Santoshi Mata Vrat Katha | संतोषी माता व्रत कथा | पाएं अनंत सुख

Dharmik Chalisa & Katha

आपके समक्ष प्रस्तुत कर है   Santoshi Mata Vrat Katha. माता के चरणों की असीम कृपा पाने के लिए विधि विधान से करें पाठ- 

संतोषी माता  व्रत कथा

नमस्कार दोस्तों आज के हमारे इस पोस्ट में हम आपके लिए संतोषी माता की व्रत कथा लेकर आए हैं एक समय की बात है एक बुढ़िया के सात बेटे थे जिनमें से छह कमाते थे और एक ना कमाने वाला था वह बुढ़िया छह बेटों को अच्छा खाना बना कर खिलाती पर सातवें को उन सब का बचा कुचा झूठा खाना खिलाती थी और वह भोला भाला अपनी मां की इस चालाकी को समझ नहीं पाता था एक दिन वो अपनी पत्नी से बोला कि मेरी मां मुझसे बहुत प्यार करती है तो उसकी पत्नी बोली वह तुन्हें सबका बचा कूचा खाना खिलाती है इस बात पर उसे विश्वास नहीं हुआ. 

एक दिन वो छुप कर देखता है कि मां अपनी छह बेटों को बड़े प्यार से कई प्रकार के व्यंजन बनाकर बड़े प्रेम से खिला रही है जब वो छह खाना खाकर उठ गए तब मां ने उनकी थालियों से झूठन इकट्ठी करी और उसके लिए थाली में परोस कर रख दी जब वो घर आया तो मां अपने सबसे छोटे लड़के से बोली खाना खा ले वह बोला माँ मैं भोजन नहीं करूंगा मैं तो परदेस जा रहा हूं मां बोली कल जाता आज ही चला जा वह घर से निकल गया और गौशाला में पहुंचा जहां उसकी पत्नी गोबर के उपले थाप रही थी अपनी पत्नी के पास गया और बोला मैं परदेस जा रहा हूं कुछ समय के बाद आऊंगा तुम संतोष से रहना और अपने धर्म का पालन करना इस पर उसकी पत्नी बोली स्वामी आप आनंद से जाइए मेरी चिंता मत करें मैं तो राम भरोसे यहाँ रह लूंगी ईश्वर आपकी सहायता करें अपनी कोई निशानी मुझे दे दीजिए जिसे देखकर मैं धीरज करती रहूंगी इस पर वह बोला मेरे पास इस अंगूठी के सिवा कुछ भी नहीं है तुम यह रख लो और मुझे भी अपनी कोई निशानी दे दो वह बोली मेरे पास तो कुछ भी नहीं है बस ये गोवर से भरे हाथ हैं यह कहकर उसने अपने पति की पीठ पर गोबर की हाथ की थाप मार दी और वह चल दिया. 

चलते चलते वह किसी दूर नगर में पहुंचा और एक व्यापारी की दुकान पर जाकर बोला भाई मुझे नौकरी पर रख लो व्यापारी को नौकर की जरूरत थी तो वह बोला ठीक है लेकिन तनख्वाह तुम्हारा काम देखकर ही बताऊंगा वो वहीं रहने लगा और सुबह 7:00 बजे से रात को 9:00 बजे तक नौकरी करने लगा थोड़ी ही दिनों में वह व्यापारी का सारा लेनदेन और हिसाब – किताब करने लगा कुछ ही समय में सेठ ने उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया.

अब बारह वर्षों में वो नामी सेठ बन गया इधर उसकी पत्नी को सास और जेठानियाँ बड़ा कष्ट देने लगी उसे लकड़ी लेने के लिए जंगल में भेजती भूसे की रोटी देती फूटे नारियल में पानी देती वह बड़े कष्टों से जीवन बिता रही थी एक दिन जब वह लकड़ी लेने जा रही थी तो रास्ते में उसने देखा एक मंदिर में कुछ औरतें व्रत कर रही है और कथा सुन रहीं है तो वो पूछने लगी यह क्या व्रत कर रही हो इसे करने से क्या होता है और यह कैसे करते हैं तब एक स्त्री बोली यह संतोषी माता का व्रत है इसे करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है और गरीबी, मन की चिंताएँ, मुकदमे, कलह, रोग आदि सब नष्ट हो जाते हैं संतान सुख, धन, शान्ति और मन पसंद वर मिलता है और दूर गये पति के दर्शन होते हैं.

उन्होंने उसे व्रत की विधि बता दी उसने रास्ते में सारी लकड़ियाँ बेच दी और उन पैसों से गुड़ और चला खरीद लिया और व्रत की तैयारी कर संतोषी माता के मंदिर में पहुंची और माता से दुखी होकर विनती करने लगी मां मैं अज्ञानी हूं और बहुत दुखी हूं और मैं आपकी शरण में हूं मेरा दुख दूर करो मां अब वह हर शुक्रवार को ऐसा ही करती. 

एक दिन माता को उस पर दया आ गई एक शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और अगले शुक्रवार पति का भेजा धन उसे मिला अब वो माता के मंदिर में गई और उनके चरणों में गिर कर रोने लगी बोली मां मैंने पैसे कब मांगे थे मुझे तो अपना सुहाग चाहिए मैंने अपने स्वामी के दर्शन और सेवा करना मांगती हूं तब संतोषी माता ने प्रसन्न होकर कहा जा बेटा तेरा पति जल्द ही आएगा वह प्रसन्न होकर घर गई और कामकाज में लग गई उधर संतोषी माता ने स्वप्न में उसके पति को पत्नी की याद दिलाई और घर जाने को कहा वह बोला माँ मैं कैसे जाऊं परदेस की बात है लेन-देन के कई हिसाब बाकी हैं मां बोली सवेरे उठकर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाना और फिर दुकान पर बैठना सवेरे उठकर उसने वैसा ही किया देखते ही देखते सारा लेन-देन साफ हो गया और धन का ढेर लग गया वो खुश होकर घर की ओर रवाना हो गया उधर उसकी पत्नी रोज लकड़ी लेने जाती और संतोषी माता की पूजा-अर्चना करती एक दिन वह बोली मां आज यह धूल कैसी उड़ रही है मां बोली है बेटी तेरा पति आ रहा है तू लकड़ियों के तीन ढेर बना एक नदी के किनारे रख आ, एक यहां रख दे और तीसरा अपने सिर पर रख ले तेरे पति के दिल में इस लकड़ी के गट्ठर को देखकर मोह पैदा होगा.

और घर जाकर आवाज लगाना सासू जी लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसे की रोटी दो और फूटे नारियल में पानी दो आज मेहमान कौन आया है उसने वैसा ही किया घर गई आंगन में लकड़ियों का गट्ठर रखकर बोली सासूजी लकड़ियों का गट्ठर लो भूसे की रोटी दो और फूटे नारियल में पानी दो आज मेहमान कौन आया है यह सुनकर सास दौड़ी दौड़ी बाहर आई और अपने कष्टों को भूलाने के लिए कहने लगी बेटी तेरा पति आया है आ मीठे भात का भोजन कर औरगहनें और कपड़े पहन इतने में उसका पति बाहर आया और उसके हाथ में अपनी दी अंगूठी देखकर मां से पूछने लगा माँ यह कौन है.

मां बोली बेटा ये तेरी बहू है पूरे 12 बरस हो गए यह दिन भर घूमती फिरती है कोई कामकाज भी नहीं करती तुझे देखकर नखरे कर रही है वह बोला माँ मैंने तुम्हें और इसे दोनों को देख लिया है अब मुझे दूसरे घर की चाबियाँ दे दो मैं उस में रहूंगा माँ बोली ठीक है जैसी तेरी मर्जी और माँ ने चाबियों का गुच्छा पटक दिया बेटे ने अपना सामान दूसरे घर में रख दिया. 

देखते ही देखते उनके राजा के समान ठाठ बाट हो गए अगला शुक्रवार आया तो वह अपने पति से बोली मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है वह बोला खुशी से करो वह तैयारियों में लग गई उसने जेठ के लड़कों को जीन में बुलाया और पीछे से जिठानियों ने अपने बच्चों को सिखा दिया तुम खाने के बाद खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा ना हो लड़कों ने जीमतें ही खटाई मांगी तब वो बोली नहीं नहीं खटाई मैं नहीं दे सकती यह संतोषी माता का प्रसाद है लड़के बोले तो फिर पैसे दे दो भोली भाली समझ नहीं सकी और उन्हें पैसे दे दिए और वे उन पैसों से खटाई लेकर खाने लगे इस पर संतोषी माता क्रोधित हो गई राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए वह बेचारी रोती हुई माता के मंदिर में गई और बोली माता यह क्या किया माता बोली पुत्री मुझे दुख है कि तुमने अभिमान करके मेरा व्रत तोड़ा है और इतनी जल्दी सब भूल गई वह बोली माता मैंने तो कुछ गलत नहीं किया मैंने भूल से लड़को को पैसे दे दिए मुझे क्षमा करो मैं द्वारा तुम्हारा उद्यापन करूंगी माता बोली जा तेरा पति रास्ते में आता हुआ मिलेगा वो चली गई.

रास्ते में उसे उसका पति आता हुआ दिखा उसके पूछने पर बोला राजा ने मुझे मिलने के लिए बुलाया था अगले शुक्रवार उसने फिर उद्यापन किया जेठ के लड़कों को बुलाया जेठानियों ने फिर उन्हें सिखा दिया लड़के भोजन से पहले बोले खटाई मिलेगी तब वो बोली खटाई नहीं मिलेगी अब उसने ब्राह्मण के लड़कों को बुलाकर भोजन कराया और दक्षिणा दी और संतोषी माता उससे प्रसन्न हो गईं और 9 महीने बाद उसके चंद्रमा के समान सुंदर पुत्र हुआ वह अपने पुत्र को लेकर रोजाना मंदिर जाने लगी. 

एक दिन संतोषी माता ने सोचा यह रोज यहां आती है आज मैं इसके घर जाकर इसका ससुराल देखती हूं यह सोचकर संतोषी माता ने भयानक रूप धारण करा और गुड़ व चने सना मुख सूंढ़ के समान जिन पर मक्खियाँ भिनभिना रहीं थीं ऐसी सूरत में वो उसके घर गई दहली में पांव रखते हुए उसकी सांस बोली देखो कोई डाकिन आ रही है उसे भगाओ वरना किसी को खा जाएगी सभी घरवाले भागकर घर की खिड़कियाँ और दरवाजे बंद करने लगे तभी उसने ऊपर की खिड़की से देखा तो वहीं से चिल्लाने लगी आज मेरी माता मेरे घर आई हैं आज मेरी माता मेरे घर आई हैं उसकी सास बोली पगली किसे देखकर उतावली हुई है बच्चे को भी पटक दिया बहु बोली माता जी मैं जिन संतोषी माता का व्रत करती हूं यह वो माता हैं.

ऐसा कहकर उसने सारी खिड़कियां और दरवाजे खोल दिए सबने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे हे माता हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, पापी हैं आपके व्रत की विधि हम नहीं जानते आप का व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है हे जगत माता हमारा अपराध क्षमा करें.

माता बहुत खुश हुईं हे संतोषी माता जिस प्रकार आपने बहू को फल दिया वैसा ही इस कहानी को कहते, सुनते और हुंकार भरते सबको देना.

दोस्तों संतोषी माता को संतोष, सुख, शांति एवं वैभव की माता के रूप में पूजा जाता है माता संतोषी भगवान श्री गणेश की पुत्री हैं इनका यह व्रत करने से धन, विवाह, संतान आदि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू होता है और सोलह शुक्रवार तक व्रत कर इसका उद्यापन किया जाता है गुड़ और चने का भोग माता को लगाया जाता है यह व्रत करने वालों को खट्टी चीजों को न ही खाना चाहिए और न ही हाथ लगाना चाहिए.

बोलिए संतोषी माता की जय