जान लें पांच भगवान शिव के रहस्यमई मंदिर कौन-कौन से हैं भगवान शिव के चमत्कारी मंदिर

भगवान शिव के रहस्यमई मंदिर | कौन से हैं 5 चमत्कारी मंदिर

Dharmik Chalisa & Katha

भगवान शिव के रहस्यमई मंदिर पूरे भारत में भोले भंडारी भगवान शिव के अनेकों मन्दिर हैं जिसमें से कुछ के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन मैं आपको भगवान शिव के पांच ऐसे रहस्यमयी मन्दिरों के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में आपने शायद ये सुना होगा जिनके बारे में आप जानकर हैरान हो जायेंगे तो चलिए शुरू करते हैं

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स्तंभेश्वर महादेव मन्दिर

स्तंभेश्वर महादेव मन्दिर की बनावट

यह मन्दिर अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित है १५० साल पहले खोजे गये इस मन्दिर का उल्लेख महा शिव पुराण के रूद्र संहिता में मिलता है इस मन्दिर के शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और 2 फुट के व्यास वाला है 

स्तंभेश्वर महादेव मन्दिर कैसे और कब गायब हो जाता है

स्तंभेश्वर महादेव का यह मन्दिर सुबह और शाम दिन में दो बार पल भर के लिए गायब हो जाता है और कुछ देर के बाद उसी जगह पर वापस भी आ जाता है जिसका कारण अब अरब सागर में उठानेवाले ज्वार और भाटा को बताया जाता है जिस कारण श्रद्धालु मन्दिर के शिवलिंग का दर्शन तभी कर सकते हैं जब समुंद्र की लहरें पूरी तरह शांत तब ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है यह प्रक्रिया प्राचीन समय से ही चली आ रही है।

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मन्दिर आने वाले श्रद्धालु को कौन-सी पर्चियां बाटी जाती है

यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालु को एक ख़ास पर्चे बांटे जाते हैं जिनमे ज्वार भाटा आने का समय लिखा होता है ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यहाँ आने वाले श्रद्धालु को परेशानी का सामना न करना पड़े।

स्तंभेश्वर महादेव मन्दिर से जुड़ी कथा

इसके अलावा इस मन्दिर से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार राक्षस ताड़का सुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, एक दिन शिव जी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा उसके बाद वरदान के रूप में ताड़का सुर ने शिव से माँगा कि उसे सिर्फ शिव जी का ही पुत्र ही मार सकेगा और वो भी छ दिन की आयु का। शिव जी ने यह वरदान ताड़का सुर को दे दिया और अंतर्ध्यान हो गये

इधर वरदान मिलते ही ताड़का सुर तीनों लोक में हा हा कार मचाने लगा। जिसे से डरकर सभी देवता गण शिव जी के पास गये देवताओं के आग्रह पर शिव जी ने उसी समय अपनी शक्ति से श्वेत पर्वत कुंड से छ मस्तष्क चार आँख और बारह हाथ वाली एक पुत्र को उत्पन्न किया जिसका नाम था कार्तिकेय।जिसके पश्चात कार्तिकेय ने छ दिन की उम्र में ताड़का सुर का वध किया

लेकिन जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़का सुर भगवान शंकर का भक्त था तो वो काफी व्यतीत हो गये फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा उस स्थान पर एक शिवालय बनवा दें इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर वहीं सागर संगम तीर्थ पर विश्वनन्द स्तंभ की स्थापना की जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।

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निष्कलंक महादेव

निष्कलंक महादेव निवास स्थान

 यह मन्दिर गुजरात के भावनगर में कोल्या तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है रोज अरब सागर की लहरे यहाँ के शिवलिंगों को जलाभिषेक करती है

निष्कलंक महादेव दर्शन का तरीका

लोग पैदल चलकर ही इस मन्दिर में दर्शन करने आते हैं इसके लिए उन्हें ज्वार उतरने का इंतजार करना पड़ता है ज्वार के समय सिर्फ मन्दिर का खंभा और पताका ही नजर आता है जिसे देखकर यह अंदाजा भी नही लगाया जा सकता कि समुंद्र में पानी के नीचे भगवान महादेव का प्राचीन मन्दिर भी है।

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निष्कलंक महादेव, एक महाभारत कालीन

श्री कृष्ण ने पांडवों को अपने पाप धोने का क्या उपाय बताया

यह मन्दिर महाभारत कालीन बताई जाती है ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों का वध कर युद्ध जीता था पर युद्ध समाप्ति के बाद पांडवों को ज्ञात हुआ कि उसने अपने ही सगे संबंधियों की हत्या कर महापाप किया है। इस महापाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्री कृष्ण के पास गये

जहाँ श्री कृष्ण ने पांडवों को पाप से मुक्ति के लिए एक कलर ध्वजा और एक काली गाय सौपी और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा, और कहा कि जब गाय और ध्वजी का रंग काली से सफेद हो जाय तो समझ लेना कि तुम सबको पाप से मुक्ति मिल गई है साथ ही श्री कृष्ण ने पांडवों से यह भी कहा था कि जिस जगह पर यह चमत्कार होगा वहीं पर तुम भगवान शिव की तपस्या भी करना।

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पांडवों ने पाप से मुक्ति कैसे पाए

पाँचों भाई भगवान श्री कृष्ण के कहे अनुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय पीछे चलने लगी। इसी क्रम में वो सब कई दिनों तक अलग-अलग जगहों पर गये लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला। जब वो वर्तमान गुजरात में स्थित कोलिया तट पर पहुँचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफेद हो गया। इससे पांचो पांडव भाई बड़े खुश हुए और वहीं पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे।

भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से खुश हुए और पांचो पांडवों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। पांचो लिंग अभी भी वहीं स्थित है पांचो शिवलिंग के सामने नन्दी की प्रतिमा अब भी है पाँचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए हैं तथा यह कोलिया समुन्द्र तट से पूर्व की ओर तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है जो इसे पांडव तालाब कहते हैं श्रद्धालु पहले इसमें अपने हाथ पाँव धोते थे और फिर शिव लिंगों की पूजा, अर्चना करते थे।

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मंदिर का नाम निष्कलंक महादेव कैसे पड़ा

चूँकि यहाँ पर आकर पांडवों को अपने भाइयों की हत्या कलंक से मुक्ती मिली थी इसीलिये इसे निष्कलंक महादेव भी कहते हैं।

भाद्रवी मेला

भादों के महीने में अमावस्या को यहाँ भी मेला लगता है जिसे भाद्रवी मेला कहा जाता है प्रत्येक अमावस्या के दिन यहाँ भक्तों के विशेष भीड़ रहती है लोगों की ऐसी मान्यता है कि यदि हम अपने प्रियजनों की चिता की राख शिवलिंग पर लगाकर जल में प्रभाहित कर दें तो उनको मोक्ष मिल जाता है मन्दिर में भगवान शिव को राख, दूध, दही और नारियल चढ़ाए जाते हैं सालाना प्रमुख मेला भाद्रवी भाव नगर के महाराजा के वशंज के द्वारा मंदिर की पताका फहराने से शुरू होता है और फिर यही पताका मन्दिर पर अगले एक साल तक फहराती है।

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अचलेश्वर महादेव मन्दिर

अचलेश्वर महादेव मन्दिर का निवास स्थान

अचलेश्वर महादेव मन्दिर नाम से भारत में महादेव के कई मन्दिर हैं लेकिन राजस्थान के विधौल पुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मन्दिर बाकी सभी मन्दिरों से अलग है यह मन्दिर राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है जो चंबल और बीहड़ो के लिए प्रसिद्ध है भगवान अचलेश्वर महादेव का यह मन्दिर इन्ही दुर्गम बीहड़ों के बीच स्थित है।

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मंदिर के शिवलिंग के रंग के बदलाव का रहस्य

 इस मन्दिर का शिवलिंग जो दिन में तीन बार रंग बदलता है सुबह में शिवलिंग का रंग लाल होता है , दोपहर में केसरिया और जैसे – जैसे शाम होती है शिवलिंग का रंग सांवला हो जाता है। इन रंगों के बदलाव के रहस्य को कोई नही जानता। 

अचलेश्वर महादेव मन्दिर की प्राचीनता

अचलेश्वर महादेव का यह मन्दिर भी काफी प्राचीन है चूंकि मन्दिर का यह इलाका डाकुओं के लिए काफी प्रसिद्ध था जिस वजह से यहाँ कम श्रद्धालु आते थे,साथ ही यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत ही पथरीला और ऊबड़-खाबड़ था पर जैसे-जैसे भगवान के वारे में लोग जानने लगे यहाँ पर भक्तो की भीड़ जुटने लगी।

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अचलेश्वर महादेव मन्दिर की निरन्तर शिवलिंग

इस शिवलिंग की एक और अनोखी बात यह भी है कि इस शिवलिंग के छोर का आजतक पता नही चला है। कहते हैं। बहुत समय पहले एक बार भक्तों ने शिवलिंग की गहराई को जानने के लिए इसकी खुदाई की पर काफी गहराई तक खोदने के बाद भी इसके छोर का पता नही चला। अंत में भक्तों ने इसे भगवान का चमत्कार मानते हुए खुदाई बंद कर दी। 

मंदिर की मान्यता

भक्तों का मानना है कि भगवान अचलेश्वर महादेव भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।

लक्ष्मेश्वर महादेव मन्दिर

लक्ष्मेश्वर महादेव मन्दिर की स्थापना

इस मन्दिर की स्थापना भगवान राम ने खड़ और दूषण के वध के पश्चात अपने भाई लक्ष्मण के कहने पर की थी। लक्ष्मेश्वर महादेव मन्दिर के गर्भ ग्रह में एक शिवलिंग है जिसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं इसीलिये इसे लक्ष लिंग भी कहा जाता है।

लक्ष्मेश्वर महादेव मन्दिर- लाख छिद्रों में से एक छिद्र

यह मन्दिर लाख छिद्रों में से एक छिद्र भी है जो कि पातालगामी है क्योंकि उसमे जितना भी जल डालो बो सब उसमे समा जाता है। लेकिन एक छिद्र अक्षय कुंड है क्योंकि उसमे जल हमेशा ही भरा रहता है लक्ष लिंग पर चढ़ाया गया जल मन्दिर के पीछे कुंड में चले जाने की मान्यता है क्योंकि कुंड कभी सूखता नही लक्ष लिंग जमीन से करीब तीस फीट ऊपर है और इसे स्वन्वभू लिंग भी माना जाता हैं।

बिजली महादेव मन्दिर

बिजली महादेव मन्दिर का पूरा इतिहास

भगवान शिव के अनोग्य अदभुत मन्दिरों में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित बिजली महादेव मन्दिर का पूरा इतिहास बिजली से जुड़ा हुआ है कुल्लू शहर में व्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊँचे पर्वत पर बिजली महादेव का प्राचीन मन्दिर है। पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी ही एक विशालकाय साँप के रूप में है इस साँप का वध भगवान शिव ने किया था जिस स्थान पर मन्दिर है वहाँ शिवलिंग पर हर बारह वर्ष बाद आकाश से भयानक बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मन्दिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है यहाँ के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े को एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ समय बाद ही शिवलिंग ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है।