हनुमान जी का सूर्य निगलना विवाह की कहानी कथा sindoor birth story

हनुमान जी का सूर्य निगलना|विवाह की कहानी|Sindoor Birth Story

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हनुमान जी का सूर्य निगलना –

हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी के बारे में उल्लेख है कि राम भक्त हनुमान जी बचपन से ही साहसी और निडर थे. उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं था. हनुमान जी के बारे में वर्णित है कि एक बार हनुमान जी की माता जी अंजनी ने हनुमान जी को सुला दिया जब हनुमान जी की नींद खुली तो हनुमान ने भूख महसूस की हनुमान जी ने माता जी से भोजन माँगा परन्तु माता अंजनी काम में व्यस्त थी  व माँ अंजनी को हनुमान जी की आवाज सुनाई नहीं दी हनुमान को भूख व्याकुल कर रही थी हनुमान जी ने इधर उधर देखा (hanuman eating sun story in hindi) हनुमान जी ने चमकते हुए सूर्य को देखा जिसका रंग लाल था हनुमान जी ने लाल सूर्य को कोई फल समझा फल को देख कर उनके मन में फल को खाने की तीब्र इच्छा हुई उन्होंने फल खाने का निश्चय किया तथा सूर्य की ओर दौड़ पड़े.

हनुमान जी ने सूर्य को ग्रास बना कर मुंह  में रख लिया संयोग से उस दिन ग्रहण था व सूर्य को ग्रास बनाने के लिए राहू भी सूर्य की तरफ आ रहा था.

हनुमान जी ने राहू को भी काला फल समझा (हनुमान जी का सूर्य निगलना) और भूख को शांत करने के लिए राहू की तरफ दौड़ लगा दी .

राहू ने हनुमान जी को सूर्य को ग्रास बनाते हुए देखा (हनुमान जी का सूर्य निगलना) राहू ने हनुमान जी को अपनी ओर आते देखा तो राहू भयभीत होने लगे और खुद को असुरक्षित महसूस किया राहू ने जान बचाने के लिए दौड़ लगा दी.

राहू ने स्वर्ग के राजा राजा इंद्र के यहाँ शरण ली राहू ने इन्द्र को हनुमान जी के बारे में बताया  राजा इंद्र अपने हाथी एरावत को लेकर हनुमान जी की खोज में निकले .

हनुमान जी की भूख जोरों पर थी, हनुमान जी ने  राजा इंद्र को भी फल समझा व हनुमान जी राजा  इंद्र पकड़ने को दौड़े हनुमान जी के इस व्यवहार से इंद्र को बहुत क्रोध आया. इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान जी की ठोड़ी पर प्रहार किया जिससे हनुमान जी का मुंह खुल गया और हनुमान जी के मुंह से सूर्य बाहर आ गए इस तरह राजा इंद्र ने सूर्य को छुड़ाया .

जब यह सब हनुमान जी के पिता पवन को पता चला तो हनुमान जी के पिता को बहुत क्रोध आया और उन्होंने बहना बंद कर दिया जिससे दुनिया में लोगों का जीना दूभर हो गया .

भगवान् ब्रह्मा ने पवनपुत्र हनुमान जी की मूर्छा दूर की और हनुमान जी को वरदान दिया कि आपके पुत्र हनुमान पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का कुछ असर नहीं हो सकता.

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हनुमान जी की विवाह की कहानी –

संकटमोचक हनुमान जी के बारे में हिन्दू धर्म में आम राय है कि हनुमान जी जन्म से ही ब्रह्मचारी थे लेकिन यह बात सच नहीं है. हनुमान जी के विवाह का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में है. आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले के एक मंदिर में हनुमान जी अपनी पत्नी सुर्वचला के साथ विराजमान हैं. इस मंदिर के बारे में लोगों में मान्यता है कि जो कोई भी अपनी पत्नी के साथ हनुमान जी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है उसके पत्नी के साथ चल रहा तनाव समाप्त हो जाता है .

पाराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का विवरण है हनुमान जी को विशेष (हनुमान जी की विवाह की कहानी) परिस्थितियों में विवाह करना पड़ा. संहिता के अनुसार हनुमान जी ने भगवान् सूर्य को अपना गुरु मान लिया और उनसे शिक्षा प्राप्त करना आरम्भ किया.  भगवान् सूर्य ने चलते चलते हनुमान जी को पांच शिक्षाएं सिखा दी लेकिन शेष चार शिक्षाएं ऐसी थी जो केवल विवाहित पुरुष को सिखाई जा सकती थी.

हनुमान जी का पूरी शिक्षा ग्रहण करने का प्रण था. भगवान् सूर्य को पता था कि शेष चार शिक्षा के लिए पुरुष का विवाहित होना अनिवार्य है दोनों के सामने नियम थे जिन्हें कोई तोडना नहीं चाहता था .

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भगवान् सूर्य ने ही हनुमान जी को सुझाव दिया कि आप मेरी पुत्री सुर्वचला से विवाह कर लें (hanuman ji marriage story in hindi) इससे आपकी दोनों प्रतिज्ञाएँ पूरी हो जाएँगी हनुमान जी ने अपने गुरु का कहना मान लिया .

सुर्वचला परम साधना और तपस्या में लीन रहतीं थीं और शादी के तुरंत बाद तपस्या के लिए जंगल में चली गयी व् हनुमान जी ब्रह्मचारी भी रहे . 

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हनुमान जी कथा –

हनुमान जी के पिता का नाम पवन और माता का नाम अंजनी था. हनुमान जी बेहद (हनुमान जी कथा) बलशाली थे. पहले यह सुग्रीव के मित्र थे व सुग्रीव के साथ रहते थे. सुग्रीव राजा बाली के भाई थे लेकिन शिकार के सन्दर्भ में दोनों के बीच शत्रुता हो गयी. बाली ने सुग्रीव की पत्नी को अपनी पत्नी बना कर अपने राज्य से निकाल दिया. सुग्रीव ने किष्किन्धा पर्वत पर शरण ली क्योंकि बाली को श्राप था कि बाली उस पर्वत पर जाएगा तो बाली का अंत हो जाएगा .

हनुमान जी भी किष्किन्धा पर्वत पर सुग्रीव के साथ रहते थे. हनुमान जी दिन भर पर्वत के रास्ते में रहते थे. हनुमान जी उस रास्ते पर सुग्रीव के शत्रुओं को पहचानने का काम करते थे जिससे सुग्रीव के प्राण बचाए जा सके .

हनुमान जी की भगवान राम से पहली मुलाक़ात उसी रास्ते पर हुई थी. हनुमान जी भगवान् राम के चुम्बकीय व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और भगवान् राम के परम भक्त हो गए. हनुमान जी ने भगवान् राम के वो सब कार्य किये जो कोई और नहीं कर सकता था. हनुमान जी को भगवान् राम का विशेष स्नेह प्राप्त है .

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हनुमान जी के सिंदूर की कहानी –

हनुमान जी की सिंदूर कथा का उल्लेख हिन्दू धर्म के ग्रंथों में उल्लिखित है. पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु राम के वनवास के वापस अयोध्या लौटे थे. हनुमान जी एक दिन माता जानकी के कक्ष में चले गए. माता सीता उस समय अपनी मांग में सिंदूर भर रहीं थी. हनुमान जी ने माता सीता से सिंदूर लगाने (hanuman ji sindoor story in hindi) का अर्थ पूछा. माता सीता ने बताया कि मांग में सिंदूर लगाने से प्रभु श्री राम का स्नेह मिलता है व प्रभु श्री राम की आयु बढ़ती है. हनुमान जी तो प्रभु राम के परम भक्त थे इसलिए राम चन्द्र जी की आयु बढाने के लिए और भगवान् राम का स्नेह उन्हें अधिकतम मिलना चाहिए इसलिए हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया यही हनुमान जी के जीवन का क्रम बन गया .

एक दिन हनुमान जी शरीर पर लाल सिंदूर लगाये प्रभु श्री राम के राज दरबार में चले गए. प्रभु राम ने हनुमान जी को देखा. प्रभु राम ने हनुमान जी से शारीर पर सिंदूर लगाने का कारण पूछा . हनुमान जी ने सीता जी के शब्द प्रभु श्री राम को सुना दिए इतना सुनकर प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को गले से लगा लिया उस दिन से हनुमान जी को सिंदूर लगाने (हनुमान जी की सिंदूर को कहानी) और चढ़ाने की परम्परा शुरू हुए .

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हनुमान जी के जन्म की कहानी

हनुमान जी प्रभु श्री राम के परम भक्त हैं  प्रभु श्री राम को भी हनुमान जी अति प्रिय हैं तो  आइये जानते हैं प्रभु श्री राम के जन्म के बारे में .

हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हनुमान जी का जन्म चैत्र (हनुमान जी के जन्म की कहानी) की पुर्णिमा दिन मंगलवार को हुआ था. हनुमान जी के पिता का नाम पवन है और माता का नाम अंजनी था. पवन को केसरी के नाम से जाना जाता है. हनुमान जी ने प्रभु श्री राम के संकटों को भी समाप्त किया था इसलिए  हनुमान जी को संकटमोचक भी कहा जाता है.

हनुमान जी के जन्म के (hanuman ji birth story in hindi) सन्दर्भ में पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि एक बार स्वर्ग में ऋषि दुर्वासा द्वारा आयोजित सभा में भगवान् इंद्र शामिल थे और बैठक में किसी गंभीर विषय पर गहन चिंतन चल रहा था. पुन्जिकस्थली नामक अप्सरा बैठक में लगातार बाधाएं डाल रही थी. ऋषि दुर्वासा पुन्जिकस्थली से विघ्न न डालने को लगातार कह रहे थे लेकिन पुन्जिकस्थली नहीं मानी ऋषि दुर्वासा ने पुन्जिकस्थली को श्राप दिया कि तू बन्दर की तरह व्यवहार कर रही है इसलिए तू बंदरिया हो जा .

ऋषि दुर्वासा का श्राप सुन कर पुन्जिकस्थली को बहुत उदास औए परेशान हो गयी. वह रोने लगी और ऋषि दुर्वासा से क्षमा मांगने लगी .

ऋषि दुर्वासा ने उसे क्षमा किया और वरदान दिया कि अगले जन्म में तुम्हारा विवाह एक बन्दर से होगा लेकिन तुम्हारा जो पुत्र होगा वह बन्दर होगा लेकिन बहुत ही बलशाली होगा और भगवान् राम का सबसे प्रिय भक्त होगा .

यह सुनकर पुन्जिकस्थली ने ऋषि दुर्वासा का श्राप सहर्ष स्वीकार कर लिया .

पुन्जिकस्थली का जन्म बन्दर भगवान विराज के घर हुआ और नाम  अंजनी रखा गया. विवाह योग्य होने पर केसरी के साथ इनका विवाह हुआ .

इनके पास शंखबल नाम का हाथी था. पवन देव हाथी  को बहुत प्यार करते थे. एक दिन हाथी ने अपना नियंत्रण खो दिया और जंगल में खूब उत्पात मचाने लगा. इस उत्पात से ऋषियों के अनुष्ठान अधूरे रह गए. उन्होंने वायु/पवन/ केसरी से हाथी के बारे में कहा. पवन/वायु देव ने शंखबल को मार दिया. शंखबल को मारने के बाद वायुदेव बहुत दुखी होने लगे. वायुदेव की यह दशा देख संतों ने वायुदेव को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे घर एक पुत्र जन्म लेगा वह हवा की तरह शक्तिशाली होगा. इस तरह संकटमोचक का जन्म वायुदेव और अंजना के घर हुआ .

शोर्ट स्टोरी ऑफ़ हनुमान –

हनुमान जी को भगवान् राम की विशेष कृपा प्राप्त  है क्योंकि हनुमान जी राम चन्द्र जी के साथ तब भी थे जब भगवान् राम को अतिप्रिय सीता जी हनुमान जी (शोर्ट स्टोरी ऑफ़ हनुमान) ने लंका जाकर खोजा. दूसरी बार तब, जब भगवान् राम के साथ लक्षमण भी नहीं थे अर्थात जब लक्षमण को रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद ने लक्षमण को युद्व के मैदान में मूर्छित कर दिया था तब विभीषण ने हनुमान जी (hanuman ji short stories in hindi) को लंका से चिकित्सक सुषेन लाने को कहा हनुमान जी चिकित्सक को लंका से लेकर आये. चिकित्सक ने रात में ही संजीवनी बूटी लाने को कहा हनुमान जी रात में ही संजीवनी बूटी के बजाय पूरे पर्वत को ही उठा लाये इस तरह हनुमान जी ने भगवान् राम के सभी संकटों को समाप्त किया है इसलिए हनुमान जी  को संकटमोचक भी कहते हैं .