चलिए जानतें हैं सबसे लोकप्रिय लोमड़ी की कहानी  In Hindi

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दोस्तों इस पोस्ट में हम लोमड़ी की कहानी  In Hindi  प्रस्तुत करने जा रहें हैं। उम्मीद है कि  Lomdi ki kahani Sunao आपका ज्ञान वर्धन अवश्य करेंगी। तो आइये अब पढ़ते हैं Lomdi ki kahani Hindi Mein.

लालची लोमड़ी और किसान

एक बार की बात है जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। एक बार उसे बहुत ही जोरो की भूख लगी एवं भोजन की खोज में इधर उधर भटक रही थी।

चलते – चलते वो एक गांव के नजदीक जा पहुंची। वहां उसने एक बड़ा सा अंगूरों का खेत देखा जिसके चारों तरफ ऊँची ऊँची कँटीली बाड़ लगी हुई थी तथा जिसमें कही से भी अंदर जाने का कोई भी रास्ता नहीं था।

लोमड़ी ने देखा कि उस खेत के अंदर अंगूर के अलावा कई सारे फल भी लगे हुए थे एवं अधिकतर फल भी पके हुए थे।

ये देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आने लगा। और अब वो मन ही मन सोचने लगी कि काश मैं इस खेत में अंदर पहुँच जाऊं तो फिर बहुत मजा ही आ जाये।

यहाँ इतने सारे फल है कि मैं कई दिनों तक आराम से बैठकर ताजे एवं मीठे फल खाती रहूँ तब भी शायद ये मुझसे ख़त्म न हो पाएंगे।

परन्तु ये मज़ा तो तब है जब मैं इस खेत के अंदर जा सकू। किन्तु अब मैं इसके अंदर कैसे जाऊं ?

मन ही मन ऐसा सोचती हुई लोमड़ी उस खेत की बाढ़ को बहुत ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं से अंदर जाने का कोई रास्ता मिल जाये ।

उसने देखा कि खेत की बाढ़ में एक संकरी सी खुली जगह है जहां से वो अंदर जा सकती है परन्तु वो इतनी संकरी है कि वो उसमे से अंदर बिल्कुल भी नहीं जा सकेगी।

अचानक उसे एक उपाय सुझा कि अगर वो कुछ दिन और भूखी रह ले तो इतनी दुबली पतली हो जाएगी कि वो आराम से इसके अंदर जा सकेगी। फिर अंदर जाने के पश्चात तो खा खा के फिर से मोटी ताजी हो जाएगी।

उसके पश्चात लोमड़ी भूखी रहने लगी तथा कुछ ही दिनों में भूख के मारे वो सूख कर काँटे जैसी हो गयी।

उसके पश्चात लोमड़ी को आराम से अंदर जाने का मौका मिल गया। अंदर जाने के पश्चात उसने खूब मीठे मीठे फल खाये तथा इस तरह लोमड़ी के तो अब मजे ही हो गए।

अब वो प्रतिदिन लोमड़ी इसी तरह खूब पेट पूजा करती। अब उसे बाहर आने की कोई चिंता भी नहीं रही। धीरे धीरे लोमड़ी पहले से भी अधिक मोटी ताज़ी हो गयी।

कुछ दिनों पश्चात एक दिन अचानक खेत का मालिक अपने खेत को देखने आया। उसने देखा कि उसका खेत तो अब पहले जैसा बिल्कुल नहीं रहा, कोई है जो वहां के फल चुरा रहा है।

खेत का मालिक अब उस चोर को सबक सिखाने के लिए एक मोटा सा डंडा लेकर दिन-रात वहीं रखवाली करने लगा।

जब ये बात लोमड़ी को पता चली तो उसने सोचा कि अब चुपचाप यहाँ से खिसक लेने में ही भलाई है नहीं तो अब हमारी खूब मार पड़ेगी।

ये सोचकर लोमड़ी उसी जगह पहुंची जहां से वो अंदर आयी थी परन्तु ये क्या अब तो वो उस रास्ते से बाहर नहीं जा सकती क्योंकि अब उसका पेट पहले से बहुत ही मोटा हो चुका था।

अब तो लोमड़ी की चिंता और भी अधिक बड़ गयी क्योंकि अब वो बाहर बिल्कुल भी नहीं निकल पा रही थी और उधर खेत का मालिक उसको सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा था।

लोमड़ी के पास अब बस एक ही उपाय था कि अब वो पहले की तरह कुछ दिन भूखी रहे ताकि इस परेशानी से स्वतंत्र हो सके।

इसलिए वो कुछ दिन के लिए घने पेड़ों की आड़ में जाकर छुप गयी। और पहले की तरह भूखी प्यासी रहने के कारण अब वो फिर से दुबली पतली हो गयी। फिर एक दिन मौका पाकर चुपचाप वहां से भाग निकली।

लोमड़ी और कौआ

एक बार एक कौवे को कहीं से रोटी का टुकड़ा पड़ा मिल गया जिसे वो लेकर एक सूखे पेड़ की डाली पर बैठकर खाने लगा।

तभी एक लोमड़ी उधर से निकल रही थी। उसने देखा कि कौवे के मुँह में एक बड़ा सा रोटी का टुकड़ा है। ये देखकर लोमड़ी के मुँह में तुरंत पानी आने लगा। उसने वो रोटी का टुकड़ा कौवे से छीनने की बहुत ही तरकीब सोची।

नजदीक जाकर लोमड़ी बड़े ही विनम्र भाव से कौवे से बोली “कौवे भैया, मैंने सुना है कि आप बहुत मीठा गाना गाते हो। क्या आप मुझे भी अपनी सुरीली आवाज में कोई गाना सुना सकते हो?”

लोमड़ी की ये बात सुनकर कौवा बहुत ही प्रसन्न हुआ और अब वो उस लोमड़ी को अपनी आवाज में गाना सुनाने को एकदम से राज़ी हो गया।

परन्तु जैसे ही कौवे ने अपना मुँह खोला रोटी उसके मुँह से छूटकर नीचे जा गिरी। लोमड़ी ने तुरंत वो रोटी का टुकड़ा मुँह में दबाकर चलती बनी एवं कौवा उस लोमड़ी का मुँह देखता ही रह गया।

लोमड़ी और शेर

किसी जंगल में एक लोमड़ी रहा करती थी। वह बहुत ही चालाक थी एवं झूठ बोल बोलकर जंगल में सबको बताती फिरती कि वो प्रभु की भेजी हुई एक दूत है। इसलिए सबको उससे डरना चाहिए।

एक दिन ये बात शेर को पता चली तो वो लोमड़ी को ढूंढ़ता हुआ लोमड़ी के सामने जा पहूंचा। शेर को सामने देखकर अब लोमड़ी डर के मारे कपकपाने लगी फिर भी अपनी जान बचाने के लिए वो हिम्मत से काम लेती रही ।

वो चालाकी दिखाते हुए शेर से कहती हैं – “देखो राजा शेर क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मैं प्रभु की दूत हूँ, मुझे यहाँ प्रभु ने भेजा हैं इसलिए तुम्हें मुझसे डरना चाहिए।”

लोमड़ी की बात सुनकर शेर ने कहा “मैं कैसे मान लूँ कि तुम प्रभु की दूत हो, कोई सबूत हो तो मुझे बताओ ।”

यह सुनकर लोमड़ी थोड़ी – सी घबराई तथा बात को सँभालते हुए बोली ” अच्छा तुम्हें सबूत चाहिए……!! तो ठीक है आओ मेरे पीछे पीछे।

अब लोमड़ी आगे आगे चलती जा रही थी एवं शेर उसके पीछे पीछे। लोमड़ी जहां से भी निकलती जा रही थी वहां के सभी जानवर डर के मारे इधर – उधर भागने लगे, अपनी जान बचाने के लिए कोई इधर तो कोई उधर छुपने लगा।

परन्तु वास्तव में जंगल के जानवर लोमड़ी से नहीं अपितु उसके पीछे पीछे आ रहे शेर के डर से अपनी जान बचाकर भाग रहे थे।

ये देखकर शेर भी कुछ कुछ डरने लगा परन्तु वो आगे चलता रहा। आगे चलकर जब शेर ने देखा कि अब तो बड़े बड़े जानवर भी लोमड़ी से डर कर भाग रहे है तो शेर को पक्का यकीन हो गया कि लोमड़ी सच में प्रभु की कोई दूत हैं और अब इससे जान बचाने में ही भलाई है।

अब डर के मारे शेर ने लोमड़ी का पीछा करना छोड़ दिया और मौका पाकर चुपचाप वहां से खिसक लिया।

लोमड़ी एवं बिल्ली

एक बिल्ली एवं लोमड़ी में बहुत ही अच्छी दोस्ती थी. वे अक्सर एक साथ समय बिताया करते थे. साथ खाते, साथ खेलते तथा ढेर सारी बातें भी किया करते उनके दिन बड़े मज़े से गुजर रहे थे.

लोमड़ी स्वयं को बहुत चालाक समझती थी और जब भी चतुराई की बात चलती, वो बिल्ली को नीचा दिखाने का कोई मौका बिल्कुल भी नहीं छोड़ती थी. बिल्ली को कभी-कभी ये बात बहुत ही बुरी भी लगती थी. परन्तु दोस्ती के कारण वह इन बातों को भूल दिया करती थी.

एक दिन दोनों दोपहर के खाने के पश्चात एक पेड़ की छांव में आराम कर रहे थे. दोनों में बात चल पड़ी कि यदि अचानक कोई शिकारी जानवर उन पर हमला कर दे, तो वे अपने बचाव के लिए क्या करेंगे.

बिल्ली बोली, “मुझे तो ऐसी परिस्थिति से बचने का केवल एक ही तरीका आता है. मैं तो वहीं करूंगी.”

यह सुनकर लोमड़ी उस पर हँस पड़ी एवं उससे कहने लगी, “बस एक ही तरीक़ा. अरे बिल्ली रानी, एक तरीके से तुम शिकारी जानवरों से कैसे बचोगी? मुझे देखो, मुझे तो उनसे बचने के हज़ारों तरीके आते हैं. तुम कहो, तो तुम्हें भी एक-दो तरीके बता दूं.”

बिल्ली बोली, “नहीं, अधिक तरीके जानकार मैं क्या करूंगी. जो मुझे आता है, वो अब तक कारगर सिद्ध हुआ है. मैं उससे ही अपना बचाव कर ही लूंगी.”

“हाँ, वैसे भी तुम्हें वे सब तरीके सीखने में बहुत ही परेशानी होगी. अक्ल जो कम है.” कहकर लोमड़ी फिर उस पर हँसने लगी.

बिल्ली को यह बात बहुत ही बुरी लगी, वह बोली, “जो भी हो, उसी तरीके से मैं अब तक बचते आ रही हूँ. प्रभु ने चाहा, तो आगे भी बचूंगी.”

तभी उन्होंने देखा कि एक शिकारी कुत्ता उनकी ओर दौड़ता हुआ आ रहा है. दोनों बहुत ही घबरा गए एवं मन ही मन सोचने लगे कि यदि उन्होंने फ़ौरन अपना बचाव नहीं किया, तो शिकारी कुत्ता उन्हें चीर-फाड़ कर रख देगा.

बिल्ली को तो ऐसी परिस्थिति में बचाव का एक ही तरीका आता था और उसने वही तरीका अपनाया. तुरंत एक पेड़ पर चढ़ गई. हज़ारों तरीके जानने वाली लोमड़ी यह सोचती रही कि मैं अब क्या करूं.

शिकारी कुत्ता नजदीक पहुँच रहा था एवं लोमड़ी यह निश्चय ही नहीं कर पा रही थी कि कौन सा तरीका अजमाए. इतने में शिकारी कुत्ता लोमड़ी के बहुत ही नजदीक पहुँच गया और उसकी बोटी-बोटी नोंच डाली.

मुर्गा और लोमड़ी

एक जंगल में एक धूर्त लोमड़ी रहा करती थी। एक बार उसने एक मुर्गे को पेड़ की ऊँची डाल पर बैठे हुए देखा। लोमड़ी ने मन-ही-मन सोचा, “कितना बढ़िया भोजन हो सकता है यह मेरे लिये?” पर कठिनाई यह थी कि वह पेड़ पर चढ़ नही सकती थी। वह चाहती थी कि किसी तरह मुर्गा नीचे उतर कर आए।

इसलिए लोमड़ी पेड़ के नीचे गई। उसने मुर्गे से कहा, “मुर्गा भाई, आपके लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है। स्वर्ग से अभी-अभी यह आदेश आया है कि अब से सभी पशु-पक्षी मिल-जुलकर रहेंगे। अब वे कभी एक-दूसरे को बिल्कुल भी नहीं मारेंगे। लोमड़िया भी अब मुर्गे – मुर्गियों को नही खाएँगी। इसलिए तुम्हें मुझसे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। नीचे आ जाओ! हम लोग बैठकर आपस में बात-चीत करेंगे।”

मुर्गे ने कहा,” वाह-वाह! यह तो तुमने बड़ी अच्छी खबर सुनाई। वह देखो, तुम्हारे कुछ मित्र भी तुमसे मिलने के लिए यहाँ आ रहे हैं।”

मेरे मित्र! लोमड़ी ने आश्चर्य से कहा, “मेरे कौन-से मित्र आ रहे हैं? वही शिकारी कुत्ते! मुर्गे ने हस्ते हुए कहा।

शिकारी कुत्तों का नाम सुनते ही लोमड़ी डर से काँपने लगी। उसने भागने के लिए जोर की छलाँग लगायी।

मुर्गे ने कहा, “तुम उनसे क्यों डर रही हो? अब तो हम लोग आपस में मित्र बन गये हैं न?”

हाँ, हाँ यह बात तो है! लोमड़ी ने कहा, “पर इन कुत्तों को अभी शायद इस बात का मालूम नहीं होगा।”

यह कहकर लोमड़ी शिकारी कुत्तों के भय से सरपट भाग खड़ी हुई।

लोमड़ी एवं बूढ़ी अम्मा

यह कहानी एक बूढ़ी अम्मा की है. जिसके पास लोमड़ी आ जाती है. वह बूढ़ी  अम्मा लोमड़ी से अपना खाना बचाती है. बूढी अम्मा को बहुत ही कम नज़र आता है. क्योकि उसकी आँखे भी अब बूढ़ी हो गयी है. इसलिए उन्हें कम नज़र आता है. मगर वह जानती है. कि एक लोमड़ी प्रतिदिन उसका खाना खाती है. जिसके पश्चात वह बूढ़ी अम्मा बहुत ही दुखी हो जाती है. क्योकि उससे बहुत कठिनाई से खाना बनता है.

उसके पश्चात वह लोमड़ी आती है. उसका सारा खाना खा जाती है. आज बूढ़ी अम्मा को एक योजना सोच रही थी. क्योकि आज उस लोमड़ी को सबक सिखाना ही होगा.

इसलिए आज बूढ़ी अम्मा उसका इंतज़ार कर रही थी. लोमड़ी आती है. बूढ़ी अम्मा का खाना खाने लगती है. उसके पश्चात उस पर एक जाल गिर जाता है. वह बूढी अम्मा अब लोमड़ी को पकड़ चुकी थी.

अब वह लोमड़ी उसका भोजन बिल्कुल भी नहीं खा सकती है. वह बूढी अम्मा बहुत ही प्रसन्न थी.

कुछ समय पश्चात् वहाँ एक व्यक्ति आता है. वह देखता है. लोमड़ी पकड़ी जा चुकी है. यह सभी को दुखी किया करती थी. उनका भोजन भी खाती है. यह उस बूढ़ी अम्मा ने पकड़ ली थी. बूढ़ी अम्मा कहती है. तुम सब यह काम बहुत ही सरलता से कर सकते थे. यदि तुमने थोड़ी कोशिश की होती. इसलिए मुझे ही यह कोशिश करनी पड़ी थी. अब इस बात को सभी समझ गए थे. यदि हम कोई प्रयत्न करते हैं तो हम सब कुछ कर सकते हैं.

कबूतर एवं लोमड़ी

जंगल में एक बड़े से पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपना घोंसला बना कर रहता था। उसके तीन बच्चे भी उसके साथ घोंसले में रहा करते थे। बच्चे बहुत ही छोटे थे एवं उन्हें उड़ना भी बिल्कुल नहीं आता था। 

उसी पेड़ के पीछे एक लोमड़ी भी रहा करती थी। वो जब भी कबूतर को देखती उसके मुँह में पानी आ जाता। वह अपने मन ही मन सोचती, ” काश ! मैं इसे खा सँकू “

एक बार बहुत तेज बारिश हुई। चरों तरफ पानी ही पानी भर गया। लोमड़ी को उस दिन खाने को कुछ भी नहीं मिला। बारिश इतनी तेज थी कि बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तथा लोमड़ी का भूख से बहुत ही बुरा हाल हो रहा था। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। 

अचानक उसे एक ख्याल आया ” अरे! पेड़ पर तो कबूतर एवं उसके बच्चे रहते हैं। क्यों न उन्हें खाने की तरकीब सोचूँ। फिर तो मजा आ जाएगा। “

लोमड़ी ने कबूतर को आवाज दी, ” अरे! कबूतर राजा। कहाँ हो। कई दिन से तुम्हे देखा भी नहीं। जरा नीचे तो आओ, थोड़ी गप्प-शप्प हो जाए। मन बहुत ही उदास हो रहा है। “

कबूतर ने सोचा, ” चलो, थोड़ी देर के लिए लोमड़ी से मिल आता हूँ। वह बहुत ही प्रसन्न हो जाएगी। “

जैसे ही कबूतर लोमड़ी के नजदीक पहुँचा लोमड़ी ने झट से उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की। परन्तु यह कबूतर समझ गया कि लोमड़ी उसे खाना चाहती है। बस फिर कबूतर एकदम फुर्र से उड़ कर पेड़ पर जा बैठा तथा लोमड़ी देखती ही रह गई।

धूर्त लोमड़ी

एक बार एक लोमड़ी की निगाह एक बड़े से हिरन पर पड़ी। धूर्त लोमड़ी ने अपनी मदद के लिए एक चूहे को बुलाया। उसके पश्चात् एक बाघ को भी बुलाया।

सबने मिलकर हिरन को मारने की योजना बनाई। चूहे ने हिरन के पैर कुतर दिए एवं बाघ उस पर झपट पड़ा तथा उसे मार डाला।

लोमड़ी बोली, “हमें सब को बिना नहाए कुछ नहीं खाना चाहिए। मैं तो नहा चुकी हूँ।

अब नहाने की बारी तुम सब लोगों की है।

” जब बाघ नहाकर आया तो लोमड़ी बोली, “चूहा बहुत ही शेखी बघार रहा था।

कह रहा था कि केवल उसके कारण ही हमें यह भोजन मिल पा रहा है। बाघ को यह सब सुनकर बहुत बुरा लगा तथा वह चला गया। जब चूहा वहाँ आया तो उससे लोमड़ी बोली, “मैंने बाघ को लड़ने की चुनौती दी थी।

वह डरकर भाग गया। अब तेरी बारी है। चूहा ने यह सुना तो तुरंत वहाँ से भाग निकला।

लोमड़ी ने स्वयं ही हिरन का सारा माँस खा लिया।

लोमड़ी एवं बंदर

एक जंगल में एक लोमड़ी एवं बंदर रहा करते थे दोनों दोस्त थे उस जंगल से एक रास्ता निकलता था जिस पर कई गांव वाले अपने पीठ पर सामान लादकर निकलते थे एक दिन बंदर ने देखा कि कुछ लोग अपनी पीठ पर  केले के गुच्छे लादकर अपने गांव की तरफ जा रहे हैं वह तुरंत भागकर लोमड़ी के पास आया एवं उससे कहा कि सुनो लोमड़ी क्यों न हम उन गांव वालों को डराएं और जब वह डर कर भाग जाए तो हम उनका सामान एवं केले उठा कर खा सकते हैं क्या तुम इस काम में हमारा साथ  दोगी?

लोमड़ी ने कहा यह बात तो एकदम ठीक है परन्तु हम उन्हें  डराकर भगाएंगे किस तरह ? बंदर ने कहा यह तो बहुत सरल है हम दोनों रास्ते के आसपास छुप कर बैठ जाएंगे जैसे ही गांव वाले हमारे पास से निकलेंगें मैं जोर से खु वा  खु वा  चिल्लाऊंगा और तुम जोर से हु वा हु वा  चिल्लाना हमारा इस तरह चिल्लाना सुनकर वह गांव वाले सोचेंगे कि कोई शेर या भालू आया है तथा वह डर कर अपना सारा सामान छोड़कर भाग जाएंगे

लोमड़ी ने कहा चलो ठीक है परन्तु आधे केले में लूंगी और आधे तुम लेना, बोलो मंजूर है? बंदर ने कुछ देर सोचा और फिर हँसते हुए कहा ठीक है? परन्तु पहले चलो तो सही.

लोमड़ी एवं बंदर दोनों रास्ते के दोनों ओर छुप कर बैठ गए जैसे ही गांव वाले उनके पास से निकले तो दोनों ने  खु वा हु वा  चिल्लाना आरंभ कर दिया उनकी आवाज सुनकर गांव वाले बहुत घबरा गए एवं केले के गुच्छे वही छोड़कर भाग गए यह देखकर बंदर एवं लोमड़ी दोनों बहुत ही प्रसन्न हुए तथा उन दोनों ने केले के गुच्छे को खींचते हुए जंगल के भीतर ले आए

तभी बंदर ने चालाकी की और उस लोमड़ी से कहा कि यदि हम इतने सारे केले यहाँ रखेंगे तो कोई भी जानवर इसे चुरा लेगा या यह भी हो सकता है कि वह गांव वाले वापस आ जाएं और इन्हें वापस ले जाएँ तो क्यों न हमे ऐसा करें इनको पेड़ के ऊपर छुपा दें एवं थोड़ा थोड़ा लेकर खाते रहे.

लोमड़ी उसकी बातों में आ गई,  उसने बिना सोचे समझे उस पर विश्वास कर लिया.

बंदर ने कहा तुम केले के गुच्छे उठा-उठाकर मुझे दो मैं उन्हें छुपा दूंगा लोमड़ी ने बिल्कुल ऐसा ही किया जब सारे केले के गुच्छे पेड़ों पर पहुंच गए तो बंदर भी कूद कर पेड़ पर पहुंच गया और वहां बैठकर केले खाने लगा जब लोमड़ी ने आवाज दी मेरा हिस्सा भी नीचे फेंको तब बंदर ने केला खाया और छिलका नीचे फेंक दिया तथा मुस्कुराते हुए बोलने लगा यह लो तुम्हारा हिस्सा

लोमड़ी बेचारी झल्लाते हुए वहां से चली गई और वह कर भी क्या सकती थी क्योंकि उसने बिना सोचे समझे बंदर पर विश्वास जो कर लिया था और अपना सारा सामान उसे सौंप दिया था.

राजा शेर एवं लोमड़ी का बच्चा

बहुत समय पहले की बात है कि एक छोटा सा जंगल था तथा उस जंगल में सभी जीव जंतु निवास करते थे, सभी अपनी जिंदगी प्रसन्नता से जी रहे थे, सभी अपने जीवन जीने में बहुत व्यस्त थे, कभी हिरण चारे की खोज में इधर – उधर भटकते तो कभी तेंदुआ अपने शिकार के लिए इधर – उधर भटकते तो कभी मगरमच्छ भी अपने मौके के इंतजार में रहते, इस तरह सभी जानवर की जिन्दगी बढ़िया तरीके से चल रही थी |

उसी जंगल में जंगल का राजा बब्बर शेर भी रहता था  वह बहुत ही खतरनाक था एवं साथ में बहुत दयालु भी था | वो अपनी बीवी शेरनी एवं अपने दो प्यारे-प्यारे नन्हे-मुन्हे मासूम बच्चो के साथ प्रसन्नतापूर्वक जिंदगी जी रहे थे, वह अपनी बीवी एवं बच्चो से बहुत प्रेम करता था |

फिर एक दिन अचानक कुछ डाकुओ ने मिलकर जंगल पर हमला कर दिया | वे लोग बहुत ही खतरनाक थे और उनके पास बहुत ही बड़े-बड़े हथियार भी थे | जंगले में अफरा – तफरी मच गई, सभी जानवर इधर – उधर भागने लगे, किसी को कुछ भी समझ में नही आ रहा था की क्या करे| डाकू लोग जानवरों को कैद कर रहे थे तभी उन डाकुओ के पास जंगल का राजा बब्बर शेर आया |

बब्बर शेर ने अपनी जान की बिना परवाह किये ही जंगल के जानवर को बचाने के लिए उन डाकुओ पर आक्रमण कर दिया | बब्बर शेर बहुत क्रोध में आ गया क्योकि बब्बर शेर इस जंगल का राजा था तो उसका फर्ज बनता था कि वो अपनी प्रजा की रक्षा करे  बब्बर शेर ने बहुत तेजी से दहाड़ लगाई एवं उसकी एक दहाड़ से सभी डाकू दहशत में आ गये एवं जंगल छोडकर भाग गये| इस तरह जंगल के राजा ने अपनी प्रजा की रक्षा की |

डाकुओ के हमले के कारण बहुत से जानवरों को बहुत नुकसान हुआ कई जानवर पूरी तरह से घायल हो गये तो कई मर भी गये तो कोई अफरा तफरी के कारण अपनों परिवार वालो से बिछड़ गये |

जंगल का राजा डाकुओ को भगाने के पश्चात् वापस अपनी गुफा में जा रहे थे तभी उसी झाड़ियो में कुछ रोने की आवाज आई | वह झाड़ियो के पास गया तो देखा तो वहा एक प्यारा सा लोमड़ी का बच्चा रो रहा था वह बच्चा बहुत ही मासूम था तथा बहुत ही सहमा हुआ था | शेर राजा ने आसपास देखा तो कोई नही दिखा फिर शेर राजा उसे अपने साथ अपने घर ले गये |

जब उस लोमड़ी के बच्चे को उसके बच्चो ने देखा तो वे लोग बहुत प्रसन्न हो गये, लोमड़ी का बच्चा भी उन लोगो को देखकर बहुत प्रसन्न हो गया फिर साथ में तीनो बच्चे एक साथ खेलने लगे | तीनो एक साथ बहुत मौज – मस्ती करते थे एवं शेरनी भी लोमड़ी के बच्चे को अपने बेटे के जैसा प्यार करती थी सभी एक साथ बहुत प्रसन्न थे |

फिर एक दिन लोमड़ी का बच्चा बहुत उदास बैठे रो रहा था तभी शेरनी ने पूछा क्या हुआ बच्चे इतने उदास क्यों हो ?  फिर लोमड़ी के बच्चे ने कहा मुझे अपने मम्मी पापा की बहुत याद आ रही है मुझे अपने मम्मी पापा के पास जाना है मुझे अपने परिवार के पास जाना है अब मैं अधिक दिन और नही रुक सकता | यह सुनकर शेरनी को बहुत दुःख हुआ और कहा डरो मत मेरे बच्चे और हम भी तुम्हारे परिवार को ढूंढेंगे एवं फिर अगले दिन सुबह शेर का परिवार लोमड़ी के परिवार को ढूंढने निकल पड़ा |

सभी ने इधर-उधर बहुत ढूंढा परन्तु कही नहीं मिला फिर वापस अपनी गुफा में आ गये अगले दिन फिर सुबह ढूंढने निकल पड़े ढूंढते-ढूंढते शाम हो गया फिर अचानक लोमड़ी के बच्चे ने अपने परिवार वालो को देखा वह बहुत प्रसन्न हो गया और उनसे बोला वह रहे मेरे परिवार वो रही मेरी मम्मी, वो रहे मेरे पापा एवं वो रहा मेरा पूरा परिवार |

शेर का परिवार कुछ दूर रुका और लोमड़ी को उसके परिवार के पास लौट जाने को कहा | जाते समय सभी एक दूसरे को बाय-बाय करने लगे फिर लोमड़ी का बच्चा दौड़ते हुए अपने परिवार के पास गया सभी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हो गये एवं अपने गले लगा लिया|