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Purans Name|18 पुराणों के बारे में अद्भुत जानकारी |गूढ़ रहस्य

Dharma Karma

Puranas in Hindi

Purans Name हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें संसार – ऋषियों – राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं जो ये वैदिक काल के बहुत समय बाद के ग्रन्थ हैं, तथा स्मृति विभाग में आते हैं. अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गयी हैं.

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पुराण का अर्थ

पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण शब्दों की संधि से बना है. पुरा का अर्थ है- ‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ और अण का अर्थ होता है कहना या बतलाना.

ऐसा कहा जाता है कि पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी. शिव पुराण में लिखा है कि, पुराणों के वक्ता वेदव्यास जी है. पुराणों की संख्या कुल अठारह बताई गई है.

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पुराणों के नाम हिंदी में  (18 Puranas Name in Hindi)

18 पुराणों के नाम ब्रह्म Purano ke naam इस प्रकार हैं –

ब्रह्म पुराण

पद्म पुराण

विष्णु पुराण

शिव पुराण (वायु पुराण)

भागवत पुराण, (देवीभागवत पुराण)

नारद पुराण

मार्कण्डेय पुराण

अग्नि पुराण

भविष्य पुराण

ब्रह्मवैवर्त पुराण

लिङ्ग पुराण

वाराह पुराण

स्कन्द पुराण

वामन पुराण

कूर्म पुराण

मत्स्य पुराण

गरुड़ पुराण

ब्रह्माण्ड पुराण

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18 Puranas in hindi (18 पुराणों के बारे में)

1. ब्रह्मापुराण –

ज्योतिशास्त्रों के अनुसार इसे “आदिपुराण” भी कहा जाता है एवं प्राचीन माने गए सभी पुराणों (18 पुराणों) में इसका उल्लेख है. इसमें श्लोकों की संख्या अलग- अलग प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है. इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है.

2.पद्म पुराण –

कहा जाता है कि इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है जो चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है. ऐसा कहा जाता है कि इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है.

3.विष्णु पुराण –

ऐसा माना जाता है कि विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं. इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं. इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था. विष्णु पुराण वास्तव में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है.

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4. शिव पुराण –

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह 7 संहिताओं में विभाजित हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं. इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है.

5.भागवतपुराण –

ज्योतिषियों का कहना है कि यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है. जो इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है. इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है. इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है.

6.नारद पुराण –

कहा जाता है कि नारद पुराण में 15000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं. इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है. प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं.

7. मार्कण्डेय पुराण –

ऐसा कहा जाता है कि अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है. मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं. इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है. इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं.

8.अग्निपुराण –

इस पुराण को भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोष माना जाता है इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है. इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राण-प्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुन विद्या, वास्तु विद्या,आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोष निर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है.

9.भविष्य पुराण –

ज्योतिशास्त्रो के अनुसार भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं. इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है. जो इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है.

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण –

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं. इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं. इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है.

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11.लिंग पुराण –

यह माना जाता है कि लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं. सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है. राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है. इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है.

12.वराह पुराण –

इस वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं एवं इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है. श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है.

13.स्कन्द पुराण –

कहा जाता है कि स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं. स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं.

14.वामन पुराण –

ज्योतिषियों का मत है कि वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं. इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है. इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था.

15. कुर्म पुराण –

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि कुर्म पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं यह कहा जाता है कि भगवान विष्णु जी ‘कूर्मावतार’ अर्थात् कच्छप रूप में समुद्र मंथन के समय मन्दराचल को अपनी पीठ पर धारण करने के प्रसंग में राजा इन्द्रद्युम्न को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का उपदेश देते हैं.

16. मत्स्य पुराण –

ऐसा भी मानना है कि वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित ‘मत्स्य पुराण’ व्रत, पर्व, तीर्थ, दान, राजधर्म और वास्तु कला की दृष्टि से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुराण है . इस पुराण की श्लोक संख्या चौदह हज़ार है. इसे दो सौ इक्यानवे अध्यायों में विभाजित किया गया है.

17. गरूड़ पुराण –

हिन्दू धर्म  के अनुसार गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है. वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित ‘गरुड़ पुराण’ ‘सनातन धर्म’ में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है. इसलिये सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद ‘गरुड़ पुराण’ के श्रवण का प्रावधान है.

18. ब्रह्माण्ड पुराण –

विद्वानों ने ऐसा माना है कि समस्त महापुराणों में ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ अन्तिम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है. समस्त ब्रह्माण्ड का सांगोपांग वर्णन इसमें प्राप्त होने के कारण ही इसे यह नाम दिया गया है. वैज्ञानिक दृष्टि से का विशेष महत्त्व है. इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है.