Thermodynamics in Hindi | ऊष्मागतिकी क्या है | पूरी जानकारी  

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बता दें कि ऊष्मा गतिकी एक बहुत ही महत्वपूर्ण भौतिक विज्ञान की शाखा है एवं भौतिकी की इस शाखा में ताप तथा ऊष्मा एवं इनके मध्य ऊर्जा और कार्य सम्बन्ध का अध्ययन अवश्य किया जाता है Thermodynamics in Hindi।

रासायनिक ऊष्मागतिकी में प्रयुक्त होने वाले निम्न परिभाषाएं :-

तंत्र या निकाय (System) :- ध्यान रहे कि ऊष्मागतिकी अध्ययन के लिए जिस वस्तु या भाग का चुनाव किया जाता है। वह तंत्र या फिर निकाय ही कहलाता है। 

दरअसल इस तंत्र पर ताप दाब या फिर अन्य कारकों के प्रभाव का ऊष्मागतिकी अध्ययन किया जाए तो वह भाग तंत्र या निकाय ही कहलाता है। 

परिवेश :- बता दें कि ऊष्मागतिकी अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले भाग को छोड़कर शेष बचा हुआ संपूर्ण भाग परिवेश ही कहलाता है। 

तंत्र के प्रकार :- 

तंत्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। 

  • खुला तंत्र (Open System)
  • बंद तंत्र (Closed System)
  • विलगित तंत्र (Isolated System)

खुला तंत्र :- ऐसा तंत्र जिसमें निकाय एवं परिवेश के मध्य पदार्थ एवं ऊष्मा का आदान-प्रदान हो सकता है तो वह खुला तंत्र कहलाता है। जैसे – खुले वस्तु में जल का उबालना आदि। 

बंद तंत्र :- ऐसा तंत्र जिसमें निकाय एवं परिवेश के मध्य ऊष्मा का तो आदान-प्रदान हो सके परन्तु पदार्थ का आदान-प्रदान बिल्कुल भी नहीं होता है। तो वह बंद तंत्र ही कहलाता है। जैसे- किसी बंद बीकर में अभिक्रिया का होना आदि।

ऊष्मागतिकी प्रक्रम :- बता दें कि ऊष्मागतिकी वह क्रियाविधि है जिसमें एक तंत्र की अवस्था दूसरी अवस्था में पूरी तरह से बदल जाती हैं। ऊष्मा गतिकी प्रक्रम ही कहलाते हैं। 

ऊष्मा गतिकी प्रक्रम के प्रकार :- 

ऊष्मागतिकी प्रक्रम के निम्न प्रकार होते हैं। 

समतापी प्रक्रम :- बता दें कि किसी ऊष्मागतिकी निकाय में ऐसा परिवर्तन जिसमें निकाय के दाब एवं आयतन परिवर्तित होते हैं। जब तक ताप पूरी तरह से स्थिर रहता है। तो इसे समतापी प्रक्रम कहते हैं। 

दरअसल समतापी प्रक्रम संपन्न होने के लिए बहुत ही अनिवार्य होता है कि परिवेश एवं निकाय के मध्य ऊष्मा स्थानांतरण हो मतलब निकाय की दीवारें एकदम से चालक होनी चाहिए। 

दूसर शब्दों में कहें कि किसी पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के दौरान दाब एकदम से नियंत्रित रहता है। जैसे – पानी का जमना। 

रुद्धोष्म प्रक्रम :- ऐसा प्रक्रम जिसमें ताप दाब का आयतन तीनों परिवर्तित होते रहते हैं। किन्तु परिवेश एवं निकाय के मध्य ऊष्मा का आदान-प्रदान बिल्कुल भी नहीं होता है। तो रुद्धोष्म प्रक्रम कहलाता है। 

इस प्रक्रम के संपन्न होने के लिए निकाय पूर्णतया कुचालक पदार्थ की दीवारों से बने एक गैस पात्र में गैस का प्रसार किया करते हैं। जिसमें गैस की आंतरिक ऊर्जा में कमी हो जाती है। 

यदि गैस को पिस्टन की मदद से संपीड़ित भी किया जाता है और गैस पर कार्य किया जाता है। जिससे उसके आंतरिक उर्जा में बहुत ही वृद्धि होती है तथा ताप भी बढ़ जाता है। 

समदाबीय प्रक्रम :- बता दें कि ऊष्मागतिकी निकाय के भौतिकी प्रक्रम में ताप एवं आयतन परिवर्तित हो तथा दाब नियत हो तो इस प्रक्रम को समदाबीय प्रक्रम ही कहते हैं।

निष्कर्ष – 

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