Bhasha kya hai In Hindi | परिभाषा | 3 भेद | संपूर्ण जानकारी

WELLNESS FOREVER

आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में  Bhasha kya hai In Hindi के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। अगर आप  Bhasha kya hai In Hindi की जानकारी पाना चाहते है, तो  Bhasha kya hai In Hindi सर्च करिए हमारी वेबसाइट hellozindgi.com पे और उपयोगी जानकारी से खुद का व दोस्तों का ज्ञान वर्धन करें|  

भाषा क्या है – 

बता दें कि भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर एवं पढ़कर अपने मन के भावों या फिर विचारों का आदान-प्रदान किया करता है। 

दूसरे शब्दों में अगर कहें कि जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित या कथित रूप से दूसरों को समझा सके एवं दूसरों के भावो को पूरी तरह से समझ सके तो उसे भाषा ही कहते हैं। सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा ही कहते हैं।

आपको बता दूँ कि मनुष्य एक सामजिक प्राणी है. समाज के विकास में भाषा का विकास बहुत ही असंभव है. मनुष्य का सामाजिक जीवन का आधार भाषा है. भाषा के अभाव में सामाजिक जीवन की कल्पना बिल्कुल भी नही की जा सकती है. इन्ही कारणों से भाषा का उदगम हुआ है.

मनुष्य अन्य प्राणियों से अधिक संवेदनशील एवं बुद्धिमान प्राणी होता है. अपने आपको अभिव्यक्त करना उसकी प्रवृत्ति होती है. सामाजिक प्राणी होने के कारण वह निरंतर समाज के अन्य सदस्यों के साथ विचारों एवं भावो का आदान प्रदान भी किया करता है. प्रारम्भ में वह संकेतों या अस्पष्ट ध्वनियों का इस्तेमाल किया करता था. ध्वनि समूह के संयोजन से वस्तु विशेष के प्रतीक बन गए जिनसे धीरे धीरे भाषा का विकास भी हुआ. “भाषा” विचारों के आदान प्रदान का सबसे सुगम साधन माना गया है.

भाषा की परिभाषा (Definition of Language) – 

“बता दें कि भाषा ध्वनि- प्रतिको की वह व्यवस्था होती है जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर या लिखकर स्पष्टता के साथ अपने विचारों को दूसरे मनुष्य तक पहुंचा सकता है एवं दूसरों की बात भी समझ सकता है.”

“भाषा परिवर्तनशील होती है. समय के साथ साथ ज़रूरत के अनुसार भाषा का स्वरुप बदलता रहता है एवं भाषा एक नया रूप भी धारण कर लेती है.”

“भाषा मनुष्य के विचारों के आदान प्रदान का माध्यम माना गया है.”

भाषा के भेद (Types of Language) – 

बता दें कि भाषा के तीन प्रकार होते हैं लिखित, मौखिक एवं सांकेतिक. जब श्रोता सामने होता है तो बोलकर हम अपनी बात भी कहते है एवं जब वो सामने नहीं होता तो लिखकर हम अपनी बात उस तक अवश्य पहुँचाते है. भाषा का जो मूल रूप है वह मौखिक ही होता है इसे सिखने के लिए किसी प्रयत्न की ज़रूरत बिल्कुल भी नही होती यह अपने आप ही सीखी जाती है जबकि लिखित भाषा को प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है.

1. मौखिक भाषा (Oral Language) – 

यह भाषा का मूल रूप है एवं सबसे प्राचीनतम मानी गयी है. मौखिक भाषा का जन्म मानव के जन्म के साथ ही हुआ है. मानव जन्म के साथ साथ ही बोलना आरंभ कर देता है. जब श्रोता सामने होता है तब मौखिक भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. जो मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई “ध्वनि“होती है. इन्ही ध्वनियो से शब्द बनते हैं जिनका वाक्यों में इस्तेमाल भी अवश्य किया जाता है.

2. लिखित भाषा (Written Language) – 

जब श्रोता सामने न हो तो उस तक बात पहुँचाने के लिए मनुष्य को लिखित भाषा की ज़रूरत पड़ती है. लिखित भाषा को सीखने के लिए परिश्रम एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है. यह भाषा का स्थायी रूप है, जिससे हम अपने भावो एवं विचारों को आने वाली पीढियों के लिए एकदम से सुरक्षित रख सकते है. इसके द्वारा ही हम ज्ञान का संचय भी अवश्य किया करते हैं.

प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही अपनी मातृभाषा सीख लेता है. अशिक्षित लोग भी अनेक भाषाएँ बोल एवं समझ सकते हैं. भाषा का मूल एवं प्राचीन रूप मौखिक ही है. लिखित रूप बाद में विकसित हुआ है. इसलिए हम यह कह सकते हैं-  भाषा का मौखिक रूप प्रधान रूप होता है एवं लिखित रूप एक गौण होता है.

3. सांकेतिक भाषा (Sign Language)

जिन संकेतो के माध्यम से छोटे बच्चे या गूंगे लोग अपनी बात दूसरे को समझाते हैं तो इन संकेतो को सांकेतिक भाषा ही कहा जाता है.  इसका अध्ययन व्याकरण में बिल्कुल भी नहीं किया जाता है.जैसे- यातायात नियंत्रित करने वाली पुलिस, गूंगे बच्चों की वार्तालाप, छोटे बच्चों के इशारे आदि.

निष्कर्ष – 

आशा करता हूँ कि आपको हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी अवश्य पसंद आई होगी. अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारी इस वेवसाईट से अवश्य जुड़े रहें.