आइए जानतें हैं Mahalaxmi Vrat Katha In Hindi

Dharmik Chalisa & Katha

आपके आगे प्रस्तुत है Mahalaxmi Guruvar Vrat Katha In Hindi.  हम उम्मीद करते हैं कि  Mahalaxmi Vrat Katha PDF आपका ज्ञान अवश्य वर्धन करेगी। तो आइए दोस्तों जानतें हैं Mahalaxmi Vrat Katha In Hindi.

Mahalaxmi guruvar vrat katha in hindi

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहा करता था। वह प्रतिदिन जगत के पालनहार विष्णु भगवान की पूजा – अराधना किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से खुश होकर उसे प्रभु श्रीविष्णु ने उसे दर्शन दिए एवं उस ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब उस ब्राह्मण ने देवी लक्ष्मीजी का निवास अपने घर में होने की इच्छा प्रकट की। तब भगवान श्रीविष्णु ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री प्रतिदिन आती है, जो यहां आकर उपले थोपती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वही देवी माँ लक्ष्मी है।

तब भगवान विष्णु जी ने उस ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन एवं धान्य से भर जायेगा। यह कहकर भगवान श्रीविष्णु जी वहाँ से चले गए। अगले दिन वह सुबह ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं तो उस ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मीजी समझ गईं, कि यह सब भगवान विष्णुजी के कहने से हुआ है।

देवी लक्ष्मीजी ने उस ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर परन्तु इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी का व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने एवं 16वें दिन रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत एवं पूजन किया तथा देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके पश्चात् देवी माँ लक्ष्मी ने अपना वचन पूर्ण किया। 

ऐसी मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा आरंभ हुई थी।

महत्व – 

भविष्य पुराण में यह कहा गया है कि जब पांडवों ने जुए में कौरवों के हाथों अपना सब कुछ गवां दिया, तो पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने प्रभु श्री कृष्ण से धन प्राप्त करने के तरीके के बारे में पूछा. तब प्रभु श्री कृष्ण ने देवी महालक्ष्मी व्रत का पालन करने की सलाह दी.

महालक्ष्मी का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होता है. ये गणेश चतुर्थी के चार दिन के पश्चात् ही मनाया जाता है. देवी महालक्ष्मी का व्रत लगातार सोलह दिनों तक मनाया जाता है. धन एवं समृद्धि के लिए देवी महालक्ष्मी को खुश करने के लिए ये व्रत किया जाता है.

ऐसी मान्यता है कि इसी दिन दूर्वा अष्टमी का व्रत भी रखा जाता है, इस दिन दूर्वा घास की भी पूजा – अर्चना की जाती है. भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा जयंती या फिर राधा अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन को ज्येष्ठ देवी पूजा के रूप में भी मनाया जाता है एवं प्रतिदिन तीन दिनों तक पूजा – अर्चना की जाती है.

पूजा विधि एवं अनुष्ठान

  • सुबह को जल्दी उठकर स्नान आदि कर पूजा स्थल को स्वच्छ एवं साफ कर लें.
  • ये एक दिन का उपवास होता है इसलिए इसके लिए संकल्प अवश्य लें.
  • एक मंच पर महालक्ष्मी की फोटो अवश्य स्थापित करें.
  • बता दें कि श्रीयंत्र को मूर्ति के पास ज़रूर रखा जाता है.
  • ध्यान रहे कि मूर्ति के सामने जल से भरा कलश भी रखा जाता है, ये समृद्धि का प्रतीक माना गया है.
  • देवी माँ लक्ष्मी को फूल, फल एवं नैवेद्य भी चढ़ाएं.
  • देवी माँ लक्ष्मी को घी का दीपक एवं धूप भी जलाएं.
  • कथा, भजन का पाठ अवश्य करें एवं देवी से प्रार्थना करें.
  • अंत में देवी माँ को खुश करने के लिए आरती भी की जाती है.
  • दरअसल शाम को पूजा के पश्चात् व्रत का समापन भी खूब अच्छे से करें.
  • ध्यान रहे कि कलश के चारों तरफ लाल धागा बांधे एवं कलश को लाल कपड़े से अच्छी तरह से सजाएं। कलश पर कुमकुम से स्वास्तिक भी बनाएं। स्वास्तिक बनाने से जीवन में पवित्रता एवं समृद्धि आती है।

बता दें कि इन आठ रूपों में मां लक्ष्मी की पूजा – अर्चना करें- श्री धन लक्ष्मी मां, श्री गज लक्ष्मी मां, श्री वीर लक्ष्मी मां, श्री ऐश्वर्या लक्ष्मी मां, श्री विजय लक्ष्मी मां, श्री आदि लक्ष्मी मां, श्री धान्य लक्ष्मी मां और श्री संतान लक्ष्मी मां।