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छंद क्या है –
बता दें कि छंद शब्द ‘चद धातु से बना है जिसका मतलब होता है – खुश करना। हिंदी साहित्य के अनुसार अक्षर अक्षरों की संख्या मात्रा गणना यति गति से संबंधित किसी विषय पर रचना को छंद कहा जाता है। मतलब निश्चित चरण लय गति वर्ण मात्रा यति तक गण से नियोजित पदय रचना को छंद कहते हैं।
महर्षि पाणिनी के अनुसार जो आह्मादित करे, खुश करे, तो वह छंद ही होता है (चन्दति हष्यति येन दीप्यते वा तच्छन्द) ।
छंद का अर्थ –
छन्द संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये इस्तेमाल किया गया है। विशिष्ट अर्थों में छन्द कविता या फिर गीत में वर्णों की संख्या एवं स्थान से सम्बंधित नियमों को कहते हैं जिनसे काव्य में लय तथा रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं तथा जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम भी दे दिया जाता है एवं लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द आदि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णॊं की संख्या, विराम, गति, लय एवं तुक आदि के नियमों को भी पूरी तरह से निर्धारित भी किया गया है जिनका पालन कवि को करना होता है। इसे दूसरे अर्थ में यह अंग्रेजी के मीटर या उर्दू फ़ारसी के रुक़न (अराकान) के समकक्ष माना जाता है। हिन्दी साहित्य में भी परंपरागत रचनाएँ छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए रची जाती थीं, अर्थात किसी न किसी छन्द में होती थीं। विश्व की अन्य भाषाओँ में भी परंपरागत रूप से कविता के लिये छन्द के नियम भी होते हैं।
छन्दों की रचना एवं गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र भी कहते हैं। चूँकि, आचार्य पिंगल के द्वारा ही रचित ‘छन्दःशास्त्र’ सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ होता है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहा जाता है।
छंद के अंग –
बता दें कि छंद के कुल सात अंग होते हैं। जो कि इस प्रकार से हैं –
- चरण/ पद/ पाद
- वर्ण और मात्रा
- संख्या और क्रम
- गण
- गति
- यति/ विराम
- तुक
छंद के भेद एवं प्रकार –
- वर्णिक छंद (या वृत) – बता दें कि जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या पूरी तरह से समान हो।
- वर्णिक वृत छंद- इसमें वर्णों की गणना एकदम से पूरी होती है
- मात्रिक छंद (या जाति) – दरअसल जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो। तो उसे मात्रिक छंद (या जाति) कहते हैं.
- मुक्त छंद – बता दें कि जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।
छन्दों का विवेचन
बता दें कि छन्दों का विवेचन निम्न प्रकार से है:
- इन्द्रवज्रा
- उपेन्द्रवज्रा
- वसन्ततिलका
- मालिनी मजुमालिनी
- मन्दाक्रान्ता
- शिखरिणी
- वंशस्थ
- द्रुतविलम्बित
- मत्तगयन्द (मालती)
- सुन्दरी सवैया
निष्कर्ष –
आशा करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी आपको अवश्य पसंद आई होगी अतः आपसे निवेदन है कि अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारी इस वेबसाइट से जुड़े रहें.