आइए जानते हैं राजा सागर के जन्म की कहानी और उनके 60000 पुत्र कैसे हुए।

Raja Sagar ki kahani|आइए जानते हैं उनके 60000 पुत्र कैसे हुए

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Raja Sagar के पिता महाराजा बाहू और उनकी मृत्यु की कहानी। राजा सागर के जन्म और उनके 60000 पुत्रों  और गंगा जी के धरती पर अवतरण की कहानी।

राजा सगर

हिन्दू धर्म प्राचीन धर्म है। यह करोड़ों वर्ष पुराना धर्म है इसकी शुरुआत सतयुग से होती है। कलयुग हिन्दू धर्म का अंतिम युग है। इस युग के समापन पर सतयुग पुन शुरू हो जाएगा। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस युग के बारे  में भी वर्णन है। तो दोस्तों आज हम आपको बताते है त्रेता युग के एक महाराज सगर के बारे में। हिन्दू धर्म के नियम के पीछे बहुत त्याग और तपस्या है। हिन्दू धर्म में राजाओं को बहुत सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता है। राजाओं के घर से ज्यादातर अवतार हुए है। जिन्होंने मानव कल्याण को सर्वोपरि रखा है क्योंकि राजाओं ने स्वयं को तथा परिवार को प्रजा से हमेशा नीचे माना है। तो आइये जानते हैं एक ऐसे ही राजा के बारे में जोकि बहुत महान राजा हुए। जिनका नाम सगर था।

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राजा सगर की कहानी

रामायण के मुताबिक इक्षुवाक वंश में प्रतापी राजा हुए। इन्हें राजा सगर के नाम से जानते हैं। यह भगवान राम और भागीरथ के पूर्वज थे। राजा सगर के दो रानियाँ थीं। एक रानी का नाम केशिनी और दूसरी रानी का नाम सुमति था। राजा सगर को दोनों रानियों से कोई संतान नहीं हुई। संतान न होने राजा सगर बहुत निराश हुए व संतान की प्राप्ति के लिए रानियों सहित हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गए।

तपस्या से प्रसन्न होने पर भगवान् ब्रह्मा के पुत्र ऋषि भृगु ने राजा सगर को वरदान दिया कि एक रानी से आपको 60000 अभिमानी पुत्र जन्म लेंगे व् दूसरी रानी से आपको एक पुत्र होगा और वही पुत्र आपके वंश को आगे ले जायेगा। आगे चल कर इसी वंश में राजा दसरथ और भगवान् राम जैसे महान पुरुष हुए।

राजा सगर के जन्म की कहानी

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महाराज बाहू

सुर्यवंश में एक राजा बाहू थे उनके पिता का नाम वृक था। महाराजा बाहू बहुत धर्म परायण राजा थे। महाराज बाहू अपनी प्रजा का पुत्र की तरह देख रेख करते थे। बाहू दुष्टों और पापियों की उचित दंड देते थे। जिससे प्रजा भयमुक्त होकर जीवन जीती थी। राज्य में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। प्रजा सुखपूर्वक रह रह्जी थी।

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अहंकार

एक बार राजा बाहू को अहंकार हो गया कि इस धरती पर मेरे समान कोई भी राजा नहीं है जिसके राज्य में प्रजा को इतने सुख हों। राजा बाहू ने महसूस किया कि धरती पर न तो कोई मेरा शत्रु जीवित है और न ही किसी पास मेरे बराबर वेदों और उपनिषदों का ज्ञान है। मेरे समान किसी भी प्रकार से कोई नहीं है। अहंकार के कारण राजा बाहू बहुत अनियंत्रित हो गए. इस कारण राजा बाहू के बहुत से दुश्मन हो गए। जिनमे हैह्यी और तालजंघ ने बाहू को संघर्ष हरा दिया। इस हार ने बाहू को विचलित कर दिया। राजा बाहू अपनी पत्नियों के साथ जंगल में रहने लगे।

राजा बाहू की मृत्यु

राजा बाहू की आत्मग्लानि ने राजा बाहू के शरीर को निर्बल बना दिया और राजा बाहू ने जंगल में प्राण त्याग दिए। प्राण त्यागते समय राजा की दूसरी रानी गर्भवती थीं। राजा की मृत्यु से रानी विचलित हो गयीं और उन्होंने सती होने का निर्णय लिया।

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और्य मुनि

उसी जंगल में और्य मुनि अपने आश्रम में रहते थे। और्य मुनि परम तपस्वी और त्रिकाल दर्शी थे। मुनि ने रानी को सती होने जा रही थी। ऋषि ने देख लिया तो उन्होंने रानी को सती होने से मना किया। व कहा कि तेरे गर्भ में शत्रुओं को समाप्त करने वाला चक्रवर्ती सम्राट है। इसलिए सती होने का निर्णय टाल दो तथा गर्भवती स्त्री का सती होना शास्त्रों के खिलाफ है। व तुम्हे गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे पाप से हर एक को बचना चाहिए।

रानियाँ ऋषि के आश्रम में रहने लगी

रानियों ने मुनि की बात मान ली और फिर विधि विधान से राजा का अंतिम संस्कार किया। रानियाँ ऋषि के आश्रम में आकर रहने लगी। दोनों रानियाँ ऋषि की सेवा करतीं। गर्भवती रानी के पूर्व संस्कारों के कारण धर्म के कामों में रूचि जाग गयी। वह मुनि के प्रवचनों को ह्रदय में उतारतीं व् अपने व्यवहार में लागू करतीं।

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गर्भवती रानी के भोजन में विष

बड़ी रानी को उससे ईर्ष्या होने लगा और उसने चुपके से गर्भवती रानी के भोजन में विष मिला दिया। लेकिन गर्भवती रानी को इस विष से कोई हानि नहीं हुई न ही गर्भ में पल रहे शिशु को कोई हानि हुई। 

सागर का जन्म

रानी को समय से प्रसव हुआ उअर एक बच्चे का जन्म हुआ। ऋषि और्य ने उस बच्चे का नाम सगर रखा।ऋषि ने बालक को यज्ञोपवीत किया और उसे सभी तरह की शिक्षाएं दीं।

शत्रुओं की समाप्ति की शपथ

रानी ने सगर के लिए सारा वृतांत सुनाया। सगर को बहुत क्रोध आया। सगर ने अपनी माता के सामने शत्रुओं के समाप्त करने की शपथ ली।

 ऋषि वशिष्ठ

माता से आज्ञा लेकर सगर और्य मुनि के पास गए। उनसे आशीर्वाद माँगा और ऋषि और्य    से आशीर्वाद लेकर अपने कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ के यहाँ पहुचे। ऋषि वशिष्ठ को प्रणाम किया और अपना परिचय दिया। महा ऋषि वशिष्ठ जी सगर को  देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सागर को दिव्य अस्त्र शास्त्र प्रदान किये व् आशीर्वाद देकर दिया। फिर सगर अपने पिता के शत्रुओं का नाश करने के लिए चल दिए।

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सगर का राज्याभिषेक

सगर ने बहुत कम समय में शत्रुओं को हरा दिया तथा अन्य शत्रुओं (शक और यवन ) ने महर्षि वशिष्ठ से शरण मांगी। वशिष्ठ जी ने सबके प्राणों को बचाया तथा अन्य मुनियों के साथ सगर का राज्याभिषेक किया। राजा बनने के बाद राजा सगर और्य मुनि के  आश्रम गए। ऋषि और्य की आज्ञा से अपनी दोनों माताओं को अपने राजमहल ले आये।

राजा सगर के 60000 पुत्रों की कहानी

राजा सगर के कोई संतान नहीं हुई। इससे राजा को बहुत निराशा हुई। राजा रानियों सहित संतान के जन्म के लिए हिमालय पर्वत गए। राजा सगर और रानियों ने पर्वत पर तपस्या करनी शुरू कर दी। तपस्या से प्रसन्न  होकर भगवान् ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने राजा सगर को वरदान दिया कि एक रानी से तुझे  60000 पुत्रों का जन्म होगा व दूसरी रानी से तुझे एक पुत्र का जन्म होगा।

राजा सगर के पुत्रों के बारे में कहानी

राजा सगर की पत्नी रानी सुमति ने एक तुंबी के आकार के एक गर्भ पिंड को जन्म दिया। राजा सगर ने उसे फेंकने लगे। तभी आकाशवाणी हुई। कि इसी तुंबी में 60000 भ्रूण है। घी से भरे एक एक मटके में एक एक भ्रूण सुरक्षित रख यही तेरे 60000 पुत्र होंगे। राजा सगर ने ऐसा ही किया। समय पूरा होने पर मटकों से 60000 पुत्रों का जन्म हुआ।

कपिल मुनि के आश्रम

राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। राजा ने अपने सभी 60000 पुत्रों को अश्वमेघ के घोड़े की सुरक्षा में लगा दिया। राजा इंद्र ने घोड़े को चुराया व घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। सारे राजकुमार घोडा खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। कपिल मुनि के आश्रम में घोडा बंधा देख कर उन्होंने कपिल मुनि को बहुत बुरा कहा। ध्यानमग्न कपिल ने ज्यों ही आँखें खोली। राजा सगर के 60000 पुत्र वहीँ पर भस्म हो गए।

राजा सगर की गंगा मैया के लिए तपस्या और गंगाजी का सगर को वरदान

राजा सगर के 60000 पुत्रों को कपिल मुनि के क्रोध के कारण भस्म होना पड़ा। इन राजकुमारों की मुक्ति का बस एक ही उपाय था कि इन सबके पार्थिव तत्वों को गंगा का स्पर्श कराया जाये। इस काम को राजा सगर के वंशज राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने पूरा किया। राजा भागीरथ की तपस्या से गंगा जी प्रसन्न  हुई। गंगा जी ने भागीरथ से कहा कि हे राजन कोई वरदान मांग लो। भागीरथ ने उनसे धरती पर आने की प्रार्थना की। गंगा जी ने कहा – ठीक है।

रास्ते में जह्रु ऋषि का आश्रम पडा और गंगा ने आश्रम में प्रवेश किया और मुनि का दंड कमंडल सब बहा ले आयीं। नाराज ऋषि ने गंगा जी को पी लिया। राजा भागीरथ ने ऋषि से गंगा जी को छोड़ने की विनती की। ऋषि ने राजा भागीरथ की विनती स्वीकार की और अपने दाहिने कान से गंगा जी को छोड़ दिया। रास्ते में कपिल मुनि के आश्रम में गंगा जी ने प्रवेश किया और अपने स्पर्श से राजा सगर के उन 60000 पुत्रों को मुक्त किया।

इस तरह गंगाजी पृथ्वी पर आयीं।

आदित्य पुराण में गंगा जी के धरती पर अवतरण का उल्लेख है। गंगा जी पृथ्वी पर अवतरण वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ और हिमालय से गंगा निर्गमन ज्येष्ठ की शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ। और इसी दिन को गंगा दशहरा के रूप में मानते हैं।