महाराणा प्रताप इन हिन्दी|महाराणा प्रताप का जीवन|पूरी जानकारी

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आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में महाराणा प्रताप इन हिन्दी के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं महाराणा प्रताप का पहली बार राज्याभिषेक गोगुंदा की पहाड़ियों में 28 फरवरी सन 1572 ईसवी में हुआ।

जीवन परिचय – 

पूरा नाम –               महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया

जन्म –                    9 मई 1540, कुंभलगढ़ दुर्ग

पिता का नाम –           राणा उदयसिंह

माता का नाम –              जयवंता बाई

रियासत –                मेवाड़ रियासत

राज्याभिषेक –               28 फरवरी, 1572 गोगुंदा मे

शिक्षक –                राघवेंद्र

विवाह –                     सन 1557

जीवनसंगी –                अजबदे पँवार

संतान –                     16 पुत्र

धर्म –                     सनातन हिन्दू

राजघराना –                सिसोदिया

हल्दीघाटी युद्ध –           18 जून 1576

भाई –                     4 भाई

निधन –                     19 जनवरी 1597, चवाड़

पुत्र –                     16 बच्चे

बड़े पुत्र –                 अमर सिंह

लंबाई –                      7.4 फीट

घोड़े का नाम –            चेतक

प्रिये हाथी का नाम –            रामप्रसाद

भाला-कवच 2 तलवारों का वजन –  208 kg

सबसे बड़ा शत्रु –              मुगल अकबर

राज्याभिषेक – 

दरअसल जब राणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई तो उसके पश्चात् वहां का सिहांसन खाली हो गया, तब उदयसिंह की सबसे छोटी रानी ने शड्यंत्र कर अपने पुत्र जगमाल को राजा घोषित करवा दिया, लेकिन इस पर सारे सामंत और जनता ने विरोध किया, परन्तु महाराणा प्रताप ने अपने पिता के अंतिम शब्दों को याद रखते हुए राज्य शासन को त्याग कर जंगलों में चले गए. 

उसके पश्चात् जगमाल ने अकबर के साथ संधि कर ली और मेवाड़ को अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तब उन्होंने अपने प्रमुख सामंतों और जनता की बात सुनकर पुनः राज्य संभाल लेने का फैसला ले लिया।

बता दें कि महाराणा प्रताप का पहली बार राज्याभिषेक गोगुंदा की पहाड़ियों में 28 फरवरी सन 1572 ईसवी में हुआ । महाराणा प्रताप का दूसरी बार राजतिलक कुंभलगढ़ दुर्ग में 1 मार्च सन 1573 को हुआ इस समय मारवाड़ का राव चंद्रसेन भी वहीं मौजूद थे।

महाराणा प्रताप की कुछ विशेषताएं – 

ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप निस्संदेह, अपने समय के सबसे बहादुर सैनिक माने जाते थे। उन्हे कभी मौत का भय बिल्कुल भी नहीं था। उन्होंने मुगलों की शक्तिशाली सेना के खिलाफ बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी।

वह सभी खतरों के मध्य जीवन को एक चट्टान के रूप में खड़ा करते थे। उनमें आत्म-सम्मान की भावना बहुत अधिक कूट-कूटकर भरी थी। यह देश के लिए उनका प्यार था कि उन्होंने शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के खिलाफ भयानक जंग लड़ी।

उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। उन्होंने कभी भी अपनी स्वतंत्रता अकबर के हाथों में बिल्कुल भी नही आने दी।

कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य – 

1. बता दें कि महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ वंश के 12वें शासक एवं उदयपुर के संस्थापक थे। राजा प्रताप परिवार में सबसे बड़े थे, उनके तीन भाई एवं दो सौतेली बहनें भी थीं।

2. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के अलावा, देवर की लड़ाई के लिए भी प्रसिद्ध माने गये हैं। उन्होंने सन 1577, 1578 और 1579 में मुगल बादशाह अकबर को तीन बार पूरी तरह से हराया था।

3. महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां एवं उनके 17 बच्चे थे। उनके सबसे बड़े पुत्र महाराणा अमर सिंह थे जो उनके उत्तराधिकारी बने एवं मेवाड़ वंश के 14वें राजा भी बने थे।

4. हल्दीघाटी युद्ध के दो साल पश्चात् जब महाराणा प्रताप जंगल में शिकार कर रहे थे, वह उस समय घायल भी हो गए एवं 19 जनवरी सन 1597 को 56 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

5. इतिहासकारों के अनुसार हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा के पास कम से कम 81 किलो वजन का भाला एवं 72 किलो का कवच था। उनके भाले, कवच, ढाल एवं दो तलवारों का वजन भी लगभग 208 किलो था।

महाराणा प्रताप का जीवन – 

राणा प्रताप का जीवन कष्टों एवं संकटों की एक लंबी कहानी मानी जाती थी। हल्दीघाटी के युद्ध में वह पूर्ण रूप से हार गए थे। उन्हें अपने परिवार एवं अपने कुछ अनुयायियों के साथ अरावली पहाड़ियों में शरण लेनी पड़ी थी। उन्होंने वहां बहुत कठिन व कष्टदायक जीवन गुजारना पड़ा था।

वह पहाड़ियों में अपनी जगह से भटक गया। उन्हें जमीन पर सोना पड़ा था एवं जंगली फल, पत्ते तथा पेड़ों की जड़ें खानी पड़ीं। कभी-कभी उन्हें एवं उनके परिवार के सदस्यों को बिना भोजन के जाना पड़ता था। परन्तु राणा इन सभी कठिनाइयों के मध्य एकदम से अडिग बने रहे।

हल्दीघाटी का युद्ध – 

महाराणा प्रताप की वीरता के लिए यूं तो बहुत सारे युद्ध बताये गये हैं, किन्तु हल्दीघाटी का युद्ध उनकी वीरता में चार चांद लगाती है। जी हां, जब भी महाराणा का जिक्र किया जाता है, तब सबसे पहले हल्दी घाटी का नाम याद आता है। यह बता दें कि हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, सन 1576 को हुआ था, जो इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है। इस युद्ध में सिर्फ 20000 सैनिको को लेकर प्रताप ने मुगलों के 80000 सैनिको का मुकाबला किया था। कम सैनिकों के बावजूद महाराणा ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिये थे। महाराणा प्रताप के डर से और अपनी जान बचाते हुए मुगल सेना मैदान छोड़कर भागने भी लगते थे। भले ही इस युद्ध का कोई नतीजा नहीं निकला हो, परन्तु इसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि दोनों सेनाओं के मध्य आमने-सामने की लड़ाई हुई, जिसमें प्रत्यक्ष रूप से प्रताप की विजय अवश्य मानी जाती है।

उपहास – 

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप जी ने अपने जीवन का बलिदान देश के लिए दिया था , यह बात हर एक मनुष्य जानता है कि उन्होंने कभी भी मुगलों के आगे सर कभी भी नहीं झुकाया और न ही उन्होंने कभी किसी युद्ध में मैदान नहीं छोड़ा उनके इस साहस की गाथा हर कोई जानता है. वह एक बढ़िया देशभक्त एवं योद्धा माने जाते हैं, उन्होंने भले युद्ध में विजय ने प्राप्त नहीं की अपितु वह कभी अपने कर्म से नहीं हारे और न ही उन्होंने किसी का अहित किया वह एक सच्चे वीर थे और उनकी इस वीरता की कहानी सबकी जुबान पर भी गाई जाती है , महाराणा प्रताप जी की सच्ची निष्ठा लगन एवं उनकी देश के प्रति अच्छी भक्ति के कारण से उनका नाम इतिहास के पन्नों में सदैव के लिए दर्ज ही चुका है।

घोड़ा चेतक –

महाराणा प्रताप की वीरता के साथ – साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी पूरे विश्व में विख्यात है| चेतक बहुत ही समझदार एवं वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर कम से कम 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी| हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर वहाँ पर बना हुआ है|

कहा जाता है कि राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, परन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे एवं अकबर के सामने आत्मसर्मपण नही किये।जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल एवं घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी तथा बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य बिल्कुल भी नहीं खोया था। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना संपूर्ण खजाना उसे समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य ज़रूरतों के अलावा मुझे आपके इस खजाने की एक पाई भी बिल्कुल भी नही चाहिए। अकबर के अनुसार महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित बहुत ही थे, परन्तु फिर भी वो कभी भी झुका नही, और न ही कभी डरा।

निष्कर्ष – 

आशा करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी आपको अवश्य पसंद आई होगी अतः आपसे निवेदन है कि अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारी इस वेबसाइट से जुड़े रहें. धन्यवाद.