Raja Ram Mohan Roy Biography | Education | Birth| Book

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Raja Ram Mohan Roy का जन्म बंगाल के राधानगर में 22 मई सन् 1772 को हुआ था और उन्हें “भारतीय पुनर्जागरण” के पिता के रूप में भी जाना जाता है. वे बहुविवाह एवं बालविवाह के कट्टर विरोधी थे

Raja Ram Mohan Roy Biography

राजा राम मोहन राय भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों में से एक हैं इन्होंने समाज में चल रही कुरीतियों पर प्रहार कर समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास किया और इसमें काफी हदतक सफल  रहे हैं . इन्हें आधुनिक भारतीय जगत का श्रेय जाता है आइये जानते  हैं राजराम मोहन राय इन हिंदी शोर्ट ऐसे के माध्यम से राजाराम मोहन राय को . 

समाज सुधारक राजाराम मोहन राय का जन्म बंगाल प्रान्त के राधानगर जिले के कान्कुल गाँव के एक रुढ़िवादी ब्राहमण परिवार में 22 मई  सन 1722 को हुआ था. इनके पिता का नाम रामकांत राय और माता का नाम उमा देवी था .माता-पिता ने मात्र 9 वर्ष की आयु में राम मोहन की शादी कर दी थी. लेकिन एक वर्ष से पहले उनकी पत्नी का देहांत हो गया था. 

फिर 10 वर्ष की उम्र में दूसरी शादी हुई जिससे उनके 2 पुत्र हुए लेकिन सन 1826 में दूसरी पत्नी का भी निधन हो गया था. और इसके बाद उनकी तीसरी पत्नी भी ज्यादा समय जीवित नहीं रहीं. राम मोहन ने  14 वर्ष की उम्र में सन्यास लेने की इच्छा जताई . लेकिन उनकी माँ नहीं मानी.राम मोहन ने शादी के बाद भी बनारस जाकर उपनिषद और हिन्दू दर्शन शास्त्र का अध्ययन करते रहे ..

 राम मोहन राय के पिता का स्वर्गवास सन 1803 में हुआ . फिर राजाराम मोहन राय को मुर्शिदाबाद लौटना पड़ा .यहीं पर राम मोहन राय ज़मींदारी का काम करने लगे . राम मोहन राय को सन 1805 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी जॉन दिग्बोय ने वेस्टर्न कल्चर और वेस्टर्न साहित्य से अवगत कराया .

राजा राम मोहन राय की प्राथमिक शिक्षा पटना में फारसी और अरबी भाषाओं में हुई. राजा राममोहन राय ने बनारस में संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद का अध्ययन किया. राजा राममोहन राय सोलह साल की उम्र में अपने गाँव लौटे और हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर तर्क के आधार पर टिपण्णी लिखी .राजा राम मोहन राय ने राजस्व् विभाग में  दीवान के पद पर काम किया .राजाराम मोहन राय सन 1803 से 1814 तक वुडफोर्ड और डिग्बी  डिवीजन पर थे .राजा राममोहन राय ने सन 1814 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और खुद को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के उद्देश्य से कलकत्ता चले गए .

 राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को और उसके पीछे के उद्देश्य को समझा और उसको खत्म करने के बारे में सोचने लगे . सस्ती प्रथा के उन्मूलन के लिए राजा राम्मोहन राय इंग्लैंड चले गए.दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर द्वितीय की पेंशन समस्या निवारण के लिए राममोहन राय फिर इंग्लैंड गए अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को राजा की उपाधि से सम्मानित किया .

Raja Ram Mohan Roy was born on (राजाराम मोहन राय का जन्म)

समाज सुधारक राजाराम मोहन राय का जन्म बंगाल प्रान्त के राधानगर जिले के कान्कुल गाँव के एक रुढ़िवादी ब्राहमण परिवार में 22 मई  सन1722 को हुआ था .

Education of Raja Ram Mohan Roy (राजाराम मोहन राय की शिक्षा)

राजा राम मोहन राय की प्राथमिक शिक्षा पटना में फारसी और अरबी भाषाओं में हुई थी. राजा राममोहन राय ने बनारस में संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद का अध्ययन किया.

तर्क्शास्त्र और बहुभाषी थे राजाराम मोहन राय

राजा राममोहन राय ने हिन्दू धर्म ग्रंथो कुरआन और जैन के धर्म ग्रंथों का खूब अध्ययन किया. इसलिए राजा राममोहन राय तर्क शास्त्र में खूब पारंगत हो गए .बनारस से संस्कृत ,बचपन में फ़ारसी और अरबी का अध्ययन किया. राजाराम मोहन राय को इसके अतिरिक्त अंग्रेजी,हिब्रू और हिंदी का बहुत अच्छा ज्ञान था और इन भाषाओं में यह संवाद करने में सहज थे .इसी कारण से अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को इंग्लैंड भेजा . 

राजाराम मोहन राय की मृत्यु

राजाराम मोहन राय की मृत्यु 27 सितम्बर सन 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में हुई थी.

भारतीय समाज में सामाजिक सुधार के महानायक

राजा राम मोहन राय भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण नाम है . राजा राम मोहन राय ने देश के हर महत्वपूर्ण विषय पर बहुत मेहनत से काम किया, और कुरीतियों को खत्म कर आधुनिक भारत का निर्माण किया .  राजा राम मोहन राय के सुधारों के माध्यम से समाज के हर वर्ग ने उत्थान किया . राजा राम मोहन राय अशिक्षा, ,सामाजिक कुरीतियाँ, बाल विवाह, बहु-विवाह,और सटी प्रथा को पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे .

राम मोहन राय महिला अधिकार और महिला सुधार और सशक्तिकरण के पक्ष के लिए हमेशा प्रयास करते रहते थे .राम मोहन राय के प्रयासों से ही आधनिक भारत की नीवं पड़ी .राजा  राम मोहन राय ने सन 1814 आत्मीय सभा की स्थापना की. जिसका उद्देश्य सामाजिक और धार्मिक मुद्दों को आधुनिक स्तर पर लाना था . राजा राम मोहन राय का सोचना था कि इंग्लिश  भारतीय भाषाओं से ज्यादा समृद्ध और उन्नत हैं राजा राम मोहन राय ने सरकारी स्कूलों को संस्कृत के लिए मिलने वाले सरकारी फण्ड का भी विरोध किया और सन १८२२ में इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना की.

राजा राम मोहन राय ने सन 1828 में  ब्रह्म समाज की स्थापना की. इसका उद्देश्य समाज में ईसाईयों के बढ़ते प्रभाव को देखना-समझना और अपने धार्मिक पाखण्ड और  ढोंगों को समझना था .राजा राम मोहन राय के सती प्रथा के विरोध में चलाये जाने वाले अभियानों को प्रयासों को तब सफलता मिली, जब 1829 में सती प्रथा पर रोक लगा दी गई.राजाराम मोहन राय पुनर्जागरण के पिता, महान समाज सुधारक और महान शिक्षाविद थे.

Raja Ram Mohan Roy book  राजाराम मोहन राय की पुस्तकें

देशभक्त पत्रकार और अच्छे लेखक थे राजा राममोहन राय . राम मोहन राय विलक्षण प्रतिभा के धनी थे तथा ये बहुत अच्छे पत्रकार थे राजा राममोहन राय ने ब्राहमणपत्रिका  बंगाली में संवाद कौमुदी  और फारसी साप्ताहिक- मिरात-उल-अकबर निकाला .राजा राममोहन राय ने लेखक सती, प्रिसेप्टस ऑफ जीसस, तुहफ़त-उल-मुवाहिदीन, वेदांत गाथा,हिन्दू धर्म की रक्षा, बंगाली व्याकरण, द यूनिवर्सल रिलीजन, भारतीय दर्शन का इतिहास और गौड़ीय व्याकरण की रचना की .

Raja Ram Mohan Roy college (राजाराम मोहन राय के कॉलेज)

राजा राम मोहन राय जानते थे कि जब तक महिलाओं को अशिक्षा रहेगी तब तक तक हिंदू समाज कभी उन्नति  नहीं कर सकेगा. इसलिए राजा राम मोहन राय ने आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने के लिये बहुत प्रयास किया.राजा राममोहन राय ने शिक्षा के उद्देश्य से हिंदू कॉलेज खोलने के प्रयास में  डेविड हेयर से समर्थन लिया , और  सन 1817 में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की . राजा राम मोहन राय के अंग्रेज़ी स्कूल में मैकेनिक्स और दर्शन जैसे विषय पढाये जाते थे .राजा राममोहन राय ने सन 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना की. जहाँ भारतीय-पश्चिमी विषय और भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमों को पढाया जाता था