janvaro ki kahani |चलिए जानतें हैं लोकप्रिय जानवरों की कहानी

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मित्रों इस पोस्ट में जानवरों की कहानी In Hindi  प्रस्तुत है। यदि वर्तमान परिवेश में देखा जाये तो  Jungle Ki Janwar Ki Kahaniyan In Hindi एक महत्वपूर्ण विषय है। आप Janvaro Ki Kahani पढ़ें एवं अपने ज्ञान का वर्धन करें। हमें उम्मीद है कि Jangli Janvaro ki kahani आपको अवश्य पसंद आएगा। 

सूअर एवं भेड़ 

प्रतिदिन की तरह एक चरवाहा अपनी भेड़ों को घास के मैदान में चरा रहा था. तभी कहीं से एक मोटा सूअर वहाँ आ जाता है. जब चरवाहे की नज़र उस सूअर पर पड़ी, तो उसने उसे तुरंत पकड़ लिया.

जैसे ही चरवाहे ने सूअर को पकड़ा, वो एकदम से तेज आवाज़ में चीखने लगा एवं स्वयं को छुड़ाने का बहुत प्रयत्न भी करने लगा. परन्तु चरवाहे की पकड़ बहुत ही मजबूत थी. उसने सूअर के सामने और पीछे के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए एवं उसे अपने कंधे पर लटकाकर कसाई के पास जाने लगा.

भेड़ की बात पर सूअर को बहुत क्रोध आया. वह और जोर से चीखते हुए बोला, “चुप रहो! चरवाहा जब तुम लोगों को पकड़कर ले जाता है, तो उसे बस तुम्हारा ऊन चाहिए होता है. परन्तु उसे मेरा मांस चाहिए. जब तुम्हारी जान पर बनेगी, तब बहादुरी दिखाना.”

सूअर बहुत ही ज़ोर-ज़ोर से चीख रहा था एवं चरवाहा चला जा रहा था. मैदान में चर रही भेड़ें सूअर के इस व्यवहार पर बहुत चकित थीं. उनमें से एक भेड़ कुछ दूर तक चरवाहे के पीछे-पीछे गई एवं सूअर से बोली, “इस तरह चीखते हुए तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती? चरवाहा प्रतिदिन हममें से एक भेड़ को पकड़कर ले जाता है, परन्तु हम तो यूं नहीं चीखते. तुम तो बेकार में इतना उत्पात मचा रहे हो. थोड़ी शर्म किया करो.”

भेड़ की बात पर सूअर को बहुत अधिक क्रोध आया. वह और जोर से चीखते हुए बोला, “चुप रहो तुम सब! चरवाहा जब तुम लोगों को पकड़कर ले जाता है, तो उसे बस तुम्हारा ऊन चाहिए होता है. परन्तु उसे तो मेरा मांस चाहिए. जब तुम्हारी जान पर बनेगी, तब बहादुरी दिखाना.”

ख़रगोश एवं उसके कान

बहुत समय पहले की बात है. कि एक जंगल में एक शक्तिशाली शेर रहा करता था. उसे जब भूख लगती, तो वह शिकार पर निकल जाता और जो जानवर उसके सामने पड़ जाता, उसका शिकार कर वह अपनी भूख को मिटाता था. जंगल के सभी जानवर उससे बहुत ही डरते थे.

एक दिन शेर ने एक बकरी का शिकार किया. जब वह उसे खाने लगा, तो उसकी नुकीली सींगों से बुरी तरह घायल भी हो गया था. उसे बहुत गुस्सा आया और उसने निश्चय किया कि जंगल में सींगों वाले जानवरों के लिए कोई स्थान नहीं है. उसने पूरे जंगल में ये घोषणा करवा दी कि सींग वाले सभी जानवर इस जंगल छोड़कर चले जाए.

यह घोषणा सुनकर बेचारे सींग वाले जानवर भी क्या करते? सबमें शेर का डर था. इसलिए जंगल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे. उस जंगल में एक ख़रगोश भी रहता था. जब उसने भी शेर की घोषणा सुनी, तो डर के मारे सारी रात बिल्कुल भी सो नहीं पाया.

अगली सुबह सींग वाले सभी जानवर जंगल से जाने लगे. उनमें से कई ख़रगोश के दोस्त भी थे. ख़रगोश आख़िरी बार अपने दोस्तों से मिलने गया. जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा, तो उसे धूप में अपनी परछाई दिखाई पड़ी. परछाई में जब उसने अपनी लंबे कानों को देखा, तो बहुत ही डर गया.

उसने सोचा कि कहीं मेरे लंबे कानों को शेर सींग न समझ ले. अगर उसने ऐसा समझ लिया, तो फिर चाहे मैं उसे कितना ही क्यों न समझाऊं, वह मेरी बात बिल्कुल नहीं मानेगा. बेमौत मरने से अच्छा है कि मैं भी जंगल छोड़कर ही चला जाऊं. उसके पश्चात बिना देर किये उसने भी जंगल छोड़ दिया.

मेंढक एवं बैल

एक मेंढक अपने तीन बच्चों के साथ जंगल में नदी किनारे रहता था. उन चारों की दुनिया जंगल एवं नदी तक ही सीमित थी. बाहरी दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं था.

खाते-पीते बड़े आराम एवं मज़े से उनका जीवन कट रहा था. मेंढक हृष्ट-पुष्ट था. उसके बच्चों के लिए वह दुनिया का सबसे विशालकाय जीव था. वह प्रतिदिन उन्हें अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता तथा उनकी प्रशंसा पाकर फूला नहीं समाता था.

एक दिन मेंढक के तीनों बच्चे घूमते-घूमते जंगल के पास स्थित एक गाँव में पहुँच गए. वहाँ उनकी दृष्टि एक खेत में चरते हुए बैल पर पड़ी. इतना विशालकाय जीव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. वे कुछ डरे, परन्तु उसकी विशाल काया को देखते रहे. तभी बैल ने हुंकार भरी तथा मेंढक के तीनों बच्चे डर के मारे उल्टे पांव भागते हुए अपने घर को आ गए.

बच्चों को सहमा हुआ देखकर जब मेंढक ने कारण पूछा, तो उन्होंने विस्तारपूर्वक बैल के बारे में बता दिया, “इतना बड़ा जीव हमने आज से पहले कभी भी नहीं देखा. हमें यह लगता है दुनिया का सबसे विशालकाय जीव आप नहीं वह है.”

अपने बच्चों की बात सुनकर मेंढक को बहुत ही बुरा लगा. उसने पूछा, “वह जीव दिखने में कैसा था?”

बच्चे बोले, “उसके चार बड़े-बड़े पैर थे. एक लंबी सी पूंछ थी. दो नुकीले सींग थे. शरीर तो इतना बड़ा कि आपका शरीर उसके सामने कुछ भी नहीं.” 

यह सुनकर मेंढक के घमंड को बहुत ही जबरदस्त ठेस पहुँची. उसने जोर के सांस खींची एवं हवा भरकर अपना शरीर फुला लिया. फिर बच्चों से पूछा, ”क्या वह इतना बड़ा था.”

“नहीं इससे बहुत बड़ा.” बच्चे फिर से बोले.

मेंढक ने थोड़ी और हवा भरकर अपना शरीर और फुलाया, “क्या इतना बड़ा?”

“नहीं नहीं और भी बड़ा.”

मेंढक ने जंगल के बाहर कभी कदम ही नहीं रखा था. उसे बैल के आकार का अनुमान ही नहीं था. परन्तु उसने मानो ज़िद पकड़ ली थी कि अपने बच्चों के सामने स्वयं को नीचा बिल्कुल भी नहीं दिखाना है.

वह जोर से सांस खींचकर ढेर सारी हवा अपने शरीर में भरने लगा. उसका छोटा सा शरीर गेंद के समान गोल हो गया. परन्तु इतने पर भी वह नहीं रुका. उसका शरीर में हवा भरना जारी रहा. उसने इतनी सारी हवा अपने शरीर में भर ली कि उसका शरीर वह संभाल नहीं पाया और वह फट गया. अपने अहंकार में मेंढक के प्राण पखेरू उड़ गए.

रोता हुआ कुत्ता

एक व्यक्ति अपने नए घर में शिफ्ट हुआ. नया घर एवं वहाँ का वातावरण उसे बहुत पसंद आया. परन्तु एक बात थी, जो उसे थोड़ी खटक रही थी. जब से वह आया था, तब से किसी कुत्ते के रोने की आवाज़ उसे लगातार दुखी कर रही थी. बहुत देर वह यही सोचता रहा कि थोड़ी देर में यह आवाज़ शांत हो जायेगी. परन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ, अपितु कुत्ते के रोने की आवाज़ दिन भर आती रही.

अगले दिन भी जब कुत्ते की रोने की आवाज़ बिल्कुल भी शांत नहीं हुई, तब व्यक्ति को न रहा गया. वह घर से बाहर निकला. कुत्ते के रोने की आवाज़ उसके पड़ोस के एक घर से आ रही थी. वह उस घर में पहुँचा.

वहाँ उसने देखा कि एक युवक बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा है एवं पास ही लकड़ी की एक पाटिया पर बैठा कुत्ता रो रहा था. यह नज़ारा देख व्यक्ति कुछ हैरान हुआ. वह उस युवक के नजदीक पहुँचा तथा अपना परिचय देने के पश्चात बोला, “महाशय, आपका कुत्ता कल से बहुत रो रहा है.”

“हाँ, ये तो मैं भी ये देख रहा हूँ.” उस युवक ने जवाब दिया.

“तो फिर आपने यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की कि इसे क्या कठिनाई है. परेशानी जानकार इसकी सहायता की जा सकती है.”

“अरे..कुछ नहीं. ये एक कील के ऊपर बैठा हुआ है. वो कील इसके पेट में चुभ रही है. इसलिए ये रो रहा है.” युवक ने बड़ी ही शांति से जवाब दिया.

जवाब सुन व्यक्ति एकदम से हैरत में पड़ गया एवं उससे बोला,“अगर ऐसा है, तो ये इस स्थान से उठ क्यों नहीं जाता?”

“क्योंकि इसे अभी बहुत अधिक दर्द नहीं हो रहा है. जब दर्द इसकी सहनशक्ति से बाहर हो जायेगा, तो ये स्वयं यहाँ से उठ जायेगा.”

कुत्ता जो विदेश चला गया

एक नगर में एक कुत्ता अपने साथियों के साथ रहा करता था. उसका नाम चित्रांग था. सभी कुत्तों का जीवन प्रेम-भाव से रहते हुए सुख-शांति से व्यतीत हो रहा था. परन्तु एक बार उस नगर में बहुत ही बुरी तरह से अकाल पड़ गया. खेत-खलिहान सूख गये. अन्न-जल की बहुत ही कमी हो गई. व्यक्तियों सहित जीव-जंतु भूख-प्यास से मरने लगे.

इस स्थिति में चित्रांग दूसरे देश चला गया. दूसरे वहाँ उसे एक धनी स्त्री का घर मिला, जो बहुत ही लापरवाह थी. प्रायः उसके घर का दरवाज़ा खुला रहता था एवं चित्रांग वहाँ घुसकर विभिन्न प्रकार के पकवान छककर खाता था.

भोजन की उसे वहाँ कोई परेशानी बिल्कुल भी नहीं थी. परन्तु जब भी वह भोजन करके उस घर से बाहर निकलता, तो गली के अन्य कुत्ते ईर्ष्यावश उस पर हमला कर देते एवं अपने नुकीलें दातों के वार से उसे पूरी तरह घायल कर देते.

कुछ दिन तो भोजन के कारण चित्रांग किसी तरह वहाँ रहा. परन्तु अपने ही वंश-भाइयों का ईर्ष्यापूर्ण व्यवहार उसे बिल्कुल रास नहीं आया. उसने सोचा कि इससे तो मेरा नगर ही बहुत ही बढ़िया है. वहाँ अकाल अवश्य है, परन्तु यहाँ की तरह कोई अपने वंश-भाई को काट खाने को तो नहीं दौड़ता. मैं तो अपने नगर वापस जा रहा हूँ.

वह अपने नगर लौट आया. उसके आने की सूचना मिलते ही उसके भाई-बंधू उससे मिलने पहुँच गए. वे सभी विदेश के बारे में जानने को बहुत ही अधिक उत्सुक थे.

वे पूछने लगे, “भाई, हम सभी जानना चाहते हैं कि वह स्थान कैसा था? वहाँ के लोग कैसे थे? उनका व्यवहार कैसा था? कैसा भोजन तुम वहाँ खाते थे? हमें पूरी बात विस्तार से एवं बढ़िया करके बताओ.”

चित्रांग बोला, “बंधुओं, उस नगर के बारे में तुम्हें मैं क्या बताऊं. वहाँ की स्त्रियाँ बहुत ही लापरवाह होती हैं. अपने घर के दरवाज़े एकदम से खुले छोड़ देती हैं, जिससे वहाँ बहुत ही सरलता से भोजन करने का अवसर मिल जाता है. परन्तु वहाँ अपने वंश के लोग ही एक-दूसरे के विरोधी हैं. वहाँ कोई मिल-जुलकर नहीं रहता. इसलिए मैं तुरंत वापस आ गया.”

संगीतमय गधा

गाँव में रहने वाले एक धोबी के पास उद्धत नामक एक गधा रहता था. धोबी गधे से कार्य तो दिन भर लेता, परन्तु खाने को कुछ नहीं देता था. हाँ, रात के पहर वह उसे खुला अवश्य छोड़ देता था, ताकि इधर-उधर घूमकर वह कुछ खा सके. गधा रात भर खाने की खोज में भटकता रहता और धोबी की मार के डर से सुबह-सुबह घर वापस आ जाया करता था.  

एक रात भोजन के लिए भटकते-भटकते गधे की भेंट एक सियार से हो गई. सियार ने गधे से पूछा, “दोस्त ! इतनी रात गए कहाँ भटक रहे हो?”

सियार के इस प्रश्न पर गधा बहुत ही उदास हो गया. उसने सियार को अपने व्यथा सुनाई, “दोस्त! मैं  दिन भर अपनी पीठ पर कपड़े लादकर घूमता हूँ. दिन भर की परिश्रम के पश्चात भी धोबी मुझे खाने को कुछ भी नहीं देता. इसलिए मैं रात में भोजन की खोज में निकलता हूँ. आज मेरी किस्मत बहुत ही ख़राब है. मुझे खाने को कुछ भी नसीब नहीं हुआ. मैं इस जीवन से बहुत ही तंग आ चुका हूँ.”

गधे की व्यथा सुनकर सियार को बहुत ही तरस आ गया. वह उसे सब्जियों के एक खेत में ले गया. ढेर सारी सब्जियाँ देखकर गधा बहुत प्रसन्न हुआ. उसने वहाँ पेट भर कर सब्जियाँ खाई और सियार को धन्यवाद देकर वापस धोबी के पास आ गया. उस दिन के बाद से गधा एवं सियार रात में  सब्जियों के उस खेत में मिलने लगे. गधा छककर ककड़ी, गोभी, मूली, शलजम जैसी कई सब्जियों का स्वाद लेता. धीरे-धीरे उसका शरीर भरने लगा एवं वह एकदम से मोटा-ताज़ा हो गया. अब वह अपना दुःख भूलकर मज़े में रहने लगा.

एक रात पेट भर सब्जियाँ खाने के पश्चात गधे मदमस्त हो गया. वह स्वयं को संगीत का बहुत बड़ा ज्ञाता समझता था. उसका मन गाना गाने के लिए मचल उठा. उसने सियार से कहा, “दोस्त! आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ. इस प्रसन्नता को मैं गाना गाकर व्यक्त करना चाहता हूँ. तुम बताओ कि मैं कौन सा आलाप लूं?”

गधे की बात सुनकर सियार बोला, “दोस्त! क्या तुम भूल गए कि हम यहाँ चोरी-छुपे घुसे हैं. तुम्हारी आवाज़ बहुत कर्कश है. यह आवाज़ खेत के रखवाले ने सुन ली और वह यहाँ आ गया, तो हमारी बिल्कुल भी खैर नहीं. बेमौत मारे जायेंगे. मेरी बात मानो, यहाँ से तुरंत चलो.”

गधे को सियार की बात बहुत ही बुरी लग गई. वह मुँह बनाकर बोला, “तुम जंगल में रहने वाले जंगली हो. तुम्हें संगीत का क्या ज्ञान? मैं संगीत के सातों सुरों का ज्ञाता हूँ. तुम अज्ञानी मेरी आवाज़ को कर्कश कैसे कह सकते हो? मैं अभी सिद्ध करता हूँ कि मेरी आवाज़ कितनी मधुर एवं सुरीली है.”

सियार समझ गया कि गधे को समझाना असंभव है. वह बोला, “मुझे माफ़ कर दो दोस्त. मैं तुम्हारे संगीत के ज्ञान को बिल्कुल समझ नहीं पाया. तुम यहाँ गाना गाओ. मैं बाहर खड़ा होकर तुम्हारी रखवाली करता हूँ. ख़तरा भांपकर मैं तुम्हें आगाह कर दूंगा.”

इतना कहकर सियार बाहर जाकर एक पेड़ के पीछे जाकर छुप गया. गधा खेत के बीचों-बीच खड़ा होकर अपनी कर्कश आवाज़ में रेंकने लगा. उसके रेंकने की आवाज़ जब खेत के रखवाले के कानों में पड़ी, तो वह भागकर अपने – अपने खेत की ओर आने लगे.

सियार ने जब उसे खेत की ओर आते देखा, तो गधे को चेताने का का बहुत प्रयत्न किया. परन्तु रेंकने में मस्त गधे ने उस ओर ध्यान ही बिल्कुल भी नहीं दिया. सियार क्या करता? वह अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया. इधर खेत के रखवाले ने जब गधे को अपने खेत में रेंकते हुए देखा, तो उसे दबोचकर उसकी जमकर खूब धुनाई की. गधे के संगीत का भूत उतर गया और वह पछताने लगा कि उसने अपने दोस्त सियार की बात क्यों नहीं मानी.

लड़ती बकरियाँ एवं सियार

एक दिन एक सियार किसी गाँव से निकल कर जा रहा था. गाँव में उस दिन बाज़ार लगा हुआ था. सियार जब बाजार से गुजरा, तो वहाँ उसे लोगों की भीड़ दिखाई पड़ी. वे लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे एवं तालियाँ भी बजा रहे थे.

कौतूहलवश सियार उस भीड़ की ओर चल पड़ा एवं उनके मध्य में से झांककर देखने लगा कि आखिर माज़रा क्या है? उसने देखा कि वहाँ दो हट्ठी-कट्ठी बकरियों के मध्य लड़ाई हो रही है. लोग उन्हें ही देखकर चिल्ला रहे हैं.

दोनों बकरियों के मध्य चल रही लड़ाई एकदम से जबरदस्त थी. अपनी सींगों के वार से दोनों ने एक-दूसरे को लहू-लुहान कर दिया था. परन्तु इसके पश्चात भी कोई रुकने का नाम बिल्कुल भी नहीं ले रहा था. उनके शरीर से बहता हुआ खून सड़क पर फ़ैलने लगा था.

ताज़े खून की महक जब सियार के नथुनों तक पहुँची, तो उसकी लार टपकने लगी. वह स्वयं को रोक नहीं पाया एवं स्वयं को चाटने लगा. स्वयं को चाटते-चाटते वह बकरियों के पास पहुँच गया. उसके मुँह में बकरियों के खून का स्वाद लग चुका था. अब उसका लालच और भी बढ़ गया. उसने सोचा कि क्यों न इस बकरियों को मारकर मैं अपनी पेट की भूख शांत कर लूं.

बस, फिर क्या था? उसने आव देखा न ताव और टूट पड़ा बकरियों के ऊपर. बकरियाँ हट्ठी-कट्ठी एवं बहुत ही बलशाली थीं. ऊपर से बहुत देर से लड़ते रहने के कारण तैश में भी थीं. सियार के अड़ंगे ने उनका गुस्सा और भी भड़का दिया एवं उन्होंने सियार को ऐसी पटकनी दी कि वह चारों खाने चित हो गया. उसके पश्चात बकरियों ने उसकी तब तक धुनाई की, जब तक वह बिल्कुल मर नहीं गया.

मूर्ख दोस्त 

बहुत समय पहले की बात है. एक राज्य में एक राजा का राज्य करता था. एक दिन उसके दरबार में एक मदारी एक बंदर लेकर आया. उसने राजा एवं सभी दरबारियों को बंदर का करतब दिखाकर बहुत ही खुश कर दिया. बंदर मदारी का हर हुक्म मनाता था. जैसा मदारी बोलता, बंदर ठीक वैसा ही करता था.

वह आज्ञाकारी बंदर राजा को बहुत भा गया. उसने अच्छी कीमत देकर मदारी से वह बंदर तुरंत ख़रीद लिया. कुछ दिन राजा के साथ रहने के बाद बंदर उससे अच्छी तरह हिल-मिल गया. वह राजा की हर बात मानता. वह राजा के कक्ष में ही रहता एवं उसकी सेवा भी खूब अच्छी तरह से करता था. राजा भी बंदर की स्वामिभक्ति देख बड़ा बहुत प्रसन्न होता था.

वह अपनी सैनिकों एवं संतरियों से भी अधिक बंदर पर भरोसा करने लगा एवं उसे महत्व देने लगा. सैनिकों को यह बात बहुत ही बुरी लगती थी, परन्तु वे राजा के समक्ष कुछ भी कह नहीं पाते थे.

एक दोपहर की बात है. राजा अपने शयनकक्ष में आराम कर रहा था. बंदर पास ही खड़ा पंखा हिला रहा था. कुछ देर में राजा गहरी नींद में सो गया. बंदर वहीं खड़े-खड़े पंखा हिलाता रहा.

तभी कहीं से एक मक्खी आई एवं राजा की छाती पर बैठ गई. बंदर की दृष्टि जब मक्खी पर पड़ी, तो उसने पंखा हिलाकर उसे हटाने का प्रयत्न किया. मक्खी वहाँ से उड़ गई. परन्तु कुछ देर पश्चात पुनः वापस आकर राजा की छाती पर बैठ गई.

पुनः मक्खी को आया देख बंदर बहुत गुस्सा हो गया. उसने आव देखा न ताव और पास ही पड़ी राजा की तलवार उठाकर पूरी शक्ति से मक्खी पर प्रहार कर दिया. मक्खी तो उड़ गई. परन्तु तलवार के जोरदार प्रहार से राजा की छाती के दो टुकड़े हो गये एवं राजा के प्राण-पखेरू उड़ गए.

बंदर एवं लकड़ी का खूंटा

एक गाँव के पास जंगल में मंदिर का निर्माण हो रहा था. निर्माण कार्य सुबह से लेकर शाम तक चलता था. बहुत से कारीगर इसमें लगे हुए थे.

सुबह से शाम तक कारीगर वहाँ कार्य करते एवं दोपहर में भोजन करने अपने गाँव को आ जाया करते थे.

एक दोपहर सभी कारीगर भोजन करने अपने गाँव को आये हुए थे. तभी बंदरों का एक दल निर्माणधीन मंदिर के पास आ धमका और उछल-कूद मचाने लगा.

मंदिर में उस समय लकड़ी का काम चल रहा है. चीरी हुई शहतूत एवं अन्य लकड़ियाँ इधर-उधर पड़ी हुई थी. बंदरों के सरदार ने बंदरों को वहाँ जाने से मना किया. परन्तु एक शरारती बंदर बिल्कुल भी नहीं माना.

सभी बंदर पेड़ पर चढ़ गए. वह शरारती बंदर शहतूत की लकड़ियों पर धमाचौकड़ी करने लगा. वहाँ शहतूत के कई अधचिरे लठ्ठे भी रखे हुए थे. उन अधचिरे लठ्ठे के मध्य एक कील फंसी हुई थी.

कारीगर भोजन के लिए जाने के पूर्व लठ्ठों के मध्य कील फंसाकर जाते थे, ताकि वापस आने के पश्चात उनमें आरी घुसाने में सुविधा हो.

शरारती बंदर कौतूहलवश एक अधचिरे शहतूत के मध्य फंसे कील को देखने लगा. वह सोचने लगा कि अगर इस कील को यहाँ से निकाल दिया जाये, तो क्या होगा. वह अधचिरे शहतूत के ऊपर बैठकर कील पर अपनी ज़ोर अजमाइश करने लगा.

बंदरों के सरदार ने जब उसे ऐसा करते देखा, तो चेतावनी देकर उसे बुलाने का प्रयत्न भी किया. परन्तु हठी बंदर बिल्कुल भी नहीं माना.

वह दम लगाकर कील को खींचने लगा. परन्तु कील नहीं निकली. बंदर और जोर से कील को खींचने लगा. इस जोर अजमाइश में उसकी पूंछ पाटों के बीच आ गई. परन्तु बंदर ने इस ओर ध्यान बिल्कुल भी नहीं दिया और अपनी धुन में लगा रहा.

कुछ देर तक कील को खींचने पर वह थोड़ी हिलने लगी. यह देख बंदर बहुत प्रसन्न हो गया एवं दुगुने उत्साह से कील को निकालने में लग गया. अंत में जोर के झटके के साथ कील बाहर को निकल गई.

परन्तु जैसे ही कील बाहर निकली, अधचिरे पाट आपस में आ मिले और बंदर की पूंछ उसमें दब गई. बंदर दर्द से चीख उठा. कराहते हुए उसने वहाँ से निकलने का भरसक प्रयत्न किया. किंतु वह नाकाम रहा.

वह जितना दम लगाकर वहाँ से निकलने का प्रयत्न करता, उसकी पूंछ उतनी जख्मी होती जाती. बहुत देर तक वह वहाँ फंसा तड़पता रहा एवं अंततः अत्यधिक रक्त बह जाने के कारण वह मर गया.

शेर एवं सियार

बहुत समय पहले की बात है. हिमालय की गुफ़ा में एक शेर रहा करता था. जंगल के जीव-जंतुओं को अपना आहार बना वह दिन-प्रतिदिन बलवान होता जा रहा था.

एक दिन जंगली भैंसे का शिकार कर उसने अपनी भूख शांत की एवं गुफ़ा की ओर लौटने लगा. तभी रास्ते में एक अत्यंत कमज़ोर सियार से उसका सामना हुआ.

निरीह सियार अपने समक्ष बलशाली शेर को देख नत-मस्तक हो गया एवं बोला, “वनराज! मैं आपकी शरण में आना चाहता हूँ. मुझे अपना दास बना लीजिये. मैं आजीवन आपकी सेवा करूंगा तथा आपके शिकार के अवशेष से अपना पेट भर लूंगा.”

शेर को सियार पर दया आ गई. उसके उसे अपनी शरण में रख लिया. शेर की शरण में सियार को बिना दर-दर भटके भोजन प्राप्त होने लगा. शेर के शिकार का छोड़ा हुआ अवशेष उसका होता. जिसे खाकर वह कुछ ही दिनों में हट्टा-कट्ठा हो गया.

शारीरिक सुगढ़ता आने के पश्चात् सियार स्वयं को शेर के समतुल्य समझने लगा. वह सोचने लगा कि अब वह भी शेर के सामान बलशाली हो गया है.

इसी दंभ में वह एक दिन शेर से बोला, “अरे शेर! मेरा हृष्ट-पुष्ट शरीर देख. बोल, क्या अब मैं तुमसे कम बलशाली रह गया हूँ? नहीं ना. इसलिए आज से मैं शिकार कर उसका भक्षण करूंगा. मेरे छोड़े हुए अवशेष से तुम अपना पेट भर लेना.”

शेर सियार के प्रति मित्रवत था. उसने उसकी दंभपूर्ण बातों का बुरा नहीं माना. परन्तु उसे सियार की बहुत चिंता थी. इसलिए उसने उसे बहुत समझाया तथा अकेले शिकार पर जाने से बहुत मना किया.

परन्तु दंभ सियार के सिर पर चढ़कर बोल रहा था. उसने शेर का परामर्श अनसुना कर दिया. वह पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हो गया. वहाँ से उसने देखा कि नीचे हाथियों का झुण्ड जा रहा है. उन्हें देख उसने भी शेर की तरह सिंहनाद करने की सोची, परन्तु था तो वह सियार ही. सियार की तरह जोर से ‘हुआ हुआ’ की आवाज़ निकालने के पश्चात वह पहाड़ से हाथियों के झुण्ड के ऊपर कूद पड़ा. परन्तु उनके सिर के ऊपर गिरने के स्थान पर वह उनके पैरों में जा गिरा. मदमस्त हाथी अपनी ही धुन में उसे कुचलते हुए निकल गए.

इस तरह सियार के प्राण-पखेरू उड़ गए. पहाडी के ऊपर खड़ा शेर अपने दोस्त सियार की दशा देख बोला, “होते हैं जो मूर्ख एवं घमण्डी, होती है उनकी ऐसी ही दुर्गति.”