आइए जानतें हैं 20 प्रेरणादायक कहानी छोटी सी

Hindi Stories with Moral

आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में प्रेरणादायक कहानी छोटी सी के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं प्रेरणादायक कहानियाँ

1 खुदा के गुलाम 

इब्राहिम बल्ख देश के बादशाह थे। जो सांसारिक विषय- भोगों से तंग आकर वे फकीरों का सत्संग करने लगे। एक घने जंगल में जाकर उन्होंने साधना करना प्रारंभ की । एक दिन उन्हें किसी फरिश्ते की पुकार सुनाई दी, ‘कि मृत्यु आकर तुझे झकझोरे, इससे पहले ही तू जाग जा ।

अपने को पहचान ले कि तू कौन है एवं इस संसार में तू क्यों आया है। ‘ यह आवाज सुनते ही संत इब्राहिम की आँखों से आँसू आ गये । उन्हें लगा कि बादशाह के दौरान अपने को बड़ा मानकर उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है। वे अपने प्रभु से उन पापों की क्षमा माँगने लगे।

एक दिन वे राजपाट को त्यागकर चल दिए । निशापुर की गुफा में एकांत साधना कर उन्होंने काम, क्रोध, मद एव लोभ आदि आंतरिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली । वे हज यात्रा पर भी गए एवं मक्का में भी पहुँचे हुए फकीरों का सत्संग करते रहे।

एक दिन वे किसी नगर की ओर जा रहे थे कि चौकीदार ने उनसे पूछा, ‘कि तू कौन है?’तब  उन्होंने उत्तर दिया, ‘मैं एक गुलाम हूँ । ‘ उस चौकीदार ने फिर से पूछा, ‘कि तू कहाँ रहता है, तो इस बार उसको उत्तर मिला, ‘मैं कब्रिस्तान में रहता हूँ ।’

तब उस चौकीदार ने उन्हें मसखरा जानकर उन पर बहुत कोड़े बरसाए, लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि वे पहुँचे हुए संत इब्राहिम हैं, तो वह चौकीदार उनके पैरों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा। तब उस संत ने कहा, ‘इसमें आखिर क्षमा माँगने की क्या बात है? तूने ऐसे शरीर को कोड़े बरसाए हैं, जिसने बहुत वर्षों तक पाप किए हैं। ‘

कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, ‘सभी मनुष्य तो भगवान के गुलाम होते हैं एवं  गुलामों का अंतिम घर तो कब्रिस्तान ही होता है।’

2 मौत का भय 

पद्म पुराण में यह कहा गया है, ‘कि जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित होती है। इसलिए मृत्यु से कभी भी डरने की जगह सत्कर्मों के माध्यम से मरण को शुभ बनाने के प्रयास अवश्य ही करना चाहिए।’

जैन संत आचार्य तुलसी एक कहानी सुनाया करते थे एक मछुआरा था जो समुद्र के पास जाकर खूब सारी मछलियाँ पकड़ता एवं उन्हें बेचकर अपना जीवन खूब अच्छे से व्यतीत करता था। एक दिन एक वणिक उसके पास आकर बैठा तथा उसने पूछा, ‘दोस्त , क्या तुम्हारे पिता है?’

फिर उसने उत्तर दिया, ‘नहीं, उन्हें समुद्र की एक बड़ी मछली ने खा लिया ।’ उसने फिर पूछा, ‘और तुम्हारा बड़ा भाई ? ‘ तब उस मछुआरे ने उत्तर दिया, ‘नौका डूब जाने की वजह से वह समुद्र में समा गया।’

वणिक ने फिर पूछा, ‘आपके दादाजी एवं चाचाजी की मृत्यु कैसे हुई ?’ तब उस मछुआरे ने बताया कि वे भी इस समुद्र में भगवान को लीन हो गए थे। वणिक ने यह सुना, तो वह बोला, ‘दोस्त , यह यमुद्र तुम्हारे विनाश का कारण बन गया है, फिर भी तुम इसके तट पर आकर जाल बिछाते हो। क्या तुम्हें कभी मरने कर डर नहीं लगता है ??

तब मछुआरा बोला, ‘भैया, मौत जिस दिन आनी होगी, उस दिन तो अवश्य ही आएगी। तुम्हारे घरवालों में से दादा, परदादा, पिता में से शायद ही कोई इस समुद्र तक आया होगा। फिर भी वे सब चल बसे । मृत्यु कब आती है एवं कैसे आती है, यह आज तक कोई भी नहीं समझ पाया है। फिर मैं बेकार ही इस मौत से क्यों डरूँ??

भगवान् महावीर ने कहा था, ‘नाणागमो मच्चुमुहस्य अत्थि’ अर्थात मृत्यु किसी भी दरवाजे से आ सकती है, इसलिए आत्मज्ञानी ही मृत्यु के डर से बचा रह सकता है।

3 नैतिक शिक्षा का महत्त्व 

आचार्य विनोबा भावे कई भाषाओं के ज्ञानी थे। उन्होंने विभिन्न धर्मों, मत-मतांतरों के साहित्य का अध्ययन भी किया था। बड़े-बड़े शिक्षाविद् ज्ञान का लाभ अर्जित करने बहुत सारे लोग उनके पास आया करते थे । विनोबाजी संस्कारों को सबसे बड़ी धरोहर मानते थे ।

एक बार महाराष्ट्र के किसी विश्वविद्यालय में उन्हें आमंत्रित किया गया। विनोबाजी वहाँ पहुँचे। उन्होंने प्राचार्य से बातचीत के दौरान उनसे पूछा, ‘कि इस विश्वविद्यालय में किस किस विषय के अध्ययन की व्यवस्था है ?’तब उन्हें बताया गया कि विभिन्न भाषाओं, गणित, विज्ञान एवं अन्य विषयों का अध्ययन कराया जाता है। विनोबाजी ने पूछा, ‘क्या छात्रों को नैतिक शिक्षा देने की भी यहाँ भरपूर व्यवस्था है ?’ 

उन्हें बताया गया कि ऐसी व्यवस्था तो यहाँ बिल्कुल भी नहीं है । विनोबाजी ने पूछा, ‘क्या छात्रों को केवल धनार्जन के योग्य बनाने की शिक्षा दी जाती है ? क्या उन्हें सच्चा मानव, सच्चा भारतीय बनाना आप बिल्कुल भी आवश्यक नहीं समझते?

यदि छात्रों को अच्छे संस्कार नहीं दिए जाए, और उन्हें अच्छा मानव बनाने का प्रयास भी नहीं किया गया, तो आने वाली युवा पीढ़ी अपनी प्रतिभा एवं शक्ति का राष्ट्र व समाज के हित में ही दुरूपयोग करेगी, 

मेरे विचार में तो सबसे पहले बच्चों व युवक-युवतियों को एक संस्कारी मानव बनने के अच्छे संस्कार दिए जाने चाहिए । संस्कारहीन व्यक्ति तो ‘धनपिशाच’ बनकर समाज को गलत दिशा में ही ले जाने का कारण बनेगा। ‘ विनोबाजी की इया शिक्षा से विश्वविद्यालय में छात्रों को नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी अर्जित होने लगा.

4 सन्यासी की दया भावना 

स्वामी दयानंद गिरि एक ब्रह्मनिष्ठ व आदर्शवादी संत थे । वे प्रायः लोगों से यह कहा करते थे कि जो भी व्यक्ति गरीबों एवं असहायों से प्यार करता है, तो उस पर ईश्वर की कृपा हमेशा बनी रहती है.

स्वामीजी एक विरक्तता की साक्षात् मूर्ति थे। वे चौबीस घंटे में केवल एक बार ही किसी घर से भिक्षा लिया करते थे। बाकी शेष समय अपनी पूजा – अर्चना व लोगों को अपने नैतिक का ज्ञान देने में लगाते थे ।

एक बार किसी मजदूर ने उन्हें नंगे पाँव चलते हुए देख लिया, तब उस मजदूर ने उन्हें बढ़िया से कपड़े के जूते लाकर उनको भेंट किए। उन्होंने उस निश्छल भक्त के जूते बहुत ही प्रसन्नता से स्वीकार कर लिए कुछ वर्ष पश्चात उनका एक भक्त नए जूते लेकर आया एवं उनसे बहुत प्रार्थना की कि यह पुराने जूते को उतारकर उसके लाए जूते पहन लें।

तब स्वामीजी ने उत्तर दिया, ‘इन जूतों में मुझे उस गरीब मजदूर के प्यार की झलक दिखाई पड़ती है। मैं इन्हें तब तक पहनता रहूँगा, जब तक ये पूरी तरह बेकार न हो जाएँ।’

एक बार उनके भक्त शिवरात्रि पर भंडारा कर रहे थे । तब स्वामीजी प्रवचन में यह कह रहे थे कि वही सत्कर्म सफल होता है, जिसमें गरीबों के मेहनत की कमाई लगी हुई होती है।

अचानक उन्होंने देखा कि दरवाजे पर कुछ लोग एक वृद्धा को हाथ पकड़कर बाहर की ओर ले जा रहे हैं। तब उस स्वामीजी ने कहा, ‘उस बूढ़ी माई को आदर – सम्मान के साथ यहाँ ले लाओ। ‘ वृद्धा आई एवं उनसे बोली, ‘महाराज, मेरे ये दो रुपए इस भंडारे में लगवा दें। ये लोग मेरे दो रुपये बिल्कुल भी नहीं ले रहे हैं। ‘

स्वामीजी ने उस भक्त को अपने पास बुलाया एवं उससे बोले, ‘इन दो रुपए का नमक मंगवाकर इस भंडारे में लगवा दो । मेहनत की ईमानदारी की कमाई के नमक से भंडारा उस प्रभु का प्रसाद बन जाएगा।’

5 भजन से पहले भोजन 

वृंदावन के एक आश्रम में भजन – कीर्तन का कार्यक्रम चल रहा था । हरि बाबा घंटा बजाकर ‘हरिबोल – हरिबोल’ की ध्वनि के बीच मस्त होकर नाच रहे थे। विरक्त संत उड़िया बाबा स्वयं प्रभु नाम के भजन – कीर्तन का भरपूर आनंद ले रहे थे।

अचानक चार-पाँच व्यक्ति वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखते ही उड़िया बाबा यह समझ गए कि ये लोग बहुत ही बीमार एवं बहुत ही भूखे हैं। ऐसा लगता है जैसे कई दिनों से उन्हें खाना नही मिला है।

उनकी इस दयनीय स्थिति को देखकर बाबा की आँखों से आँसू भर आये। वह एकाएक उस भजन – कीर्तन से उठे एवं उन भूखे बीमार दरिद्रों को लेकर वह अपने आश्रम में चले गए तथा अपने एक सेवक से बोले, ‘इन सबको कमरे में बिठाकर खाना खिलाओ। ‘

उन्होंने स्वयं अपने हाथों से उन सबको खाना परोसा और प्यार से भरपेट खाना खिलाया। बाबा ने एक वैद्य को संकेत कर उनका खूब अच्छे से इलाज भी करवाया एवं उनके लिए अच्छे कपड़ों की व्यवस्था भी कराई।

हरि बाबा इस बात से बहुत चिंतित हो उठे थे कि उड़िया बाबा पहली बार भजन – कीर्तन को बीच में ही छोड़कर वहाँ से क्यों गए। उन्हें यह बहुत आश्चर्यजनक लग रहा था। वे उनके पास पहुँचे एवं उनसे पूछा, ‘बाबा, आपने ऐसा क्यों किया?’

उड़िया बाबा उनसे बोले, ‘भजन – कीर्तन आदि तभी सार्थक होते हैं, जब उपस्थित लोगों में से कोई भी भूखा प्यासा या कोई भी बीमार न हो। ये लोग बहुत ही ज्यादा भूखे थे एवं मैंने इन्हें भोजन कराकर इनको तृप्त कराया है। ‘ उड़िया बाबा उठे एवं पुनः संकीर्तन स्थल पर पहुँचकर भजन – कीर्तन का भरपूर आनंद लेने लगे।

6 साधु के लक्षण 

एक दिन कुछ साधु संन्यासी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास सत्संग के लिए पहुँचे। एक सद्गृहस्थ स्वामीजी के सान्निध्य में रहकर पिछले बहुत ही समय से पूजा – आराधना कर रहा था ।

तब किसी साधु ने अचानक स्वामीजी से  यह सवाल किया, ‘कि महाराज, सच्चा साधु कौन होता है? क्या सच्चा साधु बनने के लिए गृहस्थ जीवन का परित्याग करना परम आवश्यक होता है ??

यह सवाल सुनकर परमहंसजी ने अपनी बगल में बैठे हुए एक सफेद वस्त्रधारी उस गृहस्थ साधक की तरफ इशारा करते हुए उन संन्यासियों से कहा, ‘इसे देखिए, यह परिवार के बीच रहते हुए भी बिल्कुल सच्चा साधु है,

क्योंकि इसने अपना मन, प्राण एवं अंतरात्मा अपने प्रभु को समर्पित कर दिया हैं। यह हमेशा अपने प्रभु का स्मरण करता है। यह बीमारों एवं बूढ़ों में अपने प्रभु के दर्शन कर उनकी भरपूर सेवा करता है। मैं तो केवल सदाचारी गृहस्थ को ही सबसे महत्त्वपूर्ण संत मानता हूँ।’

तब परमहंसजी ने उनसे कहा, ‘साधु को केवल कंचन एवं कामिनी से बिल्कुल दूर रहना चाहिए। उसे प्रत्येक नारी में माता एवं बहन के दर्शन करने चाहिए। कल क्या खाऊँगा, और क्या पहनूँगा इसकी उसे बिल्कुल भी चिंता नहीं करनी चाहिए जो साधु झाड़ – फूँक करने में लग जाता है,

जो बीमारियाँ दूर करने एवं कोई भी चमत्कार का दावा करने लगता है, उसका एक न एक दिन पतन अवश्य हो ही जाता है। घर छोड़कर साधु बनने वाले को प्रभु के भजन एवं बड़ों की सेवा , परोपकार में ही बिल्कुल लगे रहना चाहिए।’

7 सेवा से ही कल्याण 

एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपने भक्तजनों को ज्ञान अर्जित कर रहे थे। कि एक दुकानदार अपनी पत्नी को साथ में लेकर उनके सत्संग के लिए पहुँचा। सत्संग के पश्चात उसने परमहंसजी से एक सवाल किया, ‘क्या सांसारिक बंधनों में रहते हुए प्रभु की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को सार्थक किया जा सकता है?’

तब स्वामीजी ने बताया, ‘कि संसार में ईश्वर को भजने एवं साधु-संन्यासी कम, गृहस्थजन अधिक होते हैं। वे सत्कर्मों एवं भक्ति के माध्यम से अपने जीवन को सफल बनाते हैं।

अपने परिवार के प्रति सभी का कर्तव्य करन चाहिए , परन्तु अपने मन में प्रभु का ध्यान लगाए रखो। जो व्यक्ति अपने माता-पिता, पत्नी एवं बच्चों से प्यार बिल्कुल भी नहीं करता, वह भला प्रभु से कैसे प्यार करेगा?’

परमहंसजी ने आगे फिर कहा, ‘कि एक गृहस्थ के कर्तव्य हैं कि वह प्राणियों के प्रति दया रखे , असहायों-निर्धनों एवं मूक पशु-पक्षियों की सेवा भी करे एवं अपने ईश्वर के प्रति गहरी आस्था एवं प्यार को बनाए रखे।

सदाचारी, ईमानदारी एवं कर्तव्यपालन एक ऐसे साधन हैं, जो गृहस्थ का लोक-परलोक, दोनों को सुधारने की भरपूर क्षमता रखते हैं। उसे यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि परिवार एवं सांसारिक प्रपंच में वह अपने प्रभु को कभी भी भुला न सके । जीवन का असली उद्देश्य तो ईश्वर की भक्ति ही होती है। ‘

अंत में उन्होंने कहा, ‘ कि अपने प्रभु को पाने के लिए सद्पुरुषों का सत्संग, सद्विवेक, विनम्रता एवं करुणा की भावना बहुत ही परम आवश्यक होती है। ‘ उस व्यक्ति की जिज्ञासा का समाधान भी हो गया।

8 धन का नशा 

एक छोटा सा 5 साल का बच्चा था. जिसका नाम रमेश था. रमेश अपने मित्रों के साथ खेल रहा था। खेलते – खेलते रमेश विपक्षी पक्ष पर बहुत भारी पड़ रहा था। तभी अचानक से दोनों पक्षों के बीच में कहासुनी हो गई , और दूसरे पक्ष का एक बड़ा लड़का रमेश से लड़ने – झगड़ने लगा एवं बहुत देर तक झगड़ा चलने के पश्चात बड़ा लड़का उससे कहता है – ‘ कि तू केवल नौकर है ,  और नौकर की तरह रहा कर। 

इस पर रमेश कुछ असहज एवं डर जाता है , यह बात उसके दिमाग में गूंजने  लगती है , इस शब्द को वह बिल्कुल भी कभी भुला नहीं पाया।

बड़ा होकर रमेश ने एक बड़ी कंपनी में जॉब कर ली , अब वह नौकर नहीं बल्कि एक मालिक बन गया था।

उसके साथ कई छोटे-बड़े काम करने वाले लोगों का साहब बन गया था।

एक दिन जब वह लिफ्ट से नीचे उतरा तो वह ऐसा क्या देखता है कि एक पढ़ी-लिखी औरत जो अभी बड़ी गाड़ी से उतरी है , वह सुरक्षा में तैनात महिला गार्ड को अपशब्द एवं उसे गाली गलौज भी कर रही है। महिला गार्ड अपनी सफाई देने का बहुत ही प्रयास कर रही है , परन्तु इसका प्रभाव धन के नशे में डूबे उस औरत पर बिल्कुल भी नहीं पड़ रहा है। तभी रमेश की आंख उस महिला गार्ड के साथ खड़े लड़के पर पड़ती है , जो मां के पीछे डरा सहमा हुआ खड़ा है।

उस लड़के को देखकर उसे अपने बचपन की याद आ जाती है जब खेल में किसी ने यह कहा था  –

‘ कि तू केवल एक नौकर का लड़का है , और तू नौकर बनकर रहा कर।

तब मुझे जाकर यह एहसास हुआ कि शर्मिंदगी किसे कहते हैं।

अचानक वह सारा दृश्य मेरी आंखों के सामने आ गया तथा मेरी यह आंखें अचानक नम हो गई।

9 हर व्यक्ति का महत्त्व 

एक बार एक स्कूल में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी ओर से भरपूर तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे अधिक पढ़ने वाला एवं समझदार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे परन्तु जब उसने आख़िरी सवाल को देखा तो वह बहुत ही परेशान हो गया।

सबसे आख़िरी सवाल में यह पूछा गया था कि “स्कूल में ऐसा कौन – सा व्यक्ति है जो सदैव सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम अवश्य बताइए।”

परीक्षा दे रहे सभी छात्रों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती है। पतली, सावलें रंग की एवं लम्बे कद की उस औरत की आयु तकरीबन पचास साल के आसपास थी।

ये चेहरा वहां पेपर दे रहे सभी छात्रों के आगे घूम रहा था। परन्तु उस औरत का नाम कोई भी नहीं जानता था। इस प्रश्न के उत्तर के रूप में कुछ छात्रों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ छात्रों ने इस प्रश्न को ही छोड़ दिया।

परीक्षा समाप्त हुई एवं सभी छात्रों ने अपने टीचर से यह प्रश्न किया कि “इस औरत का हमारी पढ़ाई – लिखाई से क्या सम्बन्ध है।”

तो इस प्रश्न का उत्तर टीचर ने बहुत ही सुन्दर व सरलता पूर्वक दिया “ये प्रश्न हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह मालूम हो जाये कि आपके आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कामों में व्यस्त हैं तथा आप उन्हें बिल्कुल भी जानते तक नहीं हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि आप बिल्कुल भी जागरूक नहीं हैं।”

10 अपना हुनर कभी न भूलें 

एक बार एक राजा था। उसके राज्य में सब कुछ बढ़िया ही चल रहा था। उस राजा ने अपने सैनिकों को बढ़ाने के लिए बहुत परिश्रम किया थी। तलवारबाजी, खेलकूद एवं शासन कला ये गुण तो सभी राजाओं में होते ही है परन्तु इस राजा को इसके अलावा एक और भी शौक था। वह था उसका कालीन बुनना।

ये गुण हर किसी राजाओं में नहीं मिलता है । राजा के इस काम को बहुत लोग अच्छे से पसंद किया जाता था। परन्तु इसके साथ ही यह भी कहा जाता था कि ये काम एक राजा के लायक तो बिल्कुल भी नहीं होता।

एक बार की बात है जब वह राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल में शिकार खेलने के लिए गया। वहां पर अचानक वह अपने सैनिकों से बिछड़ गया। राजा को अकेला देख वहां के डाकुओं ने उस पर आक्रमण कर दिया एवं उसे बंदी बना दिया। राजा के पास से कुछ नहीं मिलने के कारण डाकुओं ने उस राजा को मारने का निश्चय किया।

इस पर राजा को एक उपाय सूझा “राजा ने उन डाकुओं से कहा कि अगर तुम मुझे कालीन बुनने का सामान ला दो तो मैं तुम्हे इस राज्य के राजा से सौ सोने के सिक्के दान में दिलवाऊंगा।”

इस पर डाकू मान गये और राजा को कालीन बुनने का सामान भी दिया गया। राजा ने तुरंत कालीन बुनना प्रारंभ कर किया। जब ये कालीन पूर्ण रूप से बुन दिया तो इसे राजभवन में भेजा गया।

वहां पर रानी इस कालीन को देखकर राजा के काम को पहचान गई तथा उसमें लिखे राजा के सन्देश को पढ़ लिया। राजभवन में आये डाकुओं को रानी ने उन सबको पकड़वा लिया गया तथा राजा को उस जंगल से छुड़वाया गया।

राजा के अपने हाथों के इस हुनर ने राजा की जान बच गई. 

11 सुनहरी खिड़कियाँ 

एक छोटा लड़का, जो बहुत दूर के एक फार्म हाउस में रहता था ! लड़के को काम करने के लिए प्रतिदिन सुबह भोर से पहले उठना पड़ता था ! सूर्योदय के दौरान वह एक ब्रेक भी लेता था एवं अपनी छत पर चढ़ जाता था, ताकि वह घर से दूर सुनहरी खिड़कियों के साथ एक और घर भी देख सकें !

उसने मन में सोचा कि वहाँ रहना कितना अच्छा होगा। “अगर वह सुनहरी खिड़कियां खरीद सकता , तो बहुत ही मजा आता।”

एक सुबह उनके पिता ने जी ने उससे कहा कि हमें आज कुछ भी नहीं करना है. यह जानकर कि यह एक बहुत बढ़िया मौका था, लड़का एक सैंडविच लेकर वह घर को देखने के लिए चला गया।

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा , उसे एहसास होने लगा कि बह घर उसके घर से बहुत दूर नहीं था तथा जब वह घर में पहुंचा, तब उसने सुनहरे रंग की खिड़कियां नहीं देखीं, अपितु एक घर ऐसा देखा जिसे मेंटेनेंस की बहुत ही जरूरत थी।

वह उस दरवाजे तक गया एवं दरवाजे पर दस्तक दी। रहिम नाम के एक छोटे लड़के ने आकर दरवाजा खोला।

रहिम ने उससे पूछा कि क्या तुमने उस सुनहरी खिड़कियों से घर को देखा है ! तब लड़के ने कहा, “निश्चित रूप से।” तथा उसने उसे वरामदा पर बैठने के लिए आग्रह किया। वहाँ उन्होंने एक साथ देखा कि वह कहाँ से आया है।

और उसने वहाँ अपना घर भी देखा, जिस घर में सूरज बिल्कुल पूरी तरह से ढल रहा था ! तथा घर की खिड़कियां भी सुनहरी दिख रही थीं।

12 हीरा की कहानी 

एक गाँव में, एक गुरु किसी एक पेड़ के नीचे बैठे थे ! एक गाँव वाला अचानक उसके पास भागकर आया। “पत्थर, मुझे बहुत ही कीमती पत्थर दे दो!” वह जोइर – जोर से चिल्ला रहा था।

तब गुरु जी ने उससे पूछा, “कौन सा पत्थर?” 

तब उस व्यक्ति ने कहा, “कल रात,” “मैंने अपने स्वप्न में एक परी को देखा ! उस परी ने मुझसे कहा कि तुझे यहां एक गुरु मिलेगे ! वह गुरु तुझे एक बहुमूल्य पत्थर देगा, जो मुझे बहुत ही अमीर बना देगा। ”

गुरु जी ने अपने बैग में हाथ डाला एवं उससे कहा, “परी का शायद यही अर्थ  था। शायद आपके पास एक बहुमूल्य पत्थर हो। “

तब गाँव वालों ने देखा कि वह एक अमूल्य मुट्ठी के आकार का एक चमकता हुआ हीरा था ! उसने उसे ध्यान से उठाया एवं उसको अपने घर ले गया। उस रात वह पूरी तरह सो न सका।

तथा अगली सुबह वह जल्दी से अपने गुरु जी के पास गया। उसने उस बहुमूल्य हीरे को उसे तुरंत लौटा दिया एवं उनसे कहा, “गुरु जी , मैं इस पत्थर के बदले आपसे कुछ सीखना चाहता हूं … जब मैं आपकी तरह, एक ऐसे ही कीमती पत्थर फ्री में देने में बिल्कुल सक्षम होगा तब मैं वास्तव में एक अमीर व्यक्ति बन जाऊंगा।

13 शेर और बकरियां 

एक जंगल में, एक चरवाहा लड़के को एक नवजात शेर का बच्चा मिला ! वह उसे अपने घर ले आया एवं उसे अपनी बकरियों के दूध से उसका लालन – पालन किया ! शेर का बच्चा उनके बीच बढ़ने लगा तथा उनके चलने, खाने एवं पीने के तरीकों को भलीभांति प्राप्त कर लिया ! छोटा शेर यह सोचने लगा कि मैं एक असली बकरा हूँ।

एक दिन, जब वह बकरियों के साथ जंगल के किनारों पर घूम रहा था , तब शेर के बच्चे ने एक बहुत बड़े शेर को देखा जो स्वाभाविक रूप से दहाड़ रहा था ! तभी बकरियां डर के मारे वहाँ से भाग निकली। तभी शेर का बच्चा भी ऐसा ही करने लगा।

फिर उस शेर ने कहा :

“ऐ मेरे मित्र , तुम बकरी की तरह ऐसे क्यों दौड़े चले जा रहे हो? क्या तुम बिल्कुल भी शेर नहीं हो? ”

तब शेर के बच्चे ने उत्तर दिया मैं तो हमेशा अपनी बकरियों के साथ पला बड़ा हूँ. 

“फिर भी तुम मुझसे यह कहते हो? कि तुम बकरी नहीं हो। तुम एक बहादुर शेर हो. 

शेर को तब समझ आया कि शेर का बच्चा बिल्कुल गलत था, और ,

उसने उसे फिर समझाया:

“क्या मैं सच में गलत हूं, मेरे मित्र ? क्या मेरा दहाड़ना आपको बहुत ही दुखी करता है? अगर मैं तुमसे बहुत लंबा हूं, तो यह तथ्य बिल्कुल बरकरार है कि तुम्हारा चेहरा बिल्कुल मेरे जैसा है, न कि बकरी के जैसा.  तुम्हारी कमर भी मेरी तरह बिल्कुल पतली – सी है।

जहाँ तक मुझे पता है, कि आपके पैरों में कोई सींग तो नहीं है! आपकी पूंछ भी बहुत शानदार है। 

“एक बकरी जो एक बिल्कुल पूरी तरह बकरी है और तुम एक शेर हो जो बिल्कुल मेरी तरह हो । एक बार तुम अवश्य मेरी तरह दहाड़ो फिर आप स्वयं को अपने दिल में पाओगे। “

उसके कहने पर, शेर का बच्चा भी बहुत जोर से दहाड़ने लगा ! तब उसने अपने वास्तविक स्वरूप को महसूस करते हुए, उस जानवर ने एक वास्तविक शेर का जीवन आरंभ किया।

14

एक आदमी को एक बहुत पुरानी पुस्तक मिली! जो पुस्तक में “परिवर्तन के पत्थर” की कहानी बताई गई है। एक पत्थर जो किसी भी धातु को शुद्ध सोने में बिल्कुल पूरी तरह बदल सकता है! “परिवर्तन के पत्थर” को एक कंकड़ कहा जाता है जो हर किसी को पत्थर के तरह दिखता है ! रहस्य यह था कि यह पत्थर बहुत ही गर्म महसूस करता है।

तब उस आदमी ने उस पत्थर को खोजने का निर्णय लिया ! उसने अपना सामान बेचा, कुछ बुनियादी आपूर्ति खरीदी, एक समुद्र तट पर डेरा डाला एवं उसकी खोज जल्दी आरंभ कर दी।

उस आदमी ने अपने मन में सोचा कि किसी भी कंकड़ को एकबार महसूस करने के पश्चात उस कंकड़ को वापस नहीं रखना चाहिए ! फिर वही कंकड़, उसे अक्सर उठा लेता। इसलिए जब उसने एक बहुत ठंडा कंकड़ उठाया, तो उसने उसे समुद्र में फेंक दिया ! उन्होंने पूरे दिन ऐसा ही किया पर “परिवर्तन का पत्थर” नहीं पाया। परन्तु उसने खोजना जारी रखा। कई हफ़्ते भी बीत गए। एवं कई सप्ताह महीनों में तब्दील हो गए।

अंत में उसे एक दिन एक कंकड़ मिला जो बहुत ही गर्म था ! एहसास होने से पहले आदमी ने उस “परिवर्तन के पत्थर” को भी समुद्र में फेंक दिया ! उसने हर कंकड़ को समुद्र में फेंकने की ऐसी प्रबल आदत पैदा कर दी थी कि अब वह सुनहरा मौका भी बिल्कुल नहीं देख सकता था।

15

एक बहुत ही अमीर व्यक्ति था उसने अपना सारा जीवन धन कमाने मे लगा दिया था उसके पास बहुत सारा धन था तथा जो चाहे वो उसे खरीद सकता था। परन्तु उस व्यक्ति ने जिंदगी मे किसी कि कोई सहायता नहीं की उसने जिंदगी मे अपने लिए भी धन का बिल्कुल उपयोग नहीं किया। 

उसने अपनी सारी जिंदगी, न ही अपने स्वप्न पूरे किये , न अच्छा खाया और न ही उसने कभी भी अच्छा पहना बस सारी जिंदगी पैसों को कमाता रहा तथा धन को कमाते – कमाते उसे बिल्कुल पता ही नहीं चला कि कब उस पर बुढ़ापा आ गया, अब उसका जीवन का आखिरी पढ़ाव पर था एवं मृत्यु उसे लेने आ गई वह उस मृत्यु से कहने लगा कि अभी तो मैंने अपनी जिंदगी जी ही नहीं है मैंने इतना धन कमाया वो अभी बिल्कुल पूरी तरह खर्च भी नहीं किया। 

परन्तु मृत्यु ने उससे कहा कि अब तुम्हारा जिंदगी का सारा समय समाप्त हो चुका है तथा अब इसे बड़ाया नहीं जा सकता उसने मृत्यु से फिर कहा कि तुम मेरा आधा धन ले लो तथा मुझे एक साल दो जिंदगी जीने के लिए मृत्यु ने बिल्कुल मना कर दिया उसने फिर मृत्यु से कहा तुम मेरा 90 प्रतिशत धन ले लो एवं मुझे एक महिना दे दो मृत्यु ने फिर उससे मना कर दिया उसने फिर से कहा कि तुम मेरा सारी जमापूंजी ले लो एवं मुझे केवल एक दिन का समय दे दो ,

मृत्यु ने उसे फिर समझाया कि तुमने अपना सारा जीवन धन कमाने मे बिता दिया तथा अब तुम्हें मे एक मिनट भी नहीं दे सकता, तुमने समय मे धन तो कमा लिया परन्तु धन से समय नहीं कमाया जाता। जब उस आदमी को समझ आ गया कि मैं अपनी सारी जिंदगी का मोल पैसे देकर नहीं खरीद सकता तो जिंदगी का मोल कितना बड़ा है.

16

एक तोता था वह एक बिजनेस मैंन के घर रहा करता था, दोनों कि आपस मे बहुत अधिक बनती थी दोनों आपस मे बहुत सारी बाते भी किया करते थे पर बिजेनस मैंन जो था वो बहुत ही पूजा पाठ जैसे कामों मे अधिक व्यस्त रहता था तथा सदैव सत्संग को जाया करता था। एक दिन तोते ने उससे कहा कि आज तुम जो सतसंग जा रहे हो तो अपने गुरुजी से यह पूछना कि एक खुशहाल जीवन कैसे किया जा सकता है ?

तब वो व्यक्ति सत्संग को चला जाता है एवं अपने गुरुजी से एक प्रश्न पूछता है कि मेरा तोते ने आपसे उसका प्रश्न पूछने के लिए कहा है कि खुशहाल जीवन कैसे जियें परन्तु मैं आपको यह बता दूँ कि मैं अपने तोते को ए०सी० मे रखता हूँ एवं अच्छा खाना भी देता हूँ तथा और भी कई सारी बेहतर सुविधाएं उसको देता हूँ 

अचानक यह प्रश्न सुनकर गुरुजी तुरंत बेहोश हो गए लोग घबरा गए कि अचानक गुरुजी को क्या हो गया गुरुजी को पानी पिलाया एवं उन्हे होश भी आ गया और तुरंत उठकर वह बैठ गए और गुरुजी उनका उत्तर पूरी तरह भूल गये  क्योंकि बहुत सारे लोग वहाँ इकठठे हो गए थे. तब वह व्यक्ति बिना उत्तर के अपने घर वापस आ गया 

जब वह अपने घर पहुंचता है तो वह तोते से कहता है कि तुम्हारा प्रश्न सुनकर ही गुरुजी बिल्कुल बेहोश हो गए तथा तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका । बिजनेसमैन उस रात को सो जाता है सुबह उठकर वो तोते को पानी पिलाने जाता है परन्तु उसका तोता मर चुका होता है जैसे ही वह अपना पिंजरा खोलता है तो वह तोता उड़ जाता है और उससे कहता है कि मित्र यही तो गुरुजी का इशारा था मेरी जिंदगी इस पिंजरे मे नहीं है तथा मुझे इसी तरह यहाँ से बाहर को निकलना था और वह तोता यह कहकर तुरंत उड़ गया.

17 मेंढक और मेंढकी की कहानी 

एक मेंढ़क एवं एक मेंढकी एक कुँए में बड़े आराम से रहते थे । दोनों पति-पत्नी बहुत ही प्रेम से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।दोनों में प्यार की कोई कमी नहीं थी परन्तु विचारों की बहुत अधिक भिन्नता थी। जहाँ एक ओर मेंढक नास्तिक था और सिर्फ़ हक़ीक़त एवं वास्तविकता पर विश्वास करता था वहीं दूसरी तरफ़ मेंढकी अपने प्रभु के प्रति सम्पूर्ण समर्पित थी। मेंढकी का विश्वास था कि ईश्वर उसे किसी भी परेशानी से निकाल लेंगे परन्तु मेंढक उसकी इस सोच पर मुस्कुराता रहता था,एक दिन उस कुँए में न जाने कहाँ से एक साँप आ गया?

मेंढक और मेंढकी बहुत ज्यादा घवरा गए। उन्हे यह लगने लगा कि अब उनका बचना मुश्किल हो गया है। मेंढक एकदम से निराश हो गया एवं अपनी आँखे बंद करके बैठ गया जैसे ही साँप उनके बिल्कुल पास आ गया। इधर मेंढकी ने अपने प्रभु से प्रार्थना करनी प्रारंभ की, उसे पूरा विश्वास था कि प्रभु उसकी जीवन की रक्षा अवश्य करेंगे,मेंढक ने फ़िर से उस पर क्रोध किया कि चुप रहो कोई नहीं आएगा यहाँ हमारी सहायता करने.

जैसे ही उस सर्प ने अपना मुँह खोला तभी एक बाल्टी ऊपर से आई एवं मेंढक व मेंढकी पानी के साथ उस बाल्टी में ऊपर चले गए,इस पर मेंढकी कहती है देखा मैंने कहा था न कि प्रभु हमारे साथ है।”, मेंढकी ने अपने प्रभु का भरपूर धन्यवाद करते हुए कहा । दूसरी तरफ मेंडक उससे कहता है ये सिर्फ़ एक इत्तेफाक था कि हम बच निकले ।”,तभी उस बाल्टी का वो पानी मिट्टी के एक घड़े में डाल दिया गया। इससे पहले कि मेंढक एवं मेंढकी घड़े से बाहर निकल पाते, घड़े को ऊपर से पूरी तरह ढक दिया गया तथा नीचे से आग चालू कर दी,जैसे ही पानी का तापमान अधिक बढ़ने लगा मेंढकी ने फ़िर से अपने प्रभु की प्रार्थना करना शुरू कर दी।

मेंढक ने निराश होते हुए उससे कहा, “हाँ अब बुलाओ अपने प्रभु को अपनी सहायता के लिए। देखें अब हम कैसे बचते है? अब यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता अब हम बिल्कुल भी नहीं बचेंगे।”, तभी मिट्टी का घड़ा एकदम से चटक गया और मेंढक एवं मेंढकी तुरंत बाहर को आ गए और इस तरह दोनों की जान उस प्रभु के कारण बच गयी तथा खुशी – खुशी दोनों अपना जीवन व्यतीत करने लगे.

18

एक बार की बात है एक नदी जो कि बहुत ऊंचाई पर थी और जब निचले स्तर पर आ जाती तो उसके साथ कई प्रकार के पत्थर पड़े हुए थे कई पत्थर भी वहां रहते थे जो उनमें नदी के पत्थरों से मित्रता हो जाती थी उनमें से एक पत्थर देखने को बहुत ही सुंदर सा गोलाकार था एवं एवं एक खुरदुरा सा था जो उतना अच्छा भी नहीं था 

दोनों के बीच – विचार आदान प्रदान हुए तो खुरदुरे पत्थर ने कहा कि भई मैं तुमसे कुछ सवाल पूछ सकता हूँ फिर चिकने पत्थर ने कहा अवश्य पूछो , तो उस खुरदरे पत्थर ने कहा कि मैं और तुम उस छोटी सी नदी से यहां आए हो उसके बावजूद तुम इतने गोल मटोल एवं दिखने में आकर्षक और अब जो उस गोल मटोल पत्थर ने कहा यकीन मानो ऐसा लगा कि उसने जिंदगी  का बिल्कुल मतलब  ही बदल  दिया हो 

उस चिकने पत्थर ने कहा कि आरंभ में मैं भी तुम्हारे ही जैसा था कोई रंग रूप नहीं कोई आकार नहीं परन्तु उसके पश्चात मैंने कई लगातार अभ्यास किए मैंने जिंदगी में बहुत परिश्रम किया कई सालों तक मैंने बड़े बहाव को तक झेला है मैंने कई बार तूफान को भी झेला है और बाढ़ को भी झेला है तब जाकर मैं ऐसा सुंदर बना हूं , मेरा आकार जगह-जगह टकराकर टूट कर बना है एवं तब जा कर मुझे यह अति सुंदर – सा रूप प्राप्त हुआ है परन्तु तुम इतने दुखी मत हो अपने इस रूप से तुम नाराज बिल्कुल भी मत हो एवं ज्यादा निराश भी मत हो , तुम जिंदगी में कठिन से कठिन परिश्रम करो क्योंकि अगर आपने अगर जिंदगी में यह कठिन परिश्रम नहीं किया । 

मुझे भी यही लगा था मैं भी यही चाहता कि आराम से इसी किनारे पर बैठा रहता एवं कठिन परिश्रम बिल्कुल भी नहीं करता परन्तु इसके बावजूद भी मैंने कठिन परिश्रम करना अति उचित समझा क्योंकि उस आराम से पढ़े रहने से अच्छा है कुछ संघर्ष करो, परिश्रम करो कुछ अपने मन में इच्छा करो आगे बढ़ने की और देखों आज मैं तुम्हारे सामने तुमसे कई गुना सबसे अच्छा हूँ.

19

बहुत समय पहले की बात है कि एक गाँव मे एक ब्राह्मण निवास करता था उसके पास वह सबकुछ था जो एक अमीर व्यक्ति के पास होना चाहिए उसके पास एक बहुत बढ़िया – सा घर था एवं भरा – पूरा परिवार था परन्तु वह ब्राह्मण बहुत ही आलसीपन था दिन भर घर मे ही पड़ा रहता था तथा कुछ काम – काज भी बिल्कुल नहीं करता था उसकी पत्नी बहुत प्रयत्न करती कि वह कोई काम – काज करे परंतु उसकी हर कोशिश नाकाम रहती थी 

एक दिन उसी गाँव मे एक साधु आया वह ब्राह्मण उस साधु की रोज सेवा किया करता था ताकि उसे कोई अच्छा – सा वरदान प्राप्त हो सके, हुआ भी वैसा जैसा ब्राह्मण अपने मन में चाह रहा था. वह साधु उस ब्राह्मण की सेवा को प्राप्त कर बहुत ही प्रसन्न हो गया तथा उसने उस ब्राह्मण को वरदान मांगने को कहा, तब उस ब्राह्मण ने साधु से वरदान मांगा कि मुझे कोई ऐसा व्यक्ति दीजिए जो मेरा सारा काम – काज कर दे,साधु ने उसे एक जिन्न दिया एवं उससे कहा यह तुम्हारा सारा काम – काज करेगा परन्तु यह याद रखना कि यह एक पल भी बैठना नहीं चाहिए इसे हर पल तुम्हें कोई भी काम – काज अवश्य देना होगा 

ब्राह्मण ने उस जिन से बहुत काम कार्य किया परन्तु जब उसके पास काम – काज बिल्कुल खत्म हो गया तब उस जिन्न ने कहा कि अगर तुमने मुझे कोई काम – काज न दिया तो मैं तुम्हें अवश्य खा जाऊंगा तब ब्राह्मण बहुत बुरी तरह घवरा गया तथा उसी समय ब्राह्मण की पत्नी आई और उनसे कहनी लगी कि क्या मैं आपके जिन्न को कोई काम दे सकती हूँ तब उस ब्राह्मण नें कहा अवश्य क्यों नहीं ,पत्नी ने उस जिन्न से कहा कि तुम गाँव मे जाओ वहाँ एक कुत्ता है तथा जब तक उस कुत्ते की पूँछ बिल्कुल पूरी तरह सीधी नहीं होती तब तक तुम यहाँ वापस मत आना और वह जिन्न वहाँ से तुरंत चला गया 

ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि अब आपको अपने काम के महत्व के बारे मे पता चल चुका होगा. जब भी हम अपना काम – काज किसी दूसरों पर डालते हैं तो हम अवश्य ही किसी बड़ी परेशानी मे आ जाते हैं इसलिए कभी भी आलस करके अपना कोई भी काम – काज को मत करिए तथा अपना काम दूसरों पर बिल्कुल भी नहीं डालना चाहिए एवं उसके पश्चात वह ब्राह्मण अगले दिन से अपने खेत मे प्रतिदिन काम – काज करने लगा और खुशी – खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगा.

20 हाथी की रस्सी 

एक आदमी हाथी के शिविर के पास से इधर – उधर भ्रमण कर रहा था, एवं उसने देखा कि हाथियों को पिंजरों में नहीं रखा गया था बल्कि उन्हें ना ही चेन से बांधा गया था। जबकी उन्हें भागने से तथा उनसे बचने के लिए सिर्फ एक छोटी सी रस्सी के टुकड़े से बांध कर रखा गया था जिसे हाथी बड़े आराम से उसे तोड़ सकता था। परन्तु फिर भी हाथी उस रस्सी को तोड़ने की बिल्कुल भी प्रयत्न नहीं कर रहे थे इस बात से वो आदमी बहुत ही अधिक दुखी हो गया था एवं इस बात का उत्तर जानने के लिए वो हाथी के उस महारथी के पास गया तथा उसने अपना प्रश्न उनके सामने प्रस्तुत किया. 

तब महारथी का उत्तर था कि जब हाथी बहुत छोटे थे तो उनको इसी तरह की रस्सी से बांधा जाता था परन्तु जब वो उस रस्सी को भी नहीं तोड़ पाते थे क्योकि वो बहुत अधिक छोटे थे। इसलिए उन्होंने ये सोच लिया था कि वो इस रस्सी को बिल्कुल भी नहीं तोड़ सकते वो सोच उनकी अभी तक बनी हुई है एवं इसीलिए वो हाथी अब रस्सी को तोड़ने के लिए बिल्कुल प्रयत्न भी नहीं करना चाहते।