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Bhagwati Stotra | महर्षि वेद व्यास रचित | Lyrics | Benefits

STOTRA

Bhagwati Stotra जय भगवति देवी नमो वरदे। धन प्राप्ति के नए रास्ते खुलते हैं। धन संचय बढ़ता है। महर्षि वेद व्यास रचित Bhagwati Stotram pdf डाउनलोड करें।

Devi Bhagwati ke Bare Mein –

Bhagwati Stotra देवी भगवती स्तोत्रमहर्षि वेद व्यास जी के द्वारा रचित है। यह एक सार्वभौमिक सत्य है की जब जब आसुरी शक्तयों का कहर पृथ्वी पर हुआ है, किसी न किसी दैवीय शक्ति ने उनका संहार करने के उद्देश्य से इस पृथ्वी पर आगमन हुआ है जिसके गवाह धार्मिक शास्त्र हैं।

ऐसा ही एक ज़िक्र देखने को मिलता है कि जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू एवं  देव लोक व्याकुल हो उठे थे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं।भगवती माँ करुणामयी है | वह सभी को आशीर्वाद से सदैव प्राणयुक्त एवं जीवंत रखती हैं। जिस प्रकार से कोई माँ अपने बच्चों के प्रति स्नेह और करुणा रखती हैं वैसे ही माँ भगवती अपने शरण में आये हुए व्यक्ति को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू तथा देव लोक में पुनःप्राण शक्ति का संचार किया। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

आइये अब बात करते हैं  देवी भगवती स्तोत्र की  कुछ विशेषता के वारे में वैसे तो भगवती की बहुत-सारी स्तुतियां प्रचलित हैं, पर यह एक ऐसी स्तुति, जिसमें अत्यधिक कम शब्दों में देवी की महिमा का गुणगान काफी प्रभावशाली ढंग से किया गया है|

2 INDIAN MONEY GOLD COIN HELLOZINDGI 1 Bhagwati Stotra | महर्षि वेद व्यास रचित | Lyrics | Benefits

Bhagwati Stotram Benefits

  • धन प्राप्ति के नए रास्ते खुलते हैं और धन संचय बढ़ता है।
  • शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में विजय पाने के लिए श्री भगवती स्तोत्र एक चमत्कार के रूप में काम करता है।
  • जैसा हमने पहले भी बताया की इस स्तोत्र के नियमित जाप से सारे संकट पल में दूर हो जाते हैं एवं करुणामयी माँ की असीम भक्ति प्राप्त होती है

देवी भगवती स्तोत्र लिरिक्स हिंदी व संस्कृत

जय भगवति देवी नमो वरदे जय पाप विनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1

हे वर देने वाली देवि! हे माँ भगवति! तुम्हारी जय जैकार हो । हे पापों को नष्ट करने वाली और अनन्त फल देने वाली देवि। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे मुष्यों की पीडा हरने वाली देवि! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे। 

जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3

हे महिषसुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते। 

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवि! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे। 

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

हे देवि! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन करानेवाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवि! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि! तुम्हारी जय हो॥5॥

एतदव्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:। 

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

माता के कोई भी भक्त, जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।

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