Navratri Vrat Katha | 9 Days|जरूर जानें 

Dharmik Chalisa & Katha

आपके आगे प्रस्तुत है Navratri Vrat Katha हम उम्मीद करते हैं कि  Navratri Vrat Katha PDF आपका ज्ञान अवश्य वर्धन करेगी। तो आइए दोस्तों जानतें हैं Navratri Vrat Katha For 9 days In Hindi.

Navratri vrat katha

धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से प्रश्न किया कि चैत्र एवं आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत तथा उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? 

बृहस्पतिजी के इस प्रश्न के उत्तर में ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पतेय! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत बढ़िया सवाल किया है। दरअसल, जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य एवं नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इसको करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाह रखने वाले को विद्या एवं सुख की इच्छा करने वाले को सुख प्राप्त होता है।

इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग नष्ट हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं एवं घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा भी मिल जाता है एवं मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है।

ब्रह्माजी के अनुसार, जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है एवं कष्ट तथा रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित होता है, भूख एवं प्यास से व्याकूल इधर – उधर घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन भी हो जाता है। जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना प्रकार के दुखों को भोगती है। अगर व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन अवश्य कर सकता है और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का भी श्रवण कर सकता है।

हे बृहस्पतेय! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। 

ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में एक मनोहर नगर में पीठत् नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहा करता था, वह भगवती दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ खेलती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब मां दुर्गा की पूजा – अर्चना कर घर का कार्य किया करता, तो वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती।

एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई एवं भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर बहुत गुस्सा आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या फिर दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह कैसे करुंगा। 

पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके अधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से या फिर जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल भरोसा है जो जैसा कर्म करता है उसको वैसे ही कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना भगवान के अधीन बताया गया है।

जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। ठीक इसी प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर तुम क्या कर सकती हो?

पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़ी कठिनाई के साथ व्यतीत करने लगी। 

उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे बहुत खुश हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या एवं सरस्वती हूं। खुश होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से बहुत खुश हूं। 

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी एवं बहुत ही पतिव्रता भी थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन तक भी नहीं दिया।

इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से खुश होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मुझसे मांगो। 

इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली यदि आप मुझ पर बहुत ही खुश हैं तो हे दुर्गे माँ । मैं आपको नमस्कार करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा। 

ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत खुश हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो बहुत ही सुंदर एवं कान्तिवान हो गया।

वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की अर्चना करने लगी- हे दुर्गे माँ! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को नष्ट करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, खुश हो मनोवांछित वर देने वाली एवं दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो।

हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया था। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी माँ। मैं आपको नमस्कार करती हूं। मेरी रक्षा करो। 

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पतेय! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत खुश हुई एवं उस ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान एवं जितेन्द्रिय पुत्र बहुत जल्दी उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। माँ भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे माँ भगवती दुर्गे! यदि आप मुझ पर खुश हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि एवं उसके फल का विस्तार से वर्णन करें। 

इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन माँ दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- 

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर कम से कम नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें अगर दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन भी करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें एवं वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें।

महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा – अर्चना करें एवं पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति एवं केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार पुष्पों एवं फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख तथा कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति भी होती है, खीर तथा  चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज एवं सुख की प्राप्ति होती है।

आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल एवं फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।

व्रत करने वाला जातक इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे एवं यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा भी दें। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो जातक व्रत को करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें जरा – सा भी संदेह नहीं है।

इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर या घर में विधि के अनुसार करें। 

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पतेय! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि एवं फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

हे बृहस्पतेय! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महत्त्व सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पतेय! यह देवी माँ भगवती शक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? 

बोलो माँ देवी भगवती की जय।

नियम – 

  • व्रत करने वाले को चाहिए कि पलंग के बजाए वह जमीन पर सोएं। 
  • नवरात्र का व्रत करने वाले को सोने के लिए अधिक गुदगुदे गद्दे का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
  • इस व्रत को करने वाले अधिक खाना बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। 
  • इस व्रत करने वाले जातक को ब्र‍ह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए आदि.