Dadi ki kahaniyan |सबसे लोकप्रिय दादी मां की कहानियां

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मित्रों इस पोस्ट में दादी मां की कहानियां In Hindi प्रस्तुत है। यदि वर्तमान परिवेश में देखा जाये तो दादी मां की कहानियां  एक महत्वपूर्ण विषय है। आप Dadi Ki Kahaniyan पढ़ें एवं अपने ज्ञान का वर्धन करें। हमें उम्मीद है कि Dadi Maa Ki Kahani In Hindi आपको अवश्य पसंद आएगा। 

मित्रता

एक समय की बात थी एक गांव में एक धनी सेठ का घर था।वह गांव के लोगों को कर्ज आदि दिया करता था। वहीं गांव में तीन चोर भी रह करते थे।

वे तीनों छोटी मोटी चोरियां कर अपना जीवन यापन किया करते थे।

परन्तु अब वे इन चोरियों से तंग आ चुके थे। उन्होंने अब एक बड़ी चोरी करने का मन बनाया। जिससे वह अपना संपूर्ण जीवन चैन से बिता सकें। उन्होंने सेठ का घर लूटने का प्लान बनाया।

एवं योजना के मुताबिक ही, सेठ का पूरा घर रातोरात लूट लिया।

रात को ही तीनों जंगल के रास्ते शहर की ओर भागने लगे। तीनों के पास धन, गहने, एवं कीमती सामानों से भरी एक एक बोरी थी। अब सुबह हुई तो तीनों को भूख बहुत तेज लगने लगी।

तभी एक चोर ने खाना ले आने का निर्णय किया। बाकी दो चोर उसका जंगल मे ही इंतजार कर रहे थे। वे बैठे बैठे चोरी किया हुआ सामान देख ही रहे थे कि तभी दोनो चोरों के मन में लालच आया औऱ उन्होंने तीसरे चोर, जो कि खाना लेने गया था उसको मारकर सारा माल हड़पने की योजना बनाई।

वही जो चोर भोजन लेने गया था, उसके मन मे भी लालच आया एवं उसने भी ऐसा ही सोचा उसने भोजन खिलाकर मारने की योजना बनाई। उसने स्वयं तो पेट भर कर खाना खाया और उनके लिए खाने में जहर मिला कर ले आया।

जंगल मे पहुंचते ही, दोनो चोर उस पर टूट पड़े उसको बहुत मारा एवं वह वहीं पर मर गया। उन दोनों ने उसकी लाश को भी ठिकाने लगा दिया।

अब दोनो चैन से बैठकर भोजन करने लगे। खाने में तो जहर था। खाना खा कर वो दोनो भी तड़प तड़प कर मर गए।

बुध्दिमान खरगोश

बहुत समय पहले एक जंगल में एक शेर रहा करता था। वह बहुत ही खूंखार था एवं शिकार करने में बहुत ही माहिर था। एक बार तो वह एक दिन के चार-पांच जानवरों को अपना शिकार बना लेता था।

जिस कारण से जंगल में जानवरों की संख्या एकदम से घटने लगी। इसका असर पूरे जंगल मे पड़ रहा था।

जंगल मे घट रही जानवरों की संख्या को देखते हुए सभी जानवरों ने एक सभा की। जिसमे जानवरों के कम होने का मुद्दा उठाया गया और इस बारे में सबने शेर से बात करने का फैसला लिया।

सभी शेर के नजदीक गए तथा उससे अपनी परेशानी साझा की।

भालू जो कि मुखिया था वह शेर से बोला, ” आप जंगल के राजा हो, परन्तु जिस प्रकार आप शिकार कर रहे हो ऐसे तो पूरा जंगल ही नष्ट हो जाएगा। आपको अपने शिकार करने की गति थोड़ी धीमी करनी होगी।”

तब शेर बोला, ” मैं आप सभी की बातों से सहमत हूँ। परन्तु आप यदि चाहते हैं कि मैं शिकार न करूं तो आप लोगो को ही मेरे शिकार का इंतजाम करना होगा।”

सबकी सहमति से प्रतिदिन एक एक जानवर को शेर की गुफा में भेजने का फैसला लिया गया। अब प्रतिदिन एक जानवर को शेर की गुफा में भेज दिया जाता था।

एक दिन खरगोश की बारी आई । खरगोश बहुत ही चालाक था। वह शेर की गूफा में थोड़ा देर से गया। शेर बहुत ही क्रोध एवं भूख से बौखलाया हुआ था। शेर ने खरगोश से पूछा, ” इतने देर से क्यो आए जानते नहीं हो कि मैं कौन हूँ?”

तब खरगोश ने कहा ,” महाराज मैं तो समय से आ गया होता। परन्तु मुझे रास्ते मे एक दूसरा आप जैसा शेर मिल गया और वह स्वयं को जंगल का राजा बता रहा था। तब मैं ने उसे डाँठ लगाई एवं उसकी खबर देने आपके पास आ गया।

” शेर को दूसरे शेर की बात सुनकर बहुत क्रोध आया। वह खरगोश को लेकर उसके पास जाने लगा।

खरगोश उसे एक कुँए के पास ले गया और उससे कहा कि वह शेर इस कुँए के अंदर रहता है।

जब शेर ने कुँए के अंदर देखा तो उसे उसकी परछाई नजर आई तथा अपनी परछाई को दूसरा शेर समझकर वह उसे मारने के लिए उस कुँए में कूद गया। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी और वह तुरंत मर गया।

पूरे जंगल को एक छोटे से जानवर ने बड़े एवं खूंखार शेर से छुटकारा दिला दिया।

बातूनी कछुआ

एक बार एक कछुआ जंगल के एक तालाब के किनारे रहा करता था। वहीं बहुत से जलीय जानवर भी रहते थे। तालाब के किनारे ही दो सारस भी रहा करते थे।

जब कछुआ तालाब के इधर उधर घूमता तो उसे वे सारस दिखाई देते थे। धीरे धीरे, उन में बात चीत हुई एवं वे कुछ ही समय मे एक बढ़िया मित्र भी बन गए।

एक समय की बात है, जंगल मे अचानक सूखा पड़ गया। वह तालाब भी सूखने लगा था, जहां पर कछुआ एवं सारस रहा करते थे। सभी जानवर नया स्थान खोजने लगे।

अब सारसों ने भी अपने रहने के लिए दूसरे जंगल मे एक नई जगह ढूंढ ली। एक दिन जब कछुआ सारसों से मिलने आया तो एक सारस ने उससे कहा, ” कछुए भाई!

हमने तो अपने रहने के लिए एक नया स्थान खोज लिया है। क्या तुमने भी अपने रहने के लिए एक नया स्थान ढूंढ लिया है?  यह जगह तो कुछ दिनों में खाली ही होने वाली है।”

तब कछुआ कुछ दुखी होकर बोला, ” नहीं भाई मैं ने अभी तक कोई रहने  की जगह नहीं ढूंढी है।” सारस फिर बोला, ” तुम बिल्कुल भी दुखी न हो। हम तुम्हारे दोस्त हैं हम तुम्हारी मदद अवश्य करेंगें।”

तब सब ने निश्चय किया कि कछुए को भी वहीं ले जाएंगे जहाँ पर सारस रहने वाले हैं। परन्तु अब एक समस्या आ पड़ी । कछुए की चाल बहुत धीमी थी और सारस उड़कर अपना मार्ग निश्चित करते थे।

तब सारसों ने एक तरकीब लगाई। तरकीब के अनुसार कछुए को अपने मुंह से एक छड़ी पकड़नी थी और उसी छड़ी को दोनो सारस दोनों छोर से पकड़कर उड़ने वाले थे जिससे सब एक साथ नई जगह पर पहुंच सके।

परन्तु चलते समय सारसों ने कछुए को चेतावनी दी थी कि वे रास्ते मे कहीं भी अपना मुंह बिल्कुल भी न खोलें ।

तीनों उड़ गए। रास्ते मे कुछ बच्चे नीचे खेल रहे थे, उन्होंने कछुए को देखकर कह दिया, ” उड़ने वाला कछुआ हा हा हा…”

कछुए ने उत्तेजित होकर अपना मुंह बोलने के लिए खोल दिया और वह तुरंत नीचे गिरकर मर गया। सारसों को अपने दोस्त को खो देने का बहुत ही दुख हुआ।

नन्ही कोयल

एक बार एक घने जंगल मे एक कोयल रहा करती थी वह बहुत ही अच्छी थी, एवं अपने जंगल से बहुत प्रेम भी किया करती थी।

एक बार किन्ही कारणों के कारण से जंगल मे आग लग गयी एवं जंगल अब जलने लगा। सभी जानवर अपनी अपनी जान बचाकर इधर – उधर भागने लगे।

सब अपने लिए एक अच्छी एवं सुरक्षित जगह खोज करने के लिए जंगल से बाहर जा रहे थे।

आग बढ़ती ही जा रही थी। धीरे धीरे चलने वाले कुछ जानवर उस आग का शिकार भी हो गए और वहीं जलकर मर गए।

इतनी भीषण समस्या के दौरान वह नन्हीं सी कोयल  जंगल के पास वाले तालाब से अपनी चोंच में पानी लाकर आग में डाल रही थी। तभी वहां से एक भालू निकला।

भालू की गति भी धीमी ही थी तो भालू ने उस कोयल को ऐसा करते हुए देख लिया। उसको बहुत ही हंसी आ रही थी, फिर उसने कोयल को रोक कर पूछा, ” क्यो नन्ही सी कोयल! तुम्हें मजाक लग रहा है क्या!

आग लगी है जंगल मे! कभी भी किसी का भी खेल खत्म हो सकता है। तुम यहाँ ऐसा खेल क्यों कर रही हो?”

तब कोयल बोली, ” भालू दादा, मैं जानती हूं कि जंगल मे आग लगी है। और मैं यह कोई खेल नहीं कर रही हूँ। यह जंगल मेरी मातृभूमि है। इस स्थान से मैं बहुत प्यार भी करती हूं।

अतः मैं अपने इस प्यारे घर रूपी जंगल को ऐसे बिल्कुल भी नहीं छोड़ सकती। मुझसे जितना हो रहा है, मैं उतना कर रही हूं और ऐसा तब तक करती रहूँगी जब तक मेरे शरीर मे प्राण हैं।”

इतना कहकर वह फिर से पानी लाने चली गयी। भालू को अपनी सोच पर बहुत लज्जा आई एवं वह फिर चिड़िया के पीछे उसकी सहायता करने चल दिया।

बुध्दिमान हंस

एक जंगल मे एक घना पेड़ था। उस पर बहुत से हंस रहा करते थे। एक बार उस पेड़ से छोटी छोटी बेलें ऊपर को आ रही थीं। तो, उन हंसों में से एक बुध्दिमान हंस ने अपने साथियों से कहा कि हमें ये बेले अभी काट देनी चाहिए।

नही तो ये हमारे लिए बहुत खतरा बन सकती हैं।

वह हंस बहुत बूड़ा था तो किसी ने उसकी बात नहीं सुनी और यह कहकर टाल दिया कि, हंस तो बहुत बूड़ा है शायद बुढ़ापे में आकर ऐसा कह रहा है।

समय बीतता गया, किसी ने भी इस समस्या को कभी नहीं देखा, और न ही इस पर कोई गौर किया।

अब वे लताएँ बहुत बड़ी हो चुकी थी, और पेड़ पर इस प्रकार लिपट गयी थी मानो कोई सीढ़ी पेड़ से लगा दी हो।

एक दिन एक बहेलिया उस जंगल मे आया औए उसने वह घना पेड़ देखा। उसने अपने मन मे सोचा कि यहां तो कोई न कोई आएगा ही।

तथा यही सोचकर उसने हंसो के पेड़ में जाल बिछा दिया औऱ वहां से चला गया।

उस समय सभी हंस दाना लेने के लिए बहुत दूर गए हुए थे।

जब सभी हंस पेड़ पर वापस आये तो वे जाल में फंस गए। अब वे कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। बूढे हंस ने तो सबको पहले ही चेतावनी दी थी। अब सब उनकी बात न मानने पर बहुत पछता रहे थे।

सभी ने बूढे हंस से कोई उपाय सोचने को कहा।

तब हंस बोला, ” इस संसार मे कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। तुम्हारी सोच पर ही निर्भर करता है । अब कल जब शिकारी हमे लेने आएगा तो सब मेरे इशारे पर जाल सहित ही उड़ जाना। याद रहे हम यह अवश्य कर सकते हैं।”

अब अगले दिन जब बहेलिया जंगल में आया तो वह बहुत प्रसन्न हुआ, बहेलिये ने जाल हटाया ही था कि बूढ़े सरदार ने तुरंत इशारा कर दिया सभी हंस पूरी ताकत लगाकर उड़ गए तथा बहेलिया देखता ही रह गया।

ऊंची उड़ान

बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल के पास मे बहुत सारे गिद्ध ऊंची ऊँची चट्टानों में रहा करते थे। उनका पूरा समूह एक साथ रहता था। गिद्ध ऊंची उड़ान के लिए जाने जाते हैं।

तभी शायद उन्होंने अपना रहने का स्थान उस चट्टान को चुना था।

वे चट्टानों से ऊंची उड़ान भरकर शिकार भी अवश्य किया करते थे। एक दिन, सभी गिद्ध भोजन की खोज में बहुत दूर चले गए थे। वे एक ऐसी जगह पर पहुंच गए जहां मछलियों की बहुत ही बहार थी।

उन्हें एक तालाब दिखाई दिया। जिसमें बहुत सारी मछलियां थीं। परन्तु वह तालाब जंगल के पास था परन्तु  वहां के जंगली जानवरों का डर बहुत लगा रहता था।

लेकिन गिद्ध जानवरों से बिल्कुल नहीं डरते थे क्योंकि वे उड़ना जानते थे और उनको अपने पंखों पर बहुत विश्वास भी था।

दो – तीन दिन वहीं रुकने के पश्चात, एक समझदार गिद्ध बोला , ” यह जगह भले ही लाभदायक हो परन्तु हमें यहां बिल्कुल भी नहीं रहना चाहिए।”

अन्य गिद्धों ने उसकी बात बिल्कुल नहीँ मानी। परन्तु वह गिद्ध अकेला ही चट्टानों में चल पड़ा। और वे वही रुक गए।

एक दिन उस गिद्ध को अपने साथियों की बहुत याद आ रही थी तो उसने सोचा कि क्यों न अपने साथियों से मिल आऊं। अब वह उस तालाब के पास जाने लगा।

तालाब के पास जैसे ही वह पहुंचा, वह तुरंत घबरा गया। वहाँ बहुत सारे गिद्धों के कंकाल पड़े हुए थे और एक गिद्ध घायल हालत में पड़ा हुआ था।  वह जल्द से उसके पास गया एवं उससे पूछा,

” तुम सबकी यह हालत कैसे हुई?” तब घायल गिद्ध कराह कर बोला, ” हम सब पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया था परन्तु जैसे ही हम उनसे बचने के लिए उड़ने लगें तो हमारे पंखों ने हमारा साथ बिल्कुल भी नहीं दिया,

तथा हम पूरी तरह से उड़ नहीं पाए। जिस कारण से जानवरों ने सब पर हमला बोल दिया।” इतना कहकर ही उसने भी तुरंत प्राण त्याग दिए। गिद्ध परेशान होकर वहां से तुरंत वापस आ गया।

ऋषि और चूहा

एक बार एक आश्रम में एक ऋषि रहा करते थे। वे बहुत ही ज्ञानी एवं बुद्धिमान थे और उनके पास बहुत महत्वपूर्ण शक्तियां भी थी। उनके कुछ अनुयायी भी उनकी सेवा करने के लिए उनके साथ आश्रम में रहा करते थे।

न जाने एक चूहा कहाँ से उनके आश्रम में आ गया और वहीं पर रहने लगा। तथा वह ऋषि से बहुत प्यार भी करता था। जब ऋषि ध्यान करते या फिर पूजा में लीन होते तो,

वह चूहा भी ऋषि के साथ वहाँ पर बैठ जाता एवं पूजा – अर्चना में बहुत ध्यान लगाता।

परन्तु वह चूहा बिल्लियों एवं अन्य जंगली जानवरो से बहुत डरता था। जब भी उसे कोई जंगली जानवर दिखाई देता था तो वह आकर ऋषि की कुटिया में तुरंत छिप जाता था।

ऋषि को भी अब चूहे से बहुत लगाव हो गया था। परन्तु उनको चूहे का डरना भी पसन्द बिल्कुल नहीं था। उनके पास कुछ दिव्य शक्तियाँ थी। उन्होंने चूहे को उन ही शक्तियों से चूहे से शेर बना दिया।

चूहा बहुत खुश हुआ और अब वह स्वतंत्र होकर जंगल मे घूम सकता था।

सभी जंगली जानवर अब उससे डरने लगे एवं उसका सम्मान भी करने लगे। परन्तु ऋषि कभी भी उसकी इज्जत बिल्कुल भी नही करते थे और उसके साथ एक चूहे जैसा ही व्यवहार किया करते थे।

शेर बने चूहे को यह बात बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी। शेर ने सोचा, मेरे चूहे होने की बात केवल ऋषि को ही पता है, अगर मैं इसे मार दूँगा तो मुझे कभी भी किसी भी चीज का डर बिल्कुल नहीं रहेगा।

यह सोचकर वह द्वेष की भावना के साथ ऋषि के सम्मुख पहुंच गया। ऋषि तो दिव्यदृष्टि वाले थे, उन्हें चूहे की भावना पता लग गयी थी। जैसे ही चूहा उन्हें मारने आया वैसे ही उन्होंने फिर से चूहे को शेर से चूहा बना दिया।

चूहे को फिर अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने ऋषि से क्षमा मांगी।

चूहा एवं भगवान

एक बार एक जंगल मे एक चूहा रहता था। वह बहुत ही डरपोक था। उसे अपना चूहा होना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। वह एक दिन मन्दिर में गया एवं मन्दिर जाकर प्रभु से प्रार्थना करने लगा,

” प्रभु मुझे चूहा क्यों बनाया, मुझे सदैव बिल्ली का डर लगा रहता है, मालूम नहीं कब मैं मर जाऊं! काश मैं बिल्ली होता।” इतना कहकर वह रोने लग गया।

प्रभु को उसके ऊपर दया आ गयी और प्रभु ने उसे एक बिल्ली बना दिया।

अब बिल्ली बनकर चूहा निश्चिन्त होकर इधर – उधर घूमने लगा। फिर एक दिन उसके पीछे एक बड़ा सा कुत्ता पड़ गया और वह बिल्ली डर के मारे एक घर मे जाकर घुस गई । उसको बहुत डर लगा।

कुत्ते के जाने के पश्चात् वह फिर से मन्दिर में गयी एवं प्रभु को आप बीती हुई सारी बातें बता दी। फिर रोकर बोलने लगी, काश मैं एक कुत्ता होता।

प्रभु को फिर से दया आई एवं प्रभु ने फिर से चूहे को बिल्ली से बदलकर कुत्ता बना दिया।

कुत्ता बनकर चूहा एक दिन जंगल मे घूमने गया तो, उसके पीछे एक शेर पड़ गया। उसने जैसे तैसे अपनी जान बचाई और फिर मन्दिर में चला गया। मन्दिर में पहुँचकर वह फिर से रोने लगा।

प्रभु जी को फिर से उस पर दया आई एवं उसको शेर बना दिया। अब वह कुछ सन्तुष्ट था। परन्तु अब उसके पीछे एक शिकारी पड़ गया। उसने उसी समय प्रभु से प्रार्थना की कि, प्रभु जी मुझे अब इंसान बनना है।

इस बार प्रभु जी को उस पर दया बिल्कुल नही आई। क्योंकि उसको कुछ भी बना दिया जाता लेकिन उसकी सोच चूहों वाली ही रहती। इस बार प्रभु जी ने उसे फिर से चूहा बना दिया।

जंगल की सभा

एक गांव के पास एक जंगल था। वहां विभिन्न प्रकार के पशु एवं पक्षियों का बसेरा था। उन सभी मे बहुत ही बड़ी एकता थी।

माह के अंतिम शनिवार को रात में हर बार उनकी एक सभा होती थी। जिसमे मनोरंजक कार्यक्रमो के साथ साथ, बहुत से मुद्दों पर बात – चीत की जाती थी,

एवं जंगल को आगे बढ़ाने के लिए तथा सभी जानवरो की सुरक्षा के लिए भी निर्णय लिए जाते थे।

वहां सभी को बहुत ही बढ़िया लगता था एवं आगे आने का मौका भी मिलता था।

एक दिन ऐसे ही सभा का आयोजन किया जा रहा था। रात्रि हुई एवं सभा आरंभ हुई।

तभी एक जानवर ने पूछा, ” क्या कोई बता सकता है, कि हमारे जंगल मे कितने कौए हैं?”

सब इस प्रश्न को सुनकर एकदम से अचरज में पड़ गए।

इस सभा मे एक कछुआ भी था। वह किसी भी क्रियाकलाप में भाग नहीं लेता था, जिस कारण से उसके साथी उसको चिढ़ाते थे।

आज उसके पास स्वंय को साबित करने का एक सुनहरा मौका मिला था।

वह अपनी जगह से उठा और बोला, ” मुझे इस प्रश्न का उत्तर पता है।”

उस के साथी जो उसको चिढ़ाया करते थे, वे भी वहीं पर मौजूद थे, वे सभी बहुत ही आश्चर्यजनक ढंग से कछुए को देखने लगे। तभी लोमड़ी बोली, ” सभी को मौका मिलना चाहिए। कछुआ उत्तर दे सकता है।”

तब कछुए ने कहा, ” हमारे जंगल में ‘पांच हजार सात सौ चौसठ’ कौए हैं।”

कछुए का उत्तर सुनकर उसके दोस्त मुस्कुराने लगे। तभी लोमड़ी ने सबको शांत कराया औऱ कछुए से पूछा, ” तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो? अगर इस संख्या से कम या अधिक हुए तो?”

तब कछुए ने बड़ी ही बुध्दिमानी से उत्तर दिया, ” लोमड़ी जी, आप सभी चाहें तो गिन सकते हैं। जिस प्रकार हमारे रिश्तेदार अन्य जंगलों में होते हैं ठीक उसी प्रकार कौओं के भी रिश्तेदार अन्य जंगलों में ही रहते हैं।

अगर मेरी बताई गई संख्या में से एक भी कौआ अधिक हुआ तो, समझ लीजिए कि उनका कोई रिश्तेदार उनसे मिलने के लिए यहाँ आया हुआ है।

और अगर इस संख्या में से एक भी कौआ कम मिला तो समझ लेना कि हमारे जंगल का कौआ किसी दूसरे जंगल अपने रिश्तेदारों से मिलने गया है।”

कछुए की बात सुनकर सब हैरान रह गए। सभी ने इसके लिए ताली बजाई और बड़े लोगो ने इसे शाबाशी भी दी।

टिड्डा एवं चींटी

एक बार एक जंगल मे एक टिड्डा रहा करता था। उसी जंगल में एक चींटी भी रहा करती थी। एक बार टिड्डा एवं चींटी एक ही पेड़ पर थे, उन दोनों ने एक दूसरे को देखा, बातचीत भी हुई और उनकी मित्रता भी हो गयी।

अब कभी जब दोनो मिलते तो वे एक दूसरे का अभिवादन भी करते एवं खूब सारी बातें भी किया करते थे।

गर्मियों के दिन थे। उन्ही दिनों टिड्डा एक दिन दोपहर का भोजन खाकर पेड़ में बैठकर आराम कर रहा था और गाना भी गुनगुना रहा था। उस ही पेड़ के नीचे चींटी अपनी अन्य साथियों के साथ भोजन इकट्ठा कर रही थी।

अचानक टिड्डे की नजर अपनी मित्र चींटी पर पड़ी उसने चींटी को रुकवाया और उससे बातचीत करने लगा।

टिड्डा बोला, ” मित्र तुम इतनी धूप में यह क्या कर रही हो। “

चींटी बोली, ” मित्र बरसात के दिन नजदीक हैं। उन दिनों भोजन ढूंढना बहुत ही कठिन होता है। अतः हम बरसात के लिए भोजन इकट्ठा कर रहे हैं। तुमने क्या अपना भोजन इकट्ठा कर लिया है? जो तुम इतने निश्चिंत हुए हो?”

टिड्डा बोला, ” नहीं मित्र मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं करता। अभी तो मैं खाना खा कर आराम ही कर रहा था। तुम करो भोजन इकट्ठा, मैं गाना गाता हूँ फिर मैं सो जाता हूँ।”

चींटी को उस पर बहुत क्रोध आया परन्तु वह बिना कुछ कहे ही अपने झुंड में वापस चले गयी। और भोजन को इकट्ठा करने लगी।.

बरसात के दिन आरंभ हो गए। आरंभ में ही चार- पांच दिन लगातार बारिश  हुई। टिड्डा 4 दिनों से बहुत भूखा था बारिश के कारण उसे कहीं भी भोजन नही मिला, वह इधर उधर भटकता रहा।

फिर उसे याद आया कि उसकी मित्र चींटी ने तो खूब सारा भोजन इकट्ठा किया है! क्यो न उसके पास सहायता के लिए जाया जाए।

वह चींटी के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया। चींटी ने दरवाजा खोला। तब टिड्डे ने अपना दुख उस चींटी को बताया।

चींटी को उस पर बहुत क्रोध आया औऱ वह बोली, ” जब मैं परिश्रम से भोजन इकट्ठा कर रही थी तो तुम आराम से सो कर गाना गा रहे थे! अब भुगतो! मुझे आलसी लोग बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। तुम चले जाओ यहाँ से, हमने निश्चित ही भोजन इकट्ठा किया है मैं तुम्हें बिल्कुल भी नहीं दे सकती ।”

टिड्डा निराश होकर वहां से चल दिया।