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Aparajita Stotram in Hindi | Lyrics | Benefits |PDF Download

STOTRA

Shatru Nashak Stotra

आज मैं आप सबको Aparajita Stotram in Hindi स्तोत्र के बारे में बताने जा रहा हूं वह एक ऐसा स्तोत्र है जोकि हमारी समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है यथा शीघ्र समस्त बाधाओं से मुक्त करता है. इस Aparajita Stotram in Hindi का पाठ करने मात्र से जिस वस्तु को हम प्राप्त नहीं कर सकते उसे यथा शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं यदि हमारे ऊपर कोई मुकदमा या कोर्ट कचहरी का मामला है उससे हमें शीघ्र जीत प्राप्त करा सकता है। जी हाँ मैं Aparajita Stotram in Hindi बात कर रहा हूँ.

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Devi Aparajita

महर्षि वेद व्यास जी ने कहा है कि देवी अपराजिता आदिकाल से उत्तम फल देने वालीमाँ हैं. देवी अपराजिता माँ दुर्गा का ही रूप हैं . माता के विषय में बताते हुए व्यास जी कहते हैं कि देवी अपराजिता की पूजा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा प्रतिदिन की जाती है कहा ये भी जाता है की श्रीराम ने युद्ध से पूर्व देवी अपराजिता का पूजन किया था और सफल भी हुए थे. इस लेख को पूरा पढ़ें इस में आपको शुद्ध Aparajita Stotram lyrics भी दी जा रही है.

अपराजिता स्तोत्र के वारे में                      

इसके अलावा, लोग इन मंत्रों का उपयोग चिकित्सा समस्याओं, अदालती मामलों और महालक्ष्मी को अपने जीवन में आमंत्रित करने के लिए करते हैं aparajita stotram benefits. यह बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्त जीवन जीने में हमारी मदद करने के लिए हमारे परिवेश को शुद्ध करता है। ऐसे स्तोत्र का बड़ा ही सुंदर नाम है  अपराजिता स्तोत्र (Aparajita Stotram)।                      

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नकारात्मकता का अंत

देवी अपराजिता दुर्गा माँ का एक रूप हैं. वह माँ का ऐसा रूप हैं जो नकारात्मकता और कठिनाइयों को नष्ट करता है aparajita stotram benefits are many. वह ऐसी देवी हैं जिन्हें हराया नहीं जा सकता. वह सभी मानव जाति के लाभ के लिए प्रकट होती है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है.

Aparajita Stotram अपराजिता स्तोत्र की विशेषताएं। 

यह अपराजिता स्तोत्र किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए इसका पाठ यह अनुष्ठान किया जाए तो यथाशीघ्र फल प्रदान करता है.                     

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अपराजिता स्तोत्र के लाभ

  • वशीकरण  या उच्चाटन
  • परीक्षाओं को सफलता दिलाना
  • मुकदमे या कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता प्रदान करना
  • मृत्यु भय नाश करने में
  • धन प्राप्ति में विशेष लाभ प्रदान करता है।
  • नवग्रह दोष समाप्त हो जाते है
  • भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति मिलती है
  • नकारात्मक शक्तिओं का नाश हो जाता है
  • जाने-अनजाने किये गए या हुए पापों का विनाश हो जाता है
  • नि:सन्तान को सन्तान प्रा
  • प्ति के द्वार खुल जाते है
  • शत्रु के द्वारा किये हुए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि क्रियायें नष्ट होती हैं
  • सामाजिक मान सम्मान में वृद्धि होती है
  • निरंतर जाप से संक्रामक रोग से रक्षा होती

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अपराजिता स्तोत्र (Aparajita Stotram) के लाभ भी इसके नाम के जैसे ही हैं त्रैलोक्य विजया का मतलब है जो तीनों लोको में जो पराजित ना किया जा सके. Aparajita Stotram Benefits मतलब ऐसा स्तोत्र जो तीनो लोकों में जो विजय प्रदान करे.  

किस दिन करें अपराजिता स्त्रोत का पाठ

अपराजिता स्तोत्र का पाठ करने के लिए शुक्रवार बुधवार या सोमवार के दिन से पाठ आरंभ करना चाहिए इसमें यदि सर्वार्थ सिद्धि योग हो तो यह अनंत गुना फल प्रदान करता है और यदि इसका पाठ नवरात्रि में 9 दिन ब्राह्मणों के द्वारा अनुष्ठान कराया जाए तो यह विशेष लाभ प्रदान करता है.                             

अपराजिता स्तोत्र की विधि

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इसका अनुष्ठान करते समय चौकी पर भगवती  का चित्रपट स्थापित करना चाहिए     तथा रक्त या पीत वस्त्र धारण करके इसका अनुष्ठान आरंभ करना चाहिए पाठ करते समय भोजन ना करके फलाहार ही करना चाहिए अनुष्ठान आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम गणेश जी का स्मरण व पूजन करना चाहिए सर भगवती के पूजन करने के पश्चात लाल चंदन से तिलक करके भगवती के आगे दीपक प्रज्वलित करके इसके पाठ का अनुष्ठान आरंभ करना चाहिए अनुष्ठान करते समय ब्रह्मचर्य का विशेष पालन करते हुए प्रतिदिन भगवती का रक्त पुष्पों से सहस्रनामावली या अष्टोत्तर शतनामावली से अर्चन भी करना चाहिए.         

अपराजिता स्तोत्र का दुष्प्रभाव।

कोई भी पूजा यदि हमें लाभ देती है तो कहीं ना कहीं हमें उसके दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं इसलिए अपराजिता स्तोत्र जितना हमारे लिए लाभकारी है उतना ही हमारे लिए दुष्प्रभाव भी है.

घबराएं नहीं

दुष्प्रभाव का मतलब यह नहीं है कि ये हमारे ऊपर अत्यंत भयानक दुष्प्रभाव डालेगा या बहुत बड़ा अनिष्ट करेगा सर्वप्रथम हमें इसका पाठ करते हुए यह ध्यान रखना चाहिए इसका उच्चारण श्लोकों का शुद्ध ही होना चाहिए और यदि हम लोग का उच्चारण शब्द नहीं करते हैं शब्द को वर्ण को बोलने में कहीं त्रुटि करते हैं तो इसका दुष्प्रभाव भी हमारे ऊपर हमारे शरीर पर दिखाई पड़ सकता है जैसे कि मस्तिक में दर्द होना हमारे शरीर पर अचानक रक्त रक्त जैसे दाने हो जाना इस तरीके के प्रभाव दिखाई देते हैं इसलिए यदि कुछ भी ऐसा अनुभव हो तो क्षमा मांग कर स्तोत्र को रोक दें.

सुन लें शुद्ध उच्चारण

तथा इस अनुष्ठान को करने से पूर्व ध्यान पूर्वक उच्चारण करते हुए इसका पाठ करें।यदि आपको उच्चारण में कोई दिक्कत महसूस हो तो एक बार इस पोस्ट  अंत में दिए हुए विडियो को अवश्य देखें-

Aparajita Stotram Lyrics

।।  अथ  अपराजिता स्त्रोतम्।।

अस्याः वैष्णव्याः परायाः अपराजितायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेयाः ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीछन्दान्सि, लक्ष्मीनरसिंहो देवता, ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम्, हुं शक्तिः, सकलकामनासिद्ध्यर्थम् अपराजिताविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः।

इस पाठ के वामदेव,बृहस्पति,मार्कण्डेय ऋषि है,गायत्री अनुष्टुप बृहति छन्द है,  लक्ष्मी नरसिम्हा ( नृसिंह ) देवता है,क्लीं,श्रीं,ह्रीं,हुं शक्ति है, और सकलकामना सिद्धि अर्थ के लिये इस पाठ का विनियोग करने का विधान है.

ध्यानम्

ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजाङ्गाभरणान्विताम्।

शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम्।।1।।

शङ्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।

बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम्।। 2।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः।।3।।

मार्कण्डेय उवाच

शृणुश्व मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।

असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।3।।

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षाय, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय , अजाय अजिताय, पीतवाससे.

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म वराह, नरसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम राम राम, वरद वरद वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तु ते स्वाहा.

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्डसिद्धयोगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान् नक्षत्रग्रहान् चान्यान् हन हन, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय विध्वंसय, विद्रावय विद्रावय, चूर्णय चूर्णय, शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मूसलेन, हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा.

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा.

विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा।

सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी।।5।।

सर्वैश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा।

नानया सदृशं किङ्चिद् दुष्टानां नाशनं परम्।।6।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता।

पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात् सत्वगुणाश्रया।।7।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।। 8।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम्।

या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता।।9।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात् सर्वमन्त्रमयी च या ।

या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्माणि योजिता।

सर्वकामदुघा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते।।10।।

य इमाम् अपराजितां परमवैष्णवीम् अप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्नि-वायु-वज्र-उपला-शनि-वर्षभयं न समुद्र-भयं न ग्रहभयं न चौर-भयं , न शत्रु-भयं, न शाप-भयं , वा भवेत्. क्वचिद् रात्र्यन्धकार-स्त्रीराजकुल-विद्वेषि-विषगर-गरद-वशीकरण-विद्वेषणो-च्चाटन-वधबन्धन-भयं वा न भवेत्। एतैर्मन्त्रैर् उदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः.

ॐ नमोऽस्तु ते।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति सिद्धे, जपति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे, ध्रुवे, अरुन्धति, गयत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारिणि,  सौदामिनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गि, कृष्णे, यशोदे, सत्वादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतम् अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा।

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि।

म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत्।।11।।

धारयेद् या इमां विद्याम् एतैर्दौषैर् न लिप्यते।

गर्भिणी जीववत्सा स्यात् पुत्रिणी स्यात् न संशयः।।12।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः।

एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत्।।13।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत्।

शस्त्रं वारयते ह्येषा समरे काण्डदारुणे।।14।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम्।

शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम्।।15।।

इत्येषा कथिता विद्या अभयाख्याऽपराजिता।

एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते।।16।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः।

न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः।।17।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः।

अग्नेर्भयं न वाताच्च न समुद्रान् न वै विषात्।।18।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च।

उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा।।19।।

न किञ्चित् प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया।

पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा।।20।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान्।

हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद् देवीं चतुर्भुजाम्।।21।।

रक्तमाल्यम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम्।

पाशाङ्कुशा-भयवरै-रलङ्कृत-सुविग्रहाम्।।22।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं  मन्त्रवर्णामृतान्यपि।

नातः परतरं किञ्चिद् वशीकरणमुत्तमम्।।23।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा।

प्रतः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणै-रपि।

तदिदं वाचनीयं स्यात् तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम्।।24।।

ॐ अथातः सं प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम्।

सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम्।।25।।

दारिद्र् य दुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम्।

भूतप्रेतविशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम्।। 26।।

डाकिनी-शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम्।

महारौद्रीं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम्।।27।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः।

तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु।।28।।

एकाह्निकं द्व् याह्निकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम्।

द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम्।।29।।

पाञ्चमासिकं षाड्मासिकं वातिकं पैत्तिकं ज्वरम्।

श्लैष्मिकं सान्निपातिकं तथैव सततं ज्वरम्।।30।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम्।

द्व् याह्निकं त्र्याह्निकं चैव ज्वरमकाह्निकं तथा।

क्षिप्रं नाशयते नित्यं स्मरणादपराजिता।।31।।

ॐ ह्रीं हन हन , कालि शर शर, गौरि धम धम, विद्ये आले माले ताले गन्धे बन्धे पच पच, विद्ये नाशय नाशय, पापं हर हर संहारय वा दुःस्वप्नविनाशिनि कमलस्थिते, विनायकमातः, रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चक्रिणि गदिनि, वज्रिणि, शूलिनि, अपमृत्युविनाशिनि, विश्वेश्वरी, द्रविडि, द्राविडि, द्रविणि, द्राविणि, केशवदयिते, पशुपतिसहिते, दुन्दुभिदमनि, दुर्म्मददमनि, शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु, ॐ द्रं कुरु कुरु। ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं वा परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय , तापय तापय, गोपय गोपय, पातय पातय, शोषय शोषय, उत्सादय उत्सादय, ब्रह्माणि वैष्णवि, माहेश्वरि कौमारि, वाराहि नारसिंहि, ऐन्द्रि चामुण्डे, महालक्ष्मि वैनायकि, औपेन्द्रि आग्नेयि, चण्डि नैऋति, वायव्ये सौम्ये, ऐशानि , ऊर्ध्वमधो रक्ष, प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि.

ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति-स्वस्ति-तुष्टि-पुष्टि-विवर्धिनि, कामाङ्कुशे, कामदुघे, सर्वकावरप्रदे, सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा. आकर्षणि, आवेशनि, ज्वालामालामालिनि, रमणि, रामणि, धरणि, धारिणि, तपनि, तापिनि, मदनि, मादिनि, शोषिणि, सम्मोहिनि, नीलपताके, महानीले, महागौरि, महाश्रिये, महाचान्द्रि, महासौरि, महामयूरि, आदित्यरश्मि, जाह्नवि, यमघण्टे, किणि किणि चिन्तामणि, सुगन्धे, सुरभे, सुरासुरोत्पन्ने, सर्वकामदुघे, यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा.

ॐ स्वाहा, ॐ भूः स्वाहा, ॐ भुवः स्वाहा, ॐ स्वः स्वाहा, ॐ महः स्वाहा, ॐ जनः स्वाहा, ॐ तपः स्वाहा, ॐ सत्यं स्वाहा, ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा.

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रति गच्छतु स्वाहेत्योम्।

अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता।।32।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा।

एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता।।33।।

नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्यते।

तमोगुणमयी साक्षाद्रौद्री शक्तिरियं मता।।34।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः।

मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत्।।35।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम्।

उद्यदादित्यसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम्।

उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम्।।36।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम्।

व्याघ्रचर्मपरिधानां किङ्किणीजालमण्डिताम्।।37।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम्।

दंष्ट्रकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम्।।38।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटिकुटिलालकाम्।

स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः।।39।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रूरदृष्ट्या विलोकनात्।

त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयन्तीं मुहुर्मुहुः।।40।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके।

अर्धरात्रस्य समये देवीं ध्यायेन्महाबलाम्।।41।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके।

तस्य तस्य तथाऽवस्थां कुरुते साऽपि योगिनी।।42।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति, अमोघां पठति सिद्धां

श्रीवैष्णवीम्, श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत्।।43।।

दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च।

व्यवहारे भवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये।।44।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया विसर्गबिन्द्वक्षरहीनमिडितम्।

तदत्र संपूर्णतमं प्रयान्तु मे सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम्।।45।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि।

यादृशासि महादेवि तादृशायै नमो नमः।।46।।

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