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Purusha Suktam Lyrics | पाठ लाभ | Meaning | Download pdf

STOTRA

Purusha Suktam ke Bare Mein- पुरुष सूक्त (purusha suktam) श्री भगवान विष्णु को समर्पित एक मंत्र संग्रह है। इसकी उत्पत्ति ऋगवेद से हुई है। पुरुष सूक्त में 16 श्लोक हैं | कुछ जगह आप को 18 कहीं 22 कहीं 24 श्लोक मिलेंगे लेकिन विश्वास करें की सिर्फ 16 ही प्रमाणिक हैं | आप इस पर विश्वास करने के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित नित्य कर्म पूजा प्रकाश खरीद कर सकते हैं| गीता प्रेस की सभी पुस्तकें प्रकांड विद्वानों द्वारा देख भाल कर प्रकाशित कराइ जाती हैं | आइये अब हम पुरुष सूक्त के विषय में कुछ और बात करते हैं | इस मंत्र संग्रह में भगवान श्री हरी विष्णु के विराट रूप की चर्चा की गई है। इस वैदिक श्लोक में श्री विष्णु के अंगों का विस्तार में वर्णन है| इसमें विशेषकर उनके नेत्र, प्राण, मन इत्यादि का विश्लेषण है। 

Sukta meaning  सूक्त काअर्थ क्या होता है

सूक्त शब्द का अर्थ वेदों के मंत्रों का कोई संग्रह होता है। वैदिक मंत्रों का समूह जिसमें एक या एक से ज़ादा देवताओं का नाम आये और जिनका प्रयोग यज्ञ में अपनी अभिलाषा प्रकट करने के लिये हो उसे सूक्त कहते हैं।

सूक्त के चार भेद होते हैं देवता, ऋषि, छंद एवं अर्थ।

श्री पुरुष सूक्त क्या है-  

श्री पुरुष सूक्त भगवान श्री हरी विष्णु को समर्पित एक बहुत शक्तिशाली मंत्र संग्रह है । साधक अध्यात्मिक उन्नति तथा मानसिक शांति के लिये इसका नियमित रूप से पाठ करते हैं। इसके नियमित रूप से पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है| जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसका प्रयोग या जाप से भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा भी होती है

LORD VISHNU

Purusha Suktam Benefits

  • जिन पाठकों को संतान प्राप्ति नहीं हो पा रही उनके लिए भी ये सूक्त अत्यंत लाभकारी है। यदि पुरुष सूक्त का पूरे विधि विधान से जाप किया जाये तो संतान प्राप्ति अवश्य होती है|
  • श्री पुरुष सूक्त मंत्र के नियमित जाप से अध्यात्मिक उन्नति एवं मानसिक शांति  की प्राप्ति होती है।
  • इस मंत्र के नियमित जाप से श्री हरी विष्णु भगवान की कृपा और भक्ति की प्राप्ति होती | इससे मन चाहे फल भी साधक को आसानी से प्राप्त होते हैं ।
  • इस सूक्त के जाप से एक नहीं अनको देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस मंत्र का जाप और ध्यान से मनुष्य परम तत्व के ज्ञान की भी प्राप्ति कर सकता है।

Purusha Suktam Lyrics in Sanskrit

पुरुष सूक्त मंत्र (संस्कृत)
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङुलम् ॥१॥

उस विराट् पुरुष के सहस्र षिर, नेत्र और हाथ-पैर हैं। वह समस्त भूमि को सब ओर से व्याप्त करके इस ब्रह्माण्ड से दष अंगुल ऊपर उससे परे भी विद्यमान है।

पुरुष एवेद सँर्व यसद्भूतं यच्च भाव्यम ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिंरोहति ।।2।।

यह सब जगत् पुरुष ही है। भूत, भविष्य और वर्तमान में वही है। वह अमष्तत्व का और अन्न से जीवित रहने वाले समस्त जीवों का ईष-शासक है।

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥

इतना भारी विराट् ब्रह्माण्ड उस परम पुरुष की महिमा है। वह अपने विभूति विस्तार से भी महान् हैं। उसकी एक पाद विभूति में ही पंचभूतात्मक विष्व ब्रह्माण्ड है। षेष जो त्रिपाद विभूति हैं उनमें अमष्त दिव्यलोक है।

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पूरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥

वह प्रभु इस जगत से परे त्रिपाद विभूति में प्रकाशमान  हैं । एक पग  में ही यह सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड प्रकट हो जाता है। वह सम्पूर्ण विश्व को परिव्याप्त किये हुए है। प्राणवान अप्राणवान जड़-चैतन्य-जगत उसी से है।

ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।।5।।

उसी आदि पुरुष महाविष्णु से विराट् हुआ। उस विराट् का अधिपुरुष वही है। वह अधिपुरुष उत्पन्न होकर अत्यन्त दीप्त प्रकाश  वाला हुआ। उसने उत्पन्न होने के पश्चात भूमि तथा शरीरादि उत्पन्न किये।

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्।
पशँूस्ताँश्चक्र वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये।।6।।

उस सर्वहुत यज्ञ से प्रषस्त पोषक पदार्थ घष्त आदि उत्पन्न हुआ। उस प्रजापति पुरुष ने वायु में उड़ने वाले (पक्षी) ग्राम में रहने वाले, वन में रहने वाले आदि पशुओं  को उत्पन्न किया।

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्य यजुस्तस्मादजायत ॥७ ॥

उस सर्वहुत यज्ञ पुरुष से ऋग्वेद तथा सामवेद उत्पन्न हुए। उसी से छन्द उत्पन्न हुई, उसी से यजुर्वेद प्रकट हुआ।

तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावोः ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजावयः ॥८ ॥

उसी यज्ञ पुरुष द्वारा घोड़े उत्पन्न हुए। जिनके ऊपर-नीचे दोनों ओर दांत हैं, ऐसे (गर्दभ आदि) पषु भी उत्पन्न हुए। उसी से गौएं तथा भेड़-बकरियाँ भी उत्पन्न हुईं।

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥९ ॥

सृष्टि के पूर्व प्रकट हुए उस यज्ञ साधनभूत पुरुष को कुषाओं द्वारा प्रोक्षण करके उसी पुरुष के द्वारा देवता, साध्यगण तथा ऋषिगण आदि ने उस मानस यज्ञ का यजन किया।

यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते ॥१० ॥

उस प्रजापति विराट् पुरुष को नाना रूप से प्रकट करने पर उनकी कितने प्रकार से कल्पना की। इस पुरुष का मुख क्या है ? इसकी दोनों बाहुएँ क्या हैं ? इसकी जंघाएं क्या हैं ? इसके पैर कौन कहे जाते हैं ?

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥११ ॥

इस पुरुष के मुख से ब्राह्मण हुए, बाहुओं से क्षत्रिय हुए। इस पुरुष के जो दोनों उरु हैं उनसे वैष्य और पैरों से शूद्र प्रकट हुए।

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥१२ ॥

उनके मन से चन्द्रमा हुए, चक्षु से सूर्य हुए, कानों से वायु तथा प्राण हुए और मुख से अग्निदेव हुए।

नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ॥१३ ॥

उस यज्ञ पुरुष की नाभि से अन्तरिक्ष लोक उत्पन्न हुआ, षिर से स्वर्ग प्रकट हुआ, पैरों से प्रथ्वी  और कानों से दिशायें उत्पन्न हुईं। इसी प्रकार उस पुरुष में ही ये सब लोक कल्पित हुए।

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः।।14।।

उस पुरुष के षरीर में ही देवताओं ने हविष्य की भावना करके यज्ञ का विस्तार किया। उस यज्ञ में बसंत ऋतु घष्त, ग्रीष्म ऋतु ईंधन और षरद ऋतु हवि हुई।

सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद् यज्ञ तन्वानाऽवघ्न् पुरुषम्पशुम् ।। १५ ।।

जिस पुरुष पशु का यज्ञ में बंधन करके देवताओं ने यज्ञ किया, उस यज्ञ में सात (छंद) इसकी परिधियां मान लीं और इक्कीस (12 महीने, पाँच ऋतुएं, एक आदित्य तथा तीन लोक या तीन अग्नि) समिधाएं बनीं।

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।16।।

देवगण यज्ञ के द्वारा उस यज्ञ पुरुष का यजन करते हैं। इन धर्मों का अस्तित्व प्रथम कल्पों में भी था। जिस स्वर्ग में पूर्व के साध्यगण देवगण रहते थे, उसी में उनके उपासक भी पहुंचते हैं।

॥ ॐ नमो नारा॑यणाय ॥

4. Purusha Sukta  lyrics in English-

Om sahsra seerhaa purusha; Sahasraksha saharpath.
sa bhūmiṃ’ sarvat spratva tiṣṭhaddaśāṅgulam ‖ (1)

Purusha eeveda sarvam.Yad bhootam yachh bhavyam.
Utha amruthathwasya eesano. Yad annena adhirohathi. (2)

Ethaa vaanasya mahimaa.Atho jyaaya scha purusha.
Padhosya viswa bhoothanee.Tripaadasyamrutham divi. (3)

Tri paddurdhwa udaith prurusha. Padhosye habha vaath puna.
Thatho vishvangvyakramath.Sasanana sane abhi. (4)

Tato virad jayatha. Virajo agni purushah.
Sa jatho athya richyatha. Paschad bhoomi madho pura. (5)

Tasmad yagnath sarva hutha. Sam brutham prushad ajyam.
Pasus tha aschakre vayavyaan. Aaranyaan graamyascha ye. (6)

Tasmad yagnath sarva hutha.Rucha saamanee jagyare.
Chanadaa si jagnire tasmath.Yajus tasmad jaayatha. (7)

Tasmad aswaa ajaayantha. Ye ke chobhaya tha tha.
Gavooha janjire tasmath. Tasmad gnatha ajavaya. (8)

Tham yagnam barhisi prokshan. Purusham Jaatham agradha.
Thena deva ayajantha. Saadhya rushayasch ye. (9)

Yad purusha vyadhadhu.Kathidhaa vyakalpayan.
Mukham kimsya koo bahu. Kaavuruu pada a uchyathe. (10)

Brahmanasya Mukham aseed.Bahu rajanya krataah.
Ooru tadasys yad vaisya.Padbhyo sudro aajayatha. (11)

Chandrama manaso Jatha.Chaksho surya Ajayatha.
Shrotadwayusch pranasch mukhadgni rajayat (12)

Nabhya aseed anthareeksham.seershno dhou samavarthatha.
Padbyam Bhoomi disaa srothrath.Tadha lokaa akampayan. (13)

Yat purushena havishaa. Devaa yagna mathanvath.
Vasantho asyaasee dhajyam. Greeshma idhma saraddhavi. (14)

Sapthaasyasan paridhaya. Thri saptha samidha krataah.
Devaa yad yagnam thanvaana. Abhadhnan purusham pasum. (15)

Yagnena yagnam aya jantha devaa. Thaani dharmani pradhamanyasan.
Theha naakam mahimaana sachanthe.yatra poorvo saadhyaa santhi devaa.

ōṃ namo Narayana‖

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