवास काट रहे थे , तब श्री राम और लक्ष्मण के पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी. उसी दौरान पितृपक्ष था और उन्हें पिंडदान करना था जो किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर होता है. इसलिए यह तीनों गया के फल्गु नदी के तट पर पहुंचे.

कहते हैं जब श्री राम लक्ष्मण और देवी सीता गया के फल्गु नदी पहुंचे तब श्री राम ने पंडित जी से पूजा की सामग्री के विषय में पूछा .जिसके पश्चात उन्होंने लक्ष्मण जी को पास के गांव में पूजा के लिए जरूरी सामान लाने को कहा,जब काफी देर बाद लक्ष्मण जी नहीं लौटे तो श्रीराम ने खुद ही जाकर लक्ष्मण जी की खोज खबर लेने का निर्णय लिया .वहीं दूसरी ओर पंडित जी बार-बार उन्हें शुभ मुहूर्त के निकल जाने के बारे में बता रहे थे साथ ही उन्हें अपनी तैयारियां जल्दी पूरी करने के लिए भी कह रहे थे.

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सीता जी की चिंता

श्री राम तुरंत लक्ष्मण की खोज में निकल पड़े इधर जैसे जैसे समय बीत रहा था सीता जी की चिंता भी बढ़ रही थी समय बीत रहा था और श्री राम तथा लक्ष्मण लौटे ही नहीं थे इस बार देवी सीता ने यह निर्णय लिया कि उनके पास पूजा के लिए जो भी सामग्री उपलब्ध है वह उन्ही से स्वयं पूजा करेंगी.

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सीता जी ने किया पिंड दान

तब देवी सीता ने पंडित जी से कहा कि श्री राम और लक्ष्मण को लौटने में देर हो रही है, इसलिए मैं पूजा आरंभ कर देती हूँ .शायद तब तक वे वापस आ जाए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह अकेले ही यह पूजा समाप्त कर लेंगी. विधिपूर्वक पूजा करने के पश्चात देवी सीता ने अंत में पिंडदान किया और जैसे ही उन्होंने प्रार्थना करने के लिए अपने हाथ जोड़े और आंखें बंद कि उन्हें एक दिव्य स्वर सुनाई दिया कि उनकी पूजा संपन्न हुई और स्वीकार भी हो गई . यह सुनकर देवी सीता को बहुत प्रसन्नता हुई और साथ ही उन्हें इस बात की शांति मिली कि उनकी पूजा सफल हुई और राजा दशरथ ने उसे स्वीकार कर ली.

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क्यूँ दिया सीता माता ने श्राप

हालांकि वे इस बात को भी भली-भांति जानती थी कि श्री राम और लक्ष्मण इस बात पर भरोसा नहीं करेंगे क्योंकि माना जाता है ऐसी पूजा बिना पुत्रों की पूरी नहीं होती तब सीताजी ने फल्गु नदी पूजा में इस्तेमाल होने वाली गाय,वट वृक्ष,कौए ,तुलसी के पौधे और उस पंडित को इस बात का साक्षी बनने को कहा. उन सभी उनकी आज्ञा का पालन किया. श्री राम को लाख समझाने के बाद भी जब उन्होंने सीता जी की बात नहीं मानी तब सीताजी ने सभी साक्षियों से अनुरोध किया कि वे श्रीराम को सच्चाई बताएं किंतु श्रीराम के क्रोध को देखकर किसी की  भी सत्य कहने की हिम्मत नहीं हुई , केवल वटवृक्ष ने श्रीराम को सारी बात बताई .इस बात से देवी सीता बहुत दुखी हुई और क्रोधित होकर उन सभी को श्राप दे दिया.

सीता जी ने किसे क्या श्राप दिया

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देवी सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि वह सिर्फ नाम की नदी रहेगी उसमें पानी नहीं रहेगा इसी कारण आज भी इस नदी में पानी ना होने के कारण यह सूखी पड़ी है, फिर सीता जी ने गाय को श्राप दिया कि उसके पूरे शरीर की पूजा नहीं की जाएगी हिंदू धर्म में केवल उसके शरीर के पिछले हिस्से को ही पूजनीय माना जाएगा ,साथ ही उसे यहां-वहां भटकने का भी श्राप दिया.सीता जी ने पंडित जी को भी कभी संतुष्ट ना रहने का भी श्राप दिया इस कारण पंडित दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होता.

तुलसी जी को सीता ने श्राप दिया कि वह गया की मिट्टी में कभी नही उगेगी. सीता जी ने कौए को हमेशा लड़ -झगड़ कर खाने का श्राप दिया था,केवल वट वृक्ष को सीता ने आशीर्वाद दिया कि पिंड दान में इस वृक्ष की उपस्थिति जरूरी होगी. साथ ही देवी ने वट वृक्ष को लंबी आयु और दूसरों को छाया प्रदान करने का भी वरदान दिया तथा यह भी कहा कि पतिव्रता स्त्रियां इस वृक्ष की पूजा करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करेंगी.