Bhojan Karne Ke Niyam शास्त्रों के अनुसार भोजन कैसे करना चाहिए

Bhojan Karne Ke Niyam | शास्त्रों के अनुसार भोजन कैसे करना चाहिए?

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किसी भी कार्य को अगर नियमानुसार किया जाये तो वह शास्त्रों के अनुसार बहुत ही शुभ माना जाता है. यहाँ हम आपको बतायेंगे Bhojan Karne Ke Niyamऔर किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए भोजन के समय. भोजन के ऐसे गुण जो हमारे शारीर को काम करने की उर्जा देते हैं जैसे की Poshan Kise Kahate Hain यहाँ हम आपको देंगे जानकारी.

Bhojan Karne Ke Niyam

अपने पांच अंग अच्छी तरह से धो लें

सबसे पहली बात भोजन करने से पहले 5 अंग यानी दो हाथ, दो पैर और मुख इनको अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करना चाहिएं।

देवी देवता का धन्यवाद करें

 भोजन से पहले अन्य देवता एवं अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए तथा सभी भूखे प्राणियों को भोजन प्राप्त हों ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके ही भोजन शुरू करना चाहिए।

भोजन बनाने वाला व्यक्ति को स्नान करके ही भोजन बनाना चाहिए

 भोजन बनाने वाली महिलाओं को स्नान करके ही शुद्ध मन से मंत्र जाप करते हुए रसोई घर में भोजन बनाना चाहिए। सबसे पहले तीन रोटियां एक गाय के लिए, एक कुत्ते के लिए और एक कौवे के लिए अलग निकाल कर। फिर अग्नि देव को भोग लगाकर ही घरवालों को खिलाना चाहिए। 

भोजन सभी के साथ बैठकर करना चाहिए

भोजन किचिन में बैठकर ही सभी के साथ करें प्रयास यह करना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल बैठकर ही भोजन किया जाए। नियम अनुसार अलग-अलग भोजन करने से परिवार के सदस्य में प्रेम और एकता कायम खत्म हो जाती हैं।

समय से भोजन करें

भोजन का समय प्रातः और सायंकाल ही भोजन का विधान हैं क्योंकि पचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे के बाद तक एवं सूर्यास्त से ढाई घंटे पहले तक प्रबल रहती हैं। जो व्यक्ति सिर्फ एक समय भोजन करता हैं वह योगी है और जो दो समय भोजन करता है वह भोगी कहा गया हैं।

भोजन करते हुए मुख की दिशा

 तीसरी बात भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिएं। दक्षिण दिशा की ओर किया गया भोजन प्रेत को प्राप्त होता हैं। पश्चिम दिशा की ओर भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती हैं।

चौथी बात ऐसी अवस्था में भोजन ना करें

  •  सोफा पर बैठकर अर्थात बिस्तर पर बैठ कर अपने हाथों पर रखकर या टूटे – फूटे बर्तनों में भोजन कभी करना नहीं चाहिए। 
  • मल मूत्र का वेग होने पर भी भोजन करना नहीं चाहिएं। 
  •  क्लेश के माहौल में भी भोजन करना अनुचित माना गया हैं। 
  • अधिक शोर-शराबे के स्थान पर भी भोजन करना उचित नहीं। 
  • पीपल एवं मोटे वृक्ष के नीचे बैठकर भी भोजन नही करना चाहिएं। 
  • परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए।
  •  खड़े – खड़े भोजन करना भी अनुचित माना गया हैं। 
  • जूते पहनकर या सिर ढक्कर भी भोजन नहीं करना चाहिए।

भोजन कैसा होना चाहिए

  • बहुत तीखा या बहुत ही मीठा भोजन नही करना चाहिएं।
  •  किसी के द्वारा छोड़ा हुआ भोजन भी कभी ग्रहण नहीं करना चाहिएं।
  •  आधा खाया हुआ फल, मिठाईयाँ आदि फिर से नहीं खानी चाहिएं।
  •  खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन कभी नहीं करना चाहिएं।
  •  जो कोई भी ढिंढोरा पीट कर खिला रहा हो वहां पर जाकर कभी भोजन नहीं करना चाहिएं।
  •  रजस्वला स्त्री के द्वारा परोसा गया भोजन भी करना अनुचित हैं।
  • श्राद्ध का निकाला हुआ बासी या मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया गया भोजन भी करना अनुचित हैं।
  •  बाल गिरा हुआ भोजन भी ना करें।

भोजन करते समय ध्यान रखें

भोजन के समय मौन रहे और रात्रि के समय भरपेट ना खाएं। अगर भोजन करते समय बोलना आवश्यक है तो केवल सतर्मक बाते ही करें। भोजन करते समय किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा ना करें। भोजन को बहुत चबा चबाकर खाएं। सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन और अंत में कड़वा खाना चाहिएं। थोड़ा सा भोजन करने वाली को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर – संतान और सौंदर्य प्राप्त होता हैं।

 भोजन के पश्चात क्या नहीं करना चाहिए

  • भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिएं।
  •  भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि प्रकार की कार्य नहीं करने चाहिएं।
  • भोजन के 1 घंटे के बाद मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पचन बहुत अच्छी तरह से होता हैं।

भीष्म पितामह ने अर्जुन को भोजन के बारे में क्या-क्या महत्वपूर्ण बातें बताई

भोजन किन-किन अवस्थाओं में कभी नहीं होना चाहिएं

भीष्म पितामह द्वारा अर्जुन को दिए महत्वपूर्ण संदेशों में कहा गया है कि जिस थाली को किसी का पैर लग जाए उस थाली का त्याग करना चाहिएं। ऐसी थाली विस्टा के समान त्याज्य होती हैं। भीष्म पितामह कहते हैं कि भोजन के दौरान थाली में बाल आने पर उसे वहीं पर छोड़ देना चाहिएं। बाल आने के बाद भी खाए जाने वाले भोजन से दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता हैं। भोजन पूर्व जिस थाली को कोई लांग कर गया हो ऐसे भोजन को भी कभी ग्रहण नहीं करना चाहिएं। 

एक ही थाली में भाई भाई भोजन करें

भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया कि एक ही थाली में भाई – भाई भोजन करें तो वह अमृत के समान हो जाती हैं। ऐसे भोजन से धन- धान्य, स्वास्थ्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती हैं।

क्या पति पत्नी को एक ही थाली में भोजन करना चाहिए

 भीष्म पितामह के अनुसार पति-पत्नी को एक ही थाली में भोजन करने को निषिद्ध माना गया हैं। भीष्म पितामह के अनुसार एक ही थाली में पति-पत्नी भोजन करते हैं तो ऐसी थाली मादक पदार्थों से भरी मानी जाने वाली होती हैं। पत्नी को पति के भोजन के उपरांत ही भोजन करना चाहिएं। इससे घर में सुख समृद्धि बढ़ती हैं।

 तो दोस्तों यह तो महत्वपूर्ण बातें जो महाभारत में बताई गई हैं।