जब तक किसी वस्तु के गुण का पता ना हो, महत्व का पता ना हो या उसकी शक्ति का परिचय ना हो तब तक उस वस्तु से लाभ नहीं उठाया जा सकता है. आइये बात करते हैं गायत्री सहस्त्रनाम अर्थात Gayatri Sahasranama के महत्व के विषय में-
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श्री गायत्री सहस्त्रनाम स्तोत्र के विषय में-
गायत्री ईश्वरीय दिव्य शक्तियों का पुंज है इस पुंज में कितनी शक्तियां निहित हैं इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता और ना ही इसकी कोई संख्या बताई जा सकती है उसके गर्भ में शक्तियों का भंडार है शास्त्रों में सहस्त्र शब्द अनंत के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है या यूं कहें सहस्त्र 1000 को कहते हैं पर अन्यत्र अनंत संख्या के लिए भी सहस्त्र का प्रयोग किया जाता है इस प्रार्थना में ईश्वर को सहस्त्र मस्तक और सहस्त्र हाथ पांव नेत्र आदि वाला बताया गया है. यहाँ सहस्त्र का तात्पर्य अनंत दल हैं ना कि एक हजार. ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनसे सहस्त्र का अर्थ अनंत सिद्ध होता है
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माता गायत्री की अनंत शक्तियां
गायत्री की अनंत शक्तियों में से मनुष्य को अभी केवल कुछ ही शक्तियों का पता लग पाया है. जिन शक्तियों का पता लग पाया है उनमें से भी बहुत थोड़ी उपयोग में लाई जा सकी हैं. जो शक्तियां अब तक जानी जा चुकी हैं या समझी जा चुकी हैं उनकी संख्या लगभग एक हजार है. इन हजार शक्तियों के नाम उनके गुणों के अनुसार रखे गए हैं. Gayatri Sahasranamavali
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शक्तियों का परिचय है श्री गायत्री सहस्रनाम स्तोत्र
उन हजार नामों का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में गायत्री सहस्त्रनाम के रूप में मिलता है इन शक्तियों का जानना समझना और पाठ करना इसलिए आवश्यक है कि हमें पता चलता रहता है कि इस शक्ति के पुंज के अंदर क्या-क्या विशेषताएं छिपी हैं और गायत्री की प्राप्ति के साथ-साथ हम किन किन विशेषताओं को अपने अंदर धारण कर सकते हैं. यह पता चल जाने पर ही उनका उपयोग हो सकता है Sri Gayatri Sahasranamavali 1008 Naam.
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गायत्री सहस्रनाम Sri Gayatri Sahasranamavali 1008 Naam का श्रद्धा पूर्वक पाठ करने का शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है तो आइए श्रद्धा पूर्वक गायत्री सहस्रनाम का पाठ करें और उसमें वर्ण नामों पर विचार करते हुए गायत्री की महिमा को समझें और उनसे लाभ उठाएं-
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Gayatri Sahasranama Stotram Lyrics
॥ श्री गायत्री सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥
नारद उवाच –
भगवन्सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
श्रुतिस्मृतिपुराणानां रहस्यं त्वन्मुखाच्छ्रुतम् ॥ 1 ॥
सर्वपापहरं देव येन विद्या प्रवर्तते ।
केन वा ब्रह्मविज्ञानं किं नु वा मोक्षसाधनम् ॥ 2 ॥
ब्राह्मणानां गतिः केन केन वा मृत्यु नाशनम् ।
ऐहिकामुष्मिकफलं केन वा पद्मलोचन ॥ 3 ॥
वक्तुमर्हस्यशेषेण सर्वे निखिलमादितः ।
श्रीनारायण उवाच –
साधु साधु महाप्राज्ञ सम्यक् पृष्टं त्वयाऽनघ (4)
शृणु वक्ष्यामि यत्नेन गायत्र्यष्टसहस्रकम् ।
नाम्नां शुभानां दिव्यानां सर्वपापविनाशनम् ॥ 5 ॥
सृष्ट्यादौ यद्भगवता पूर्वे प्रोक्तं ब्रवीमि ते ।
अष्टोत्तरसहस्रस्य ऋषिर्ब्रह्मा प्रकीर्तितः ॥ 6 ॥
छन्दोऽनुष्टुप्तथा देवी गायत्रीं देवता स्मृता ।
हलोबीजानि तस्यैव स्वराः शक्तय ईरिताः ॥ 7 ॥
अङ्गन्यासकरन्यासावुच्येते मातृकाक्षरैः ।
अथ ध्यानम् प्रवक्ष्यामि साधकानां हिताय वै ॥ 8 ॥
ध्यानम
रक्तश्वेतहिरण्यनीलधवलैर्युक्तां त्रिनेत्रोज्ज्वलां
रक्तां रक्तनवस्त्रजं मणिगणैर्युक्तां कुमारीमिमाम्।
गायत्रीं कमलासनां करतलव्यानद्धकुण्डाम्बुजां
पद्माक्षीं च वरस्रजं च दधतीं हंसाधिरूढां भजे ॥ 9 ॥
अचिन्त्यलक्षणाव्यक्ताप्यर्थमातृमहेश्वरी ।
अमृतार्णवमध्यस्थाप्यजिता चापराजिता ॥ 10 ॥
अणिमादिगुणाधाराप्यर्कमण्डलसंस्थिता ।
अजराजापराधर्मा अक्षसूत्रधराधरा ॥ 11 ॥
अकारादिक्षकारान्ताप्यरिषड्वर्गभेदिनी ।
अञ्जनाद्रिप्रतीकाशाप्यञ्जनाद्रिनिवासिनी ॥ 12 ॥
अदितिश्चाजपाविद्याप्यरविन्दनिभेक्षणा ।
अन्तर्बहिःस्थिताविद्याध्वंसिनी चान्तरात्मिका ॥ 13 ॥
अजा चाजमुखावासाप्यरविन्दनिभानना ।
अर्धमात्रार्थदानज्ञाप्यरिमण्डलमर्दिनी ॥ 14 ॥
असुरघ्नी ह्यमावास्याप्यलक्ष्मीघ्न्यन्त्यजार्चिता ।
आदिलक्ष्मीश्चादिशक्तिराकृतिश्चायतानना ॥ 15॥
आदित्यपदवीचाराप्यादित्यपरिसेविता ।
आचार्यावर्तनाचाराप्यादिमूर्तिनिवासिनी ॥ 16 ॥
आग्नेयी चामरी चाद्या चाराध्या चासनस्थिता ।
आधारनिलयाधारा चाकाशान्तनिवासिनी ॥ 17 ॥
आद्याक्षरसमायुक्ता चान्तराकाशरूपिणी ।
आदित्यमण्डलगता चान्तरध्वान्तनाशिनी ॥ 18 ॥
इन्दिरा चेष्टदा चेष्टा चेन्दीवरनिभेक्षणा ।
इरावती चेन्द्रपदा चेन्द्राणी चेन्दुरूपिणी ॥ 19 ॥
इक्षुकोदण्डसम्युक्ता चेषुसन्धानकारिणी ।
इन्द्रनीलसमाकारा चेडापिङ्गलरूपिणी ॥ 20 ॥
इन्द्राक्षीचेश्वरी देवी चेहात्रयविवर्जिता ।
उमा चोषा ह्युडुनिभा उर्वारुकफलानना ॥ 21 ॥
उडुप्रभा चोडुमती ह्युडुपा ह्युडुमध्यगा ।
ऊर्ध्वा चाप्यूर्ध्वकेशी चाप्यूर्ध्वाधोगतिभेदिनी ॥ 22 ॥
ऊर्ध्वबाहुप्रिया चोर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी ।
ऋतं चर्षिरृतुमती ऋषिदेवनमस्कृता ॥ 23 ॥
ऋग्वेदा ऋणहर्त्री च ऋषिमण्डलचारिणी ।
ऋद्धिदा ऋजुमार्गस्था ऋजुधर्मा ऋतुप्रदा ॥ 24 ॥
ऋग्वेदनिलया ऋज्वी लुप्तधर्मप्रवर्तिनी ।
लूतारिवरसम्भूता लूतादिविषहारिणी ॥ 25 ॥
एकाक्षरा चैकमात्रा चैका चैकैकनिष्ठिता ।
ऐन्द्री ह्यैरावतारूढा चैहिकामुष्मिकप्रदा ॥ 26 ॥
ओङ्कारा ह्योषधी चोता चोतप्रोतनिवासिनी ।
और्वा ह्यौषधसम्पन्ना औपासनफलप्रदा ॥ 27 ॥
अण्डमध्यस्थिता देवी चाःकारमनुरूपिणी ।
कात्यायनी कालरात्रिः कामाक्षी कामसुन्दरी ॥ 28 ॥
कमला कामिनी कान्ता कामदा कालकण्ठिनी ।
करिकुम्भस्तनभरा करवीरसुवासिनी ॥ 29 ॥
कल्याणी कुण्डलवती कुरुक्षेत्रनिवासिनी ।
कुरुविन्ददलाकारा कुण्डली कुमुदालया ॥ 30 ॥
कालजिह्वा करालास्या कालिका कालरूपिणी ।
कमनीयगुणा कान्तिः कलाधारा कुमुद्वती ॥ 31 ॥
कौशिकी कमलाकारा कामचारप्रभञ्जिनी ।
कौमारी करुणापाङ्गी ककुवन्ता करिप्रिया ॥ 32 ॥
केसरी केशवनुता कदम्बकुसुमप्रिया ।
कालिन्दी कालिका काञ्ची कलशोद्भवसंस्तुता ॥ 33 ॥
काममाता क्रतुमती कामरूपा कृपावती ।
कुमारी कुण्डनिलया किराती करिवाहना ॥ 34 ॥
कैकेयी कोकिलालापा केतकी कुसुमप्रिया ।
कमण्डलुधरा काली कर्मनिर्मूलकारिणी ॥ 35 ॥
कलहंसगतिः कक्षा कृतकौतुकमङ्गला ।
कस्तूरीतिलका कम्प्रा करीन्द्रगमना कुहूः ॥ 36 ॥
कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया ।
कूटस्था कुधरा कम्रा कुक्षिस्थाखिलविष्टपा ॥ 37 ॥
खड्गखेटधरा खर्वा खेचरी खगवाहना ।
खट्वाङ्गधारिणी ख्याता खगराजोपरिस्थिता ॥ 38 ॥
खलघ्नी खण्डितजरा खण्डाख्यानप्रदायिनी ।
खण्डेन्दुतिलका गङ्गा गणेशगुहपूजिता ॥ 39 ॥
गायत्री गोमती गीता गान्धारी गानलोलुपा ।
गौतमी गामिनी गाधा गन्धर्वाप्सरसेविता ॥ 40 ॥
गोविन्दचरणाक्रान्ता गुणत्रयविभाविता ।
गन्धर्वी गह्वरी गोत्रा गिरीशा गहना गमी ॥ 41 ॥
गुहावासा गुणवती गुरुपापप्रणाशिनी ।
गुर्वी गुणवती गुह्या गोप्तव्या गुणदायिनी ॥ 42 ॥
गिरिजा गुह्यमातङ्गी गरुडध्वजवल्लभा ।
गर्वापहारिणी गोदा गोकुलस्था गदाधरा ॥ 43 ॥
गोकर्णनिलयासक्ता गुह्यमण्डलवर्तिनी ।
घर्मदा घनदा घण्टा घोरदानवमर्दिनी ॥ 44 ॥
घृणिमन्त्रमयी घोषा घनसम्पातदायिनी ।
घण्टारवप्रिया घ्राणा घृणिसन्तुष्टकारिणी ॥ 45 ॥
घनारिमण्डला घूर्णा घृताची घनवेगिनी ।
ज्ञानधातुमयी चर्चा चर्चिता चारुहासिनी ॥ 46 ॥
चटुला चण्डिका चित्रा चित्रमाल्यविभूषिता ।
चतुर्भुजा चारुदन्ता चातुरी चरितप्रदा ॥ 47 ॥
चूलिका चित्रवस्त्रान्ता चन्द्रमःकर्णकुण्डला ।
चन्द्रहासा चारुदात्री चकोरी चन्द्रहासिनी ॥ 48 ॥
चन्द्रिका चन्द्रधात्री च चौरी चौरा च चण्डिका ।
चञ्चद्वाग्वादिनी चन्द्रचूडा चोरविनाशिनी ॥ 49 ॥
चारुचन्दनलिप्ताङ्गी चञ्चच्चामरवीजिता ।
चारुमध्या चारुगतिश्चन्दिला चन्द्ररूपिणी ॥ 50 ॥
चारुहोमप्रिया चार्वाचरिता चक्रबाहुका ।
चन्द्रमण्डलमध्यस्था चन्द्रमण्डलदर्पणा ॥ 51 ॥
चक्रवाकस्तनी चेष्टा चित्रा चारुविलासिनी ।
चित्स्वरूपा चन्द्रवती चन्द्रमाश्चन्दनप्रिया ॥ 52 ॥
चोदयित्री चिरप्रज्ञा चातका चारुहेतुकी ।
छत्रयाता छत्रधरा छाया छन्दःपरिच्छदा ॥ 53 ॥
छायादेवी छिद्रनखा छन्नेन्द्रियविसर्पिणी ।
छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता छिद्रोपद्रवभेदिनी ॥ 54 ॥
छेदा छत्रेश्वरी छिन्ना छुरिका छेदनप्रिया ।
जननी जन्मरहिता जातवेदा जगन्मयी ॥ 55 ॥
जाह्नवी जटिला जेत्री जरामरणवर्जिता ।
जम्बूद्वीपवती ज्वाला जयन्ती जलशालिनी ॥ 56 ॥
जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितामित्रा जगत्प्रिया ।
जातरूपमयी जिह्वा जानकी जगती जरा ॥ 57 ॥
जनित्री जह्नुतनया जगत्त्रयहितैषिणी ।
ज्वालामुखी जपवती ज्वरघ्नी जितविष्टपा ॥ 58 ॥
जिताक्रान्तमयी ज्वाला जाग्रती ज्वरदेवता ।
ज्वलन्ती जलदा ज्येष्ठा ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी ॥ 59 ॥
जम्भिनी जृम्भणा जृम्भा ज्वलन्माणिक्यकुण्डला ।
झिञ्झिका झणनिर्घोषा झञ्झामारुतवेगिनी ॥ 60 ॥
झल्लरीवाद्यकुशला ञरूपा ञभुजा स्मृता ।
टङ्कबाणसमायुक्ता टङ्किनी टङ्कभेदिनी ॥ 61 ॥
टङ्कीगणकृताघोषा टङ्कनीयमहोरसा ।
टङ्कारकारिणी देवी ठठशब्दनिनादिनी ॥ 62 ॥
डामरी डाकिनी डिम्भा डुण्डुमारैकनिर्जिता ।
डामरीतन्त्रमार्गस्था डमड्डमरुनादिनी ॥ 63 ॥
डिण्डीरवसहा डिम्भलसत्क्रीडापरायणा ।
ढुण्ढिविघ्नेशजननी ढक्काहस्ता ढिलिव्रजा ॥ 64 ॥
नित्यज्ञाना निरुपमा निर्गुणा नर्मदा नदी ।
त्रिगुणा त्रिपदा तन्त्री तुलसी तरुणा तरुः ॥ 65 ॥
त्रिविक्रमपदाक्रान्ता तुरीयपदगामिनी ।
तरुणादित्यसङ्काशा तामसी तुहिना तुरा ॥ 66 ॥
त्रिकालज्ञानसम्पन्ना त्रिवेणी च त्रिलोचना ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा तुङ्गा तुरङ्गवदना तथा ॥ 67 ॥
तिमिङ्गिलगिला तीव्रा त्रिस्रोता तामसादिनी ।
तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा तनुमध्या त्रिविष्टपा ॥ 68 ॥
त्रिसन्ध्या त्रिस्तनी तोषासंस्था तालप्रतापिनी ।
ताटङ्किनी तुषाराभा तुहिनाचलवासिनी ॥ 69 ॥
तन्तुजालसमायुक्ता तारहारावलिप्रिया ।
तिलहोमप्रिया तीर्था तमालकुसुमाकृतिः ॥ 70 ॥
तारका त्रियुता तन्वी त्रिशङ्कुपरिवारिता ।
तलोदरी तिलाभूषा ताटङ्कप्रियवादिनी ॥ 71 ॥
त्रिजटा तित्तिरी तृष्णा त्रिविधा तरुणाकृतिः ।
तप्तकाञ्चनसङ्काशा तप्तकाञ्चनभूषणा ॥ 72 ॥
त्रैयम्बका त्रिवर्गा च त्रिकालज्ञानदायिनी ।
तर्पणा तृप्तिदा तृप्ता तामसी तुम्बुरुस्तुता ॥ 73 ॥
तार्क्ष्यस्था त्रिगुणाकारा त्रिभङ्गी तनुवल्लरिः ।
थात्कारी थारवा थान्ता दोहिनी दीनवत्सला ॥ 74 ॥
दानवान्तकरी दुर्गा दुर्गासुरनिबर्हिणी ।
देवरीतिर्दिवारात्रिर्द्रौपदी दुन्दुभिस्वना ॥ 75 ॥
देवयानी दुरावासा दारिद्र्योद्भेदिनी दिवा ।
दामोदरप्रिया दीप्ता दिग्वासा दिग्विमोहिनी ॥ 76 ॥
दण्डकारण्यनिलया दण्डिनी देवपूजिता ।
देववन्द्या दिविषदा द्वेषिणी दानवाकृतिः ॥ 77 ॥
दीनानाथस्तुता दीक्षा दैवतादिस्वरूपिणी ।
धात्री धनुर्धरा धेनुर्धारिणी धर्मचारिणी ॥ 78 ॥
धुरन्धरा धराधारा धनदा धान्यदोहिनी ।
धर्मशीला धनाध्यक्षा धनुर्वेदविशारदा ॥ 79 ॥
धृतिर्धन्या धृतपदा धर्मराजप्रिया ध्रुवा ।
धूमावती धूमकेशी धर्मशास्त्रप्रकाशिनी ॥ 80 ॥
नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता नन्दनात्मिका ।
नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया ॥ 81 ॥
नारायणप्रिया नित्या निर्मला निर्गुणा निधिः ।
निराधारा निरुपमा नित्यशुद्धा निरञ्जना ॥ 82 ॥
नादबिन्दुकलातीता नादबिन्दुकलात्मिका ।
नृसिंहिनी नगधरा नृपनागविभूषिता ॥ 83 ॥
नरकक्लेशशमनी नारायणपदोद्भवा ।
निरवद्या निराकारा नारदप्रियकारिणी ॥ 84 ॥
नानाज्योतिः समाख्याता निधिदा निर्मलात्मिका ।
नवसूत्रधरा नीतिर्निरुपद्रवकारिणी ॥ 85 ॥
नन्दजा नवरत्नाढ्या नैमिषारण्यवासिनी ।
नवनीतप्रिया नारी नीलजीमूतनिस्वना ॥ 86 ॥
निमेषिणी नदीरूपा नीलग्रीवा निशीश्वरी ।
नामावलिर्निशुम्भघ्नी नागलोकनिवासिनी ॥ 87 ॥
नवजाम्बूनदप्रख्या नागलोकाधिदेवता ।
नूपुराक्रान्तचरणा नरचित्तप्रमोदिनी ॥ 88 ॥
निमग्नारक्तनयना निर्घातसमनिस्वना ।
नन्दनोद्याननिलया निर्व्यूहोपरिचारिणी ॥ 89 ॥
पार्वती परमोदारा परब्रह्मात्मिका परा ।
पञ्चकोशविनिर्मुक्ता पञ्चपातकनाशिनी ॥ 90 ॥
परचित्तविधानज्ञा पञ्चिका पञ्चरूपिणी ।
पूर्णिमा परमा प्रीतिः परतेजः प्रकाशिनी ॥ 91 ॥
पुराणी पौरुषी पुण्या पुण्डरीकनिभेक्षणा ।
पातालतलनिर्मग्ना प्रीता प्रीतिविवर्धिनी ॥ 92 ॥
पावनी पादसहिता पेशला पवनाशिनी ।
प्रजापतिः परिश्रान्ता पर्वतस्तनमण्डला ॥ 93 ॥
पद्मप्रिया पद्मसंस्था पद्माक्षी पद्मसम्भवा ।
पद्मपत्रा पद्मपदा पद्मिनी प्रियभाषिणी ॥ 94 ॥
पशुपाशविनिर्मुक्ता पुरन्ध्री पुरवासिनी ।
पुष्कला पुरुषा पर्वा पारिजातसुमप्रिया ॥ 95 ॥
पतिव्रता पवित्राङ्गी पुष्पहासपरायणा ।
प्रज्ञावतीसुता पौत्री पुत्रपूज्या पयस्विनी ॥ 96 ॥
पट्टिपाशधरा पङ्क्तिः पितृलोकप्रदायिनी ।
पुराणी पुण्यशीला च प्रणतार्तिविनाशिनी ॥ 97 ॥
प्रद्युम्नजननी पुष्टा पितामहपरिग्रहा ।
पुण्डरीकपुरावासा पुण्डरीकसमानना ॥ 98 ॥
पृथुजङ्घा पृथुभुजा पृथुपादा पृथूदरी ।
प्रवालशोभा पिङ्गाक्षी पीतवासाः प्रचापला ॥ 99 ॥
प्रसवा पुष्टिदा पुण्या प्रतिष्ठा प्रणवागतिः ।
पञ्चवर्णा पञ्चवाणी पञ्चिका पञ्जरस्थिता ॥ 100 ॥
परमाया परज्योतिः परप्रीतिः परागतिः ।
पराकाष्ठा परेशानी पावनी पावकद्युतिः ॥ 101॥
पुण्यभद्रा परिच्छेद्या पुष्पहासा पृथूदरी ।
पीताङ्गी पीतवसना पीतशय्या पिशाचिनी ॥ 102 ॥
पीतक्रिया पिशाचघ्नी पाटलाक्षी पटुक्रिया ।
पञ्चभक्षप्रियाचारा पूतनाप्राणघातिनी ॥ 103 ॥
पुन्नागवनमध्यस्था पुण्यतीर्थनिषेविता ।
पञ्चाङ्गी च पराशक्तिः परमाह्लादकारिणी ॥ 104 ॥
पुष्पकाण्डस्थिता पूषा पोषिताखिलविष्टपा ।
प्राणप्रिया पञ्चशिखा पन्नगोपरिशायिनी ॥ 105 ॥
पञ्चमात्रात्मिका पृथ्वी पथिका पृथुदोहिनी ।
पुराणन्यायमीमांसा पाटली पुष्पगन्धिनी ॥ 106 ॥
पुण्यप्रजा पारदात्री परमार्गैकगोचरा ।
प्रवालशोभा पूर्णाशा प्रणवा पल्लवोदरी ॥ 107 ॥
फलिनी फलदा फल्गुः फूत्कारी फलकाकृतिः ।
फणीन्द्रभोगशयना फणिमण्डलमण्डिता ॥ 108 ॥
बालबाला बहुमता बालातपनिभांशुका ।
बलभद्रप्रिया वन्द्या बडवा बुद्धिसंस्तुता ॥ 109 ॥
बन्दीदेवी बिलवती बडिशघ्नी बलिप्रिया ।
बान्धवी बोधिता बुद्धिर्बन्धूककुसुमप्रिया ॥ 110 ॥
बालभानुप्रभाकारा ब्राह्मी ब्राह्मणदेवता ।
बृहस्पतिस्तुता बृन्दा बृन्दावनविहारिणी ॥ 111 ॥
बालाकिनी बिलाहारा बिलवासा बहूदका ।
बहुनेत्रा बहुपदा बहुकर्णावतंसिका ॥ 112 ॥
बहुबाहुयुता बीजरूपिणी बहुरूपिणी ।
बिन्दुनादकलातीता बिन्दुनादस्वरूपिणी ॥ 113 ॥
बद्धगोधाङ्गुलित्राणा बदर्याश्रमवासिनी ।
बृन्दारका बृहत्स्कन्धा बृहती बाणपातिनी ॥ 114 ॥
बृन्दाध्यक्षा बहुनुता वनिता बहुविक्रमा ।
बद्धपद्मासनासीना बिल्वपत्रतलस्थिता ॥ 115 ॥
बोधिद्रुमनिजावासा बडिस्था बिन्दुदर्पणा ।
बाला बाणासनवती बडबानलवेगिनी ॥ 116 ॥
ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था ब्रह्मकङ्कणसूत्रिणी ।
भवानी भीषणवती भाविनी भयहारिणी ॥ 117 ॥
भद्रकाली भुजङ्गाक्षी भारती भारताशया ।
भैरवी भीषणाकारा भूतिदा भूतिमालिनी ॥ 118 ॥
भामिनी भोगनिरता भद्रदा भूरिविक्रमा ।
भूतवासा भृगुलता भार्गवी भूसुरार्चिता ॥ 119 ॥
भागीरथी भोगवती भवनस्था भिषग्वरा ।
भामिनी भोगिनी भाषा भवानी भूरिदक्षिणा ॥ 120 ॥
भर्गात्मिका भीमवती भवबन्धविमोचिनी ।
भजनीया भूतधात्रीरञ्जिता भुवनेश्वरी ॥ 121 ॥
भुजङ्गवलया भीमा भेरुण्डा भागधेयिनी ।
माता माया मधुमती मधुजिह्वा मधुप्रिया ॥ 122 ॥
महादेवी महाभागा मालिनी मीनलोचना ।
मायातीता मधुमती मधुमांसा मधुद्रवा ॥ 123 ॥
मानवी मधुसम्भूता मिथिलापुरवासिनी ।
मधुकैटभसंहर्त्री मेदिनी मेघमालिनी ॥ 124॥
मन्दोदरी महामाया मैथिली मसृणप्रिया ।
महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या महेश्वरी ॥ 125 ॥
माहेन्द्री मेरुतनया मन्दारकुसुमार्चिता ।
मञ्जुमञ्जीरचरणा मोक्षदा मञ्जुभाषिणी ॥ 126॥
मधुरद्राविणी मुद्रा मलया मलयान्विता ।
मेधा मरकतश्यामा मागधी मेनकात्मजा ॥ 127॥
महामारी महावीरा महाश्यामा मनुस्तुता ।
मातृका मिहिराभासा मुकुन्दपदविक्रमा ॥ 128॥
मूलाधारस्थिता मुग्धा मणिपूरकवासिनी ।
मृगाक्षी महिषारूढा महिषासुरमर्दिनी ॥ 129॥
योगासना योगगम्या योगा यौवनकाश्रया ।
यौवनी युद्धमध्यस्था यमुना युगधारिणी ॥ 130॥
यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी ।
यात्रा यानविधानज्ञा यदुवंशसमुद्भवा ॥ 131 ॥
यकारादिहकारान्ता याजुषी यज्ञरूपिणी ।
यामिनी योगनिरता यातुधानभयङ्करी ॥ 132॥
रुक्मिणी रमणी रामा रेवती रेणुका रतिः ।
रौद्री रौद्रप्रियाकारा राममाता रतिप्रिया ॥ 133॥
रोहिणी राज्यदा रेवा रमा राजीवलोचना ।
राकेशी रूपसम्पन्ना रत्नसिंहासनस्थिता ॥ 134॥
रक्तमाल्याम्बरधरा रक्तगन्धानुलेपना ।
राजहंससमारूढा रम्भा रक्तबलिप्रिया ॥ 135॥
रमणीययुगाधारा राजिताखिलभूतला ।
रुरुचर्मपरीधाना रथिनी रत्नमालिका ॥ 136॥
रोगेशी रोगशमनी राविणी रोमहर्षिणी ।
रामचन्द्रपदाक्रान्ता रावणच्छेदकारिणी ॥ 137॥
रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना रथस्था रुक्मभूषणा ।
लज्जाधिदेवता लोला ललिता लिङ्गधारिणी ॥ 138॥
लक्ष्मीर्लोला लुप्तविषा लोकिनी लोकविश्रुता ।
लज्जा लम्बोदरी देवी ललना लोकधारिणी ॥ 139॥
वरदा वन्दिता विद्या वैष्णवी विमलाकृतिः ।
वाराही विरजा वर्षा वरलक्ष्मीर्विलासिनी ॥ 140॥
विनता व्योममध्यस्था वारिजासनसंस्थिता ।
वारुणी वेणुसम्भूता वीतिहोत्रा विरूपिणी ॥ 141॥
वायुमण्डलमध्यस्था विष्णुरूपा विधिप्रिया ।
विष्णुपत्नी विष्णुमती विशालाक्षी वसुन्धरा ॥ 142॥
वामदेवप्रिया वेला वज्रिणी वसुदोहिनी ।
वेदाक्षरपरीताङ्गी वाजपेयफलप्रदा ॥ 143॥
वासवी वामजननी वैकुण्ठनिलया वरा ।
व्यासप्रिया वर्मधरा वाल्मीकिपरिसेविता ॥ 144॥
शाकम्भरी शिवा शान्ता शारदा शरणागतिः ।
शातोदरी शुभाचारा शुम्भासुरविमर्दिनी ॥ 145॥
शोभावती शिवाकारा शङ्करार्धशरीरिणी ।
शोणा शुभाशया शुभ्रा शिरःसन्धानकारिणी ॥ 146॥
शरावती शरानन्दा शरज्ज्योत्स्ना शुभानना ।
शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना ॥ 147॥
श्रीमती श्रीधरानन्दा श्रवणानन्ददायिनी ।
शर्वाणी शर्वरीवन्द्या षड्भाषा षडृतुप्रिया ॥ 148॥
षडाधारस्थिता देवी षण्मुखप्रियकारिणी ।
षडङ्गरूपसुमती सुरासुरनमस्कृता ॥ 149॥
सरस्वती सदाधारा सर्वमङ्गलकारिणी ।
सामगानप्रिया सूक्ष्मा सावित्री सामसम्भवा ॥ 150॥
सर्वावासा सदानन्दा सुस्तनी सागराम्बरा ।
सर्वैश्वर्यप्रिया सिद्धिः साधुबन्धुपराक्रमा ॥ 151॥
सप्तर्षिमण्डलगता सोममण्डलवासिनी ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ॥ 152॥
सर्वोत्तुङ्गा सङ्गहीना सद्गुणा सकलेष्टदा ।
सरधा सूर्यतनया सुकेशी सोमसंहतिः ॥ 153॥
हिरण्यवर्णा हरिणी ह्रीङ्कारी हंसवाहिनी ।
क्षौमवस्त्रपरीताङ्गी क्षीराब्धितनया क्षमा ॥ 154॥
गायत्री चैव सावित्री पार्वती च सरस्वती ।
वेदगर्भा वरारोहा श्रीगायत्री पराम्बिका ॥ 155॥
इति साहस्रकं नाम्नां गायत्र्याश्चैव नारद ।
पुण्यदं सर्वपापघ्नं महासम्पत्तिदायकम् ॥ 156॥
एवं नामानि गायत्र्यास्तोषोत्पत्तिकराणि हि ।
अष्टम्यां च विशेषेण पठितव्यं द्विजैः सह ॥ 157॥
जपं कृत्वा होम पूजा ध्यानम् कृत्वा विशेषतः ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं गायत्र्यास्तु विशेषतः ॥ 158॥
सुभक्ताय सुशिष्याय वक्तव्यं भूसुराय वै ।
भ्रष्टेभ्यः साधकेभ्यश्च बान्धवेभ्यो न दर्शयेत् ॥ 159॥
यद्गृहे लिखितं शास्त्रं भयं तस्य न कस्यचित् ।
चञ्चलापिस्थिरा भूत्वा कमला तत्र तिष्ठति ॥ 160॥
इदं रहस्यं परमं गुह्याद्गुह्यतरं महत् ।
पुण्यप्रदं मनुष्याणां दरिद्राणां निधिप्रदम् ॥ 161॥
मोक्षप्रदं मुमुक्षूणां कामिनां सर्वकामदम् ।
रोगाद्वै मुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत बन्धनात् ॥ 162॥
ब्रह्महत्या सुरापानं सुवर्णस्तेयिनो नराः ।
गुरुतल्पगतो वापि पातकान्मुच्यते सकृत् ॥ 163॥
असत्प्रतिग्रहाच्चैवाऽभक्ष्यभक्षाद्विशेषतः ।
पाखण्डानृतमुख्येभ्यः पठनादेव मुच्यते ॥ 164॥
इदं रहस्यममलं मयोक्तं पद्मजोद्भव ।
ब्रह्मसायुज्यदं नॄणां सत्यं सत्यं न संशयः ॥ 165॥
इति श्रीदेवीभागवते महापुराणे द्वादशस्कन्धे गायत्रीसहस्रनाम ॐ तत्सत ॥
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