Maa Laxmi Chalisa Benefits- Shri Mahalaxmi Chalisa का नियमित रूप से पाठ करने से मन को शांति मिलती है औआपके जीवन से सभी बुराईयां दूर होती हैं और आप स्वस्थ, धनवान और समृद्ध होते हैं।जब कोई नियमित रूप से लक्ष्मी चालीसा का जाप करता है, तो उसे अच्छे स्वास्थ्य और सुंदरता से नवाजा जाता है। यह माँ लक्ष्मी को आमंत्रित करने का एक तरीका भी है ताकि वह आपको धन और समृद्धि प्रदान करे। आप माँ लक्ष्मी चालीसा के साथ साथ श्री कनकधारा स्तोत्र का भी पाठ कर सकते हैं जो की माँ लक्ष्मी जी को अत्यंत प्रिय है यह आपके करियर में नई ऊंचाइयां हासिल करने में भी आपकी मदद करता है। आप जहां भी यात्रा करें वहां Maa Laxmi Chalisa का पाठ करें और अपने खाली समय में इसका जाप करें। मंत्रों का पाठ करते समय उत्पन्न होने वाला असली स्पंदन आपके आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। We are providing Maa Laxmi Chalisa lyrics.
लक्ष्मी चालीसा ( Laxmi Chalisa Lyrics in hindi)
दोहा
मातु लक्ष्मी करी कृपा करो ह्रदय में वास | मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ||
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार | ऋद्धि – सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ||
सोरठा
यही मोर अरदास , हाथ जोड़ विनती करूं | सब विधि करो सुवास , जय जननी जगदम्बिका ||
चौपाई
सिंधु सुता मै सुमिरौ तोही | ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ||
तुम समान नहिं कोई उपकारी | सब विधि पुरवहु आस हमारी ||
जय जय जगत जननी जगदम्बा | सबके तुमही हो स्वलम्बा ||
तुम ही हो घट घट के वासी | विनती यही हमारी खासी ||
जग जननी जय सिन्धु कुमारी | दीनन की तुम हो हितकारी ||
विनवौ नित्य तुमहि महारानी | कृपा करौ जग जननी भवानी ||
केहि विधि स्तुति करौ तिहारी | सुधि लीजै अपराध बिसारी ||
कृपा द्रष्टि चितवो मम ओरी | जगत जननी विनती सुन मोरी ||
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता | संकट हरो हमारी माता ||
क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो | चौदह रत्न सिंधु में पायो ||
चौदह रत्न में तुम सुखरासी | सेवा कियो प्रभुहि बनि दासी ||
जब जब जन्म जहाँ प्रभु लीन्हा | रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ||
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा | लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ||
तब तुम प्रकट जनकपुरी माहीं | सेवा कियो ह्रदय पुलकाहीं ||
अपनायो तोही अन्तर्यामी | विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ||
तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी | कहं तक महिमा कहौ बखानी ||
मन क्रम वचन करै सेवकाई | मन – इच्छित वांछित फल पाई ||
तजि छल कपट और चतुराई | पूजहिं विविध भांति मन लाई ||
और हाल मै कहौ बुझाई | जो यह पाठ करे मन लाई ||
ताको कोई कष्ट न होई | मन – इच्छित फल पावै फल सोई ||
त्राहि – त्राहि जय दुःख निवारिणी | त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ||
जो यह चालीसा पड़े और पड़ावे || इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ||
ताको कोई न रोग सतावै | पुत्र आदि धन संपत्ति पावै ||
पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना | अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ||
बिप्र बोलाय कै पाठ करावै | शंका दिल में कभी न लावै ||
पाठ करावैं दिन चालीसा | ता पर कृपा करै गौरीसा ||
सुख संपत्ति बहुत सी पावै | कमी नही काहू की आवै ||
बारह मास करै जो पूजा | तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ||
प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं | उन सम कोई जग में नाहीं ||
बहु बिधि क्या मै करौ बड़ाई | लेय परीक्षा ध्यान लगाई ||
करी विश्वास करै व्रत नेमा | होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ||
जय जय जय लक्ष्मी महारानी | सब में व्याप्ति जो गुण खानी ||
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं | तुम सम कोऊ दयाल कहूं नाहीं ||
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै | संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ||
भूल चूक करी क्षमा हमारी | दर्शन दीजै दशा निहारी ||
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी | तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ||
नही मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में | सब जानत हो अपने मन में ||
रूप चतुर्भुज करके धारण | कष्ट मोर अब करहु निवारण ||
कहि प्रकार मै करो बड़ाई | ज्ञान – बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ||
रामदास अब कहाई पुकारी | करो दूर तुम विपति हमारी ||
दोहा
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास | जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ||
रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर | मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ||