अगर आप जानना चाहते हैं कि Algae In Hindi क्या होती है तो बने रहें हमारी वेबसाइट पर और इस पोस्ट को लास्ट तक पढ़ें।
शैवाल (Algae):
बता दें कि शैवाल या एल्गी (Algae) पादप जगत का सबसे सरल जलीय जीव होता है, जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा ही भोजन का निर्माण करता है। शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) भी कहते हैं।
शैवाल प्रायः ध्यान रहे कि हरितलवक युक्त (Cholorophyllous), संवहन ऊतक रहित (Non Vascular) स्वपोषी (Autotrophic) होते हैं। इनका शरीर शूकाय सदृश (Thalloid) होता है। ये ताजे जल, समुद्री जल, गर्म जल के झरनों, कीचड़ तथा नदी, तालाबों में ही पाए जाते हैं। कुछ शैवालों में गति करने के लिए फ्लेजिला (Flagella) पाये जाते हैं एवं बर्फ पर पाये जाने वाले शैवाल को क्रिप्टोफाइट्स (Cryptophytes) और चट्टानों पर पाये जाने वाले शैवाल को लिथोफाइट्स (Lithophytes) कहते हैं।
शैवालों में प्रजनन (Reproduction in Algae) –
बता दें कि शैवालों में निम्नलिखित तीन प्रकार की प्रजनन क्रिया होती है–
- कायिक प्रजनन (Vegetative Reproduction) – शैवालों में कायिक प्रजनन की क्रिया खंडन के द्वारा, हार्मोगोन के द्वारा, प्रोटोनीमा के द्वारा एवं एकाइनेट के द्वारा ही होता है।
- अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction) – शैवालों में अलैंगिक प्रजनन की क्रिया चलबीजाणु के द्वारा, अचलबीजाणु के द्वारा, हिप्नोस्पोर के द्वारा, आटोस्पोर के द्वारा और इंडोस्पोर के द्वारा ही होता है।
- लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction) – शैवालों में लैंगिक प्रजनन की क्रिया समयुग्मक विषमयुग्मक एवं अण्डयुग्मक के द्वारा ही होता है।
प्रमुख लक्षण (Characteristics of Algae) :-
बता दें कि शैवाल में पाये जाने वाले कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार से हैं–
1. शैवाल की कोशिकाओं में सैल्यूलोज (Cellulose) की बनी कोशिका-भित्ति (Cell wall) अवश्य पायी जाती है।
2. ध्यान रहे कि शैवाल में भोज्य पदार्थों का संचय मण्ड (Starch) के रूप में ही रहता है।
3. इनका जननांग प्रायः एककोशिकीय (Unicellular) ही होता है एवं निषेचन के पश्चात कोई भी भ्रूण नहीं बनाते।
4. ये ज्यादातर जलीय (समुद्री तथा अलवण जलीय दोनों ही) होते हैं।
5. कुछ शैवाल नमीयुक्त स्थानों पर भी अवश्य पाए जाते हैं।
6. कहा जाता है कि इनमें प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रायः हरा वर्णक उपस्थित ज़रूर रहता है।
7. शैवालों में तीन प्रकार के वर्णक (Pigment) अवश्य पाये जाते हैं—हरा(Green); लाल (Red) एवं भूरा (Brown) | इन्हीं तीन वर्णकों के आधार पर शैवालों को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित भी अवश्य किया गया है
(i) क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae) – हरा वर्णक
(ii) रोडोफाइसी (Rhodophyceae) — लाल वर्णक
(iii) फीयोफाइसी (Pheophyceae) – भूरा वर्णक
8. दरअसल इनमें प्रजनन अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों ही विधियों के द्वारा होता है।
कृषि के क्षेत्र में महत्त्व –
बता दें कि नॉस्टोक एनाबीना आदि शैवाल नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता अधिक रखते हैं। ये वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भी करते हैं।
नील हरित शैवालों का इस्तेमाल ऊसर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिणत करने में ही होता है। नॉस्टोक इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है। कुछ शैवालों का इस्तेमाल खाद के निर्माण में ही किया जाता है।
औषधि के रूप में महत्त्व –
- बता दें कि कारा नामक शैवाल मलेरिया उन्मूलन में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं।
- क्लोरेला नामक शैवाल से क्लोरेलीन नामक एक प्रतिजैविक पदार्थ अवश्य प्राप्त किया जाता है ।
हानिकारक शैवाल (Harmful Algae) –
बता दें कि शैवालों से होनेवाली प्रमुख हानियाँ इस प्रकार से हैं
- कुछ शैवाल जलाशयों में प्रदूषण को बहुत अधिक बढ़ाते रहते हैं, जिससे जलाशयों का जल पीने योग्य बिल्कुल भी नहीं रहता है। ये शैवाल एक प्रकार का विष का परित्याग करते हैं, जिस कारण जलाशयों की मछलियाँ एकदम से मर जाती हैं ।
- सिफेल्यूरॉस नामक शैवाल चाय के पौधों पर लाल किट्ट रोग नामक पादप रोग उत्पन्न किया करती है, जिससे चाय उद्योग को बहुत ही अधिक हानि होती है।
- वर्षा ऋतु के दौरान शैवालों के कारण भूमि हरे रंग की दिखने लगती है एवं यहाँ फिसलाव बहुत ही अधिक हो जाता है।