Bhojan karne ke niyam| आरोग्य सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति करे

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आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में Bhojan karne ke niyamके बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं भोजन करने से पहले 5 अंग दो हाथ दो पैर और मुख इनको अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करना चाहिए

bhojan karne ka niyam

नमस्कार आपका स्वागत है दोस्त महाभारत ग्रंथ में मनुष्य को भोजन करते समय कुछ बहुत ही जरूरी नियम बताए गए हैं अगर कोई मनुष्य इन नियमों का पालन करते हुए भोजन करता है तो उसे आरोग्य के साथ ही सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती हैं शास्त्रों में बताए गई यह नियम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी परिपूर्ण है इस प्रकार से भोजन करने पर मनुष्य सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करता है अतः आप भी भोजन करते समय इन नियमों का पालन अवश्य करें तो आइए बिना देरी किए जान लेते हैं वह कौन से नियम है. 

सबसे पहली बात भोजन करने से पहले 5 अंग दो हाथ दो पैर और मुख इनको अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करना चाहिए भोजन से पहले अन्य देवता एवं अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए तथा सभी भूखे प्राणियों को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके ही भोजन को शुरुआत करनी चाहिए भोजन बनाने वाली महिलाओं को स्नान करके ही शुद्ध मन से मंत्र जाप करते हुए रसोई घर में भोजन बनाना चाहिए सबसे पहले तीन रोटियां एक गाय के लिए एक कुत्ते के लिए और एक कौवे के लिए अलग निकाल कर फिर अग्नि देव को भोग लगाकर ही घरवालों को खिलाना चाहिए भोजन किचिन में बैठकर ही सभी के साथ ही करें प्रयास यह करना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल बैठकर ही भोजन किया जाए नियम अनुसार अलग-अलग भोजन करने से परिवार के सदस्य में प्रेम और एकता कायम नहीं हो पाती है. 

भोजन का समय प्रातः और सायंकाल ही भोजन का विधान है क्योंकि पचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे के बाद तक एवं सूर्यास्त से ढाई घंटे पहले तक प्रबल रहती है जो व्यक्ति सिर्फ एक समय भोजन करता है वह योगी है और जो दो समय भोजन करता है वह भोगी कहा गया है.

तीसरी बात भोजन की दिशा भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिए दक्षिण दिशा की ओर किया गया भोजन प्रेत को प्राप्त होता है पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है.

चौथी बात ऐसी अवस्था में भोजन ना करें शैया पर बैठकर अर्थात बिस्तर पर बैठ कर अपने हाथों पर रखकर या टूटे – फूटे बर्तनों में भोजन कभी करना नहीं चाहिए मल मूत्र का वेग होने पर भी भोजन करना नहीं चाहिए कलह अथवा क्लेश के माहौल में भी भोजन करना अनुचित माना गया है अधिक शोर-शराबे के स्थान पर भी भोजन करना उचित नहीं पीपल एवं मोटे वृक्ष के नीचे बैठकर भी भोजन नही करना चाहिए परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए खड़े – खड़े भोजन करना भी अनुचित माना गया है जूते पहनकर या सिर ढककर भी भोजन नहीं करना चाहिए.

आइए अब जानते हैं भोजन कैसा होना चाहिए बहुत तीखा या बहुत ही मीठा भोजन नही करना चाहिए किसी के द्वारा छोड़ा हुआ भोजन भी कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए आधा खाया हुआ फल मिठाईयाँ आदि फिर से नहीं खानी चाहिए खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन कभी करना नहीं चाहिए जो कोई भी ढिंढोरा पीट कर खिला रहा हो वहां पर जाकर कभी भोजन नहीं करना चाहिए पशु या कुत्ते के द्वारा छुआ हुआ भोजन कभी करना नहीं चाहिए रजस्वला स्त्री के द्वारा परोसा गया भोजन भी करना अनुचित है.

श्राद्ध का निकाला हुआ बासी या मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया गया भोजन भी करना अनुचित है बाल गिरा हुआ भोजन भी ना करें अनदर युक्त अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन भी कभी ना करें कंजूस के द्वारा वैश्या के हाथ का शराब बेचने वाले का दिया भोजन भी और ब्याज का धंधा करने वाले व्यक्ति का भोजन भी कभी करना नहीं चाहिए.

छठी बात भोजन करते समय ध्यान रखें भोजन के समय मौन रहे रात्रि के समय भरपेट ना खाएं अगर भोजन करते समय बोलना आवश्यक है तो केवल सतर्मक बाते ही करें.

भोजन करते समय किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा ना करें भोजन को बहुत जवा चबाकर खाएं सबसे पहले मीठा फिर नमकीन और अंत में कड़वा खाना चाहिए थोड़ा सा भोजन करने वाली को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर – संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है. 

सातवीं बात भोजन के पश्चात क्या नहीं करना चाहिए भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि प्रकार की कार्य नहीं करने चाहिए भोजन के बाद क्या करें भोजन के पश्चात दिन में भोजन करने के पश्चात टहलना चाहिए और रात्रि के समय सौ कदम टहलकर बाई करवट में लेटना अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छे से होता है भोजन के 1 घंटे के बाद मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पचन बहुत अच्छी तरह से होता है. 

भीष्म पितामह ने अर्जुन को दिए महत्वपूर्ण संदेशों में कहा गया है कि जिस थाली को किसी का पैर लग जाए उस थाली का त्याग करना चाहिए ऐसी थाली विस्टा के समान त्याज्य होती है भीष्म पितामह कहते हैं कि भोजन के दौरान थाली में बाल आने पर उसे वहीं पर छोड़ देना चाहिए बाल आने के बाद भी खाए जाने वाले भोजन से दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है भोजन पूर्वज जिस थाली को कोई लांग कर गया हो ऐसे भोजन को भी कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए इसे कीचड़ के समान छोड़ देने वाला समझना चाहिए. 

भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया कि एक ही थाली में भाई – भाई भोजन करें तो वह अमृत के समान हो जाती हैं ऐसे भोजन से धन- धान्य, स्वास्थ्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है भीष्म पितामह के अनुसार पति-पत्नी को एक ही थाली में भोजन करने को निषिद्ध माना गया है.भीष्म पितामह के अनुसार एक ही थाली में पति-पत्नी भोजन करते हैं तो ऐसी थाली मादक पदार्थों से भरी मानी जाने वाली होती है पत्नी को पति के भोजन के उपरांत ही भोजन करना चाहिए इससे घर में सुख समृद्धि बढ़ती है तो दोस्तों यह तो महत्वपूर्ण बातें जो महाभारत में बताई गई है.