चलिए जानतें हैं सबसे लोकप्रिय भूतों की कहानी इन हिंदी

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दोस्तों इस पोस्ट में हम  भूतों की कहानी इन हिंदी प्रस्तुत करने जा रहें हैं। उम्मीद है कि भूतों की कहानी हिंदी में आपका ज्ञान वर्धन अवश्य करेंगी। तो आइये अब पढ़ते हैं Bhooton Ki Kahaniyan. 

भाग्य वाले का भूत हल जोतता है

गांव से दूर एक मोहन पहलवान रहा करता था। उसके पास पचास से अधिक भैंसे थीं। वह पूरे दिन भैंसों की देख-रेख करता एवं उससे प्राप्त दूध को भी पिया करता था। उस पहलवान की यही दिनचर्या थी। वह दूध पी – पी कर इतना बलवान हो गया था , कि उसका कोई बराबरी वाला नहीं था। वह अपने साथ पचास किलो का लोहे का डंडा रखता था। ज़रूरत पड़ने पर उसी डंडे से वह युद्ध किया करता था। कुछ समय से वह उस रास्ते आए – गए लोगों से पूछा करता था , मेरा विवाह किधर होगा ?

मेरा विवाह किधर होगा ?

इस पर लोग उसको कोई जबाब न दे पाते थे , एवं वह उन लोगों की पिटाई कर देता था।

एक दिन की बात है , एक ब्राह्मण और एक नाई ( हजाम ) दूर देश विवाह का रस्म करने उस रास्ते से जा रहे थे। रास्ते में मोहन पहलवान मिल गया, अन्य की भांति वह पहलवान उनसे भी पूछने लगा मेरा विवाह किधर होगा ? दोनों बहुत ही भयभीत स्थिति में थे। वह जानते थे इसे उत्तर नहीं देने पर यह पहलवान पिटाई कर देगा। इस पर नाई ने एक युक्ति लगाई और दूर ताड़ का पेड़ दिखा कर कहा तुम्हारा विवाह उधर होगा।  मोहन पहलवान बहुत खुश हुआ , उसने अपनी पाँचसों  भैंस उन दोनों को सुपुर्द कर दिया।

कहा यह सब तुम लेते जाओ अब मेरे यह किस काम के ?

अब मैं चला अपने ससुराल खातिरदारी करवाने।

मोहन पहलवान उस ताड़ के पेड़ को लक्ष्य बनाकर वहां पहुंच गया। वहां एक झोपड़ी थी , उसके अंदर एक महिला एवं एक बच्चा था। वहां जाकर पहलवान ने  हाजिरी लगाई , उस महिला को समझ नहीं आया कि यह कौन व्यक्ति है ? परन्तु उसने सोचा कि वह मेरे पति के जानकार होंगे , इसलिए उसको मेहमान के कमरे में बिठा दिया और लोटा बाल्टी हाथ पैर धोने के लिए उसे दिया। महिला का पति जब आता है तो उस आदमी को वहां पाकर अचरज में पड़ जाता है और बोलता है कि यह कौन है ? अपनी पत्नी से पूछता है तो वह कहती है पता नहीं यह कौन है ?  मैं तो सोच रही थी कि यह तुम्हारा कोई परिचित होगा एवं तुम्हारे जैसा ही यह बदतमीज है मुझे भी एक थप्पड़ मारा है इसने।

लड़का रो रहा था तो यह कहते हुए मारा लड़के को क्यों रुला रही है ?

इतना सुनते ही उसका पति गुस्सा होकर उस आदमी के पास गया एवं उससे कहने लगा कि तूने मेरी बीवी को कैसे मारा ? कहते हुए उससे झगड़ा आरंभ कर दिया। मोहन पहलवान था वह यह बदतमीजी बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपना लोहे का डंडा उठाया और एक सिर पर लगा दिया। वह आदमी वही मर गया। उसकी बीवी कहने लगी कि अब तो मेरे पति ही एक सहारा थे वह भी मर गए अब तुम्हारे साथ ही आधी जिंदगी निर्वाह होगी।

दोनों घर में रहने लगे छह-सात दिन बीते होंगे घर में जमा राशन पानी भी खत्म होने लगा।

तब उस महिला ने बोला कि कुछ कमाई करोगे या ऐसे ही भूखे मरेंगे ?  बिना कमाई के जीवन कैसे चलेगा ? मोहन पहलवान भैंसों का दूध पीने के अलावा कुछ काम करना बिल्कुल भी नहीं जानता था।

उसने उस महिला से पूछा कमाई , वह क्या होता है ?

बताओ ?

महिला ने उसे बताया कि राज महल में जाकर राजा से कुछ खेती के लिए जमीन मांग लो.

जिस पर खेती करके अपना अनाज उपजाया करेंगे।

फिर पहलवान अपना डंडा हाथ में लेकर राज महल के तरफ चल पड़ा। राज महल से कुछ दूर ही गया होगा कि लोगों ने उसे अपनी ओर आते हुए देखा तो वहां सब डर के मारे थर-थर कांपने लगे। वह यहां आ रहा है एकाध को तो मार डालेगा , राजा ने अपने मुंशी को तुरंत उसके पास जाकर उसके आने का कारण पूछने के लिए भेजा। मुंशी मोहन पहलवान के पास गया एवं उसके यहां आने का कारण पूछा। इस पर मोहन ने बताया कि वह खेती के लिए कुछ जमीन राजा से मांगने आया है। मुंशी ने कहा तुम यही ठहरो मैं राजा को बता कर आता हूं।

मुंशी राजा के पास आता है और उसके आने का कारण बताता है।

इस पर राजा मुंशी को आदेश देते हैं , वह जितनी जमीन और जहां मांग रहा है उसे वहां दे दो।

मुंशी तुरंत मोहन पहलवान के पास जाता है और उसे चालाकी से एक जमीन देता है जो श्मशान घाट के पास बंजर पड़ी हुई थी। मोहन पहलवान उस जमीन पर जुताई करने से पूर्व सोचता है कि यह खेत में आ रहा पीपल का पेड़ जिसके कारण हमारी फसल बहुत ही कम हो जाएगी।  इसे अपने खेत से हटा देता हूं , यह सोचकर उसने पीपल के पेड़ पर लोहे का एक डंडा मारा जिसमें से डेढ़ सौ भूत नीचे उतरे और मोहन पहलवान से लड़ाई करने लगे।

मोहन पहलवान उन डेढ़ सौ भूतों का सामना डटकर करने लगा।

किसी भूत का हाथ टूटा , किसी का सर फूटा , किसी का पैर टूटा , सभी लाइन से खड़े हो गए एव उससे क्षमा मांगने लगे। उन्होंने पीपल के पेड़ को हटाने का कारण पूछा। जिस पर पहलवान ने स्पष्ट कहा कि यह मेरे खेत में आ रहा है , इसलिए मैं इसे यहां से हटा दूंगा।

भूतों ने  मोहन को कहा कि हम इस खेत से होने वाली सारी पैदावार के बराबर आपके घर में राशन पहुंचा देंगे , परंतु यह पेड़ आप मत तोड़ो , यह हमारा घर है। और हम यहां कई वर्षों से रह रहे हैं। मोहन पहलवान बहुत ही बलवान था , और बलशाली लोग हमेशा दया करते हैं। इसलिए उसने भूतों की बात मान ली तथा अपने घर को चला गया। अब भूतों ने मोहन पहलवान के घर छः महीने का राशन भंडार कर दिया। मोहन ऐश – मौज  की जिंदगी यापन करने लगा।

भूतों को यह सौदा बहुत ही महंगा पड़ा , वह काम कर कर के दुबले हो गए थे।

एक दिन बाद भूतों के गुरु जी वहां पहुंचे और उन्होंने उन सब को दुबला पाकर कारण पूछा तो सभी भूतों ने बताया कि एक पहलवान है , उसकी जी हजूरी करने , उसको राशन पहुंचाने यह सब काम करने में हमारा सारा समय चला जाता है , जिसके कारण हम सब दुबले होते जा रहे हैं। गुरु जी को यह बात बहुत ही बुरी लगी और बदला लेने के लिए वह बिल्ली का वेश बनाकर पहलवान के घर जा पहुंचे। पहलवान के घर रोज बिल्ली दूध पी जाती थी , इस पर वह बहुत ही दुखी था। आज सबक सिखाने के लिए पहलवान डंडा लेकर दरवाजे की आड़ में खड़ा था। बाहर से बिल्ली के वेश में आए भूतों के गुरु जी ने उस पहलवान को दरवाजे के पीछे छिपा देख लिया था , और दांव लगा रखा था कि कब उसकी आंख से ओझल हो कर उस पर हमला किया जाए।

इधर मोहन पहलवान भी दाव लगा रखा था , कि कब बिल्ली घर के अंदर प्रवेश करें और उस पर हमला किया जाए। परन्तु बिल्ली अंदर नहीं आ रही थी बहुत समय हो गया , मोहन धीरे-धीरे पीछे हटता गया और चूल्हे के पास पहुंचकर छुप गया। बिल्ली आई तो उसने मोहन पर अचानक वार करने के लिए जो ही पयत्न किया , मोहन सतर्क की स्थिति में था। उसने एक डंडा बिल्ली के कमर पर लगा दिया।

अब भूतों के गुरु जी के पसीने छूट गए सभी हड्डियां टूट गई।

गुरु जी ने अपने भूत रूप में आकर पहलवान से क्षमा माँगी, मोहन पहलवान ने उस गुरूजी से पूछा छोड़ने के बदले , आपकी क्या सजा होगी ? गुरु जी ने स्वतः  स्वीकार कर लिया कि जितना राशन आपके घर आता है , उसका दुगना अब दिया जाएगा इस पर मोहन ने गुरुजी को छोड़ दिया। गुरुजी अपने चेलों के घर पहुंचे और पूरा वाकया बताया , अब राशन दुगना पहुंचाना होगा इस पर उनके सारे चेले सिर पीट कर रह गए।

एक तो पहले से ही दुबले थे , अब और यह आफत।

भूत का भय

उत्तराखंड के पीरगढ़ नामक गांव में अब्दुल एवं उसके साथी रहा करते थे। अब्दुल बहुत ही निडर प्रवृत्ति का मनुष्य था। अब्दुल अपने साथियों के साथ साहस पूर्ण बातें किया करता था एवं खेल भी प्रतिस्पर्धा वाला खेला करता था। गांव में कुछ दिनों से भूत के चर्चे चारों ओर हो रहे थे।  गांव के बाहर एक श्मशान घाट था , वहां किसी के देखे जाने की कहानी पूरे गांव में चल रही थी। अब्दुल के साथियों ने एक दिन इस बात पर चर्चा आरंभ कर दी , अब्दुल ने बड़े साहस के साथ कहा कि भूत – वूत कुछ नहीं होता है। यह सब हमारा वहम होता है। इस पर उसके साथियों ने अब्दुल से कहा कि भूत नहीं होता है तो तुम क्या श्मशान घाट जाकर दिखा सकते हो ?

अब्दुल ने कहा क्यों नहीं ! मैं भूत से बिल्कुल भी नहीं डरता।

शर्त हो गई अब्दुल ने निश्चय किया कि , वह रात के अंधेरे में जाकर श्मशान घाट में कील गाड़कर आएगा .

और कील को वह सवेरे सभी को दिखाएगा।

अमावस्या की काली रात थी , इतनी भयंकर काली रात कि अपना ही हाथ नहीं दिख रहा था। अब्दुल अपने दोस्तों के पास से उत्साह में शमशान घाट जाने को निकला। रास्ते में उसे कुछ संकोच एवं शंका होने लगी , लोगों की कहानियां उसके दिमाग में धीरे – धीरे चलने लगी। उन्होंने श्मशान घाट के पास किसी आत्मा को भटकते हुए देखा था , और न जाने कितनी ही कहानियां अब्दुल के दिमाग में चलने लगी। परन्तु वह लौट कर जाता तो सभी उसका मजाक बनाते एवं उस पर हंसते। अब्दुल अब श्मशान घाट के पास पहुंचने वाला था , कि उसके सामने एक तरफ कुआं है , एक तरफ खाई की स्थिति पैदा हो गई।

लौटकर जाने मे जग हंसाई का डर एवं श्मशान घाट में भूत का डर।

किंतु निर्भय होकर अब्दुल श्मशान घाट पहुंचा और वहां जमीन पर कील गाड़ कराने की बात थी।

वह नीचे बैठा उसने धीरे – धीरे किल को जमीन में गाड़ना आरंभ किया।

किल गाड़ने के लिए वह हथोड़ी लेकर गया था।

किंतु हथौड़ी से आवाज अधिक तेज नहीं करना चाह रहा था कि कोई उसकी आवाज सुन ले।

जैसे – तैसे उसने हथौड़ी की मदद से किल जमीन में गाड़ दी , और कुछ साहसपूर्ण भाव से उठ कर जाने के लिए तत्पर हुआ। तभी उसने महसूस किया कि उसके कुर्ते को कोई नीचे खींच रहा है , उसके हाथ – पांव  कांपने लगे और पूरा शरीर एकदम से ठंडा होने लगा , वह वही मूर्छा खाकर गिर गया। अब्दुल के मित्र जो उसके पीछे – पीछे छिप कर आए थे , उन लोगों ने देखा और अब्दुल को जल्दी से उठाकर गांव की ओर ले गए , वहां उसके चेहरे पर पानी का छींटा मारा गया बहुत समय पश्चात वह डरते हुए उठा तो उसने पाया कि वह गांव में है। अब्दुल कहने लगा कि मैंने कील को जमीन में गाड़ दिया था , परन्तु जब उठने लगा तो कोई उसके कुर्ते को खींच रहा था।

जिसके कारण वह डर गया था अब्दुल के मित्रों ने बताया कि कोई उसका कुर्ता  खींच नहीं रहा था , अपितु उसने स्वयं ही अपने कुर्ते के ऊपर से कील जमीन में गाड़ा था , जिसकी वजह से वह खड़ा हुआ तो उसे लगा कि कोई उसका कुर्ता खींच रहा है। इस घटना पर अब्दुल ने सभी लोगों से क्षमा मांगी , किंतु सभी लोग उसके साहस से बहुत खुश हुए तथा उसे शाबाशी देते हुए उसके साहस की तारीफ करने लगे।

जहाज वाला भूत

समुद्र के किनारे एक गांव था। वहां लोग मछली पालन किया करते थे एवं आगे के अन्य गांवों में मछलियों को बेचकर अपना जीवन व्यापन करते थे।

एक दिन सुबह सुबह लोग समुद्र के किनारे मछली पकड़ने जा रहे थे तो, उन्होंने देखा कि एक पानी का बड़ा सा जहाज समुद्र के किनारे रुका हुआ है।

पानी के जहाज में बिना टिकट के नहीं जा सकते थे.

इसलिए कोई भी उसके अंदर नहीं गया। परन्तु मछली पकड़ते समय जब रवि की नजर उस जहाज पड़ रही थी,

तब वह देख रहा था कि जहाज में तो कोई हलचल ही नहीं थी। उसको लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ तो अवश्य है। वह पूरी बात को पता करने के लिए श्यामू को लेकर जहाज के अंदर चला गया।

जहाज के अंदर जाकर वह एकदम से हैरान हो गया, उसने देखा कि बहुत सी लाशें उस जहाज में बिछी हुई है। अब श्यामू और रवि बहुत ही अधिक डर गए।

वह वापस आ ही रहे थे कि उनके सामने एक चुड़ैल प्रकट हो गयी। अब वो दोनो बहुत ही अधिक डरने लगे।

चुड़ैल बोली, ” यह जहाज मेरा है! तुम्हारी इसमें आने की हिम्मत कैसे हुई? अब तुम दोनों का भी वही हश्र होगा जो कि इन सब लोगों का हुआ है। ही ही ही ही….”

चुड़ैल ने श्यामू का गला पकड़ लिया। चुड़ैल का ध्यान केवल श्यामू पर ही था, अब रवि मौका देखते ही वहां से भाग निकला और जहाज से कूद गया।

वापस गांव में आकर यह सब बात जाकर सभी गांववालों को बताई। सभी गांववाले गांव में एक भूतिया जहाज के आने से बहुत सहमे हुए थे। तभी एक महिला भी दौड़ती हुए उस गांव में आ पहुंची।

गाँव के बाबा भी वही उपस्थित थे।

उस महिला ने बताया, ” जहाज में जो लड़की है, वह चुड़ैल नहीं है वह मेरी बेटी है, उसके अंदर किसी राक्षस ने प्रवेश कर लिया है। कोई मेरी बेटी को बचा लो!” वह रो रोकर बोली।

अब बाबा ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया एवं सब कुछ पता लगाया।

बाबा बोले, ” यह महिला सही कह रही है। वह जहाज दो मित्रों का था। एक मित्र ने धोखाधड़ी से अपने ही मित्र को मार डाला ताकि पूरे जहाज पर वही कब्जा कर सके!

अब उसका मित्र राक्षस बन गया परन्तु उसके पास शक्तियां नहीं थी वह किसी को छू नहीं सकता था। अतः उसे एक शरीर की ज़रूरत थी।

जब यह महिला और अन्य लोग उस जहाज में सफर कर रहे थे तो, उस राक्षस ने इसकी लड़की के अंदर प्रवेश कर लिया एवं इसकी लड़की ने चुड़ैल का रूप धारण कर लिया।

एवं अपने मित्र सहित सभी को मौत के घाट उतार दिया।”

महिला ने कहा, ” बाबाजी आप तो अंतर्यामी है कृपया मेरी बेटी को बचा लें।”

अब बाबा ने कहा, ” उस राक्षस को तभी नष्ट किया जा सकता है जब हम उसके पार्थिव शरीर को जला दें। लेकिन वह हमें मिलेगा कहाँ,

” तब महिला बोली! बाबाजी राक्षस एक लाश को बहुत ही सम्भाल कर रखता है, मैंने वह देखी है, शायद वही उसकी लाश होगी।’

बाबाजी उस महिला को लेकर उस जहाज में चढ़े और चुपके से जहाज के उस कमरे में चले गये जिसमे राक्षस की लाश थी। उस लाश को छूने तक ही चुड़ैल वहां तुरंत पहुंच गयी।

चुड़ैल ने स्वामी जी की शक्तियों से मुकाबला किया वह अब हार गई। बाबा जी ने कुछ मन्त्र पढ़े एवं वह राक्षस महिला की बेटी के शरीर से निकल गया। अब राक्षस लाचार था।

बाबाजी ने अब उसकी लाश को जला डाला। उसको अब मुक्ति मिल गयी। महिला की बेटी भी बच गयी। दोनो ने बाबाजी का बहुत धन्यवाद दिया तथा अब सब खुशी खुशी अपने घर को चले गए।

पीपल के पेड़ का भूत

एक गांव में एक रामसिंह नाम का वैध रहता था। वह अपने घर मे अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह एवं उसकी पत्नी बीमार लोगों की सेवा किया करते थे।

गांव के सभी लोग छोटी-मोटी तकलीफों के लिए उनके ही पास हमेशा जाया करते थे।  रामसिंह ज़रूरत वाले सभी जड़ी-बूटियों को लेने के लिए प्रतिदिन जंगल जाता था,

जहाँ से उसे भिन्न भिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती थी। रामसिंह उन जड़ी-बूटियों को जंगल से लाकर जड़ी – बूटियां बनाता था,

तथा उनसे बनी हुई औषधियों का इस्तेमाल , आए बीमार लोगों का इलाज भी करता था।

एक दिन उसके घर एक बुजुर्ग अपना इलाज कराने के लिए आए। वे बहुत ही अधिक बीमार थे, रामसिंह ने उन्हें अच्छे से देखा-भाला फिर उनसे कहा,

आपके इलाज के लिए मुझे कुछ विशेष प्रकार की जड़ी-बूटी की ज़रूरत है, जो कि अभी मेरे पास उपलब्ध नहीं है, मैं आपको यह दवाई दे रहा हूँ,

आप इसे पानी मे मिलाकर खा लेना आपको तुरंत आराम होगा और जब मैं जड़ी- बूटी लेकर तैयार कर लूंगा तब मैं आपको सूचित कर दूंगा या मैं स्वयं ही आपके घर आ जाऊंगा।”

इतना कह कर वह अपनी पत्नी के साथ जंगल की ओर चल दिया, । जंगल मे वह उस खास जड़ी-बूटी को ढूंढ रहा था, एवं उसकी पत्नी कुछ अन्य प्रकार की जड़ी-बूटियों को इकट्ठा कर रही थी।

जड़ी-बूटी ढूंढते हुए रामसिंह अंदर घने जंगल मे जा पहुंचा। वहां उसे बहुत डर भी लग रहा था। जंगल मे एक बहुत ही बड़ा एवं घना पीपल का वृक्ष था। उस वृक्ष में एक चुड़ैल रहा करती थी।

उसको किसी ऋषि ने अपने प्रभावी शक्तियों की मदद से उस पीपल के वृक्ष में कैद कर रखा था। जब रामसिंह उस पेड़ के पास पहुंचा, तो वह चुड़ैल बहुत ही प्रसन्न हुई। उसने मन मे सोचा,

आज मैं उस ऋषि की शक्तियों के प्रभाव से स्वतंत्र हो जाऊंगी। बस एक बार यह इंसान इस पेड़ को छू ले!”

तब अचानक , रामसिंह का हाथ उस पेड़ से गलती से लग गया। अब वह चुड़ैल ऋषि के श्राप से तुरंत स्वतंत्र हो गयी और वहां से निकलकर रामसिंह के अंदर घुस गई।

अब रामसिंह का शरीर एक चुड़ैल के रूप को धारण कर चुका था। वह अकेले ही घर चल दिया, उसकी पत्नी ने उसे जंगल में बहुत ढूंढा पर उसको रामसिंह कहीं भी नहीं मिला।

तब तक हारकर वह भी घर की ओर चल दी।

घर जाकर जब उसने देखा तो, रामसिंह वहां आराम से लेटा हुआ था। उसने जाकर रामसिंह को कहा, ” अजी आप कब आए! मैं तो आपको ढूंढती रह गयी। आज तो आपने मुझे डरा ही दिया था।”

रामसिंह अपनी पत्नी की आवाज सुनकर बहुत गुस्से में आ गया और उसने अपनी पत्नी का गला पकड़ लिया। वह बोला, ” अपनी बकवास से मेरी नींद क्यो खराब कर रही है! सोने दे मुझे।”

यह कहकर उसने अपनी पत्नी को दूर फेंक दिया एवं स्वयं जाकर सो गया। उसकी पत्नी बहुत जोर जोर से रोने लगी।

अगली सुबह उसके घर कुछ लोग आए उपचार के लिए, तब भी रामसिंह ने उन्हें बहुत बुरी तरह डाँठ कर भगा दिया। रामसिंह की पत्नी को अब शक होने लगा।

उसने मन ही मन सोचा, जंगल में कहीं कोई न कोई बुरी घटना घटी है, इसका पता मुझे लगाना ही होगा।

रामसिंह की पत्नी गांव के साधु के पास जाती है औऱ अपनी सभी कठिनाइयों को उनको बता देती है। साधु अपनी शक्तियों से सब पता कर लेते हैं,

कि क्या हुआ था, और अब आगे क्या करना है.

साधु रामसिंह की पत्नी के साथ उसके घर चले गए, रामसिंह आराम से सोया हुआ था। साधु बाबा ने रामसिंह के घर के चारों ओर एक कवच का निर्माण कर दिया जिससे कि वह चुड़ैल बाहर न जा सके।

अब बाबा के लिए चुड़ैल को पकड़ना बहुत ही सरल हो गया।

उन्होंने अपने मन्त्रो द्वारा पहले तो चुड़ैल को रामसिंह के शरीर से अलग किया फिर उस चुड़ैल को अपने एक मायावी बोतल में कैद कर दिया। अब वह चुड़ैल सदैव के लिए बाबा के पास कैद हो चुकी थी।

रामसिंह की पत्नी ने बाबा का धन्यवाद दिया तथा बाबा वहां से चले गए। रामसिंह को जब होश आया तो उसकी पत्नी ने उसे सभी बातें बताई।

रामसिंह को बहुत पछतावा हुआ उसने अपनी गलती के लिए अपनी पत्नी से क्षमा भी मांगी।

अब दोनो फिर से अपनी खुशहाल जीवन को दूसरों की सेवा करते हुए जीने लगे।

टैक्सी चलाने वाला भूत

एक गांव था। वहां एक हरिया नामक युवक की मृत्यु हो गयी थी। अपनी मृत्यु से पहले वह टैक्सी चलाया करता था। वह अपने जीवनकाल में बहुत ही ईमानदार मनुष्य था।

परन्तु आपसी दुश्मनी के चलते उसे किसी अपने ही रिश्तेदारों ने मार डाला।

मृत्यु के बाद उसका क्रियाकर्म नहीं किया गया ।इसलिए अब वह एक भूत बन गया। उसके पास शक्तियां बिल्कुल भी नही  थी, जिस से वह अपनी मौत का बदला अपने रिश्तेदारों से ले सके।

उसे पता लगा कि यदि मैं अमावस्या की रात 10 लोगो की एकसाथ बलि चढ़ाकर उनका खून पी लूं तो मैं बहुत ही ताकतवर हो जाऊंगा एवं अपनी मौत का बदला भी ले सकूंगा।

अब वह गांव के टैक्सी स्टैंड पर जाता और जो भी उसे यात्री दिखते थे उनको जंगल के एक सुनसान जगह पर रख देता। 2-3 लोगों को उसने अगवाह कर लिया था।

उन लोगों की खबर बहुत जल्द ही आस पास के क्षेत्र में फैल गयी। वह अब सतर्क हो गया।

वहीं दूसरी ओर गाँव में इस बात का बहुत खौफ हो गया। अब कोई भी टैक्सी से सफर बिल्कुल भी नहीं करना चाहता था। एक दिन शोभा एवं उसके पति धीरज को कोई काम था,

और उन्हें बाजार जाना था बाजार जाने के लिए टैक्सी की ज़रूरत पड़ती थी। उन्हें जाने मे डर भी लग रहा था परन्तु जाना भी बहुत ही आवश्यक था।

अब गलती से वे दोनों हरिया की ही टैक्सी में बैठ गए। हरिया उन्हें बेहोश कर के गाड़ी से थोड़ा आगे ले गया और फिर वहाँ से गायब हो गया।

अगले दिन शोभा और उसके पति की खबर पूरे गांव में फैल गयी। गांववालों ने उनके अगुवाई की खबर थाने में कराई। पुलिसकर्मियों ने पूरे शहर एवं जंगल में कैमरे लगवा दिए।

अब उन्हें कैमरे की मदद से पता लगा कि सारा मामला क्या है। वह अपनी पूरी टीम को लेकर जंगल पहुंचे। हरिया के क्षेत्र में आते ही, पुलिसकर्मियों के सारे उपकरणों ने काम करना पूरी तरह से बंद कर दिया।

जब पुलिसवालों ने उससे पूछा कि वह इतने लोगो को अगवाह क्यो कर रहा है तो हरिया भूत ने बताया कि मुझे अपना बदला लेना है। और भी सारी बाते  बता दी।

अब उसने उन पुलिसवालों को भी बन्दी बना दिया। कम से कम 10 लोग भी हो चुके थे। अब उसे केवल अमावस्या की रात का इंतजार था।

उन्हीं में से एक पुलिसकर्मी वहां से जैसे तैसे भाग निकला, उसने गांव में जाकर पता किया कि उसके रिश्तेदार कौन है, उनसे मिलकर उसने उन्हें हरिया के बारे मे बताया तथा हरिया के क्रियाकर्म करने की बात भी कही।

सभी ने मिलकर अमावस्या से पहले ही हरिया का क्रियाकर्म कर दिया। अब हरिया की आत्मा मुक्त हो गयी। हरिया के कातिलों को जेल में डाल दिया गया एवं इस तरह सभी गांववालों को बचाया गया।

चुड़ैल और डॉक्टर

विलासपुर नामक एक गांव था। वहां सभी लोग बहुत ही सभ्य एवं एक दूसरे की मदद करने वाले थे। वहां एक डॉक्टर था विशम्भर जो कि पूरे गांव का इकलौता डॉक्टर था।

वह पूरी ईमानदारी से अपना कार्य करता था एवं गांव के सभी लोग उस पर बहुत ही भरोसा किया करते थे। विशम्भर एक समझदार एवं कर्तव्यपरायण मनुष्य था।

वह अपने समाज के प्रति सभी कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाता था।

एक बार उस गांव में एक अन्य डाक्टर आया। वह केवल अपने भले के लिए वहां आया था एवं अपने लिए ही अब कुछ करना चाहता था। आरंभ में एक-दो लोग उसके दवा खाने गए ,

परन्तु उसने उन लोगों से इलाज के नाम पर कई रुपये लूटे औऱ न ही उनको अच्छी दवाई दी। इसके पश्चात वे लोग विशम्भर डॉक्टर के ही पास गए।

डॉक्टर विशम्भर के दवाखाने के आगे बहुत ही भीड़ लगी रहती थी।

क्योंकि गांव के किसी भी इंसान में से कोई भी उस दूसरे डॉक्टर के वहां बिल्कुल भी नहीं जाना चाहते थे।

वह दूसरा डॉक्टर विशम्भर के दवाखाने के आगे इतनी अधिक भीड़ को देखकर हैरान रह जाता एवं मन ही मन सोचता कि, मेरे दवाखाने में इतने लोग क्यो नहीं है। बहुत दिन बीत गए

उसके दवाखाने में कोई भी नहीं आया । अब उसका दवाखाना पूरी तरह बन्द होने की कगार पर आ खड़ा हुआ था। वह बहुत ही दुखी रहने लगा था। उसने सोचा, मेरी सहायता अब एक ही कर सकता है और वह है, जंगल के गुफा वाली चुड़ैल।

वह डरते हुए उस जंगल गया और चलते चलते उस चुड़ैल की गुफा के आगे पहुंच गया। वह बहुत ही सहमा हुआ था। क्योंकि उसे अपनी जान का भी डर था, कि कहीं वह चुड़ैल मुझे अंदर जाते ही न मार डाले।

वह डरते हुए गूफ़ा के अंदर गया।

चुड़ैल को जब यह पता लग गया था कि कोई इंसान वहां आ रहा है वह बहुत ही प्रसन्न हुई, और बोली, ” आज तो मेरा भोजन स्वयं चलकर मेरे पास आ रहा है। हा हा हा हा….”

डॉक्टर अंदर पहुंचा। उसने चुड़ैल से डरते हुए कहा, ” मुझे आपकी सहायता चाहिए।” चुड़ैल बोली, ”सहायता ! कैसी सहायता ? मैं भला तेरी सहायता क्यो करूँगी। मैं तो तुझे खाने वाली हूँ।

तू बचेगा तभी तो अपने काम को कर पाएगा। मेरे खाने के पश्चात तुझे किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।”

वह बोला, ” मैं आपके लिए भोजन का इंतजाम कर सकता हूँ।”

चुड़ैल बोली, ठीक है, बता क्या सहायता चाहिए! तब वह बोला, ” मुझे आप ऐसी दवाई बनाकर दो जिससे मैं जिसका भी इलाज करूं वह जल्द से ठीक हो जाए,

फिर मेरे ही दवाखाने में सब अपना इलाज के लिए आए। मैं उन्ही मे से किसी को आपके भोजन के लिए रख दूँगा।”

चुड़ैल मान गयी तथा उसको एक दवा बना कर दे दी। अब डॉक्टर वह दवाई किसी को भी देता तो वह दवा की एक खुराक लेने से ही पूरी तरह से ठीक हो जाता था। अब पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी।

इसके पश्चात उस डॉक्टर के दवाखाने के आगे भी विशम्भर से भी अधिक भीड़ लगी रहती।

परन्तु दूसरी ओर लोगों को महसूस हो रहा था कि गांव में लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती ही जा रही है। उस डॉक्टर के दवाखाने के पास एक आदमी रहता था,

वह किसी न किसी रोगी को रात को दवाखाने में भर्ती होते हुए देखता था। और सुबह होते ही वह मरीज गायब हो जाता था। उसे कुछ गड़बड़ लगी,

जब उसने एक दिन रात को इस बात की तहकीकात की तो उसे मालूम हुआ कि कोई चुड़ैल आती है, और उस मरीज को खा जाती है। यह बात उसने गांववालों को बताई। सभी गांववाले बहुत चिंतित हो गये।

और उन्होंने सोचा, कि हम सब मिलकर उस जंगल की चुड़ैल एवं उस डॉक्टर को सबक सिखा कर रहेंगे।

सब मिलकर गांव के ऋषि के पास गए। ऋषि ने उनको एक अभिमंत्रित जल दिया एवं उनसे कहा, अगर तुम इस जल को उस चुड़ैल के ऊपर डाल दोगे तो वह चुड़ैल सदैव के लिए नष्ट हो जाएगी।

सभी गांववालों ने निर्णय किया कि वे सभी रात को डॉक्टर के दवाखाने जाएंगे और उस चुड़ैल का विनाश कर देंगे। और उन्होंने ऐसा ही किया! वह बिना किसी शोर के डॉक्टर के दवाखाने में छिपे हुए थे। उन सभी के हाथ में वह अभिमंत्रित जल था।

जैसे ही चुड़ैल अपना भोजन लेने के लिए वहां आई, सभी ने एक साथ मिलकर चुड़ैल के ऊपर वह अभिमंत्रित जल फेंक दिया, जिसके कारण वह जलकर भस्म हो गयी।

अब सभी गांववालों को उस चुड़ैल के डर से छुटकारा मिल गया। सभी ने मिलकर दूसरे डक्टर को सबकी जान के साथ खेलने के जुर्म में पुलिस को सौंप दिया।

अब सभी गांव में बहुत ही खुशी खुशी रहने लगे।

मुँहनोचवा प्रेत

एक गांव था सोनपुर, वहाँ सभी लोग बहुत ही प्यार एवं भाईचारे के साथ रह करते थे। उस गांव के लोगों का सबक अपना अपना धंधा था जिसके कारण सब परिवार सम्पन्न थे। और सभी के पास बहुत सी जमीनें भी थीं।

एक बार दो व्यापारी दोस्त राजू एवं सुरेंद्र बाजार से अपने सामान की बिक्री कर घर वापस आ रहे थे, दोनो एक -दूसरे से बात भी कर रहे थे,

कि आज का दिन तो अच्छे से गुजर गया अब जल्दी घर जाकर कल की तैयारी करनी है। दूसरा भी इस बात पर हामी भर रहा था। रात बहुत हो चुकी थी।

तभी उनको एक आवाज आई, ” आओ मेरे पास आओ! मैं तुम्हारी सभी कठिनाइयों को दूर कर दूंगा। हा हा हा हा हा….”

राजू एवं सुरेंद्र की डर के मारे सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। अब वे दोनों डर के मारे कांपने लगे। जब सुरेंद्र ने पीछे मुड़ कर देखा तो कोई भी नहीं था।

परन्तु जैसे ही वह आगे मुड़ा एक भयानक राक्षस उसके सामने खड़ा था। राजू दिल का थोड़ा कच्चा था वह प्रेत को देखते ही तुरंत बेहोश हो गया। अब सुरेंद्र पर जिम्मेदारी थी कि वह राजू की भी जान बचाए तथा अपनी भी।

सुरेंद्र भागने लगा, परन्तु जिस दिशा में भी सुरेंद्र भागने का प्रयत्न करता राक्षस उसके सामने आ खड़ा होता। अब वह बहुत ही अधिक डर गया। राक्षस ने उसे अब अपनी शक्तियों से बांध दिया।

अब उसने भयानक स्वर में कहा, ” मुझसे भागने की कोशिश कर रहा था! अब बोल कहाँ जाएगा। मुझसे अब तुझे कोई भी नहीं बचा सकता। हा हा हा हा…”

सुरेंद्र वहीं जमकर खड़ा हो गया और उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। प्रेत ने उसके शक्ल की बहुत बुरी हालत कर दी। अपने बड़े बड़े नाखूनों से राक्षस ने सुरेंद्र का पूरा मुह नोच डाला था।

अब वह बेहोश हुए राजू के पास गया। राजू तो बेहोश पड़ा था, उसको कुछ पता ही नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है! राक्षस ने उसका भी पूरा मुँह अपने लम्बे लम्बे नाखूनों से नोच डाला था।

औऱ वहां से चला गया। अब बंधा हुआ सुरेंद्र भी खुल गया। तब उसने अपने मुंह पर हाथ फेरा तो उसे एहसास हुआ कि उसके चेहरे के साथ उस राक्षस ने कुछ न कुछ तो किया है, अब उसे राजू की याद आई।

वह भाग कर राजू के नजदीक पहुंचा तो उसने देखा कि राजू का चेहरा बहुत ही बुरी तरह से बिगड़ा हुआ है, उस राक्षस ने दोनों के चेहरे को नोच कर बिगाड़ दिया था।

सुरेंद्र ने अपने दोस्त को होश में लाने के लिए उस पर कुछ पानी के छीटें डाले। जब राजू उठा तो, उसने भी सुरेंद्र का मुंह देखा तब सुरेंद्र ने उसे बताया कि हम दोनों की ऐसी हालत उस राक्षस ने ही की है।

राजू बोला, “मैं तो यह सोच ही रहा था कि आज हमारी जान तो गयी! तभी मुझे चक्कर आ गया था। मुझे क्षमा कर दो दोस्त मैं तुम्हारी सहायता बिल्कुल भी न कर सका। चलो अब गांव चलकर सबको इस बारे में बताते हैं ताकि सब सतर्क हो जाएं। ”

दोनों भाग कर गांव चले गए। रात का समय था सभी लोग सोए हए थे, गांव में बहुत ही सन्नाटा पसरा हुआ था। दोनों ने यह निश्चय किया कि वे इस बारे में अब सुबह ही सबसे बात करेंगे। दोनों जाकर अपने अपने घरों में सो गए।

सुबह हुई जैसे ही वे दोनों बाहर आए सब उनके मुख को देखकर हैरान रह गए। गांव के सभी लोग उनसे उनकी इस हालत का कारण जानने के लिए बहुत उत्सुक थे, एवं बहुत ही डरे हुए भी थे।

तब मुँहनोचवा राक्षस की सारी बात उन लोगों ने गांववालों को बता दी। सरपंच भी वहां आकर खड़ा हो गया था। अब सरपंच ने लोगो से कहा,

रात में क्या पता दोनो बाजार से नशा करके आए हुए हों और रस्ते में कंकरीट या किसी कांटेदार झाड़ियों में गिर गए हों। तभी इनकी हालत ऐसी हुई है! और अपने किसी डरावने स्वप्न के बारे में यह हमें बता रहे हो ।

आप लोग दुखी बिल्कुल भी न हो ऐसा कुछ भी नहीं है। राजू एवं सुरेंद्र ने सभी को बहुत समझाने की कोशिश की परन्तु किसी ने भी उनकी बातें नहीं मानी। सब अपने अपने काम की ओर चल दिये।

उसी शाम को मोहन भी अधिक रात को बाजार से लौट रहा था। उसे भी वहां मुँहनोचवा दिख गया। अब उसे एहसास हुआ कि जो कुछ भी राजू एवं सुरेंद्र कह रहे थे वो सब सच ही था।

वह बहुत ही डर गया, और मुहनोचवे के पैरों पर गिर गया। वह बहुत गिड़गिड़ाया। परन्तु मुहनोचवे ने उसकी एक न सुनी और उसको भी जान से न मारकर उसका भी मुँह नोच डाला।

अगली सुबह मोहन भी राजू एवं सुरेंद्र से जाकर मिला। उसने इन दोनों को अपना मुंह दिखाया एवं उनसे कहा, ” मुझे क्षमा कर दो भाइयों  मैंने आप दोनों की बात नहीं मानी और देखो,

आज मुहनोचवे ने मेरा यह क्या हाल कर दिया है। हमें इस ख़बर के बारे में अब अधिक जागरूक होने की ज़रूरत है। चलो गांववालों से चलकर बात करते हैं। गांव के सभी लोग इकट्ठे हुए एवं मोहन ने भी अपनी बात रखी।

वही पर मौजूद सरपंच ने कहा, ” मैं तो यही कहूँगा की ये सब इन तीनो की मिली भगत है। असल मे ये तुम सबका व्यापार पूरी तरह से नष्ट करना चाहते हैं।”

सभी गांववाले अपने व्यापार के बारे में सुनकर बहुत क्रोधित हो गए तथा उन तीनों को डाँठ फटकार कर वहां से चले गए। अब उनके सामने यह समस्या थी कि वे अपनी बात को कैसे लोगों को समझाएं।

उसी रात अब एक लड़की की हत्या हो गयी। अगली सुबह जब लोगों ने उस लड़की की लाश को देखा तो सब हैरान हो गए। लड़की का मुंह नोचा हुआ था, एवं गले मे कुछ निशान बने हुए थे।

मोहन राजू एवं सुरेंद्र को यह मालूम हो गया कि यह मुहनोचवे का ही काम है। तीनो चिंतित हुए कि अब तो राक्षस लोगो को मारने भी लगा है।

राजू अपने काम से तालाब की ओर जा रहा था, उसने देखा कि वहां तो मुँहनोचवा खड़ा है! और वह सरपंच के साथ कुछ बात भी कर रहा है।

वह पास गया और उसने जो देखा उससे वह आश्चर्य चकित रह गया। अब वह अपने मित्र सुरेंद्र के पास पहुंचा।

तथा सुरेंद्र को बताया कि वह राक्षस सरपंच के अधीन है। जैसा सरपंच कहता वह वैसा ही करता है। सरपंच के हाथ मे एक छड़ी थी वह उसी से उस राक्षस को नियंत्रित कर रहा था।

सरपँच हम सबकी जमीनें हड़पना चाहता है। सुरेंद्र ने कहा, ” हमे कैसे भी कर के वह छड़ी उस सरपँच से छीनकर जलानी होगी।

दोनो रात को छिपते हुए सरपँच के घर में पहुंच गए तथा राजू को सरपंच के तकिए के नीचे वह छड़ी मिल गयी। परन्तु जैसे ही राजू ने उस छड़ी को पकड़ा राक्षस वहां प्रकट हो गया।

उसने राजू का गला पकड़ लिया सुरेंद्र ने झट से राजू से वह छड़ी छीनी और उसको अपनी मशाल से जला दिया।

राक्षस भी इसी छड़ी के साथ जलकर नष्ट हो गया। अब सरपंच ने सबके सामने अपनी गलती मान ली तथा स्वयं को कानून के हवाले कर दिया।

मकान मालिक का भूत

गुजरात राज्य के जिला-जामनगर के नगर- जाम-खंभालिया की यह घटना बताई गई है। आज से लगभग 60 वर्ष पहले जाम-खंभालिया नगर में नागरपाड़ा विस्तार में पमिनाबहन एवं शांताबहन के परिवार रहते थे। पमिनाबहन की उम्र 80 साल के करीब थी एवं उनके एक पुत्री थी। जिनका नाम पूरीबहन था। परिवार में दो बेटे भी थे। पमिनाबहन जिस मकान में रहती थीं उस मकान में अचानक अजीबो-गरीब घटनायेँ होने लगीं। जैसे कि –

  • दोपहर के समय अचानक चूल्हे का जल जाना।
  • बरामदे में पड़ी खाट तुरंत जमीन से ऊपर हो जाना।
  • चाय पकने की सुगंध आने लगना।
  • बरतन तेजी से गिरना।
  • एवं डरावनी आवाज़े आना, अगेरा – वगैरा।

दिन प्रति दिन अजीब-अजीब घटनाएँ बढ्ने लगी, एवं पूरा परिवार खौफ में जीने लगा। पमिनाबहन के परिवार ने पाठ पूजा, मंत्र हवन, करने से ले कर ओझा, ज्योतिष, सभी के दरवाजे खटखटाये पर पारलौकिक भूतिया घटनाएँ घटने की वजाये और बढ्ने लगीं।

अंत में हार कर पमिनबहन एवं उनके परिवार ने घर छोड़ के वहाँ से चले जाने का निर्णय कर लिया।

पमिनाबहन एवं उनकी बेटी अपना सामान बांधने लगीं। तभी उनके पड़ोसी शांताबहन आयीं एवं उन्हें समझया कि घर छोड़ कर जाना कोई उपाय नहीं है, इस परेशानी से भागने की बजाय उसका सामना करना चाहिए।

शांताबहन की सलाह मान कर पमिनाबहन एवं उसका परिवार हिम्मत जोड़ कर रुकने का निर्णय कर लिया। और उसके पश्चात घर पर होने वाली असामान्य घटनाओं को नज़रअंदाज़ करना आरंभ कर दिया। ऐसा करने पर दिन प्रति दिन असामान्य गतिविधियां घटने लगीं एवं पमिनाबहन के परिवार का जीवन पूरी तरह से सामान्य होने लगा।

नगर में पमिनाबहन के अनुभव की बात फैलने पर नगर के किसी अनुभवी मनुष्य के द्वारा यह सब पता चला कि जिस मकान में पमिनाबहन का परिवार रहता है, उस जगह के पुराने मालिक के पास से, उसके सगे संबंधियों ने वह मकान हड़प लिया था तथा मरते समय भी मकान मालिक का जी उसी मकान में था, इसी कारण वह इन्सान अपने मकान में किसी भी मनुष्य की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं कर पाता था।

पमिनाबहन एवं उनके परिवार को यह हकीकत पता चलते ही, वह लोग मकान मालिक की अतृप्त आत्मा की मुक्ति का उपाय करवा देते हैं।

“हिन्दू धर्म शास्त्रो के मुताबिक यदि किसी मनुष्य का मोह मरने के पश्चात किसी वस्तु में रह जाए तो उसके छुटकारे के लिए आवश्यक मंद व्यक्तियों को दान दिया जाता है, और अतृप्त मनुष्य की आत्मा के छुटकारे के लिए खास पूजा-अर्चना एवं शांति पाठ किए जाते हैं।”

आज भी पमिनाबहन के वंशज-परिवार जन उस मकान में शांति से रह रहे हैं, एवं इस घटना के उपचार के पश्चात आगे कभी उस घर में कोई असामान्य घटना बिल्कुल भी नहीं हुई है।

जंगल की चुडैल

समीर एवं उसका छोटा भाई वीरू अपने मामा के घर से छुट्टिया बिता के घर लौट रहे थे. घर जल्दी पहुंचे इस वज़ह समीर ने जंगल वाले शोर्ट कट से जाने का निर्णय लिया. मगर वीरू उस रस्ते से आने के लिए तैयार बिल्कुल भी न था.क्योंकि बड़े-बूढ़ों से उसने जंगले में चुडैल एवं भूत प्रेत की कहानियां सुन रखी थी.

वह बोला भैया मैं जंगले के रास्ते बिल्कुल भी नहीं आऊंगा. क्योंकि वहाँ चुड़ैल का साया है. समीर बोला क्यों तू बेकार मे डर रहा  है. तेरा बड़ा भाई है ना  तेरे साथ. और ये भूत प्रेत चुड़ैल कुछ भी नहीं होता. सिर्फ मन घडन कहानियां होती है तथा फिर हम घर जल्दी भी तो पहुँचेगे.

किसी तरह समझा बूझा के समीर ने उसे मना लिया और कार पक्की सड़क छोड़ के  जंगल के रास्ते मोड़ ली. तक़रीबन 10 मिनिट गाड़ी चलाते रहने के पश्चात उन्हें एक झोपडी दिखाई दी. जिसके आंगन में एक बुढ़िया झाड़ू लगा रही थी. समीर बोला देख छोटे जंगल में कोइ रहता भी है.

वीरू बोला भाई पक्का इंसान ही है न. या फिर कोई चुड़ैल. समीर बोला फट्टू साले तू कही ले जाने के लायक ही नहीं है. तू सो जा इतना बोल के समीर उस पर हंसने लगा.  आगे चलकर थोड़ी देर पश्चात उन्हें फिर से वही झोपड़ी दिखाई दी तथा वही बुढ़िया आंगन में बैठी थी.

वीरू बोला समीर भाई समीर भाई देखो वही बुढ़िया एवं झोपड़ी यहाँ फिर से आ गई. लगता है आज हम मरने वाले है. समीर बोलो फिर से हो गया तेरे जैसा चालू कोई नही और झोपड़ी भी तो हो सकती है क्या. बुढ़िया को हमने नजदीक से थोड़ी न देखा है.

ये बोलकर उसने वीरू का मुह बंद करा कर थोड़ी देर पश्चात जब वही झोपड़ी  फिर से दिखी और इस बार समीर की भी फट के हाथ में आ चुकी थी. डर से उसका चेहरा  एकदम से पीला पड़ने लगा तथा वीरू के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ चुकी थी. समीर वीरू से  बोला मुझे अपनी घडी दे. वीरू रोते-रोते बोला क्यों मरने से पहले मेरी घड़ी लेना चाहते हो क्या. बोला था न जंगल के रास्ते मत चलो .

समीर बोला तू सिर्फ़ घडी दे. और रोना बंद कर बाकि मैं संभालता हूँ. वीरू ने घड़ी निकाल के गुस्से में समीर की ओर फैक दी. समीर ने घडी में टाइम देखा. शाम के 5 बज चुके थे. उसने वह  घड़ी कार से उस झोपड़ी के नज़दीक रास्ते में एक स्थान  ही गिरा दी.

और गाड़ी तेजी से भगाइ थोड़ी देर पश्चात उन्हें वह झोपड़ी वापस दिखी पर इसबार बुढ़िया वहाँ पर बिल्कुल नहीं थी. वीरू रोते-रोते  बोला भाई अब हम पक्का मरने वाले हैं. समीर कुछ भी नहीं बोला. झोपड़ी के पास पहुँचकर उसी स्थान उसने अपनी गाड़ी रोक दी तो  उसे वीरू की घड़ी वही पर पड़ी मिली.

उसमे समय हुआ था 5 बजके 10 मिनट समीर समझ गया था. कि वह किसी छलावे के फंदे में फस गए है.उसने वीरू को घड़ी दी उसने रोते-रोते वह पहन ली. समीर ने उससे कहा की तू गाड़ी में ही रुक में उस भूतनी से मिलकर आता हूँ. तथा झोपडी की ओर चल दिया.

वीरू चिल्ला रहा था भैया वहा मत जाओ वो चुड़ैल है चुड़ैल. फिर अचानक वीरू के गाल पर एक चमाट पड़ा और आवाज़ आयी.घर आ गया छोटे उठ्जा.

और वीरू आँख मलते हुए उठा तो गाड़ी घर के आंगन में खड़ी में थी.और समीर कार से सामान निकाल रहा था और जब वीरू ने घड़ी में समय देखा तो 5 बजके 10 मिनट हो रहे थे. समीर ने आकर उससे पूछा तू नीदं क्या बड बड़ा रहा था. कि आज हम मरने वाले है—आज हम मरने वाले है. समीर की बात सुन कर वीरू स्वयं पर ही मुस्कुराने लगा.

मोंट क्रिस्टो (ऑस्ट्रेलिया)

ऑस्ट्रेलिया का यह जगह बहुत ही खतरनाक मानी जाती है। लोगों का मानना है कि यहां एक महिला की आत्मा इधर – उधर भटकती रहती है।

पति के मृत्यु के पश्चात मिसेज क्रॉली नामक यह महिला कम से कम 23 साल में सिर्फ दो ही बार अपने घर से बाहर निकली। 

इस भूतनी के बारे में यह कहा जाता है कि यह अपने घर में किसी को भी घुसने नहीं देती है। खासकर अपने कमरे में वह सदैव अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती रहती है।

कुछ लोगों का इस बारे में कहना है कि जैसे ही वह जैसे ही उस कमरे में गए उनकी सांस अपने आप पूरी तरह से बंद होने लगी। 

परन्तु कमरे से बाहर आने पर उनका स्वास्थ्य बिल्कुल स्वस्थ हो गया। लाइट का अपने आप जलना एवं बंद हो जाना इस मकान की यह खास निशानी है।