somvar vrat katha ke bare me– सावन के महीने में भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ ब्याह रचाया था और सावन के इस पवित्र महीने में ही भगवान शिव धरती पर आते हैं और अपने भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखा जाता हैं, जिसके कई फायदे होते हैं। आज हम आपको सावन के सोमवार (sawan somvar) व्रत का महत्व और इसके लाभ के बारे में बताने जा रहे हैं,
सोमवार व्रत कथा ( somvar vrat katha in hindi)
एक साहूकार बहुत धनवान था | उसको धन आदि किसी बात की कोई कमी नहीं थी , परन्तु पुत्र न होने के कारण वह अत्यंत दुखी था | वह इसी चिंता में रात दिन रहता था और इसलिए वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था |
सायंकाल को शिवजी के मन्दिर में जाकर दीपक जलाया करता था | उसके इस भक्ति भाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिव जी महाराज से कहा कि हे महाराज ! यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रध्दासे करता है अत: इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए |
शिवजी ने कहा किपार्वती जी ! यह संसार कर्मक्षेत्र है | जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है | उसी तरह इस संसार में जो जैसा कर्म करते है वैसा ही फल भोगते है |
पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा कि महाराज ! जब यह आपका ऐसा भक्त है और यदि इसको किसी प्रकार का दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए , क्योंकि आप तो सदैव अपने भक्तों पर दया करते है यदि आप ऐसा नहीं करेंगें तो मनुष्य क्यों कर आपकी सेवा , व्रत पूजन करेंगें |
पार्वती जी का ऐसा आग्रह देख शिवजी महाराज प्रसन्न होकर कहने लगे – हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी पुत्र की चिंता से यह बहुत दुखी रहता है | इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी में इसको पुत्र प्राप्ति का वर देता हूँ , परन्तु वह पुत्र केवल १२ वर्ष तक ही जीवित रहेगा | इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त होगा |
इससे अधिक मै और कुछ इसके लिए नही कर सकता यह सब बात साहूकार सुन रहा था | इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न कुछ दुःख हुआ , वह पूर्ववत वैसे ही शिवजी महाराज का सोमवार का व्रत और पूजन करता रहा |कुछ समय व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई | साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गयी , परन्तु साहूकार ने उसको केवल १२ वर्ष की आयु जान कर अधिक प्रसन्नता प्रकट नही की और न ही किसी को भेद बताया |
जब बह ९ वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके पिता से उसके विवाह आदि के लिए कहा , परन्तु वह साहूकार कहने लगा – मै अभी इसका विवाह नही करूंगा , और काशी जी पड़ने के लिए भेजूंगा | फिर उस साहूकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुलाया उसको बहुत सा धन देकर कहा – तुम इस बालक को काशी जी पड़ने के लिया ले जाओ और रास्ते में जिस जगह भी जाओ वहां यज्ञ करते , दान देते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ |
इस प्रकार वह दोनों मामा भांजे सब जगह यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे | रास्ते में उनको एक शहर पड़ा | उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दुसरे राजा का लड़का जो विवाह के लिए बरात लेकर आया था वह एक आँख से काना था लड़के के पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देख कन्या के माता – पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दे |
इस कारण जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय पर इस लड़के से वर का काम ले लिया जाय | ऐसा विचार कर राजा ने उस लड़के और उसके मामा से कहा तो वह राजी हो गये और साहूकार के लड़के का स्नान आदि करा , वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चड़ा दरवाजे पर ले गये , और बड़ी शान्ति से सब कार्य हो गये | अब वर के पिता ने सोचा यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा दिया जाय तो क्या वुराई है |
ऐसा विचार कर के उसके मामा से कहा यदि आप फेरो और कन्यादान का काम भी करा दें , तो आपकी बड़ी कृपा होगी और हम इसके बदले में आपको बहुत सा धन देंगें | उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो गया , परन्तु जी समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुंदरी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है और मै तो काशी जी पड़ने जा रहा हूँ |
उस राजकुमारी ने जब अपनी चुंदरी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इंकार कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नही है | मेरा विवाह इसके साथ नही हुआ | वह तो काशी जी पड़ने गया है |
कुमारी के माता – पिता ने अपनी कन्या को विदा नही किया और बारात बापस चली गयी | उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुँच गये | वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढना शुरू कर दिया | जब लड़के की आयु १२ वर्ष की हो गयी | तब एक दिन उन्होंने यज्ञ रच रखा था कि उस लड़के ने अपने मामा से कहा – मामा जी ! आज मेरी तबियत कुछ ठीक नही है |
मामा ने कहा कि अंदर जाकर सों जाओ | लड़का अंदर जाकर सों गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गये | जब उसके मामा ने आकर देखा कि वह तो मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि मै अभी रोना – पीटना मचा दुंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा | अत: उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के घर जाने के पश्चात रोना – पीटना आरम्भ कर दिया |
संयोगवश उस समय शिवजी महाराज और पार्वती जी उधर से जा रहे थे | जब उन्होंने जोर – जोर से रोने – पीटने की आवाज सुनी तो पार्वती जी शिवजी को आग्रह करके उसके पास ले गयी और सुंदर लड़के को मरा हुआ देखकर कहने लगी कि महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से पैदा हुआ था |
शिवजी ने कहा कि पार्वती जी इसकी आयु इतनी ही थी सों भोग चुका | पार्वती जी ने कहा कि महाराज कृपा करके इस बालक को और आयु दो नही तो इसके माता – पिता तड़प – तड़प कर मर जायेंगे | पार्वती जी के इस प्रकार बार – बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको वरदान दिया और शिवजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया |
शिव पार्वती कैलाश चले गये | तब वह लड़का और उसका मामा उसी प्रकार यज्ञ कराते हुए अपने घर की तरफ चल पड़े और रास्ते में उसी शहर में आये , जहाँ पर उस लड़के का विवाह हुआ था वहाँ पर आकर जब उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में लाकर उसकी बड़ी खातिर की , साथ ही बहुत सारा धन और दासियों सहित बड़े आदर और सत्कार के साथ अपनी लड़की और जमाई को विदा किया |
जब वह अपने शहर के निकट आये तो उसके मामा ने कहा कि पहले मै तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूँ | उस समय उसके माता – पिता अपने घर की छत पर बैठे हुए थे और उन्होंने यह प्रण कर रहा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर आया तो राजी खुशी नीचे आ जायेंगे , नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण दे देंगे |
इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह सारा समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है परन्तु उनको विश्वास न आया , तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री तथा बहुत सारा धन लेकर आया है , तो उस सेठ ने बड़े आनंद के साथ उनका स्वागत किया और वह बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे |
इसी प्रकार जो कोई भी सोमवार का व्रत धारण करता है अथवा इस कथा को पड़ता या सुनता है उसके दुःख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती है इससे लोक में नाना प्रकार के सुख भोगकर अंत में सदाशिव के लोक की प्राप्ति हुआ करती है |
Somvar Vrat Katha – Benefits
* सोमवार व्रत का संकल्प सावन में लेना सबसे उत्तम होता है, इसके अलावा इसको अन्य महीनों में भी किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से शिव लिंग की पूजा होती है और उस पर जल तथा बेल पत्र अर्पित किया जाता है।
* अगर कुंडली में आयु या स्वास्थ्य बाधा हो या मानसिक स्थितियों की समस्या हो तब भी सावन के सोमवार का व्रत श्रेष्ठ परिणाम देता है।
* कोई भी व्यक्ति जिसको स्वास्थ्य की समस्या हो, विवाह की मुश्किल हो या दरिद्रता छायी हो अगर सावन के हर सोमवार को विधि पूर्वक भगवान शिव की आराधना करता है तो तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकता है।
* सोमवार का दिन चंद्र ग्रह का दिन होता है और चंद्रमा के नियंत्रक भगवान शिव हैं। अतः इस दिन पूजा करने से न केवल चंद्रमा बल्कि भगवान शिव की कृपा भी मिल जाती है।
* सोमवार और शिव जी के संबंध के कारण ही मां पार्वती ने सोलह सोमवार का उपवास रखा था। सावन का सोमवार विवाह और संतान की समस्याओं के लिए अचूक माना जाता है।
* अगर कुंडली में विवाह का योग न हो या विवाह होने में अड़चने आ रही हों तो संकल्प लेकर सावन के सोमवार का व्रत(somvar vrat) किया जाना चाहिए।
* भगवान शिव की पूजा के लिए और खास तौर से वैवाहिक जीवन के लिए सोमवार की पूजा की जाती है।