भगवन बाला जी मंदिर के 11 रहस्य | जान कर चौंक जायेंगे आप

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आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में Balaji mandir ka rahasyaके बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं भगवान तिरुपति बाला जी अपनी पत्नी पदमावती जी के साथ तिरुमला में निवास करते हैं 

भगवान तिरुपति बाला जी सबसे अमीर देवताओं में से एक माना जाता है तिरुपति जी के दरबार में बड़े से बड़े अमीर और गरीब दोनों जाते हैं हर साल लाखों लोग भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए तिरुमला की पहाड़ियों पर भीड़ लगाते हैं.

माना जाता है कि भगवान तिरुपति बाला जी अपनी पत्नी पदमावती जी के साथ तिरुमला में निवास करते हैं ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई भक्त कुछ भी सच्चे दिल से मांगता है तो भगवान उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं और वे लोग जिनकी मुराद भगवान पूरी कर देते हैं वे अपनी इच्छानुसार वहां पर अपने बाल दान करके आते हैं.

तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुमला पहाड़ों में है इस मंदिर में बहुत बड़े और अमीर लोग आते हैं और अपनी इच्छा अनुसार दान भी करते हैं इस कारण से आज यह मंदिर अमीर मन्दिर में गिना जाता है आपको बता दें कि भगवान तिरुपति बालाजी को बैंक्तेश्वर श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है.

इस मंदिर के बहुत ज्यादा विख्यात होने के कारण यहां के अद्भुत चमत्कार भी हैं इस मंदिर से बहुत सारी मान्यताएं जुड़ी हुई है जो आप माने या ना माने लेकिन वहां के भक्त इन्हें बहुत मानते हैं इस रहस्य से संबंधित बातें जिसे सबसे आज तक आप अभिन्न हैं तो जानिये आज हम आपको तिरुपति बालाजी मंदिर के ऐसे रहस्य बताएंगे जिन्हें जानकर आप दंग के दंग रह जाएंगे.

पहला कहा जाता है कि इस मंदिर में बैंक्तेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे हुए बाल असली हैं और यह कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं लोगों का मानना है कि यह इसलिए है क्योंकि यहां पर खुद भगवान विराजते हैं दूसरा कहा जाता है जब 18 वी शताब्दी में मंदिर की दीवार पर ही कुछ लोगों को फांसी दी गई थी.

तब से खुद बैंक्तेश्वर स्वामी जी मन्दिर में प्रकट हुए थे इस मन्दिर को पूरे बारह वर्षों के लिए बंद कर दिया गया था क्योंकि उस वक्त वहाँ के राजा ने कुल बारह लोगों को मौत की सजा दी और उन्हें मंदिर के गेट पर लटका दिया तीसरा अगर आप मन्दिर में जाते हैं तो भगवान बाला जी की मूर्ती पर अगर कान लगा कर सुना जाए तो आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे क्योंकि जब आप कान लगायेंगे तो आपको समुंद्र की आवाज सुनाई देगी और इसी कारण वश हमेशा बाला जी की मूर्ती हमेशा ही नम रहती है. आपको यहाँ एक अजीब –सी शान्ति प्रतीत होगी.

चौथा मन्दिर के मुख्य द्वार के दरवाजे के दाहिनी ओर एक छड़ी है इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि इस छड़ी से बाला जी के बाल रूप से पिटाई की गई थी जिस कारण वश उनकी थोड़ी पर चोट लग गई तब से आज तक उनकी थोड़ी पर हमेशा चन्दन का लेप भी लगाया जाता है ताकि उनका घाव भर जाए.

पांचवा बाला जी के इस मन्दिर में एक दिया हमेशा जलता रहता है इसमें न कभी तेल डाला जाता है न ही घी. सोचने और आश्चर्य करने वाली बात यह है कि कोई भी नहीं जानता कि यह दिया कब और किसने जलाया था क्योंकि ये दिया वर्षों से जलता ही आ रहा है.

छठा अगर आप दर्शन करने के लिए बाला जी के मन्दिर में जायेंगे तो आश्चर्य में पड़ जायेंगे क्योंकि जब आप बाला जी की मूर्ति को गर्व गाह्य से देखेंगे तो भगवान की मूर्ती मन्दिर के गर्वगृह के मध्य में स्थित पायेंगे लेकिन जब आप इसे बाहर आकर देखेंगे तो पायेंगे कि मूर्ती मंदिर के दायीं ओर स्थित है.

सातवाँ भगवान बाला जी की प्रतिमा पर एक ख़ास तरह का पचाई एक कपूर लगाया जाता है अगर इसे किसी भी पत्थर पर चढ़ाया जाता है तो वह कुछ समय के बाद ही चटक जाता है किन्तु भगवान की प्रतिमा को कुछ नहीं होता.

आठवाँ मंदिर में मूर्ती पर जितने भी फूल, पत्ती या तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं यह सब के सब भक्तों को न देकर पीछे उपस्थित एक जल कुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे विना उनका विसर्जन किया जाता है क्योंकि पुष्प को देखना और रखना अच्छा नहीं माना जाता है.

नवां प्रत्येक गुरुबार के दिन तिरुपति बाला जी को पूर्ण रूप से पूरा का पूरा चन्दन का लेप लगाया जाता है और जब उसे हटाया जाता है तब वहाँ खुद पे खुद माता लक्ष्मी की प्रतिमा ऊपर आती है आज तक नहीं पता चल पाया है ऐसा क्यों होता है और भगवान तिरुपति बाला जी को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है.

दसवां मन्दिर से २३ किलोमीटर दूर एक गाँव है उस गाँव में भारी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है वहाँ पर लोग नियम से रहते हैं वहीं से लाये गये फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की हर वस्तुओं को चढ़ाया जाता है जैसे – दूध , घी , मक्खन इत्यादि.ग्यारवाँ तिरुपति मन्दिर में भक्तों द्वारा बहुत दान किया जाता है मान्यता अनुसार इस मन्दिर में दान की परंपरा विजय नगर के राजा कृष्ण देव राय के समय से चली आ रही है. राजा कृष्ण देव राय इस मन्दिर में हीरे , सोना – चाँदी आदि का बहुत दान करते थे.