About Kabir Das Jivan Dohe Meaning lyrics pdf

About Kabir Das in Hindi | Dohe| Meaning | Lyrics | PDF |

Dharma Karma

About Kabir Das in Hindi

कबीरदास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे. इनका जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी में हुआ था. इनका पालन-पोषण नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दम्पति ने किया तथा इनका विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ जिससे इन्हें दो संतानें प्राप्त हुईं एवं Kabir ke dohe भी काफी उत्तेजनापूर्ण लगते थे.

कबीरदास जी ने अपने पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली रखा कबीरदास जी  प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे. इन्होंने अपनी रचनाओं में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया.

Also Read:-

About Kabir Das in Hindi | Dohe| Meaning | Lyrics | PDF

कबीरदास जी  की वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है और इनकी वाणियों का संग्रह इनके शिष्यों द्वारा बीजक नामक ग्रन्थ में किया गया. कबीरदास जी हमेशा एक ईश्वर को मानते थे तथा किसी भी प्रकार के कर्मकांड के विरोधी भी थे.

उन्होंने हमेशा आजीवन समाज में व्याप्त कुरीतियों आडम्बरों की आलोचना की और वह अंतिम समय में मगहर चले गए जहाँ 1518 ई में उनकी मृत्यु हो गयी. 

Also Read:-

Bajrangbali के 12 नाम |हनुमानजी| Lord Hanuman| |लाभ in Hindi

Kabir ke Dohe class 10

मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात.

भावार्थ -: कवि ने श्री कृष्ण के रूप सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन किया है.

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी. अहो मुनीसु महाभट मानी..

पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु. चहत उड़ावन पूँकि पहारू.

भावार्थ – लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले-अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले. आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे. आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है. उनकी वीरता खोखली है. उसमें कोई सच्चाई नहीं.

इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं. जे तरजनी देखि मरि जाहीं..

देखि कुठारु सरासन बाना. मैं कछु कहा सहित अभिमाना..

भावार्थ – लक्ष्मण ने परशुराम के वीर-वेश का मजाक उड़ाते हुए कहा-मुनि जी! यदि आप भी वीर योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे. हम आपसे टक्कर लेंगे; और सच कहूँ! मैंने आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा कि सामने कोई ढंग का योद्धा आया है. उससे दो-दो हाथ करूं. इसीलिए मैंने आपके सामने कुछ अभिमानपूर्वक बातें कही थीं. मुझे पता होता कि आप कोरे मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं भला आपसे क्यों भिड़ता. आशय यह है कि परशुराम मुनि-ज्ञानी हैं. उनका वीर-वेश ढोंग है.

गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ.

अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ.

भावार्थ – विश्वामित्र ने परशुराम के बड़बोले वचन सुने. परशुराम ने बार-बार कहा कि मैं पल-भर में लक्ष्मण को मार डालूंगा. इन वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन हँसे. सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है. वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे. वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँड़ा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है.

Also Read:-

रहिमन धागा प्रेम का दोहा | हिंदी English अर्थ | रहीम Quotes

Kabir Ke Dohe With Meaning

कबीर एक  क्रांतदर्शी  कवि  थे.उनकी  कविता  सामाजिक  चेतना  से  ओतप्रोत  है.उनकी  कविता  साधारण  प्रतीत  होते  हुए  भी  सहज  ही  मर्म  को  स्पर्श  करती  है  तथा  सबके  दिलों  को  छू  लेती  है . कबीर  एक  ओर  धर्म  के  बाहरी  दिखावे  पर  गहरी  और  तीखी  प्रहार  करते  नज़र  आते  हैं , तो  वहीं  दूसरी  ओर  आत्मा-परमात्मा  के  विरह-मिलन  के  भावपूर्ण  गीत  भी  गाए  हैं . Kabir ke dohe बहुत ही रोचक तथा प्रदर्शक कारी हैं. कबीर  जी  अनुभव   ज्ञान  को  अत्यधिक  महत्व  देते  थे . कबीर  का  मानना  था  कि  ईश्वर  एक  है, निर्विकार  है  तथा  अरूप  है.

Also Read:-

निंदक नियरे राखिए | Meaning in Hindi | Full Doha | Nibandh

कबीर की  भाषा  पूर्वी  जनपद  की  भाषा  थी.कबीर  जी  ने  जनचेतना  और  जनभावनाओं  को  अपने  सबद  और  सखियों  के  माध्यम  से  जन-जन  तक  पहुंचाने  का  काम  किया  है .

(1)- ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ |

अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि हमें सदैव दूसरों के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए, जिससे उसे हमारी बातों या व्यवहार से किसी प्रकार का दुःख न पहुँचे . इससे हमारा मन भी शांत रहेगा और सुनने वाले को भी सुख और शान्ति की अनुभूति होगी .

(2)- कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै बन माँहि |

ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर ईश्वर के अस्तित्व और महत्ता को बताते हुए कहते हैं कि जिस तरह हिरन की नाभि में कस्तूरी होती है, किन्तु इससे अनभिज्ञ हिरन उसे पूरे जंगल में ढूँढ़ता फिरता है . ठीक उसी तरह ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के अंदर मौजूद है अर्थात् ईश्वर का वास तो कण-कण में है. परन्तु, मनुष्य ईश्वर को धार्मिक स्थलों में ढूँढ़ता-फिरता है .

(3)- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि |

सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर जी के द्वारा अंधकार की तुलना अंहकार से और ईश्वर की तुलना दीपक से किया गया है . आशय यह है कि जब मनुष्य के मन में अंधकार रूपी अहंकार होता है तब उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती . अर्थात् ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने अंदर के अंहकार को मिटाना पड़ता है .

(4)- सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै |

दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि संसार में जो लोग केवल खाने और सोने में ध्यान देते हैं, वे बहुत सुखी होते हैं . वे चिंतामुक्त जीवन जीते हैं . किन्तु, इसके विपरीत जो ईश्वर भक्ति में दिन-रात लीन रहते हैं, वे बहुत दुखी होते हैं . ईश्वर को पाने की उम्मीद में सदा चिंतित रहते हैं .

 (5)- बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ |

राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ |

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं  इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि राम रूपी ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रहता . यदि जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों के जैसी हो जाती है . अर्थात् मनुष्य अपना आत्म नियंत्रण खो बैठता है . ठीक उसी प्रकार, जब मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का दुःख रूपी साँप बसता है, तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता .

(6)- निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ |

बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि यदि हमें अपना स्वभाव साबुन और पानी के बिना निर्मल करना हो तो निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना चाहिए, ताकि हम उसके द्वारा अपनी बुराईयों को जानकर उसे दूर सकें .

(7)- पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ |

ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ ||

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि दुनिया में बड़ी-बड़ी किताबों को सिर्फ पढ़कर मनुष्य पंडित नहीं बन सकता . कवि के अनुसार, मनुष्य का ईश्वर भक्ति में लीन होना उसके पंडित होने का प्रमाण है . अर्थात् कबीर कहते हैं कि ईश्वर ही एकमात्र सत्य है . ईश्वर को जाननेवाला ही वास्तविक ज्ञानी व पंडित कहलाता है .

(8)- हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि |

अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि ||

भावार्थप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं . इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि हमने मोह-माया रूपी घरों को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है . अर्थात् अपने जीवन के अज्ञानता रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश में बदल दिया है . आगे कवि कहते हैं कि अब वो उनका भी मोह-माया रूपी घरों को जलाकर अपने साथ शामिल करेंगे, जो मोह-माया के बंधन से आजाद होना चाहते हैं . जो ज्ञान प्राप्त करने को इच्छुक हों .

Kabir Ke Dohe In Hindi PdF

Also Read:-

कल करे सो आज कर अर्थ | निबंध | कबीर Birth Death Age Religion

Kabir ke dohe Kal Kare so Aaj Kar-

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब .

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब .

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम हमें कल करना है वो आज ही कर लेना चाहिए , और जो आज करना है वो अभी तुरंत कर लेना चाहिए , क्योंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब कर पायेंगे.