रिट क्या है | रिट जारी कौन करता है |पूरी जानकारी 

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आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में रिट क्या है के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं संविधान ने न्यायालय को कुछ विशेष शक्तियां प्रदान अवश्य की है, जिसके आधार पर वह किसी को भी कार्य करने पर पूरी तरह से रोक लगा सकती है या कार्य करने का आदेश दे सकती है |

रिट क्या है –

दरअसल कॉमन विधि के सन्दर्भ में रिट (writ) या प्रादेश या समादेश का अर्थ प्रशासनिक या न्यायिक अधिकार से युक्त किसी संस्था के द्वारा दिया गया औपचारिक आदेश माना जाता है। आधुनिक इस्तेमाल में, प्रायः ऐसी संस्था न्यायालय ही होती है।

किसी भी देश के नागरिकों के लिए स्वतंत्रता मुख्य आधार बताया गया है, यह स्वतंत्रता नागरिकों को कई अधिकार प्रदान किया करती है, इन्हीं अधिकारों में मौलिक अधिकार एक प्रमुख माना जाता है, मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का सरंक्षण सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ही किया जाता है | संविधान ने न्यायालय को कुछ विशेष शक्तियां प्रदान अवश्य की है, जिसके आधार पर वह किसी को भी कार्य करने पर पूरी तरह से रोक लगा सकती है या कार्य करने का आदेश दे सकती है |

बता दें कि रिट (Writ) को कार्यकारी या न्यायिक निकाय द्वारा जारी औपचारिक लिखित आदेश के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो मनुष्य या प्राधिकरण को किसी विशेष कार्य को करने या करने से रोकने का निर्देश देता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में रिट के प्रकार (Types of Writs in India in Hindi) पांच होते हैं – बियस कॉर्पस, मैंडमस, सर्टिओरीरी, प्रोहिबिशन एवं क्वो-वारंटो। भारत में रिट के प्रकार (Types of Writs) पर आधारित प्रश्न यूपीएससी के पॉलिटी सेक्शन में अवश्य पूछे जाते हैं।

  • जब भी किसी मनुष्य के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, मनुष्य को मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिए उपयुक्त कार्यवाही के द्वारा सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में जाने का संपूर्ण अधिकार प्राप्त होता है।

रिट जारी कौन करता है – 

बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 (Article 32 & 226) के तहत, भारत में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट्स को क्रमशः मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए रिट जारी करने का अधिकार सबको दिया गया है।

रिट संबंधी कार्य क्षेत्र में भिन्नता – 

जैसे कि हमने ऊपर भी चर्चा की है कि उच्चतम न्यायालय की तरह उच्च न्यायालय को भी रिट जारी करने का पूरा अधिकार प्राप्त है परन्तु दोनों के रिट जारी करने के कार्यक्षेत्र में कुछ अंतर अवश्य है, जो कि इस प्रकार से है –

1. बता दें कि उच्चतम न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार अनुच्छेद 32 के तहत मिला है (जो कि स्वयं एक मौलिक अधिकार है) एवं उच्चतम न्यायालय सिर्फ मूल अधिकारों के लिए ही रिट जारी कर सकता है। जबकि उच्च न्यायालय की चर्चा करें जिसे कि रिट जारी करने का अधिकार अनुच्छेद 226 के तहत मिलता है, वो मूल अधिकारों के अलावे किसी अन्य सामान्य कानूनी अधिकारों के लिए भी रिट जारी अवश्य कर सकता है।

2. दरअसल उच्चतम न्यायालय किसी मनुष्य या फिर सरकार के विरुद्ध रिट जारी ज़रूर कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय अपने राज्य के मनुष्य या सरकारों के अलावे दूसरे राज्य के विरुद्ध भी जारी बिल्कुल कर सकता है।

3. चूंकि अनुच्छेद 32 स्वयं में एक मूल अधिकार है इसलिए उच्चतम न्यायालय इसे नकार बिल्कुल भी नहीं सकता है। अर्थात ये कि कोई भी यदि मूल अधिकारों के हनन से संबन्धित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर करता है तो उच्चतम न्यायालय सुनवाई से इंकार बिल्कुल भी नहीं कर सकता है।

वहीं यदि उच्च न्यायालय की चर्चा करें तो वे अपने रिट संबंधी न्याय क्षेत्र के क्रियान्वयन को नकार भी सकता है क्योंकि उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत मूल अधिकारों के हनन के मामले में सुनवाई अवश्य करता है जो कि एक मूल अधिकार बिल्कुल भी नहीं है।

निष्कर्ष – 

आशा करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी आपको अवश्य पसंद आई होगी अतः आप से निवेदन है कि अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारी इस वेबसाइट से अवश्य जुड़े रहें. धन्यवाद.