आइए जानतें हैं सास बहु की कहानी

kahani sangrah

आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है सास बहु की कहानी। ताकि आप Saas Bahu Ki kahaniya In Hindi के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें। हमारा मकसद है कि हम आपको सबसे बढ़िया सास बहु की कहानी Hindi  के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में मदद करें।

बहु की सीख

एक पिता ने बड़े ही लाड-प्यार से अपनी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया| सर्वगुण संपन्न होने पर पिता ने अपनी पुत्री का विवाह कर उसको विदा भी  कर किया| विदाई के समय जब पुत्री ने पिता का आशीर्वाद लिया तो पुत्री को गले लगाते हुए पिता ने कहा, “बेटा! हमारी रीत ससुराल में नहीं चलेगी| वहां के तौर तरीके पूरी तरह से अलग होंगे इसलिए ससुराल में जाकर बड़े बूढों के पास बैठकर उनसे सिख लेना”

बेटी जब बहु बनकर ससुराल में पहुंची तो उसने देखा उसके पति के अलावा घर में उसकी सासुमाँ और एक दादी सास थी| बहु जब घर में कुछ दिन रही तो उसने देखा की घर में दादी सास का बहुत अपमान एवं तिरस्कार किया जा रहा है| अपमान की हद तो तब हो जाती जब उसकी सास उसकी दादी सास को ठोकर मार देती, गाली देती एवं खाने के लिए भी कुछ भी न देती|

लड़की को यह सब देख बहुत ही बुरा लगा| उसे अपने  माता-पिता द्वारा दिए संस्कार याद आ गए| उसे अपनी दादी सास पर बहुत दया आई| उसने सोचा घर में बड़े बूढों का तिरस्कार होने से घर नर्क बन जाता है मुझे अपनी दादी सास के लिए कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिए|

उसने सोचा यदि वह अपनी सास को समझाने का प्रयत्न करेगी तो उसकी सास उसके साथ भी इसी तरह का बर्ताव करने लगेगी| उसने स्वयं अपनी दादी सास की सेवा करने का सोचा| अब वह प्रतिदिन घर का काम ख़तम करके अपनी दादी सास के पास जाकर बैठ जाती और उनके पैर दबाती|

कुछ दिनों पश्चात ही सास को बहु का इस तरह दादी सास के पास बैठना और उनकी सेवा करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा| एक दिन सास ने बहु को बुलाया और उससे कहा, “बहु! तुम घर का सारा काम छोड़कर सदैव दादी सास के पास क्यों जाकर बैठ जाती हो ?

बहु को यह सब पता था कि एक न एक दिन उसकी सास उस से यह प्रश्न अवश्य पूछेगी! बहु ने कहा, “माँ जी मेने घर का सारा काम समाप्त कर लिया है| यदि फिर भी कुछ बाकि रह गया है तो काम बताइए|”

सास बोली, “काम तो कुछ भी नहीं है परन्तु दिन भर दादी सास के पास बैठना  अच्छी बात नहीं! बहु ने सास की बात को बड़े ध्यान से सुना और उससे कहा, “माँ जी! मेरे पिताजी ने सदैव मुझे यही सिखाया है कि जवान लड़के लड़कियों के मध्य कभी नहीं बैठना|

बहु ने बड़ी ही चतुराई और शालीनता के साथ ऊतर दिया. “माँ जी! दादी सास कह रही थी कि यदि तेरी सास मुझे गाली नहीं दे और ठोकर नहीं मारे तो मैं सेवा ही मान लूँ! बहु की बात सुनकर सास ने बहु से पूछा, “क्या तू भी मेरे साथ ऐसा ही करेगी ?

बहु सास के इसी प्रश्न के इंतज़ार में थी| बहु ने कहा, माँ जी! मुझे पिताजी ने बड़ों से घर के रीती रिवाज सीखने को कहा था| यदि घर के रीती रिवाज बुजुर्गों के अपमान करने के हैं तो मुझे भी रीती रिवाज अवश्य मानने पड़ेंगे|

बहु का उत्तर सुनकर सासु माँ को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी| उसने सोचा जैसा व्यवहार मैं अपनी सास के साथ करुँगी मेरी बहु भी वही सीखेगी और फिर वह भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करने लग जाएगी| सास अब दिन भर इसी बात के विचार में रहती|

अगले ही दिन बहु ने घर के एक कोने में ठीकरी (खाना खाने का एक मिटटी का बर्तन) इकठ्ठा करना आरंभ कर दिया| घर के कोने में ठीकरी पड़ी देख सास ने बहु से इतनी सारी ठीकरी इकठ्ठा करने का कारण पूछा – “बहु तुमने यह ठीकरी क्यों जमा की है|”

बहु ने बड़ी ही विनम्रता से कहा – माँ जी! आप दादी सास को ठीकरी में ही भोजन देती है| इसलिए मेने सोचा की बाद में ठीकरी मिले न मिले इसलिए अभी से ही आपके लिए ठीकरी जमा कर देती हूँ|  बहु का उत्तर सुनकर सास बहुत ही घबरा गई और उसने पूछा- तू मुझे ठीकरी में भोजन परोसेगी क्या|

बहु ने कहा – माँ जी! मेरे पिताजी ने कहा था की यहाँ के रीती रिवाज वहां नहीं चलेंगे| वहां की रीती पूरी तरह से अलग होगी| अब जो यहाँ की रीती है मुझे वैसे ही करना होगा| बहु की बात सुनकर सास ने कहा, “यह यहाँ कि रीती थोड़े ही है| तू अब दादी सास को थाली में भोजन दिया करना| बहु सास की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई| बहु की चतुराई से अब दादी सास को थाली में भोजन मिलने लगा|

अगले दिन बहु ने देखा की घर में सबके खाना खाने के पश्चात बचा हुआ खाना बूड़ी दादी सास को दिया जाता था| बहु उस खाने को बड़े गौर से देखने लगी|

बहु को इस तरह खाने को देखने पर सास ने पूछा “बहु! क्या देखती हो ?

बहु ने कहा – “सीख रही हूँ घर में बूढों को क्या खाने को दिया जाना चाहिए”

बहु की बात सुनकर सास ने घबरा कर कहा, “बेटा! यह कोई घर की रीत थोड़े हे| कल से तू दादी सास को पहले भोजन दिया करना”

बस अगले दिन से ही दादी सास को एकदम से बढ़िया भोजन मिलने लगा| धीरे-धीरे बहु ने सास की सारी आदतों को बदल दिया| यदि बहु अपनी सास को उपदेश देती कि उन्हें बड़े बूढ़ों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए तो सास उसकी बात कभी नहीं मानती| इसलिए आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि उपदेश देने के बजाए स्वयं के आचरण में सुधार करना चाहिए|

मुर्ख बहू

एक बनिया था। एक बार वह व्यापर के लिए विदेश जाने लगा। जाते -जाते अपनी बहू को बुलाकर उसने कहा, “मैं विदेश को जा हूँ। तुम अच्छी तरह रहना। बच्चो को भी संभालना और अपनी सास का भी अपने बच्चो की तरह देखभाल करना। याद रखना, माँ से कोई काम भी मत करवाना। ”

बहू ने बोला, “ठीक है मैं आपकी बात पूरी तरह से समझ गई मैं वैसा ही करूंगी जैसा अपने बोला है। आप आराम से जाइये।

बहू ने बात ध्यान में रखी। बनिया तो चला गया। बहू ने दूसरे ही दिन माँ जी से कह दिया, “माँ जी ! आपके बेटे मुझसे कह गए है कि माँ को अपने बच्चो की तरह संभालना और उनको कोई काम मत करने देना। अब आप घर का कोई काम न कीजिये। आप तो इन बच्चो के साथ खेलिए, खाइये एवं मौज करिए। “

माँ जी गहरे सोच में पड़ गई, फिर बोलीं , “बहू, ठीक है। अब मैं ऐसा ही करुँगी। “

कुछ दिनों के पश्चात् बहू ने अपनी बेटी के कान छिदवाय। उस समय बहू को अपने पति की यह बात याद आई कि माँ को बच्चो की तरह ही संभालना है इसीलिए बहू ने माँ जी के कान छिदवाने की बात सोची। उसने माँजी से कहा, “माँ जी, चलिए, आपके कान छिदवाने हैं। “

सुनकर माँ जी बहुत ही घबरा उठी। उन्होंने बहू से कहा, “बहू, मुझे अपने कान, नहीं छिदवाने हैं। क्या अब अपने इस बुढ़ापे में मैं कान छिदवाऊँ ? “

बहू बोली , जी नहीं माँ जी। आपको तो यह करना ही होगा। मैं नहीं चाहती कि आपका बेटा मुझे कुछ कहे। इसलिए आपको मैं अच्छी से देखभाल करुँगी। मेरी दोनों आँखे बराबर हैं। जैसी लड़की है वैसी ही आप भी हैं।

थोड़े दिनों पश्चात बहू ने अपने बेटी के लिए बाली बनवाई तो उसे अपने पति की बात भी याद आयी फिर उसने माँ जी के लिए भी एक बाली बनवाई और कहा आइए, आपको यह बाली पहना दूँ। “

माँ जी ने कहा, “बहू, मुझको बाली क्यों पहनाती हो ? मैं बूढ़ी हूँ मुझे इसकी आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है ? बाली तुम अपनी बेटी को पहनाओ। मुझको नहीं पहननी है। ” परन्तु बहू नहीं मानी। जबरदस्ती करके माँ जी को बाली पहना ही दी।

माँ जी ने बहू को बहुत समझाया, पर बहू टस-से-मस न हुई। आखिर माँ जी नाई के सामने बैठी और उन्होंने अपने सिर पर चोटी रखवाई। बहू ने गोविन्द को और माँ जी को जो बोला था वही सब कुछ उनके साथ किया था 

बाद में बहू रोज माँ जी की चोटी में तेल डालती, चोटी गूंथती और सर पर ओढ़नी डालकर माँ जी को बच्चो के साथ खेलने के लिए भेज देती थी। जब खाने का समय होता, तो बहू उनको आवाज देकर बुलाती थी।

ऐसे ही रोज का हाल था। जब बेटा घर वापस आया तो सबसे पहले उसने बहू से माँ के बारे में पूछा कि माँ कैसी है और कहाँ है मुझे उनसे आशीर्वाद लेना है। “

बहू ने बताया, “माँ जी तो बच्चो के साथ खेल रही है। यही कही होगी आ जाएँगी। “

बेटे ने पूछा, “क्या कहते हो ! माँ गली में खेलने गई है ? गली में तो बच्चे खेलते हैं। क्या बूढ़ी माँ कहीं खेलने जाती है। “

बहू ने कहा, “मैं तो माँ को खेलने भेजती हूँ। आपने कहा नहीं था कि माँ को बच्चो की तरह ही रखना। मैंने तो लड़की की तरह ही माँ के भी कान छिधवाए हैं और कानो में बालियाँ भी पहनाई हैं। जब लड़के की चोटी रखवाई, तो मैंने भी माँ जी की भी चोटी रखवा ली थी। जब मैं सबको खेलने भेजती हूँ तो माँ जी को क्यों न भेजूं ?मुझको सबके साथ-साथ एक-सा व्यवहार करना चाहिए ?”

पति समझ गया कि उसकी मुर्ख स्त्री की अकल का दिवाला निकल गया है। बाद में पति के कहने पर बहू ने माँ को पुकारा।

माँ जी गली में से खेलती-खेलती आईं और अपने बेटे को देखकर उसकी आँखों में आंसू छलछला आया। माँ की हालत देखकर बेटा भी दुखी हो उठा। बहू की मूर्खता के लिए बेटे ने माँ से क्षमा मांगी और बहू को बहुत ही उल्टी-सीधी सुनाई।

बेटा और दादी 

एक समय की बात है,  एक लड़का अपनी दादी के पास आया एवं उनसे बोला,  दादी यहाँ क्यों बैठी हो मेरे साथ खेलो,  मैने कहा बेटा मेरी मित्र कान्ता आयी है मै जरा उससे बात कर रही हूँ।  दादी आप भी नही कभी नही खेलती मेरे साथ।  आपको पता है सारे मेरे मित्र आपका इंतज़ार कर रहे हैं।  आज बैटिंग आपकी है।  दादी अरे रुक जा अभी थोड़ी देर मे मैच आरंभ करते है।  बहु अभी तक कुछ नही लाई नाश्ते में मै क्या करू,  लाएगी भी या नही।  मैने उसे खाना अच्छा ना बनाने की वजह से कुछ सुना दिया।  पता नही क्यों जो भी कहती हूँ  कुछ भी नही मानती।  सिर्फ सोने से मतलब है। बहु ट्रे सजा लाई और मेरी जान में जान आयी।  जब कान्ता चली गई तो मैने अपनी बहु को गले से लगा लिया और कहा कि बेटा  मै तेरी माँ हूँ न,  तो मेरी बातो का बुरा मत मान कर,  कई बार मेरा दिमाग कुछ अधिक ही चल रहा है। अच्छा आज भोजन में  क्या खाएगी।  आज मेरा दिन काम करने का है।  कल तेरा था आज मेरा।  कान्ता भी कह रही थी कि तुमने बहुत अच्छे से काम को डिवाइड किया हुआ है एक और आधा दिन वो करती है और आधा दिन मैं।  मुझे बहुत ही बढ़िया लगता है।  मै सबकी मन पसंद वस्तुएँ बनाती हूँ। 

बहु बोली माँ मुझे राजमा खाने हैं और इनको भी बहुत बढ़िया लगते हैं आपके हाथ के राजमा चावल बहुत अच्छे लगते हैं. बहु का चेहरा एकदम से खिल खिला उठा।  चलो तुम्हे कही जाना हो तो चली जाओ,  और उस दिन तुम नीना से भी मिलने का बोल रही थी घर में भी क्या करोगी अच्छा ये बताओ तुम्हारे बी०एड० का कोर्स कैसा चल रहा है तुम्हे अच्छा परफॉर्म करना है दादी आपकी बैटिंग का टाइम हो गया है आ जाओ न। दादी ने six मारा और चिंटू बहुत ही प्रसन्न हो गया.

नई नवेली बहु से..

सास: देखना पकोड़ी एक – एक कर ही तलना वरना क़ोई कच्ची कोई पक्की रह जायेगी एवं भिन्डी एक एक कर धोना और फिर टॉवेल से पोंछ कर एक एक कर काटना ।

एवं धनिया की एक एक पत्ती तोड़ – तोड़ कर धोना ।

बहु दो चार दिन बहुत दुखी रही फिर पांचवे दिन मां जी आप ये सब्जी देखो तब तक मैं नहा धोकर आती हूँ।

चार घंटे तक बाथरूम से जब बहु नहीं निकली तो..

सास: तुझे नहाने में कितना समय लग रहा है?

बहु: मां जी आपके बताये अनुसार सर में एक एक बाल शेम्पु से धो रही हूँ अभी तीन घंटे और लगेंगे तब तक भोजन आप ही देख लो!

लालची बहु

मनोहर अपने माता पिता के साथ एक छोटे से शहर में रहा करता था। वह एक कंपनी में कार्य भी करता था, जिसके पैसे से वह अपना खर्चा और अपने परिवार का खर्चा भी चलाता था। कुछ वर्ष पश्चात मनोहर की शादी भी हो जाती है। उसकी पत्नी का नाम रिया था। रिया एक बहुत ही लालची किस्म की औरत थी। रिया को जब भी पैसे मिलते थे, तो वह तरह-तरह के कपड़े एवं गहने खरीद लेती थी। वह जब भी किसी समारोह में जाती थी तो सदैव नए नए कपड़े तथा गहने पहनकर जाना चाहती थी। जब उसके पास नए कपड़े एवं नए गहने नहीं रहते थे, तब वह अपने पती मनोहर से जिद करके खरीदवा लेती थी।

उसकी लालच से उसका पति भी बहुत ही तंग आ गया था मनोहर, रिया को सदैव यह समझाया करता था कि हमारी कमाई उतनी नहीं है कि मैं तुमको हर समारोह में जाने के लिए अलग- अलग तरह के कपड़े एवं गहने खरीद कर लाया करूं। मगर रिया उनकी बातो को मानने के लिए तैयार ही नहीं होती थी। एक दिन ज़ब रिया किसी समारोह में गई थी, तब उसकी एक सहेली मनीषा उसके घर पर आई। मनीषा ने रिया की सास से उसके बारे में पूछा। रिया की सास ने मनीषा को सारी कहानी बताई।

मनीषा ने अब रिया को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई। वह रिया के घर से सारा राशन लेकर चली गई और राशन के डिब्बे में अपने गहने तथा नए कपड़े ला कर भर दिए। जब रिया समारोह से वापस आई तब वह किचन के डिब्बो में गहने देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। शाम हुआ, जब रिया भोजन बनाने गई तब उसे राशन नहीं मिला तब उसने सास से पूछा- सारा राशन कहाँ गया?

उसकी सास ने उत्तर दिया- ‘मैंने सारा राशन तथा घर का सारा सामान बेचकर तुम्हारे लिए गहने एवं कपड़ों को खरीद लिया है।‘ तुम बदल बदल कर हर दिन नया पहेनो’

रिया बोली-“ मगर खाने के बिना मैं इन गहनों एवं कपड़ो का क्या करुँगी?

तभी उसकी सहेली मनीषा आई और उसने रिया को सब कुछ बताया कि यह तुमको सबक सिखाने के लिए ही किया गया था।

अब रिया को समझ में आ गया जीवन जीने के लिए सबसे अधिक आवश्यक भोजन ही होता है न की बदल – बदल के गहने एवं कपड़े पहनना। रिया अब अपने पति के कमाई के अनुसार ही सारा कार्य किया करती थी और वह ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगी।

सास को हुआ अपनी भूल का अहसास

राधाजी एक आम मध्यम वर्गीय परिवार की मुखिया थी। वे अपने बेटे शुभम एवं बहु मनीषा के साथ रहती थी। एक बेटी सीमा थी जो कि विवाह के पश्चात अमेरिका में जाकर बस गई थी। राधाजी के पति की मृत्यु बहुत पहले ही हो चुकी थी। शुभम एवं मनीषा की शादी को पांच साल हो गए थे परन्तु अब तक उनकी कोई संतान नहीं थी।

राधाजी की बहु मनीषा भी जॉब करती थी, जो कि राधा जी को बिल्कुल भी नहीं सुहाता था। वे जल्द से जल्द दादी बनना चाहती थी, परन्तु मनीषा एवं शुभम यह अच्छी तरह से जानते थे कि अभी मनीषा का जॉब करना कितना आवश्यक था। राधाजी अपने बेटे शुभम से इस बारे में बात करती तो शुभम किसी ना किसी बहाने से बात को टाल देता था। इसलिए वे मनीषा को ही दुखी करने के बहाने ढुंढती रहती थी ताकि वह अपनी जॉब छोड़ दें। और अभी कोरोना काल में तो मानो उनके मन की मुराद ही पूरी हो गई थी।

हालांकि वे दिल की बुरी नहीं थी, परन्तु पोते की चाह में वे न चाहते हुए भी ऐसा कर जाती थी। हम अपनी उम्र की सहेलियों को दादी बनते देखकर उनका मन बहुत ही दुखी हो जाता था। उस दिन भी घर में ऐसा ही कुछ हुआ। ऑफिस में काम की वजह से मनीषा देर तक सोती रही और राधाजी को अच्छा खासा मौका मिल गया।

” ये क्या बहु, अभी तक सो रही हो, पता है सुबह के दस बज गए हैं। शुभम भी बेचारा कब से उठकर, ऑफिस के काम पर लग गया है और तुम हो कि अभी तक सोई पड़ी हो, चलो अब उठकर सबके लिए चाय नाश्ता बना लो, मुझसे कुछ हो नहीं पाता है, वरना मैं तो तुम्हारे भरोसे कभी ना रहती, स्वयं ही सब कर लेती।”

“सॉरी मां जी, वह देर रात तक काम चलता रहा इसलिए सुबह सुबह ही सो पाई थी, इसलिए समय का पता ही नहीं चला। आप चलिए मैं अभी जल्दी से आती हूं”

“हां हां ठीक है, मेरा कुछ नहीं पर शुभम को देख लो उसे कुछ चाहिए तो नहीं, कब से उठा है बेचारा, हे ईश्वर मुझे जल्दी से ठीक कर दे, ताकि मैं ही अपने बेटे का ध्यान रख सकूं।” राधाजी ने नाटकीय अंदाज में कहा।

राधा जी ने अपनी बहु मनीषा को उठाते हुए कहा। मनीषा ने घड़ी देखी तो वाकई दस बज गए थे, आज उसकी आंख कैसे नहीं खुली, वह जल्दी जल्दी अपने कार्य निपटाकर हॉल में आई तो, शुभम अपने लेपटॉप के साथ ऑफिस के काम कर रहा था। उसने किचन में जाकर चाय नाश्ता बनाया और फिर रात के बर्तन साफ किए और झाड़ू पोंछा करके नहाने को चली गई।

दरअसल, कोरोना वायरस की बढ़ती बीमारी की वजह से, शहर में पूरी तरह लॉक डाऊन किया गया था। इसलिए काम वाली बाई भी नहीं आ रही थी। मनीषा स्वयं एक इंटरनेशनल कंपनी में काम करती थी, उसका ऑफिस टाइम निश्चित नहीं होता था, ज्यादातर उसे रात में देर तक काम करना होता था। कल भी उसका काम देर तक चलता रहा इसलिेए वह देर तक सोती रही।

मनीषा नहाकर आई तो देखा कि, उसकी सास अपने कमरे में अपनी सहेली से फोन पर बात कर रही थी। बातचीत में अपना नाम सुनकर मनीषा सास की बात सुनने लगी।

” अरे शारदा, तुम भी अपनी बहु को अधिक सर पर मत बैठाओ, बहु को अधिक उड़ने दोगी तो कल को अपनी नौकरी के चक्कर में वह तुम्हें ही घर की नौकरानी बनाकर छोड़ेगी, मैं तो भई शुरू से ही मनीषा के नौकरी करने के खिलाफ थी, अब करे नौकरी शौक से, पर साथ-साथ घर के काम भी किया करें। मैं तो बदन दर्द का बहाना बनाकर बैठ जाती हूं, नहीं तो सारे काम का बोझ मेरे सिर पर आ गिरता। मैं कोई मुफ्त की नौकरानी थोड़े ही हूं। मैं तो कहती हूं तुम भी यही किया करो।”

सास की बात सुनकर मनीषा की आंखों में आंसू आ गए। वह जिस सास को बीमार समझकर, उनकी दिन रात सेवा करती है, उन्हें एक ग्लास तक उठाने नहीं देती है, सारा दिन घर का और रात को ऑफिस का काम करके थकान से चूर होकर भी उफ तक नहीं करती उसका यह फल मिला है उसे, माना वे मेरी नौकरी के खिलाफ है, मगर यदि घर की किश्त नहीं होती तो, वह भी कभी नौकरी भी नहीं करती।

शुभम का बोझ कम करने के लिए ही तो वह नौकरी कर रही थी। खैर अभी के कठिन समय में वह सास से किसी भी बात पर बहस नहीं करना चाहती थी, जिससे घर का माहौल खराब हो। इसलिए वह उनकी बात को नजरअंदाज करके वहां से चली गई। परन्तु उसकी नजरों में राधाजी की इज्जत अवश्य कम हो गई थी।

दूसरे दिन, सुबह सुबह राधाजी की बेटी सीमा का अमेरिका से फोन आ गया। सीमा की सास उसके पास अमेरिका आई हुई थी। आदत के अनुसार, राधाजी ने जैसे ही सीमा की सास की बुराई करनी चाही वैसे ही सीमा ने उन्हें डपट दिया।

” मां, आप बिल्कुल भी मां जी के बारे में अनाप-शनाप नहीं बोलेगी। पता है आपके चक्कर में आकर मैंने उनके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था, परन्तु आज मुझे उनकी कीमत पता चल गई है। तुम तो उनके यहां पर आने के कितने खिलाफ थी, मगर आज यदि वे यहां नहीं होती ना मां, तो ना जाने हमारा क्या हाल होता। तुम्हे तो पता ही है कि मेरा नौकरी करना कितना आवश्यक है, कोरोना ने यहां भी ऐसा कहर ढाया है कि घर से ही सब करना पड़ रहा है।

किट्टू का बेबी केयर सेंटर भी बंद हो गया है। मैं और राजेश फूल टाइम बिजी रहते हैं, ऐसे में मां,  और मांजी ने अकेले ही किट्टू के साथ-साथ पूरे घर का सारा काम संभाला हुआ है। मुझे कुछ भी नहीं करने देती है। अगर वे नहीं होती तो, मां हमारा क्या होता, यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सच में मां वे कोई साधारण महिला नहीं है, अपितु मेरे लिए तो देवी के समान है। मेरे इतना अपमान करने के बावजूद…. और सीमा रोने लगी। उसने फोन कट कर दिया।”

सीमा की बात सुनकर, राधाजी की भी आंखें भर आईं। उन्हें अपनी भूल का एहसास हो गया था। मनीषा तो वाकई उनका कितना ख्याल रखती है। उनकी कड़वी से कड़वी बात का भी बुरा नहीं मानती है, उल्टे जवाब भी नहीं देती है। वाकई अभी का समय तो एक दूसरे को हौसला देने का है, सारे गिले-शिकवे भुलाकर, एक दूसरे की सहायता करने का है, तो फिर वे स्वार्थ में कैसे अंधी हो गई थी। इतना कैसे गिर गई थी कि ऐसे कठिन समय में अपने ही परिवार की मदद नहीं कर सकती।

उन्होंने, उसी समय मनीषा को बुलाकर, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा,

” मनीषा, आज से घर के कामों की आधी जिम्मेदारी मेरी रहेगी, मैंने आज तक तुम्हें जो भी कहा और किया उसके लिए सॉरी।  चलो अब तुम जाकर आराम करो, खाना मैं बना लूंगी।”

इधर, सास का बदला हुआ रूप देखकर, मनीषा की भी आंखों में खुशी के आंसू आ गए एवं अपनी सास के प्रति, उसके मन में फिर से पहले वाला सम्मान वापस आ गया था।

शायद हमारे जीवन में बहुत ही कठिन समय आता ही इसलिए है कि हमें एक दूसरे की अहमियत का पता चले। अपनी गलतियों का एहसास होने एवं आगे बढ़कर क्षमा मांगने से वाकई इंसान छोटा नहीं अपितु बहुत बड़ा हो जाता है। राधाजी की तरह।

एक खुश किस्मत बहू

मेरी मैरिज निश्चित होने के समय से ही मोबाइल पर बात होने लगी थी मुझे ये अच्छे लगे थे सुलझे हुए से….नेक इंसान । मैं अक्सर इनसे पूछती कि यदि मेरी एवं आपकी मां में कभी कोई झगड़ा हुआ तो आप किसका साथ देंगे, …..इनका उत्तर होता ‘पता नहीं’। बस इस एक बात के अलावा मुझे ये बहुत अच्छे लगने लगे थे।जब मैं पहली बार इस घर में आई थी तो बहुत अजीब सा था सब कुछ। मेरे घर में सब कितना घुलमिल कर रहते, कभी कभी तो हम मजाक – मजाक में किसी एक को चिढ़ाने के लिए उसकी थाली में रखे खाने को भी खा जाते और यहां तो मजाल ही क्या कि कोई एक कमरे में एक टेबल पर बैठ कर भी भोजन खा ले, सब राजाबाबू.  सबको अपने अपने कमरे में खाना खाने का शौक था।

इनकी माँ से बड़ा डर लगता था मुझे। जाने कब टोक दें। मैं कभी भी सुबह सुबह उठने की आदी नहीं थी, पर यहां नियम से जल्दी उठ जाती। एक बार देर से नींद खुली तो देखा कि सासु माँ किचन में नाश्ता बना रही हैं, मेरे प्राण ही सूख गए कि आज तो ये बुढ़िया मेरी जान ही ले लेगी। पर कुछ भी कहा नहीं सासु माँ ने, बस पूछा कि तेरे लिए भी सेंक दूँ या नहा धोकर खाएगी।

मुझे लगा लेट उठने पर व्यंग कर रही है मुझ पर ।सासु माँ का साड़ी पहनने का तरीका बड़ा सलीकेदार था और मुझे साड़ी से बहुत चिढ़ थी। पहनने में ही घण्टों लग जाते, फिर पहने-पहने काम करना, अजब हाल – सा था मेरा। हर आधे पौन घण्टे में फिर से सब – कुछ ठीक करना पड़ता, नहीं तो सासु माँ टोक देती कि तमीज ही नहीं है क्या, ठीक से पहनो। एक बार तो चिढ़ ही गई, बोली कि जब नहीं पहनना आता तो या तो सीख लो या जो आता है वो पहनो, कार्टून क्यों बन जाती हो। बहुत रोना आया था मुझे, एक तो इतना परिश्रम करो और ऊपर से सुनो भी। 

मैंने भी यह ठान लिया कि अब साड़ी जाए चूल्हे में।पति की भी बड़ी खराब आदत थी, घर आते ही पहले अपनी माँ के पास आकर बैठ जाते, और कभी – कभी तो घण्टों बैठे रहते। किसे अच्छा लगेगा कि उसका पति उसके पास नहीं अपनी माँ के पास बैठ जाये । ना जाने क्या खुसुर – फुसुर करते दोनों। कई बार जब बहाने से उनके सामने आ जाती तो ऐसा लगता जैसे बात ही बदल दी हो उन्होंने। एक बार ऐसे ही टोह लेने के लिए चाय बिस्कुट लेकर गई तो सासु माँ बोल पड़ी कि बेटा तू इतना क्यों दुखी होती है, कभी चाय कभी पानी, जा आराम कर, या यहीं बैठ जा। उस दिन तो मैं चली आई पर सोचा कि जब स्वयं ही कह रही हैं तो कल से साथ ही बैठूंगी।

साथ बैठी तो लगा कि ये लोग तो फालतू बातें करते रहते हैं, या मेरे ही सामने ऐसा बन रहे हैं। जब मेरे बेबी होने वाला था तो डरते डरते पूछा था कि बच्चे का क्या नाम रखेंगे माँ, कितना प्रसन्न होकर सासु माँ ने उत्तर दिया, “कान्हा”। और मैं डर गई, पूछ ही नहीं पाई कि अगर बेटी हुई तो…

ना जाने क्या क्या सोच सोचकर मैंने वे दिन काटे और जबमेरे बिटिया हुई तो पिछले दस दिन से रामायण पढ़ती माँ की आंख में आँसू देखे थे मैंने। खुशी के थे या दुख के… मालूम नहीं ? पर महीनों तक उसकी मालिश से लेकर कच्छी पोट्टी तक सब काम इतने जतन से करते देखा तो…आज इतने सालों पश्चात मै सोचती हूँ कि…. मैं स्वयं अपनी सास में माँ को खोजती थी , तो क्या मैं स्वयं बहू की जगह बेटी बन पाई थी।

पता नहीं क्यों हम बहुएँ…अपनी सास में माँ को खोजती हैं, ……यदि सास मेरी सासु माँ जैसी होती है तो भगवान से प्रार्थना है कि मेरी अपनी माँ अपनी बहू के लिए मेरी सासु माँ जैसी बनें।……….

सास और बहु

लो आज सुबह से ही उन्होंने शोर मचाना आरंभ कर दिया।

अरे बहन क्या पूछती हो कि तुम्हारी सास क्यों ख़फ़ा हो रही हैं। उनकी आदत ही यही है। हर आए-गए सबके सामने मेरा रोना रोकर बैठ जाती हैं। सारी दुनिया के ऐब मुझ में ही हैं। सूरत मेरी बुरी। फूहड़ मैं। बच्चों को रखना मैं नहीं जानती। अपने बच्चों से मुझे दुश्मनी। मियाँ की मैं बैरी। खर्चे कि कोई बुराई नहीं जो मुझमें नहीं और कोई ख़ूबी नहीं जो उनमें नहीं।

यदि मैं भोजन पकाऊँ तो ज़बान पर फ़ौरन रखकर थूक देंगी और वह नाम रखेंगी कि ईश्वर ही पनाह करे कि दूसरा भी न खा सके। शुरू-शुरू में तो मुझे भोजन पकाने में बहुत ही दिलचस्पी थी। तुम जानती हो कि अपने घर पर भी अकसर पका लेती थी और मेरी अम्मा को इतना बढ़िया भोजन पकाना आता है कि अपने रिश्तेदारों में हर स्थान मशहूर हैं। यहाँ तो जो पकाया उसमें बुराई ही निकली कि नमक तो देखो, ज़हर। मज़ा ऐसा कि मिट्टी खा लो।

एक दिन स्वयं ही बड़े पकाए। इतने बुरे थे कि हमारे ससुर ने कहा कि ऐसे वाहियात बड़े किसने पकाए हैं। ख़ूब बड़बड़ाईं कि तुमको तो बस बहू के हाथ की वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं। सारी उम्र यही तो पका-पकाकर खिलाती रही है। अब मैं क्या बोलती। ख़ूब हँसे । मैंने सोचा कि काम करो और बातें भी सुनो तो इससे बढ़िया न ही करो। खाने-पकाने ही पर क्या है।

जब मैं नयी-नयी आयी थी तो इनका एक चिकन का कुर्ता मैंने सिल दिया था। सब को दिखाया गया और बुराई की गई। जो देखे चुप हो जाए। अच्छे ख़ासे कुर्ते की कोई कैसे बुराई कर दे। जब किसी ने बुराई न की तो उसको सिरे से उधेड़ डाला और फिर किसी और से सिलवाया। दिल तो मेरा भी चाहा कि अब सबको दिखाऊँ, परन्तु मैं यह कैसे कर सकती थी। वह बड़ा होने और सास बनने का फायदा उठाती हैं। हर समय पढ़ा-लिखा होने का ताना है। कोई किताब मेरे हाथ में देखें तो जल जाती हैं। किसी को ख़त लिखता देख लें तो समझती हैं कि उन्हीं की बुराई लिख रही हूँ। कोई बात ही उनको मेरी पसन्द नहीं और सबसे बुरी बात जो लगती है कि हम दोनों मियाँ-बीवी प्रसन्न न रहें।

कभी यदि यह मेरे लिए कुछ ले आएँ और ख़बर हो जाए तो जल-भुनकर रह जाती हैं एवं उठते-बैठते उनको ताना देती हैं कि तुम तो बीवी के ग़ुलाम हो गये हो । हर समय मेरी बुराई उनके सामने करते हो, वह सुनकर टाल जाते हैं। कभी माँ से बिगड़ भी जाते हैं और कभी हँसकर कह भी देते हैं कि हाँ, बातें बहुत बुरी हैं, अम्मा.

पिछले साल बरसात में बड़े लड़के को मलाई की बर्फ़ खाकर वह ज़ोर का बुख़ार चढ़ा, दो महीने लिए बैठी रही। उसमें भी लड़ाई कि बच्चे को भूखा मारे दे रही हैं। इंजेक्शन लगवा-लगवाकर छेद कर दिए। रोज नए-नए ताबीज़ आते थे और साथ में मौलवी साहब झाड़फूँक के वास्ते भी लाए जाते थे। जब किसी तरह नहीं मानीं तो बीमार बच्चे को उठाकर हास्पिटल ले गई कि कुछ आराम मिले। वह तो कहीं बेचारी डॉक्टरनी मेरी मित्र है। वरना कौन किसी की बात सुनता है। यह वहाँ भी जाकर बातें चार डॉक्टर, नर्सों को और दस मुझको सुना आती हैं।

हमारी सास ऐसी दुश्मन हैं कि क्या बताऊँ। वह कहती हैं कि माँ होकर बच्चों की दुश्मन है। बच्चे भूख से तड़पते हैं और मैं बैठी देखती रहती हूँ और मेरा दिल पत्थर का है। मैं बच्चों को पैदा होते ही किसी फल का अर्क अर्थात नारंगी या सेब का देती हूँ। जब पहले बच्चे को मैंने दिया तो बड़ी हायतौबा मचाई और बैठी पीटती थीं कि मैं हरगिज़ नहीं देने दूँगी। यह तो बच्चे को निमोनिया करके मारना चाहती है। हमारे ससुर बेचारे बहुत ही नेक इंसान हैं। उन्होंने समझाया, जब यह किसी तरह नहीं मानीं तो मुझे मेरे घर अर्थात मैके छोड़ आए।

अदिति और उसकी सास

विवाह को कुछ ही दिन हुआ था एवं आज कामवाली भी नहीं आई, इसलिए अदिति बर्तन धोने लगी। धोते-धोते उसके हाथ से कांच का कप निचे गिरकर टूट गया। कप टूटते ही वह डरने लगी कि उसकी सास अब बातें सुनाएगी। आवाज से सास दौड़ती आई एवं उससे बोली, “बेटी क्या हुआ?” अदिति बोली, “माँ पता नहीं ध्यान रखते हुए भी कैसे मेरे हाथ से कप निचे गिर गया।”

सास बोली, “बेटी चिंता न कर, कप ही तो फूटा है तुम्हे चोट तो नहीं आई और भले ही इसके कितने टुकड़े ही न हो जाए पर मेरी बेटी के दिल के टुकड़े बिल्कुल भी न हो। मेरी बहु से महंगा है क्या यह कप! और हाँ, तुझे अभी यह सब करने की क्या आवश्यकता है। मेहँदी भी नहीं उतरी अभी तेरे हाथो से। अभी तुम मेरे बेटे के साथ अधिक से अधिक समय बिताओ और एक दूसरे को समझो।”

सास ने अपनी बेटी को बुलाया और उससे कहा, “ज्योति इधर आकर अपने भाभी का ख्याल रखो। अभी इस घर में नई नई आई है।” ज्योति ने कहा, “हाँ माँ।” सास फिर बहु से बोली, “आरंभ में तुम मुझे अपनी माँ ही समझना। मुझे भी तुम्हारा दिल जितना है, सास बनकर नहीं माँ बनकर।”

देखते-देखते अदिति के आँखों में प्रसन्नता के आंसू आ गए छलछला गई उसकी आंखे एवं सास के पैरों में गिरकर बोली, “मैंने एक माँ छोड़ी तो दूसरी नई माँ पाई अपितु आप मेरे माँ से भी अधिक ममता मेरे लिए रखती हो। अगर घर में यह कप टूट जाता तो माँ भी दो बात कहे बिना नहीं रहती।

एक दिन भावी के हाथ से कांच का गिलास निचे गिरकर टूट गया। माँ चिल्लाने लगी कि कितनी कीमती गिलास टूट दिया।किसी न किसी बात पर वह भाभी  पर चिल्लाती। भाभी भी क्रोध से बोल देती थी कि माँ मैं तो बैठी-खाती हूँ, आप तो खड़ी खड़ी खाते है। जब से आई हूँ तब से रोज दो दो चार जाली कोटि न सुना दो तब तक आपको चैन ही नहीं मिलेगा, कभी मेरे माँ को तो कभी मेरे बाप को। सदैव मेरी मायके वाली को कोशती रहती हो। असेही माँ और भाभी एक दूसरे के साथ बहस किया करती रहती थी।

अदिति ने घर के अलावा और भी कई जगह पर सास बहु के झगड़े सुनते-सुनते वह डर गई थी इसलिए विवाह से कतराने लगी मगर माँ बाप के कारन ही उसे शादी करनी पड़ी और अनजान डर को लेकर ससुराल आ गई। पर आज की घटना से उसकी सोच बदल गई की सब सास और बहु एक जैसी नहीं होती।

नींद न आने के कारण से उसने सोचा कि चलो थोड़ी देर माँ से बात कर लू। माँ ने इतनी रात को उसे फ़ोन करते देख कहा , “बेटी सब कुछ ठीक है न! कहीं  तुम्हारे पति से या सास से झगड़ा तो नहीं हो गया।” अदिति बोली , “नहीं माँ ऐसा कुछ नहीं है। मालूम है माँ, आज मेरे साथ से कांच का गिलास निचे गिर गया तभी सास आ गई। मेरे आगे बोलते ही मेरे सास ने बोलना आरंभ कर दिया, “बेटा फिर तेरे सास के चिल्लाने पर तूने अच्छा सा उत्तर दे दिया न. हाँ बेटा कभी भी दबकर नहीं रहना। तुम एक पड़ी लिखी अच्छी लड़की हो, तुम में कोई कमी नहीं है इसलिए कभी भी किसी की सुनना मत।

तभी बात को काटते अदिति बोली, माँ अब बस करो! मैं अपने दूसरे माँ के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकती।” माँ थोड़ा आश्चर्य हो गई और बोली, “यह क्या बोल रही हो” अदिति बोली, “हाँ माँ, आज मेरे हाथ से जब कप गिरा तो मेरे सास ने बिलकुल भी मेरे साथ बुरा व्यवहार नहीं किया।” अंत में अदिति बोली, “अब आप समझ गई न सारी बात। माँ एक और बात कहनी थी आप बुरा तो नहीं मानोगे?” उसकी माँ बोली, “हाँ बोल बेटा।” अदिति बोली, “माँ काश आप भी मेरी नई माँ के साथ भाभी की तरह व्यवहार किया करती तो शायद भैया एवं भाभी अलग घर में नहीं रहते।”

अपनी बेटी की यह सब बातें सुनकर उसे अहसास हुआ कि उसने अपने बहु के साथ गलत व्यवहार किया था। उसकी बेटी ने उसकी आंखे खोल दी।” अदिति उससे पहले कुछ बोलती तभी उसकी माँ बोली, “अदिति अब जब तू यहाँ आएगी तो पूरे परिवार को एक साथ पायेगी। अब फ़ोन रख, मुझे बेटे और बहु की स्वागत की तैयारी करनी है।”

विवाह के पश्चात नई जिंदगी की शुरुवात में यदि आज सास समझदारी से काम नहीं लेती, अपनापन नहीं जताती तो शायद शुरुवात की नीड़ ही कमजोर होने से पूरी जिंदगी आपस में दरार पड़ जाती है। कप को फूटने से कोई नहीं रोक सकता, परन्तु प्रेम को टूटने से तो हम सभी रोक सकते हैं। कांच के टुकड़े हो जाए पर घर के टुकड़े बिल्कुल भी न होने दे। अपने घर में प्रेम का वातावरण बनाए रखिए, एक दूसरे को समझे, एक दूसरे की इज्जत करे तो घर स्वर्ग बन जाएगा। घर नर्क से स्वर्ग में बदल सकता है अगर बहु सास को माँ मान ले और बहु सास बहु को बेटी मान ले। दृस्टि बदलने से सृष्टि बदल जाएगी और एक स्त्री चाहे तो घर को स्वर्ग बना सकती है और चाहे तो नर्क भी बना सकती है।

सब्जी वाली बहु

मीरा का सुबह-सुबह ही अपने पति से बहुत झगड़ा हो जाता है एवं वहां घर छोड़कर जाने की बात करने लगती है ।मां भी वहीं पर खड़ी होती है और वह बोलती है अरे बहु क्या हुआ ऐसे झगड़ा नहीं करते छोटी-छोटी बातों पर कोई घर छोड़कर थोड़ी जाता है। बहु बोलती है हां हां पहले तो पीछे से तीली लगाओ तथा फिर सामने से ऐसा जताओ कि आग बुझाने आई हो। अरे बहू तुम यह क्या बोल रही हो , मैंने कब क्या बोला था तुम से।

आपने मुझे तो नहीं बोला परन्तु आपने बेटे से तो बोलती रहती हैं। तभी उसका पति बोलता है , मां ने आज तक तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं बोला है , वो तो तुम ही हो जो उनके बारे में हर कुछ बोलती रहती हो ,तभी मां बोलती है ऐसा क्या बोलती है यह मेरे बारे में जरा मैं भी तो सुनु। मीरा बोलती है अरे वह क्या बताएंगे  मैं ही बताती हूं मैं बोलती हूं ,”ना जाने यह बुढ़िया कब मरेगी , ना जाने इससे मुझे कब छुटकारा मिलेगा, मेरी छाती पर मूंग दल रही है।

इतना सब सुनकर मां बोलती है, तू तो अभी जा रही थी ना,  यहां पर क्यों खड़ी है जा ना। हां हां चली जाऊंगी परन्तु पूरे मोहल्ले को बता कर जाऊंगी कि दोनों बहू बेटे मिलकर मुझे यहां से क्यों भगाना चाहते हैं। मां बोलती है जा जिसको बोलना है बोल दे , मैं भी यहां 30 सालों से रह रही हूं , अपना दबदबा बना कर रखा है यहां पर मैंने। मीरा बोलती है देखते हैं आपको यह लोग कैसे जीने देते हैं। तभी मीरा का पति बोलता है, तुम जाती क्यों नहीं  यहां से, जाने का दरवाजा उधर है निकल जाओ यहां से। इतना सब सुनकर मीरा वहां से तुरंत निकल जाती है.

अगले दिन बहार से जोर-जोर से सब्जी वाली की आवाज आती है। मां बोलती है जा बेटे सब्जी लेकर आ जा। बेटा बोलता है मां मीरा जब से घर छोड़कर गई है मोहल्ले वाले तो मुझे ऐसे देखते हैं जैसे मैं उन्हें खींच कर अपने घर में ले आऊंगा ,आप ही जाओ। मां सब्जी का थेला लेकर बाहर जाती है और बहुत ही जल्द दौड़ते हुए अंदर आ जाती है। और उससे बोलने लगती है  बेटा बहू.. बहू बेटा बोलता है अरे मां कल ही तो वो गई है ,वह नहीं आने वाली अरे नहीं बेटा वह नीचे सब्जी का ठेला लेकर खड़ी है।

बेटा मां की बात सुनकर एकदम से हैरान – सा हो जाता है और वह नीचे जाता है और सब्जी वाली से बोलता है,” अब यह क्या नाटक लगा कर रखा हैं, जल्दी से अंदर चलो क्यों हमारी नाक कटवाने में लगी हो “। और वह  सब्जीवाली को पकड़कर अंदर ले आता है। मां बोलती है क्या हुआ बहू एक दिन में तुम्हारा ड्रेसिंग सेंस भी बदल गया अपनी मां की तरह कपड़े पहन लिए। सब्जी वाली बोलती है मेरी मां के कपड़े हैं तो उनकी तरह ही दिखुगी ना |

मां बोलती है बस बस बहुत हुआ तेरा नाटक अब ये कपड़े निकालो और ढंग के कपड़े पहनो। सब्जी वाली को कुछ समझ में नहीं आता है परन्तु जब वह दीवार पर मीरा और उसके पति की तस्वीर देखती है तो उसे सीता एवं गीता का पूरा चक्कर समझ में आ जाता है। उसका पति बोलता है आज हम बाहर खाने पर चलेंगे तैयार हो जाना। दोनों शाम को भोजन पर जाते हैं सब्जी वाली मन ही मन सोचती है यह कितना बढ़िया है , इतने महंगे कपड़े ,इतनी महंगी होटल और ऊपर से इतना अच्छा मकान, जिंदगी हो तो ऐसी। तभी सब्जीवाली पूछती है बताओ न मैं यह घर छोड़कर क्यों गई थी। तुम घर छोड़कर इसलिए गई थी क्योंकि तुम्हें अच्छी A.C नहीं मिल रही थी ,अच्छे कपड़े पहनने को नहीं मिल रहे थे ,बढ़िया भोजन खाने को नहीं मिल रहा था एवं महंगी होटल में नहीं ले जा रहा था इसलिए , सब्जी वाली सोचती है इतना सब कुछ भी किसी के लिए कम हो सकता है।

अगले दिन से सब्जी वाली रोज सुबह उठती थी । सुबह से सबके लिए भोजन बनाती घर का सारा काम भी करती और दिन में टीवी देखने के पश्चात आराम करती  कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। एक दिन जब सब्जीवाली आराम कर रही थी तभी वहां पर मां बेटे आ जाते हैं, और वह सब्जी वाली से बोलते हैं तुम्हें शर्म नहीं आती किसी और की जिंदगी जीते हुए गरीब सब्जी वाली निकलो यहां से। तभी मीरा सब्जी वाली से बोलती है तुम कैसे किसी और के घर में आ सकती हो इन्हें तो नहीं पता परन्तु तुम तो जानती थी फिर भी यहां पर आ गई और यहाँ आकर रहने लगी तथा मुझे तो यह समझ में नहीं आ रहा इस छोटे से घर में तुम कैसे रह सकती हो जहां पर कोई भी सुविधा नहीं है अब निकलो यहां से.

मां बोलती है एक बात तो है भले ही यह सब्जी वाली है परन्तु हमने जो बहू को लेकर स्वप्न देखे थे वह उसमें खरी उतरी उसमें अच्छी बहू के सारे गुण हैं । सब्जी वाली यह सब सुनकर जाने लगती है परन्तु जाते हुए एक बात बोल कर जाती है मैडम यह सब आपके लिए छोटा होगा परन्तु आपके लिए जो छोटा या फिर कुछ नहीं है वह किसी के लिए .. किसी स्वप्न से कम नहीं है इसलिए ईश्वर ने जो दिया है उसमें प्रसन्न रहो कभी भी किसी वस्तु को छोटा या कम मत समझो.