चलिए जानतें हैं सबसे लोकप्रिय शनि देव कथा  In Hindi

Dharmik Chalisa & Katha

मित्रों इस पोस्ट में शनि देव कथा  In Hindi प्रस्तुत है। यदि वर्तमान परिवेश में देखा जाये तो शनि देव कथा वीडियो हिंदी में एक महत्वपूर्ण विषय है। आप Shani Maharaj ki katha पढ़ें एवं अपने ज्ञान का वर्धन करें। हमें उम्मीद है कि shani dev katha in hindi आपको अवश्य पसंद आएगा। 

Shani maharaj ki katha

एक समय सभी नवग्रहों: सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु में बहुत विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस में एक दूसरे से लड़ने लगे, और कोई निर्णय न होने पर देवराज इंद्र के पास अपना हल कराने पहुंचे. इंद्र इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. लेकिन उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं. वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं. 

सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के नजदीक पहुंचे, एवं अपना विवाद उनको बताया। साथ ही निर्णय करने के लिये कहा। राजा इस परेशानी से बहुत ही चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. 

तब राजा को एक मन में उपाय सूझा. उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक एवं लौह से नौ सिंहासन बनवाये तथा उन्हें इसी क्रम से रख दिया फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. 

जो अंतिम सिंहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटाकहा जाएगा. इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने अपने मन में सोचा, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है. उन्होंने कुपित होकर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. 

सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, एवं बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. लेकिन मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हूँ. बड़े से बड़ों का मैंने विनाश किया है. भगवान श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पढ़ा.

अब तुम सतर्क रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले गये. तथा अन्य देवता भी प्रसन्नता से चले गये. कुछ समय पश्चात राजा की साढ़े साती आयी. 

तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये. उनके साथ कई अच्छे घोड़े थे. राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी. उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे एवं एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया.

राजा ज्यों ही उसपर बैठा, वह घोड़ा बहुत तेजी से वन की ओर भागा. भीषण वन में पहुंचकर वह तुरंत अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा वहाँ भटकता रहा. तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने खुश होकर उसे अपनी अंगूठी दी. वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया. 

वहां एक सेठ की दुकान पर जल इत्यादि पिया एवं कुछ विश्राम भी किया. भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई. सेठ उसे खाना इत्यादि कराया तब वह प्रसन्न होकर अपने साथ घर ले गया. वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है. थोड़ी देर में वह पूरा हार गायब था। 

तब सेठ ने थाख पर देखा कि हार गायब है। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड्वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। 

वह चैरंगिया बन गया और नगर के बाहर फिकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे बहुत दया आयी, और उसने वीका को अपनी गाड़ी में बिठा लिया। वह अपनी रस्सी से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। 

वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन यह प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसकी दासी ढूढ़ने गई। 

दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। लेकिन राजकुमारी बिल्कुल न मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि विवाह करेगी तो उसी से। उसे बहुत समझाने पर भी जब वह न मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा।

फिर उसका विवाह उस राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा ने उससे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना देना। 

शनिदेव मान गये, और कहा जो मेरी कथा एवं व्रत करेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ अवश्य पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दे दिये। 

प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह एकदम से आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत खुश हुए। सेठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिरकर क्षमायाचना मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। 

इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर खाना ग्रहण करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों से राजा का बहुत सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। 

सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का बहुत धन्यवाद किया, एवं अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। 

कुछ समय बाद राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी को सभी दहेज सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले गये। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका खूब स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, एवं सबने खुशी भी मनायी। राजा ने यह घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि असल में वही सबसे बड़े हैं। तब से सारे राज्य में शनिदेव की पूजा एवं कथा नियमित होने लगी। 

सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी एवं आनंद के साथ जीवन बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख नष्ट हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।

विधि – 

शनिवार के अधिपति देव शनि माने गये हैं एवं उन्हें काले तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द बहुत ही प्रिय हैं। इसीलिए शनिदेव की पूजा में इन वस्तुओं का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए। 

बता दें कि शनि की महादशा का सामना कर रहे जातकों को शनिवार का व्रत करना ही चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शनिदेव का स्मरण करें। इस दिन तेल या फिर लोहे से बनी कोई भी चीज खरीदने से बचें क्योंकि इनमें शनि का वास माना जाता है। 

इसीलिए पूजा का सामान भी एक दिन पहले ही खरीद लें। भोजन भी कम से कम एक ही बार करें। इस दिन शनि स्तोत्र का पाठ करना बहुत शुभ फलदायी रहता है। इस दिन चीटियों को आटा डालना भी विशेष लाभकारी होता है। 

दरअसल शनिवार के व्रत में पूजा के पश्चात् शनिदेव की कथा ज़रूर सुनें एवं दिन भर उनका स्मरण करते रहें, तो शनिदेव बहुत जल्दी खुश होते हैं एवं कष्टों का बहुत जल्दी निवारण भी करते हैं।