आइए जानतें हैं  Jungle Ki Kahaniyan In Hindi

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आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है Jungle Ki Kahaniyan In Hindi. ताकि आप  Jungle ki kahani Cartoon  के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें। हमारा मकसद है कि हम आपको सबसे बढ़िया Jungle ki kahani Sher Wala In Hindi  के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में मदद करें।

अच्छाई का फल

बहुत समय पहले की बात है, एक लकड़हारा एक जंगल से जा रहा था। अचानक, उसकी नज़र एक पेड़ के नीचे, एक पिंजरे पर पड़ी। नजदीक जाने पर उसे उस पिंजरे में एक बड़ी चील दिखाई दी।

लकड़हारे को चील पर बहुत अधिक दया आई एवं उसने वह पिंजरा खोल कर उसे स्वतंत्र कर दिया। चील बहुत दूर आकाश में उड़ गई। कुछ दिन पश्चात वही लकड़हारा एक ऊँची पहाड़ी पर, एक चट्टान पर बैठकर अपना भोजन कर रहा था।

उसी समय आकाश से एक चील आई और उसकी टोपी लेकर बहुत ऊँची उड़ गई। हैरान लकड़हारा, उस चट्टान से नीचे उतर कर उसके पीछे बहुत तेजी से भागा। जैसे ही वह पहाड़ी से नीचे उतरा.

उसे पहाड़ी से चट्टान के नीचे गिरने की बहुत तेज़ स्वर में आवाज़ सुनाई दी। यह वही चट्टान था जिस पर वह बैठकर भोजन कर रहा था। चील ने लकड़हारे की जान बचाकर उसे धन्यवाद दिया था। 

समझदार भेड़

एक बार, एक जंगल में एक भेड़िया रहा करता था। वह बहुत अधिक बूढ़ा हो चुका था एवं बहुत बीमार भी था। बुढ़ापे एवं बीमारी के कारण वह कई दिनों से शिकार पर बिल्कुल भी नहीं जा पा रहा था। उसकी हालत बहुत ही अधिक खराब हो गयी थी।

एक दिन, उसने अपने नजदीक के तालाब में पानी पीती हुई एक छोटी – सी भेड़ देखी। उसे देखकर भेड़िये के मुँह में पानी आ गया। भेड़िया उस छोटी – सी भेड़ से बोला-“बेटी! मुझ पर एक उपकार करो।

मेरे लिए उस तालाब से थोड़ा पानी ला दो। तुम देख ही रहे हो मेरी तबीयत कितनी खराब हो गई है। यदि तुम मुझे थोड़ा पानी ला दो तो, मुझे थोड़ी शक्ति मिल जाएगी और मैं अपना खाना भी स्वयं ढूंढ लूंगा।” छोटी भेड़ बहुत ही समझदार थी।

उसने तुरंत उत्तर दिया-“ यदि मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर तुम्हारे नजदीक आयी तो तुम्हें खाना ढूंढने की क्या आवश्यकता होगी।” ऐसा कह कर वह छोटी भेड़ वहाँ से तुरंत भाग निकली।

चालाक बिल्ली एवं समझदार मुर्गियाँ

एक बार की बात है, एक आदमी के पास बहुत अधिक मुर्गियाँ थीं। वह उनका बहुत अधिक ख्याल भी रखता था। मुर्गियों की सुरक्षा के लिए वह उनको केवल दड़बे में ही रखता था। दुर्भाग्य से कुछ मुर्गियाँ बहुत ही बीमार पड़ गई।

मुर्गियों को बीमार देख वह आदमी डॉक्टर को लेने बहुत दूर चला गया। एक बिल्ली थी, जो सदैव से उन मुर्गियों को अपना भोजन बनाना चाहती थी उसने आदमी को मुर्गियों के लिए डॉक्टर का पता करते हुए सुना तो उसने तुरंत मौके का लाभ उठाने की सोची।

बिल्ली ने तुरंत डॉक्टर जैसे कपड़े पहने तथा मुर्गियों के दड़बे का दरवाज़ा जोर – जोर से खटखटाने लगी। वह बड़ी ही मीठे स्वर में बोली-“प्यारी मुर्गियों! तुम सब कैसी हो? दरवाज़ा खोलो, मैं तुम सब का इलाज करने आई हूँ।”

परन्तु मुर्गियाँ यह सब जान गई कि वह डॉक्टर नहीं, अपितु एक बिल्ली है। इसलिए सभी मुर्गियों ने एक ही स्वर में उत्तर दिया-“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! हम सब बिल्कुल स्वस्थ हैं,

आप यहाँ से तुरंत चले जाओ तो हम और भी बढ़िया हो जाएंगे।” 

किसी ने ठीक ही कहा है “कि बुद्धि, ताकत से बहुत ही बलवान होती है।”  

कुत्ता एवं मुर्गा

एक बार एक मुर्गा जंगल में जा रहा था। रास्ते में अचानक उसे एक कुत्ता मिला। वे दोनों बहुत ही बढ़िया मित्र बन गए। दोनों ने एक साथ यात्रा करने का निर्णय किया। वे दोनों लगातार रात होने तक चलते रहे।

रात में मुर्गा एक पेड़ के ऊपर एवं कुत्ता पेड़ के नीचे जाकर सो गया। मुर्गा सुबह उठकर बहुत तेजी से बाँग देने लगा। एक लोमड़ी ने उसकी बाँग सुनी तो वह वहाँ तुरंत आ गई और उससे बोली-“प्यारे मुर्गे! तुम तो बहुत अच्छा गाना गा लेते हो।

नीचे आ जाओ, मैं तुम्हें बहुत ही अधिक बधाई देना चाहती हूँ।” मुर्गे ने कहा-” मुझे क्षमा करो, मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता। इस होटल का दरबान अभी सो रहा है। जब तक वह नहीं उठेगा, मैं नीचे बिल्कुल भी नहीं आ सकता।”

दुष्ट लोमड़ी ने कहा- “मैं उसे अभी जाकर जगा देती हूँ।” तभी कुत्ता तुरंत जाग गया एवं लोमड़ी को वहाँ पर देखकर बहुत ज़ोर-ज़ोर से उस पर भौंकने लगा। यह देखकर लोमड़ी एकदम डरकर वहाँ से चम्पत हो गई। कुत्ते एवं मुर्गे ने फिर से अपनी यात्रा आरंभ की और वहाँ से तुरन्त चल दिये। 

दो कुत्ते

एक व्यक्ति के पास दो कुत्ते थे। एक कुत्ते को उसने शिकार करना एवं दूसरे कुत्ते को घर की रखवाली करना सिखा दिया था, लेकिन एक अजीब बात यह थी। कि जब भी शिकारी कुत्ता किसी खास जानवर का शिकार करता,

तो उसका मांस रखवाली करने वाले कुत्ते को ही दिया जाता था। धीरे-धीरे, शिकारी कुत्ता उससे बहुत ही अधिक जलने लगा। एक दिन जब मालिक घर पर नहीं था, तब शिकारी कुत्ता रखवाली करने वाले कुत्ते पर गुर्राया और उससे तेज स्वर में बोला,

“मालिक मेरे साथ भेदभाव करते हैं। मैं सारा दिन परिश्रम करता हूँ और तुम्हें बैठे-बैठे स्वादिष्ट एवं बढ़िया खाना मिलता है, यह तो बिल्कुल भी ठीक नहीं है।” इस पर रखवाली करने वाले कुत्ते ने कहा-“यह तो मालिक की ही मर्जी है।”

मैं घर की रखवाली करता हूँ, इसलिए मैं मालिक के लिए बहुत ही खास हूँ। तुम तो सिर्फ शिकार करने ही जाते हो, परन्तु जब यहाँ कोई नहीं होता तब मैं ही यहाँ की रखवाली करता हूँ। यह सुनकर शिकार करने वाला कुत्ता एकदम से चुप हो गया तथा अपने स्थान पर जाकर बैठ गया।

चूहा और साधु

एक बहुत ही घना जंगल था। जंगल के बीचोबीच एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर भी था, जिस मन्दिर में एक साधु रहा करता था। वह साधु उस मंदिर में, बहुत समय से रहता चला आ रहा था ,

और मन्दिर में आए लोगों की मदद एवं सेवा भी खूब अच्छी तरह से किया करता था। भिक्षा मांगकर जो कुछ भी उसे मिलता वह उसे उन लोगों को दान भी कर देता जो दूर से आकर उस मंदिर साफ़ करने में उसका पूरा सहयोग भी किया करते थे।

​उस मंदिर में एक चूहा भी रहता था। वह चूहा अक्सर उस साधु का रखा हुआ अन्न सब खा जाता था। साधु ने चूहे को कई बार भगाने का प्रयत्न भी किया परन्तु वह चकमा देकर छिप जाता था।

उसने अपना बिल मन्दिर के ही एक कोने में ही बना लिया था। साधु ने उस चूहे को पकड़ने के लिए बहुत अधिक प्रयत्न भी किये । परन्तु वह हर बार असफल रहते थे।

साधु एक दिन बहुत ही दुखी होकर, जंगल से बाहर गांव में अपने एक दोस्त के पास गए।

साधु के दोस्त ने उसे एक योजना बताई कि चूहे ने मंदिर में अपना कहीं बिल बना रखा होगा और वह वहां अपना सारा भोजन जमा भी अवश्य करता होगा।

यदि उसके बिल तक पहुंचकर सारा भोजन निकाल लिया जाये तो चूहा स्वयं ही कमजोर होकर मर जायेगा। ​साधु ने अपने दोस्त की बात तुरंत मान ली। वह अपने दोस्त को भी जंगल के मध्य मे स्थित मंदिर में ले आया।

अब साधु एवं उसके दोस्त ने जहाँ तहाँ बिल खोजना आरंभ कर दिया। अंततः उनको बिल मिल ही गया जिसमें चूहे ने बहुत सारा अन्न चुराकर इकठ्ठा कर रखा था।

बिल खोदकर उसका सारा अन्न बाहर निकाल दिया गया। ​अब चूहे को भोजन नहीं मिला तो वह बहुत ही कमजोर हो गया एवं साधु ने अपनी छड़ी से कमजोर चूहे पर आक्रमण किया।

अब चूहा डर कर भाग खड़ा हुआ एवं जंगल मे ही कहीं चला गया। वह लौटकर कभी भी वापस उस मन्दिर बिल्कुल भी नहीं आया।

बूढ़ा शेर और राहगीर

एक जंगल में एक बूढ़ा शेर रहा करता था. बुढ़ापे के कारण उसका शरीर उत्तर देने लगा था. उसके दांत एवं पंजे बहुत ही नाजुक हो गए थे. उसके शरीर में पहले जैसी ताकत एवं फुर्ती बिल्कुल भी नहीं बची थी. ऐसी हालत में उसके लिए शिकार करना बहुत ही कठिन हो गया था. वह दिन भर भटकता, तब जाकर कहीं कोई छोटा जीव उसके हाथ आ पाता. उसके दिन ऐसे ही बीत रहे थे.

एक दिन वह शिकार की खोज में इधर – उधर भटक रहा था. पूरा दिन निकल जाने के पश्चात भी उसके हाथ कोई शिकार न लगा. चलते-चलते वह एक नदी के पास जा पहुँचा तथा पानी पीकर सुस्ताने के लिए वहीं पर बैठ गया. 

वह वहाँ बैठा ही था कि उसकी दृष्टि एक चमकती वस्तु पर पड़ी. उसके नजदीक जाकर उसने देखा, तो पाया कि वह एक सोने का कंगन था. सोने का कंगन देखते ही उसके दिमाग में शिकार को अपने जाल में फंसाने का एक उपाय सूझने लगा.

वह सोने का कंगन हर आने-जाने वाले यात्री को दिखाता तथा उसे यह कहकर अपने पास बुलाता, “मुझे ये सोने का कंगन मिला है. मैं इसका क्या करूंगा? मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष है. मैं सोचता हूँ इसका दान कर कुछ पुण्य कमा लिया जाय. ताकि कम से कम मरने के पश्चात मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाय. मेरे नजदीक आओ और ये कंगन मुझ से ले लो.”

शेर जिसे बहुत ही ख़तरनाक जानवर का भला कौन भरोसा करता? कोई भी उसके नजदीक नहीं आया और दूर से ही भाग खड़ा हुआ. बहुत देर हो गई और कोई सोने के कंगन के लालच में उसके नजदीक बिल्कुल भी नहीं आया. शेर को लगने लगा कि उसका उपाय काम नहीं करने वाला है. तभी नदी के दूसरी किनारे पर उसे एक राहगीर दिखाई पड़ा.

शेर उस सोने के कंगन को हिलाते हुए बहुत ही जोर से चिल्लाया, “महानुभाव! मैं ये सोने का कंगन दान कर रहा हूँ. क्या आप इसे लेकर पुण्य प्राप्ति में मेरी मदद करेंगे?”

शेर की यह बात सुनकर राहगीर एकदम से ठिठक गया. सोने के कंगन की चमक से उसका मन तुरंत लालच से भर उठा. परन्तु उसे शेर का भी डर था. वह बोला, “तुम एक बहुत ही ख़तरनाक जीव हो. मैं तुम्हारा भरोसा कैसे करूं? तुम मुझे मारकर भी खा गए तो?”

इस पर शेर बोला, “अपने युवा काल में मैंने बहुत ही शिकार किया है. परन्तु अब मैं बहुत ही बूढ़ा हो चला हूँ. मैंने शिकार करना छोड़ दिया है. मैं पूर्ण रूप से शाकाहारी हो गया हूँ. बस अब मैं पुण्य कमाना चाहता हूँ. आओ मेरे पास आकर ये कंगन मुझ से ले लो.”

राहगीर सोच में पड़ गया. परन्तु लालच उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर चुका था. शेर तक पहुँचने के लिए उसने नदी में छलांग लगा दी. वह तैरते-तैरते दूसरे किनारे पर पहुँचने ही वाला था कि उसने अपना पैर कीचड़ में धंसा पाया. वहाँ एक दलदल भी था.

दलदल से बाहर निकालने के लिए वह जितना हाथ-पैर मारता, उतना ही उसमें धंसता ही चला जाता. स्वयं को बचाने के लिए उसने शेर को आवाज़ लगाई. शेर तो इसी मौके की खोज में था. उसने अपने पंजे में दबोचकर राहगीर को दलदल से तुरंत बाहर खींच लिया और उसके सोचने-समझने के पहले ही उसका सीना चीर दिया. इस तरह सोने के कंगन के लालच में राहगीर अपनी जान गवांनी पड़ी.

गधा, लोमड़ी तथा शेर 

एक बार जंगल में रहने वाली चालाक लोमड़ी की मुलाकात एक सीधे-सादे गधे से हुई. उसने गधे के सामने अपनी मित्रता का प्रस्ताव रखा. गधे का कोई दोस्त नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. दोनों ने एक-दूसरे को वचन भी दिया कि वे हमेशा एक-दूसरे की मदद करेंगे.

उस दिन के पश्चात से दोनों अपना ज्यादातर समय एक-दूसरे के साथ गुजारने लगे. वे जंगल में एक साथ घूमा करते, घंटों एक-दूसरे से बातें भी किया करते थे. गधा लोमड़ी का साथ पाकर बहुत ही प्रसन्न था.

एक दिन दोनों जंगल के तालाब किनारे बातें कर ही रहे थे. तभी वहाँ जंगल का राजा शेर पानी पीने आया. उसने जब गधे को देखा, तो उसके मुँह में पानी आ गया.

लोमड़ी को शेर की मंशा भांपते बिल्कुल भी देर न लगी. वह यह सोचने लगी कि क्यों न शेर से एक समझौता किया जाए. मैं उसे गधे को मारने में मदद करूंगी. इस तरह मेरे भोजन की भी व्यवस्था हो ही जायेगी.

वह शेर के नजदीक गई एवं मीठे स्वर में बोली, वनराज! अगर आप उस गधे का मांस खाना चाहते हैं, तो आपकी मदद मैं अवश्य कर सकती हूँ. बस आप मुझे एक वचन दें कि आप मुझे कोई हानि बिल्कुल भी नहीं पहुँचायेंगे एवं थोड़ा मांस मुझे भी खाने को दे देंगे.”

शेर भला सामने से आ रहे प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार करता? वह तुरंत मान गया. अगले दिन योजना अनुसार लोमड़ी गधे को भोजन ढूंढने के बहाने जंगल में एक ऐसे जगह पर ले गई, जहाँ एक बहुत ही बड़ा एवं गहरा गड्ढा था.

लोमड़ी की बातों में उलझे गधे की दृष्टि उस गड्ढे पर नहीं पड़ी और वह उसमें गिर पड़ा. लोमड़ी ने तुरंत पेड़ के पीछे छुपे शेर को एकदम से इशारा कर दिया. शेर भी इसी अवसर की ताक में ही था.

उसने पहले लोमड़ी पर हमला किया और उसे मारकर छककर उसका मांस भी खाया. तत्पश्चात उसने गधे को भी मारकर उसके मांस की दावत उड़ाई.

शेर और जंगली सूअर

एक जंगल में एक शेर रहा करता था. एक दिन उसे बहुत ज़ोरों की प्यास लगी. वह पानी पीने एक झरने के पास जा पहुँचा. उसी समय एक जंगली सूअर भी वहाँ पानी पीने के लिए आ गया.

शेर एवं जंगली सूअर दोनों अपने आप को बहुत ही सर्वश्रेष्ठ समझते थे. इसलिए पहले पानी पीकर एक-दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे. दोनों में यह ठन गई और लड़ाई भी आरंभ हो गई.

उसी समय कुछ गिद्ध आसमान से उड़ते हुए वहाँ से गुजरे. शेर एवं जंगली सूअर की लड़ाई देख उन्होंने सोचा कि आज तो दावत हम सब की पक्की है. इन दोनों की लड़ाई में कोई-न-कोई तो ज़रूर मरेगा. फिर छककर उसका मांस भी खाएंगे. वे वहीं पर मंडराने लगे.

इधर शेर एवं जंगली सूअर के मध्य लड़ाई जारी थी. दोनों बहुत ही बलशाली थे. इसलिए पीछे हटने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे. लड़ते-लड़ते अचानक शेर की दृष्टि आसमान में मंडराते गिद्धों पर पड़ी. वह तुरंत यह सब माज़रा समझ गया.

लड़ना बंद कर वह तुरंत जंगली सूअर से बोला, “ऊपर आसमान में देखो. गिद्ध मंडरा रहे हैं. वे हम दोनों में से किसी एक की मौत की प्रतीक्षा में लगे हुए हैं. लड़ते-लड़ते मरने एवं फिर गिद्धों की आहार बनने से अच्छा है कि हम आपस में दोस्ती कर लें एवं शांति से पानी पीकर अपने – अपने घर की ओर लौट जाएँ.”

जंगली सूअर को शेर की बात बहुत ही अच्छी तरह से जंच गई. दोनों दोस्त बन गए एवं साथ में झरने का पानी पीकर अपने – अपने निवास पर लौट गए.

दो बहनें

एक बार, दो बहुत सुंदर एवं दयालु बहनें थीं। एक दिन, एक भालू उनके घर आया तथा उनसे बोला-“घबराओ नहीं! मुझे थोड़ी देर आग के पास बैठ जाने दो।” उन्हें भालू पर दया आ गई। अब भालू प्रतिदिन उनके घर पर आने लगा।

एक दिन भालू ने उनसे कहा-“मैं बौनों से अपना खज़ाना वापस लेने जा रहा हूँ।” कई दिन बीत गए परन्तु भालू लौटकर वहाँ नहीं आया। दोनों बहनें उसे ढूंढने को निकलीं। भालू को ढूंढते हुए वे एक गुफा में चली गई, जिसमें बहुत सारा खज़ाना छुपा हुआ था।

अचानक एक बौना वहाँ से आया और उसने दोनों बहनों पर जादुई छड़ी से आक्रमण किया। तभी, उनके मध्य में भालू आ गया और एक सुंदर राजकुमार में बदल गया। उसने बौने को वहीं पर मार गिराया।

राजकुमार ने बताया-“इसी बौने ने मुझे भालू बना दिया था और हमारा खज़ाना सब चुरा लिया था। मेरा एक छोटा भाई भी है।” अंत में राजकुमार एवं उसके भाई ने उन दोनों बहनों से विवाह भी कर लिया।