आज इस पोस्ट में हम आपको आसान शब्दों में Makhanlal Chaturvedi jivani in hindi के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। चलिए जानते हैं माखनलाल चतुर्वेदी जी एक अच्छे कवि एवं लेखक होने के साथ-साथ एक अच्छे समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी तथा एक सच्चे देशभक्त भी थे।
माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी एक नज़र में –
नाम | माखनलाल चतुर्वेदी |
पेशा | लेखक, साहित्यकार, कवि, पत्रकार |
साहित्य का प्रकार | नव-छायाकार |
जन्म | 4 अप्रैल 1889 को |
जन्म स्थान | बाबई गाँव, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) |
लेख | ‘वेणु लो गूंजे धरा’, हिम कीर्तिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, साहित्य देवता |
कविताएं | अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में आदि |
सम्मान | साहित्यिक अकादमी अवार्ड (1955), पद्म भूषण सम्मान (1963) |
माखनलाल चतुर्वेदी जी कौन थे –
बता दें कि माखनलाल चतुर्वेदी जी भारतीय इतिहास के कुछ प्रमुख ख्याति प्राप्त कवि, लेखक एवं पत्रकारों में से एक थे। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ सराहना थे। इतना ही नहीं माखनलाल चतुर्वेदी जी एक अच्छे कवि एवं लेखक होने के साथ-साथ एक अच्छे समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी तथा एक सच्चे देशभक्त भी थे।
रचनाएं –
- समय के पांव
- गरीब इरादे अमीरी इरादे
- हिम तरंगिणी
- युग चार
- बीजुरी
- काजल
- साहित्य के देवता
- मरण ज्वार आदि
शिक्षा –
दरअसल इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव के एक प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की थी। अपनी प्रारंभिक शिक्षा को समाप्त करने के पश्चात् श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी संस्कृत, बांग्ला अंग्रेजी, गुजराती एवं ऐसी ही अनेकों प्रकार की भाषाओं का अध्ययन भलीभांति किया। माखनलाल चतुर्वेदी जी ने इन भाषाओं का अध्ययन किसी विद्यालय यूनिवर्सिटी में जाकर के नहीं प्राप्त किया, उन्होंने यह शिक्षा अपने घर पर ही अपनी कड़ी मेहनत एवं लगन के साथ ही प्राप्त की थी।
प्रकाशित कृतियाँ-
ऐसा कहा जाता है कि हिंदी साहित्य जगत के इतिहास में माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएं एक अमूल्य धरोहर है| उन्होंने अपनी काव्य साधना में भावात्मक शैली का इस्तेमाल किया है, एवं इसके साथ ही साथ उन्होंने प्रेरणा का भाव भी अपनी कविताओं में भरा हुआ है|
हिमकिरीटिनी, युग चरण, हिम तरंगिणी, समर्पण, माता, वेणु लो गूंजे धरा, मरण ज्वार, बीजुरी काजल आँज रही आदि माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
आपको यह बता दें कि आपकी प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ कृष्णार्जुन युद्ध, समय के पांव, साहित्य के देवता, अमीर इरादे: गरीब इरादे आदि हैं।
पुरस्कार –
- बता दें कि इनको सन 1983 से समय में देव पुरस्कार प्रधान कराया गया था यह पुरस्कार माखनलाल चतुर्वेदी जी को हिमकिरीटनी के लिए ही दिया गया था।
- सन 1959 में पुष्प की अभिलाषा एवं अमर राष्ट्र के लिए माखनलाल चतुर्वेदी जी को महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय में डि.लीट. के मानद उपाधि से विभूषित भी अवश्य किया गया था।
- श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी को सन 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ सम्मानित भी किया गया था। याद रहे कि साहित्य अकादमी पुरस्कार सर्वप्रथम माखनलाल चतुर्वेदी जी को ही दिया गया था।
- श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी को सन 1965 में 16 जनवरी को नागरिक सम्मान समारोह में आमंत्रित भी किया गया। इस समारोह में इनको आमंत्रित करने के लिए मुख्य निमंत्रण भी अवश्य दिया गया था।
- श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी को सन 1963 में भारत सरकार के द्वारा पद्म विभूषण द्वारा सम्मानित भी अवश्य किया गया था।
श्रेष्ठ रचनाएं –
आपको यह बता दें कि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का नाम छायावाद की उन हस्तियों में से एक हैं जिनके कारण वह युग विशेष हो गया। उस युग के कवि कुदरत को स्वयं के करीब महसूस कर लिखा करते थे। चतुर्वेदी जी की भी कई रचनाएं ऐसी हैं जहां उन्होंने प्रकृति के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया गया है। उनकी रचना पुष्प की अभिलाषा एवं फूल की मनुहार में उन्होंने एक कुसुम के द्वारा अपनी आंतरित संवेदनाओं को प्रकट किया है जिससे संकेत मिलता है कि वह एक राष्ट्रप्रेमी मनुष्य होने के साथ-साथ अपनत्व से आप्लावित मनुष्य भी थे।
कैरियर –
सन 1910 में अध्यापन का कार्य छोड़ने के पश्चात् माखनलाल राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादक का काम देखने लगे थे। उन्होंने प्रभा एवं कर्मवीर नाम की राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादन का कार्य किया। माखनलाल ने अपनी लेखन शैली से देश के एक बहुत बड़े वर्ग में देश प्रेम भाव को भी जागृत अवश्य किया। उनके भाषण भी उनके लेखों की तरह ही ओजस्वी एवं देश प्रेम से ओतप्रोत होते थे। उन्होंने सन 1943 में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की उनकी कई रचनाएं की तब देश के युवाओं में जोश भरने एवं उन्हें जागृत करने के लिए बहुत ही मददगार सिद्ध हुई।
उपलब्धियां –
- इनका अध्यापन कार्य प्रारंभ सन 1996,
- इन्होंने शिक्षण पद का त्याग किया
- तिलक का अनुसरण सन 1910 में किया,
- शक्ति पूजा लेकर राजद्रोह का आरोप सन 1912 में हुआ
- प्रभा मासिक का संपादन (सन 1913),
- कर्मवीर से सम्बद्ध (सन 1920)
- प्रताप का सम्पादन कार्य प्रारंभ (सन 1923) में किया गया
- पत्रकार परिषद के अध्यक्ष(सन 1929),
- म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति बनें ,
- भारत छोड़ो आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता (सन 1942) सागर वि.वि. से डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित (सन 1959).
हिंदी साहित्य को योगदान
बता दें कि अपनी कुछ कालजयी रचनाओं हिम तरंगिनी, समर्पण, हिम किरीटिनी, युग चरण, साहित्य देवता, दीप से दीप जले, कैसा चाँद बना देती हैं एवं पुष्प की अभिलाषा के कारण से हिंदी साहित्य में इनको बहुत उच्च स्थान प्राप्त हुआ है. इसके अलावा कुछ कविताएं जैसे अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात न माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं आदि इनको सुप्रसिद्ध कवि साबित किया करती हैं.
मृत्यु –
बता दें कि भारतवर्ष के महान कवि एवं स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी जी का देहांत सन 1968 को 30 जनवरी को हुआ था। जिस समय माखनलाल चतुर्वेदी जी की मृत्यु हुई थी, ठीक उस समय वह केवल 79 वर्ष के ही थे। लोग माखनलाल चतुर्वेदी जी को इतना पसंद करने लगे थे कि लोग इनसे इस अवस्था में भी लेखन की कल्पना अवश्य कर रहे थे।
निष्कर्ष –
आशा करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी आपको अवश्य पसंद आई होगी अतः आपसे निवेदन है कि अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारी इस वेबसाइट से अवश्य जुड़े रहें. धन्यवाद.