पुत्रदा एकादशी व्रत कथा हिंदी में | Putrada Ekadashi Vrat Katha

Dharmik Chalisa & Katha

Putrada Ekadashi Vrat Katha के विषय में बताया जाता है कि श्री युधिष्ठिर कहते हैं हे प्रभु ! आप मुझे श्रावण शुक्ल एकादशी के बारे में बताएं. तब मधुसूदन भगवन नें उन्हें सब विस्तार से बताया और कहा कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है. आइये भक्तों जानते हैं पुत्रदा एकादशी व्रत कथा इन हिंदी. 

महत्त्व

बता दें कि पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं. पुत्रदा एकादशी के पुण्य फल से जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है एवं मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है. 

पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी या फिर वैकुंठ एकादशी का व्रत रखा जाता है. दरअसल पुत्रदा एकादशी का व्रत हर संतानहीन दंपत्ति को रखने के लिए ही कहा जाता है. 

श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे प्रभु! मैंने श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप मुझे श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि एवं इसका महत्त्व कृपा करके हमें बताये । मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस एकादशी को पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है।

पुत्रदा एकादशी का व्रत करने वाले जातक को पूजा के पश्चात श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए, ऐसा करने से व्रत पूर्ण होता है एवं मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही बहुत बढ़िया फल मिलता है।

व्रत कथा – 

श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था. राजा के शुभचिंतकों ने यह बात अपने महामुनि लोमेश को बताई. 

तब महामुनि ने बताया कि राजा ने अपने पिछले जन्म में कुछ अत्याचार किए हैं. एक बार एकादशी के दिन दोपहर के समय वो एक जलाशय पर पहुंचे. वहां एक बहुत प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया एवं स्वयं पानी पीने लगे. 

लेकिन राजा को ऐसा करना धर्म के बहुत विपरीत था. पूर्व जन्म के कुछ पुण्य कर्मों के कारण वो अगले जन्म में राजा तो बने, परन्तु उस एक पाप के कारण अब तक संतान विहीन हैं. 

तब महामुनि ने बताया कि अगर राजा के सभी शुभचिंतक श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो उन्हें निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होगी. महामुनि के कहने पर प्रजा के साथ-साथ राजा ने भी यह निष्ठापूर्वक व्रत रखा. 

कुछ महीनों के पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. 

तब से ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं.

व्रत विधि- 

बता दें कि आज के दिन स्नान करने के पश्चात स्वच्छ कपड़े धारण करना चाहिए. इसके पश्चात प्रभु विष्णु जी की प्रतिमा के सामने घी का दीप अवश्य जलाएं. तुलसी, फल एवं तिल से प्रभु की पूजा – अर्चना भी करें. ये व्रत निराहार ही करना चाहिए. शाम को पूजा के पश्चात फल ग्रहण कर सकते हैं.  

ऐसा कहा जाता है कि पुत्रदा एकादशी की कथा सुनने के पश्चात विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से प्रभु विष्णु जी की विशेष कृपा बनी रहती है. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का भी बहुत बड़ा फल मिलता है.