Kartik Purnima Vrat Katha | कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

Dharmik Chalisa & Katha

दोस्तों इस पोस्ट में हम  कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा In Hindi  प्रस्तुत करने जा रहें हैं। उम्मीद है कि Kartik Purnima Vrat Katha  आपका ज्ञान वर्धन अवश्य करेंगी। तो आइये अब पढ़ते हैं Kartik Purnima Vrat Vidhi In Hindi.

महत्त्व 

बता दें कि हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का बहुत ही ख़ास महत्व होता है। कार्तिक माह सब महीनो में सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है। इस माह में लोग अधिक से अधिक दान दिया करते हैं चाहे बो भोजन हो या फिर पहनने के लिए वस्त्र हों।  इस दिन में किये गए दान – पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी मां लक्ष्मी की पूजा – अर्चना की जाती है।

दरअसल कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष लाभकारी होते हैं। पूर्णिमा का व्रत हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व रखा गया है। कार्तिक पूर्णिमा व्रत को करने से कुंडली में लगा हुआ दोष पूर्ण रूप से हट जाता है। अगर आपकी कुंडली में चन्द्रमा की महादशा एवं अन्तर्दशा चल रही है, तो कार्तिक पूर्णिमा का व्रत ज़रूर करना चाहिए।

Kartik Purnima Vrat Katha – 

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस रहा करता था. उसके तीन पुत्र थे- तारकक्ष, कमलाक्ष एवं विद्युन्माली. प्रभु शिव जी के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया था। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत परेशान हुए. तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से बहुत खुश हुए एवं उनसे बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो. तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, परन्तु ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

इसके पश्चात तीनों ने किसी दूसरे वरदान के बारे में सोचा तथा इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा- जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी एवं आकाश में घूमा जा सके। एक हजार साल पश्चात जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं एवं जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण बने। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों ये वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुए. ब्रह्माजी के कहने पर दानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का एवं विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार पूरी तरह से जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से बहुत भयभीत हुए तथा प्रभु शंकर जी की शरण में गए. इंद्र की बात सुन प्रभु शिव जी ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

इस दिव्य रथ की हर एक वस्तु देवताओं से बनीं. चंद्रमा एवं सूर्य से पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम एवं कुबेर रथ के चार घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने एवं शेषनाग प्रत्यंचा बनें। प्रभु शिव जी स्वयं बाण बनें एवं बाण की नोंक बने अग्निदेव. 

इस दिव्य रथ पर सवार हुए स्वयं प्रभु शिव. ईश्वरों से बनें इस रथ एवं तीनों भाइयों के मध्य खूब भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, तब प्रभु शिव जी ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के पश्चात प्रभु शिव जी को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाने लगा। Kartik Purnima Vrat Katha

Kartik Purnima Vrat Katha पूजा विधि – 

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नानादि करने के पश्चात् सूर्य को जल अर्पित अवश्य करें। संभव हो सकें तो स्नान गंगा, यमुना या फिर किसी भी पवित्र नदियों में करें। सूर्य को जल देने के लिए तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल फूल, गुड़ एवं चावल ज़रूर मिला लें। Kartik Purnima Vrat Katha
  • बता दें कि इस दिन घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से खूब सजाएं एवं शाम को सरसों का तेल, काले तिल तथा काले कपड़े किसी गरीब या फिर किसी जरुरतमंद को ज़रूर दान करें। Kartik Purnima Vrat Katha
  • दरअसल इस दिन तुलसी की पूजा एवं दीपक जला कर तुलसी के स्तोत्र का पाठ अवश्य किया करें।
  • इसके पश्चात 1, 3, 5, 7 या 11 बार परिक्रमा अवश्य करें। इसके पश्चात प्रभु शिव के जी साथ ही प्रभु हरी विष्णु जी की पूजा – अर्चना करें एवं व्रत का पालन कर रहे हो तो नमक का पूरी तरह से त्याग करें। 
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजन होने के पश्चात अंत में चन्द्रमा की छः कृतिकाओं का पूजन करना भी बहुत अधिक फलदायी होता हैं।