आइए जानतें हैं Bachcho ki kahani|बच्चों की कहानियां इन हिंदी

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आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है बच्चों की कहानियां In हिंदी। ताकि आप Baccho Ki Kahani  के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें। हमारा मकसद है कि हम आपको सबसे बढ़िया  Chhote Bachcho Ki Kahani In Hindi के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में मदद करें।

लोमड़ी एवं सारस की कहानी

एक समय की बात है बच्चों , एक बहुत ही स्वार्थी लोमड़ी थी। उसने रात के भोजन के लिए एक सारस को अपने घर पर आमंत्रित किया। 

सारस निमंत्रण से बहुत प्रसन्न होकर समय पर लोमड़ी के घर पहुँच गया तथा अपनी लंबी चोंच के साथ दरवाजे की घंटी बजाई । 

लोमड़ी झट ही उसे खाने की मेज पर ले गई एवं उन दोनों के लिए चौड़े चपटी तश्तरी में कुछ सूप परोसा। जैसा कि कटोरा सारस के लिए बहुत एकदम चपटा था, सारस अपनी चोंच से सूप बिल्कुल ही नहीं पी पाया। 

परन्तु, चालाक लोमड़ी ने उसका सूप बहुत ही जल्दी से चट कर दिया। यह देख, सारस बहुत ही नाराज एवं दुखी न था, परन्तु उसने गुस्सा अपने काबू में कर उनसे विनम्रता से व्यवहार किया। 

अगले दिन, लोमड़ी को सबक सिखाने के लिए, उसने उसे रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया। इस बार उसने सूप भी परोसा, परन्तु इस बार सूप को दो लंबी गहरी सुराइयों में परोसा गया। सारस ने अपने चोंच उन गहरी सुराई में डाली और जल्दी से सूप निकाला, परन्तु लोमड़ी ने अपनी गर्दन उसमे नहीं डाल पा रही थी। वह कुछ भी सूप नहीं पी पा रही थी। 

किन्तु अब तक लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हो चूका था और वह बहुत ही शर्मिंदा हो गई। 

शिक्षा- एक स्वार्थी कार्य बाद में आपको भी दुःख पहुँचता है।

“अकबर बीरबल” के किस्से

बच्चो, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बीरबल कितने हाज़िर जवाब थे. एक समय की बात है बीरबल को तम्बाकू का शौक लगा. परन्तु अकबर बिल्कुल भी नहीं खाया करते थे. 

एक दिन अपने राज्य का भ्रमण करते हुए वे दोनों तम्बाकू के खेत में जा पहुंचे। 

वहां गधे को घास खाते देख अकबर को एक बहुत ही बढ़िया मजाक सूझा।

वे बीरबल से बोले –  ”बीरबल ! देखो गधे भी तम्बाकू बिल्कुल भी नहीं खाते?” 

“हाँ जी महाराज! आप बिल्कुल ठीक ही कह रहे हैं। जो गधे होते हैं वे ही तम्बाकू नहीं खाते हैं, इंसान तो खाते ही हैं।” 

बीरबल का उत्तर सुनकर अकबर बहुत ही बुरी तरह झेंप गए।

प्यासा कौवा

एक बार बहुत ही भीषण गर्मी पड़ी।  पूरा जंगल पूरी तरह से सूख चूका था। सभी प्यास से बहुत ही व्याकुल हो रहे थे और पानी के लिए तड़प रहे थे। 

वहीँ एक कौआ भी बहुत अधिक प्यासा था। बहुत ही ढूंढने पर भी उसको कहीं पानी नहीं मिल पा रहा था। पूरा दिन इधर उधर भ्रमण करने पर उसे आखिरकार एक घड़ा बहुत ही दूर दिखाई दिया। 

परन्तु ये क्या – उस घड़े में बहुत थोड़ा सा पानी था। घड़े का मुँह बहुत छोटा था।  इसीलिए कौए की चोंच पानी तक बिल्कुल नहीं पहुँच पा रही थी। 

अब वह बड़े ध्यान से यह सोचने लगा और दिमाग घोड़े की तरह दौड़ाने लगा. तभी उसे एक बढ़िया – सा उपाय सूझा। 

उसने देखा की पास ही पत्थर के कुछ टुकड़े पड़े थे। थोड़ा परिश्रम का कार्य था परन्तु सफलता मिल सकती थी. यह सोच कौए ने एक – एक पत्थर उठाया एवं उस घड़े में डालता गया। 

फिर धीरे – धीरे पानी ऊपर आने लगा और तेजी के साथ कौआ लगातार पत्थर उसमे डालता गया। 

देखते ही देखते जल्दी ही पानी ऊपर आ गया और कौए की चोंच वहाँ तक पहुँच गई। 

प्यासे कौए ने पानी पिया एवं अपनी प्यास बुझाई और वहां से उड़ गया ।

शेर की कहानी

बच्चो जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शेर जंगल का राजा होता है। वह बहुत ही बलवान होता है और अपने जंगल में सब को डरा कर अपने वश में रखता है । मनमोहक वन में एक दिन शेर राजा जंगल में घूमने गया। उसने देखा राजा हाथी पर आसन लगा कर बैठा हुआ है। 

अब शेर के मन में भी हाथी पर आसन लगाकर बैठने का मन में उपाय सुझा। उसे लगा मैं भी तो अपने जंगल का राजा हूँ. 

फिर क्या था जल्दी ही शेर ने अपने जंगल के सभी जानवरों को बताया और उन्हें आदेश दिया। उसने कहा कि हाथी पर एक आसन लगाया जाए। वह भी राजाओ की तरह हाथी की सवारी अवश्य करना चाहता है।

सभी जंगल के जानवर अपने – अपने काम पर लग गए और बहुत ही जल्दी से आसन लग गया। 

अगले ही पल शेर उछलकर हाथी पर लगे आसन पर जाकर तुरंत बैठ गया । 

सवारी आरंभ हो गयी, परन्तु यह क्या ?

हाथी जैसे ही थोड़ा सा आगे चलता है उसे लगा कि आसन हिल रहा है.

अगले ही पल शेर नीचे धड़ाम से गिर जाता है.

बेचारा शेर, उसकी तो टांग ही टूट जाती है.

उसकी समझ में आ चुका था और खड़ा होकर बोला  – पैदल चलना ही ठीक रहता है.

बुद्धिमान साधु

किसी राजमहल के द्वारा पर एक साधु वहाँ आया और द्वारपाल से बोला कि भीतर जाकर राजा से कहो कि उनका भाई आया है।

द्वारपाल ने समझा कि शायद ये कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो जो संन्यास लेकर साधुओं की तरह वहाँ रह रहा हो!

सूचना मिलने पर राजा बहुत ही मुस्कुराया एवं साधु को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।

साधु ने पूछा – सुनाओ अनुज, क्या हाल-चाल हैं तुम्हारे?

राजा बोला , “मैं ठीक हूँ आप कैसे हैं बड़े भाई?” ।

साधु ने कहा- जिस महल में मैं रहता था, वह पुराना एवं बहुत ही जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे 32 नौकर थे वे भी एक-एक करके सभी चले गए। पाँचों रानियाँ भी बहुत ही बूड़ी हो गयीं हैं और अब उनसे काम बिल्कुल भी नहीं होता…

यह सब बातें सुनकर राजा ने उस साधु को 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।

फिर उस साधु ने 10 सोने के सिक्के बहुत ही कम बताए।

तब राजा ने कहा, इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने से ही संतोष कर लें।

साधु बोला- मेरे साथ सात समुन्दर पार चलो वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र तुरंत सूख जाएगा… मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।

अब राजा ने साधु को 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दे दिया।

साधु के जाने के पश्चात् मंत्रियों ने आश्चर्य से पूछा, “माफ़ करियेगा राजन, परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं आपका कोई बड़ा भाई नहीं है, फिर आपने इस ठग को इतना इनाम क्यों दे दिया?”

राजन ने समझाया, “ देखो,  भाग्य के दो पहलु होते हैं। राजा एवं रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा।

जर्जर महल से उसका आशय उसके बूढ़े शरीर से था… 32 नौकर उसके दांत थे और 5 वृद्ध रानियाँ, उसकी 5 इन्द्रियां हैं।

समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा राजकोष सूख गया…क्योंकि मैं उसे मात्र दस सिक्के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तौल देने की ही है। इसीलिए उसकी बुद्धिमानी से खुश होकर मैंने उसे सौ सिक्के दे दिए और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त अवश्य करूँगा।

ईश्वर

एक प्रसिद्ध कवि की मेज़ पर एक क़लम, अर्थात पैन एवं एक स्याही की दवात रखी हुई थी।

रात का समय था। कवि महोदय किसी संगीत-कार्यक्रम में गए हुए थे। तभी उनकी मेज़ की वस्तुएं अचानक एक – दूसरे से बातें करने लगीं।

दवात बोली, ‘कितने कमाल की बात है! मेरे अंदर से कितनी सुंदर वस्तुएँ निकलती हैं। कविताएँ, कहानियाँ, चित्र सभी कुछ। मेरी कुछ बूँदें ही बहुत हैं, पूरा एक पेज भरने के लिए। मेरा तो कोई जवाब ही नहीं।‘

पैन ने यह सुना तो झट से बोला, ‘यह तुम क्या कह रही हो? अरे, यदि मैं नहीं होता तो कोई कैसे लिखता! तुमसे तो केवल स्याही ही ली जाती है। बढ़िया शब्द तो बस मेरे अंदर से ही निकलते हैं।’

वे दोनों अभी बातें कर ही रहे थे कि तभी कवि महोदय वहाँ आ गए। ऐसा लगता था जैसे उन्हें संगीत का कार्यक्रम बहुत ही अधिक पसंद आया था, इसलिए वे बहुत ही खुश थे। आकर सीधे अपनी मेज़ पर आए एवं लिखने लगे।

‘अगर तबला कहे कि उसके अंदर से सुंदर तालें निकलती हैं तो कितना ग़लत होगा! अगर बाँसुरी कहे कि सभी मीठे स्वर उसी के अंदर से निकलते हैं तो बहुत बड़ी मूर्खता होगी। सच तो यह है कि ये सब तो बस वही कहते हैं, जो उनके ऊपर चलने वाले हाथ उनसे करवाते हैं- उस मनुष्य के हाथ जो इन्हें बजा रहा होता है तथा वह मनुष्य बस वही करता है, जो प्रभु उससे करवाता है। अर्थात कि संसार में सब कुछ भगवान की इच्छा से ही होता है। हम तो बस प्रभु के हाथों के खिलौने बने हैं। जो वह चाहेगा, वही होगा।’

और तब पैन एवं स्याही को बात पूरी तरह से समझ में आ गई। उसके पश्चात कभी भी उन दोनों में लड़ाई नहीं हुई।

आईना झूठ नहीं बोलता

एक बहुत ही छोटी सी लड़की थी, उसका नाम था परी, वो बात-बात पर बहुत क्रोधित हो जाती थी। उसकी मां उसे सदैव यह समझाती रहती कि ‘परी बेटा, इतना क्रोध करना अच्छी बात नहीं है, परन्तु फिर भी उसके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। एक दिन परी अपना होमवर्क करने में बहुत अधिक व्यस्त थी। उसकी टेबल पर एक सुंदर-सा फूलों से सजा पॉट रखा था। तभी उसके छोटे भाई का हाथ उस पॉट से टकराया और गिरने पर उसके कई सारे टुकड़े भी हो गए।

अब क्या, परी क्रोध से बौखला उठी। तभी वहां उसकी मां ने एक आईना लाकर उसके सामने रख दिया। अब क्रोध से भरी परी ने अपनी शक्ल आईने में देखी, जो कि क्रोध में बहुत ही बुरी लग रही थी। अपना ऐसा बिगड़ा चेहरा देखते ही परी का क्रोध एकदम से छू-मंतर हो गया। तब उसकी मां ने कहा, देखा परी! क्रोध में तुम्हारी शक्ल आईने में कितनी बुरी लगती है, क्योंकि आईना कभी भी झूठ नहीं बोलता है। अब परी को यह सब पता चल गया था कि क्रोध करना कितना बुरा होता है। तभी से उसने क्रोध न करने का एक वादा अपने आप से कर लिया।

ऐसे मिला छिपा खजाना

एक बार एक बूढ़ा मनुष्य मृत्यु के कगार पर था। उनके पुत्र बहुत ही बड़े आलसी थे। उस बूढ़े व्यक्ति ने सोचा मेरे मृत्यु के पश्चात उनका क्या होगा? उसने अपने सभी को पुत्रों को बुलाया और उनसे कहा,

मैंने मैदान में एक बड़ा खजाना गाड़ कर रख दिया है। कुछ दिनों पश्चात बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु भी हो गई। तब उनके पुत्रों ने खेत में उस खजाने की बहुत खोज की, परन्तु असफल रहे। तब गांव के एक बूढ़े आदमी द्वारा उन्हें खेत में बीज बोने की सलाह दी फिर उन्होंने कुछ बीज भी बोए। कुछ समय के बाद उन्हें गेहूं की बंपर फसल मिली। उन्हें यह सोने की तरह ही लग रहा था। यही एक बूढ़े व्यक्ति का छिपा हुआ खजाना था।

घास, बकरी और भेड़िया

एक समय की बात है एक मल्लाह के पास घास का ढेर, एक बकरी एवं एक भेड़िया था। उसे इन तीनो को नदी के उस पार लेकर जाना होता है। पर नाव छोटी होने के कारण वह एक बार में किसी एक वस्तु को ही अपने साथ ले जा सकता है।

अब यदि वह अपने साथ भेड़िया को ले जाता तो बकरी सारी घास खा जाती।

यदि वह घास को ले जाता तो भेड़िया उस बकरी को खा जाता।

इस तरह वह बहुत ही दुखी हो उठा कि करें भी तो क्या करें? उसने कुछ देर सोचा और फिर उसके दिमाग में एक बढ़िया – सी योजना बनाई।

सबसे पहले वह बकरी को ले कर उस पार गया। और वहाँ बकरी को छोड़ कर, वापस इस पार अकेला ही लौट आया। उसके पश्चात वह दूसरे सफर में भेड़िया को उस पार ले गया। और वहाँ खड़ी बकरी को अपने साथ वापस इस पार ले आया।

इस बार उसने बकरी को वहीँ पर बाँध दिया एवं घास का ढेर लेकर उस पार चला गया तथा भेड़िया के पास उस ढेर को छोड़ कर अकेला ही इस पार लौट आया और फिर अंतिम सफर में बकरी को अपने साथ ले कर उस पार चला गया।

गुलाम और शेर

एक बार एक गुलाम रहता था। उसका मालिक बहुत ही निर्दयी स्वभाव का था । इसलिए गुलाम जंगल की ओर भाग गया। वहाँ उसने एक शेर देखा। शेर गहरे दर्द में कराह रहा था। उसके पंजे में एक कांटा फंस गया था। दास शेर के पास गया एवं उस शेर के पंजे से कांटा निकाल कर फेंक दिया। शेर को दर्द से तुरंत आराम मिल गया था।

एक दिन गुलाम को उसके मालिक के आदमी ने उसे पकड़ लिया। उसका मालिक गुलाम को भूखे शेर का सामना करने का आदेश देता है। दास की मृत्यु पूर्ण रूप से निश्चित थी। परन्तु यह क्या आश्चर्य! शेर दहाड़ता हुआ आया परन्तु उसने गुलाम को नहीं मारा।

यह वही शेर था जिसकी उसने जान बचाई थी। गुलाम एवं शेर अब एकदम बढ़िया मित्र बन गये थे।