आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है प्रदोष व्रत कथा In Hindi. ताकि आप Pradosh Vrat Katha In Hindi के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें। हमारा मकसद है कि हम आपको सबसे बढ़िया प्रदोष व्रत कथा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में मदद करें।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत ही विशेष महत्व माना गया है। प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। यह कहा जाता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य किया करते हैं तथा देवता उनके गुणों का आवाह्न किया करते हैं। ऐसे में जो भी जातक यह व्रत करते हैं तब प्रभु शंकर की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति अवश्य होती है. सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत ही कहते हैं। ऐसा जाना जाता है कि इस दिन व्रत एवं भगवान शंकर की पूजा व अर्चना करने वाले सभी जातकों के सभी पाप बिल्कुल नष्ट हो जाते हैं।
प्रदोष व्रत कैसे करें:
बता दें कि नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी तथा चीनी का भोग लगाएं, उसके पश्चात आठों दिशाओं में कम से कम आठ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना करके उन्हें कम से कम आठ बार प्रणाम अवश्य करें फिर इसके पश्चात धर्म सत्वं वृषरूपेण से नंदीश्वर (बछड़े) को जल तथा दूर्वा खिलाकर उसको स्पर्श करें एवं भगवान शिव-पार्वती तथा नंदकेश्वर की आराधना करें।
यह भी ध्यान रहे कि प्रदोष-व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू किया जा सकता है।
भोजन कब करें –
ऐसा कहा जाता है कि इस काल में मतलब प्रदोष काल में पूजन से पहले एक बार द्वारा स्नान अवश्य कर लेना चाहिए. पूजन के पश्चात ही भोजन को ग्रहण करें. शरीर से कमजोर या फिर मरीज लोग इस व्रत के दौरान केवल एक बार ही फलाहार कर सकते हैं. बार-बार फलाहार करके अपने मुंह को झूठा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए.
कितने व्रत करें –
ध्यान देने वाली बात यह है कि हर महीने में प्रदोष व्रत दो बार ही आता है एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को तथा दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ही आता है।
प्रदोष व्रत क्यों करना चाहिए –
बता दें कि ‘प्रदोष में दोष’ यही था कि चंद्र क्षय रोग से बहुत दुखी होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। ‘प्रदोष व्रत’ इसलिए भी किया जाता है कि प्रभु शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें द्वारा जीवनदान प्रदान किया था. अत: हमें उस भगवान भोलेनाथ की पूजा व अर्चना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र देव को अपने मस्तक पर धारण कर लिया था।
कथा –
एक विधवा गरीब ब्रह्माणी एक नगर में रहा करती थी. वह रोज भिक्षा मांगकर अपना एवं अपने बेटे का पेट पालती थी. उसके पति का स्वर्गवास बहुत समय पहले हो गया था. सुबह होते ही वह अपने बेटे के साथ भिक्षा मांगने नगर में निकल जाया करती थी.
एक दिन वह भिक्षा मांगकर वापस अपने घर को जा रही थी, तभी अचानक उसे रास्ते में एक लड़का घायल अवस्था में दिखा. वह उसे अपने घर को लेकर आ गई. उसे पता चला कि वह विदर्भ का राजकुमार है. उसने बताया कि उसके राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण किया था, जिसमें वह पूरी तरह से घायल हो गया एवं उसके पिता को बंदी बना लिया गया.
वह राजकुमार अब उसके ब्राह्मणी के घर में ही रहने लगा. एक दिन एक गंधर्व कन्या अंशुमति ने उस राजकुमार को देखा, तो उस पर मंत्रमुग्ध हो गई. उसने उस राजकुमार से विवाह करने की बात अपने पिता से कही, तो राजा एवं रानी भी उस राजकुमार से मिले. वे उस राजकुमार से मिलकर बहुत अधिक खुश हुए.
एक दिन प्रभु शिव ने राजा को सपने में दर्शन दिए, जिसमें भगवान शंकर ने राजा को अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से करने का आदेश दिया. भगवान शिव जी की आज्ञानुसार, राजा ने बेटी अंशुमति का विवाह राजकुमार से करा दिया.
वह विधवा ब्राह्मणी प्रदोष व्रत किया करती थी. उस व्रत के पुण्य प्रभाव तथा राजा की सेना की सहायता से उस राजकुमार ने अपने विदर्भ राज्य पर फिर से नियंत्रण प्राप्त कर लिया. राजकुमार विदर्भ का राजा बन गया तथा उसने ब्राह्मणी के बेटे को अपना प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त कर दिया.
इस प्रकार से प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से ब्राह्मणी का बेटा राजा का प्रधानमंत्री बन गया तथा उनकी गरीबी भी दूर हो गई और वे बहुत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे.
महत्व
शास्त्रों में प्रदोष व्रत को लेकर यह बताया गया है कि इस दिन प्रभु शिव जी की पूजा – अर्चना करने से सभी पापों का नाश हो जाता है एवं भक्तगणों को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है.
यह माना जाता है कि ये व्रत भक्तगणों के भाग्य को जगाने वाला होता है. इस व्रत को रखने से कुंडली में चंद्र की स्थिति भी बहुत ही तन्दुरुस्त बनी रहती है.