आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में Aurat shamshan ghat kyu nahi jati के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं हिंदू पुराणों में महिलाओं को श्मशान घाट जाना वर्जित बताया गया है
Aurat shamshan ghat kyu nahi jati hai
मित्रों हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़ी कई मान्यताएं हैं जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते और उन्हें मान्यताओं में से एक है कि जब भी किसी की मृत्यु हो जाए तो परिवार की महिलाओं को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट नहीं जाना चाहिए हिंदू पुराणों में महिलाओं को श्मशान घाट जाना वर्जित बताया गया है और साथ ही यह भी बताया गया है कि महिलाओं को श्मशान घाट क्यों नहीं जाना चाहिए आज के इस पोस्ट में हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि आखिर महिलाओं का श्मशान घाट जाना वर्जित क्यों है.
जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है हालांकि आज के समय में कई जगह महिलाएं अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान घाट जाने लगी है ऐसे में हर हिंदू के लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि आखिर पुराणों में इसे वर्जित क्यों माना गया है और इसके पीछे का कारण क्या है तो चलिए अब बिना किसी देरी के आइए जानते हैं इन कारणों के बारे में आज के इस ख़ास पोस्ट में.
गरुण पुराण में वर्णित कथा के अनुसार महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कमजोर दिल का माना जाता है और ऐसी मान्यता है यदि मृत शरीर को अग्निदान देते समय कोई रोता है तब उस व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती है और महिलाओं का शव जलते समय देखना और रोय बिना रुक जाना असंभव सा लगता है इसीलिए महिलाओं को श्मशान घाट ले जाना वर्णित है. श्मशान घाट में ऐसी और भी चीजें हैं जिनका देखना महिलाओं और बच्चों के लिए उचित नहीं है जैसे शव को जलाने से पूर्व उसके कपाल पर डंडे से मारा जाता है जोकि एक परंपरा है लेकिन महिलाओं और बच्चों के लिए यह द्रश्य देखना उनको मानसिक स्तर पर भी प्रभावित कर सकता है और बहुत बार शव जलते समय अकड़ते हुए आवाज करता है जो कि महिलाओं और बच्चों को डरा भी सकता है इसीलिये उन्हें इस प्रक्रिया से दूर रखा जाना उचित समझा गया है
प्रत्येक धर्म की अपनी अलग – अलग संस्कृति और मान्यताएं होती हैं इसी तरह हमारे हिंदू धर्म में भी कुछ और ऐसी मान्यताएं महिलाओं के शमशान न जाने को लेकर प्रचलित है जिसके बारे में जानने के लिए बने रहिए इस पोस्ट के अंत तक.
गरुण पुराण में वर्णित मान्यताओं में से एक मान्यता यह भी है कि शव को ले जाने के बाद घर को धार्मिक रूप से पवित्र और शुद्ध बनाया जाना बहुत आवश्यक है इसके लिए किसी का घर पर रहकर इस कार्य को पूर्ण विधि-विधान से करना अनिवार्य है यह जिम्मेदारी महिलायें अच्छे से निभा सकती है यही सोचकर पुरुषों को श्मशान घाट जाकर शव की अग्निदाह की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
और जिम्मेदारी के दूसरे पहलू को निभाने का उत्तरदाई महिलाओं को माना गया है जिससे महिलाएं पुरुष के घर आने के बाद उन्हें स्नान कराने और पवित्र करने का कार्य करती है इसके पीछे का एक दूसरा कारण यह भी है कि जब शव जलाया जाता है तब वातावरण में कीटाणु फ़ैल जाते हैं जो कि शरीर के कोमल भागों पर चिपक कर बीमारी का कारण बन सकते हैं इसीलिए घर में प्रवेश करने से पहले उनके शरीर पर चिपके उन कीटाणु और नकारात्मक ऊर्जा को घर के बाहर छोड़ने के लिए ऐसा किया जाता है.
शुद्धि के बाद ही उन्हें घर में प्रवेश करने की अनुमति होती है यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसे अशुभ और घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश माना जाता है आइए जानते हैं कुछ और ऐसे ही धार्मिक ग्रंथों और हिंदू धर्म पर आधारित कारणों के बारे में जिसे जानना आपके लिए आवश्यक है यदि आप भूत – प्रेतों में विश्वास करते हैं तो आप इसका कारण को ज्यादा अच्छे से समझ पाएंगे.
ऐसा कहा जाता है कि शमशान घाट में बुरी आत्माओं का वास होता है जो कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं और खासकर कुंवारी महिलाओं की तरफ.
माना जाता है कि भूत प्रेत अपना प्रभाव कुवारी महिलाओं पर ज्यादा डालते हैं और उन्हें अपने वश में कर उनके शरीर में प्रवेश कर लेते हैं भूत प्रेतों के इस भयावह प्रभाव से बचाने के लिए महिलाओं को श्मशान घाट ले जाने से डरा जाता है हिंदू धर्म की संस्कृति के अनुसार यह भी कहा जाता है कि जो भी परिवार का सदस्य श्मशान घाट जाकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शामिल होता है.
उसके लिए अपना सिर मुंडवाना अनिवार्य हो जाता है चाहे फिर वह स्त्री हो या पुरुष उसके लिए इस परंपरा का पालन करना जरूरी है इस परंपरा को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को श्मशान घाट नहीं जाने दिया जाता क्योंकि किसी भी स्त्री के लिए पूर्ण रूप से अपने बालों को मुंडवाना संभव नहीं पुरुषों के लिए मुंडन करवाना कोई गंभीर समस्या नही परन्तु महिलाओं के लिए ऐसा करना उनके हिंदू धर्म में वर्णित रूप से खिलाफ है.
यह आवश्यक नही कि ऐसा सभी करते हैं यह लोगों की मनोवृति पर निर्भर करता है कि वह कौन सी मान्यताओं और परंपराओं को मानना चाहते हैं क्योंकि आजकल कई महिलाएं इन परंपराओं को नजरअंदाज करते हुए अंतिम संस्कार में शामिल होती है परंतु मुंडन की परंपरा को नहीं मानती यह तो आपने कई बार सुना होगा कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है इसीलिए उस संस्कृति को आगे बढ़ाना और निभाना हमारी जिम्मेदारी बन जाती है हालाँकि संस्कृति और परंपराओं का पालन करना प्रत्येक की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है परन्तु बहुत से लोग इसे अंधविश्वास मानकर नजरअंदाज कर लेते हैं ऐसा नहीं है कि धर्म में वर्णित मान्यता या परंपरा का कोई आधार नहीं प्रत्येक का अपना एक कारण महत्व और संकेत है जिसे सिर्फ जानने की आवश्यकता है.