Rastra Pratham Par Nibandh In Hindi Rastra Pratham Short Essay

 Rastra Pratham Par Nibandh | Rastra Pratham Short Essay

NIBANDH IN HINDI

दोस्तों इस पोस्ट में हम Rastra Pratham पर हिंदी में निबंध प्रस्तुत करने जा रहे हैं. उम्मीद है कि Rastra Pratham Essay in Hindi आपका ज्ञान वर्धन अवश्य करेगा. हिंदी निबंध का हिंदी भाषा के अध्ययन में अपना ही एक महत्वपूर्ण स्थान है. तो आइये अब पढ़ते हैं  Rastra Pratham पर हिंदी में निबंध. 

प्रस्तावना 

आपको बता दें कि Rastra Pratham एक सच्चे देशवासी के लिए राष्ट्र प्रथम की भावना हमेशा उसके मन में अवश्य होनी चाहिए। जब राष्ट्र को उसकी बहुत ही परम आवश्यकता हो तो वह राष्ट्र की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहे। केवल बड़ी-बड़ी बातें करने से या फिर बड़े-बड़े नारे लगाने से ही देश-भक्ति नहीं सिद्ध हो जाती या फिर बड़े-बड़े संदेश साझा करने से ही देशभक्ति नहीं होती अपितु देश के लिए कुछ सार्थक करना ही राष्ट्र वादी होने का परिचायक होता है। 

दरअसल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन की कुर्बानी देकर इस राष्ट्र का निर्माण किया और हमें यह देश भलीभांति सौंप कर चले गए। देश की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है | इसलिए कि हम इस देश को संभाल कर रखें तथा जब भी विपत्ति आए तो पीछे बिल्कुल भी नहीं हटे। जैसे कि हमारे पहले हमारे देश के वीर जवान पीछे बिल्कुल भी नहीं हटे थे।

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महत्त्व 

ऐसा कहा जाता है कि हमारे जवानों ने राष्ट्र को प्रथम समझ कर पूरा जीवन और समय लगा दिया | अब हमारी बारी है  कि हमें भी अपने राष्ट्र की सेवा खूब बढ़िया तरीके से अवश्य करनी चाहिए | जब हम सबका पूरा सहयोग राष्ट्र के साथ होगा तभी हमारा राष्ट्र एकदम से प्रगति करेगा |

राष्ट्र के प्रहरी सुरक्षा बलों के जवानों में राष्ट्र प्रथम एवं तिरंगे के प्रति अपने भाव पूरी तरह से जुड़े हुए हैं तब तक ही राष्ट्र की सीमाएं पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं. कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के समय अब्दुल हमीद की शहादत धर्म के विचार पर राष्ट्र की विजय का प्रतीक थी.

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बता दें कि धर्म एवं राष्ट्र हित का टकराव समय समय पर होता रहा हैं. अपने राष्ट्र से प्रेम करने वाले प्रथम स्थान राष्ट्र को ही अवश्य देते हैं क्योंकि धर्म व्यक्ति की निजता का मामला भी है वही राष्ट्र बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय की विचारधारा रखता है.

ऐसा कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध एक ही कुल के दो परिवारों के मध्य लड़ा गया था, मगर खून के रिश्ते की बजाय जो राष्ट्र की राह में रोड़ा बना उसका वध करना बहुत ही योग्य माना गया. कुछ विचारक धर्म को अफीम मानते हैं, जबकि मेरे विचार में यह व्यक्ति की आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की वस्तु भी है जो सम्मान का पूरी तरह से पात्र भी हैं.

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मगर उसे राष्ट्र के साथ जोड़कर अथवा उतने उच्च दर्जे तक बिल्कुल भी नहीं ले जाना चाहिए. IS, तालिबान और मुजाहिद जैसे धार्मिक कट्टरवादी संगठनों ने धर्म को राज्य से सर्वोच्च स्थापित करना चाहा, जिसके नतीजे हम देश रखे हुए हैं. मानना है कि धर्म बड़ा है या राष्ट्र यह बहस सदा से चली आ रही हैं. दुनिया के किसी भी सम्पन्न एवं विकसित राष्ट्र का उदाहरण ले लीजिए, जहाँ के लोगों ने धर्म, निजी स्वार्थ से सर्वोच्च महत्व राष्ट्र को ही अवश्य दिया है.

धर्म राष्ट्र की सत्ता को निर्देशित भी कर सकता है मगर वह राष्ट्र को पूर्ण रूप से चला नहीं सकता. खाड़ी के अरब देशों अथवा पाकिस्तान का उदाहरण हमारे सामने हैं. सन 1947 में दो कौमी नजरिये के सिद्धांत पर बने इस देश के कम से कम 7 दशक में दो टुकड़े अवश्य हो चुके हैं.

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कर्तव्य 

एक नागरिक से यह अपेक्षा बिल्कुल की जाती है कि उसके मन में हमेशा राष्ट्र प्रथम की भावना अवश्य होनी चाहिए. यही भाव उन्हें वतन की सीमाओं की सुरक्षा के लिए मर मिटने का जज्बा भी पैदा करती है. बड़ी बड़ी डींगे मारने या फिर भाषणों से देशभक्ति बिल्कुल सिद्ध नहीं होती हैं. अपितु अपने स्तर पर देश के लिए कुछ कर गुजरने के भाव ही उससे राष्ट्र सपूत अवश्य बनाता है.

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निष्कर्ष 

आपको यह भी बता दें कि एक राष्ट्र एक वृहत परिवार की अवधारणा माना गया है, जिस तरह हमारे परिवार के किसी सदस्य की सुरक्षा खतरे में हो अथवा उसका जीवन पूर्ण रूप से संकट में हो तो हम सब कुछ दांव पर अवश्य लगा देते हैं. वैसे ही भारत राष्ट्र हमारा एक बड़ा परिवार माना जाता है जिसकी अस्मिता, सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए हमेशा तन, मन, धन से सेवा करने के लिए एकदम से तैयार अवश्य रहना चाहिए.