Saptarishi Mandala- Saptarshi Constellation
सप्तऋषि का आकार
सप्तऋषि मंडल (Saptarshi Constellation) को रात्रि के समय उत्तरी गोलार्ध में देखा जा सकता है. ये तारे चौकोर और तिरछी रेखा में होते हैं, अगर देखा जाय तो ये देखने में पतंग के आकार जैसे दिखते है.
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सप्तऋषि का मिस्र भाषा में नाम
मिस्र के प्रख्यात ज्योतिर्विद क्लाडियस टॉलमी ने दूसरी शताब्दी में 48 तारा मंडलों की सूची बनाई थी. उसमें सप्त ऋषि तारामंडल (Saptarishi Mandala ) शामिल था. इसका आकार देखने में बड़ा भालू की तरह लगता है इसलिए इसे “ग्रेट बेयर” या “बिग बेयर” कहा जाता जाता है.
सप्तऋषि का अंग्रेजी नाम
विशेषज्ञों का मानना है कि सप्तऋषि तारामंडल को अंग्रेजी में “अरसा मेजर” कहते है. जो अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में इसे “बिग डिप्पर” (यानि बड़ा चमचा) भी कहा जाता है एवं चीन में यह “पे-तेऊ” कहलाता है.
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समयावधि
ये 7 तारे ध्रुव तारा का चक्कर 24 घंटे में लगाते हैं. सप्त ऋषि तारामंडल में एक गैलेक्सी भी पाई जाती हैं. सप्तर्षि मंडल शनि मंडल से एक लाख योजन ऊपर पर स्थित है.
मन्त्रों की रचना
हिन्दू धर्म में वेदों का काफी अधिक महत्व है. चारों वेदों में हजारों मंत्र हैं और इन मंत्रों की रचना की है ऋषियों ने. मंत्रों की रचना में कई ऋषियों का योगदान रहा है, इन ऋषियों में सप्त ऋषि ऐसे हैं, जिनका हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा योगदान माना गया है. आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है.
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विज्ञानिकों के अनुसार
विज्ञानिकों का कहना है कि बेशक विज्ञान ने ऐसे कई मण्डलों की खोज की है जो विभिन्न सितारों का एक मण्डल बनाते हैं, लेकिन आधुनिक विज्ञान से हज़ारों वर्ष पूर्व रचित वेदों में कुछ खास तारा मण्डलों का ज़िक्र किया गया था. इनमें से सबसे खास है सप्तर्षि मण्डल. एक ऐसा मंडल जो सात ऋषियों के सूत्र में बंधा है.
Who are Saptarishis (सप्त ऋषि)- Saptarshi Star
सप्त ऋषि कौन थे
सप्तर्षि वैदिक क्षेत्र के सात महान ऋषि हैं. उन्होंने अपनी योग शक्ति और अपनी तपस्या की शक्ति के कारण एक अर्ध-अमर स्थिति प्राप्त की है, जो कि बहुत लंबी उम्र है. मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए, सात पवित्र संतों को चार महान युगों में उपस्थित रहने के लिए नियुक्त किया गया था. इन सात ऋषियों(Saptarshi Star ) या सप्त ऋषियों ने पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान शिव के साथ मिलकर काम किया.
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कैसे जन्मे सप्त ऋषि
वे भगवान ब्रह्मा के सात मन-जन्मे पुत्र हैं जो एक मन्वन्तर (306,720,000 पृथ्वी वर्ष) के रूप में जाने जाने वाले समय के लिए जीवित रहते हैं. इस अवधि के दौरान, वे ब्रह्मा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और एक मन्वंतर के अंत में, ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है और सप्तर्षि भगवान में विलीन हो जाते हैं और पृथ्वी को भरने का कार्य नव नियुक्त सप्तर्षि को दिया जाता है.
ब्रह्मर्षि का पद
सभी सप्तर्षि ब्रह्मर्षि हैं अर्थात उन्होंने ब्रह्म का अर्थ पूरी तरह से समझ लिया है. आमतौर पर, केवल योग्यता के माध्यम से कोई ब्रह्मर्षि के स्तर तक नहीं बढ़ सकता है, क्योंकि यह आदेश दैवीय रूप से बनाया गया था और भगवान ब्रह्मा द्वारा इनको नियुक्त किया गया था. हालाँकि, विश्वामित्र अकेले अपनी योग्यता के कारण ब्रह्मर्षि के पद तक पहुँचे. उन्होंने हजारों वर्षों तक ध्यान और तपस्या की और परिणामस्वरूप, उन्हें स्वयं ब्रम्हा से ब्रह्मर्षि के पद से सम्मानित किया गया.
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Saptarishi Name In Hindi- (सप्त ऋषियों के नाम , 7 Rishis Names)
सप्तऋषियों के नाम-
1-वशिष्ठ– वशिष्ठ ऋषि दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे. वशिष्ठ के कहने पर ही राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के कहने पर उनके आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज था.
2-विश्वामित्र– ऐसा मानना है कि हिंदू ग्रंथों में उनकी एक कथा काफी प्रचलित रही है जो विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय हड़पने के लिए युद्ध किया था. यह भी कहा गया है कि ये युद्ध में वे ऋषि वशिष्ठ के हाथों हार गए थे. ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उसे भंग करने की कथा बहुत ही प्रचलित है.
3-कण्व– ऐसा कहा जाता है कि हिंदू रीति-रिवाजों में सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्व ऋषियों ने ही शुरू किया था तथा कण्व ऋषियों के आश्रम में ही हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण इन्होनें ही किया गया था.
4-भारद्वाज– कहा जाता है कि भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुआ करते थे. जो अथर्ववेद में भारद्वाज के 23 मंत्र मिलते हैं और यह भी माना जाता है कि भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता के रचयिता ऋषि भारद्वाज ही थे. जो ऋषि भारद्वाज ने यंत्र सर्वस्व नाम के ग्रंथ की रचना की थी.
5-अत्रि– ऐसा मानना है कि ऋषि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता, कर्दम प्रजापति और देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे. जो देश में कृषि के विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान दिया है तथा अत्र ऋषियों के बारे में यह भी कहा जाता है जहां उन्होंने हिंदू यज्ञों का प्रचार किया वहाँ अत्रि ऋषियों के कारण ही पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ.
6-वामदेव– कहते हैं कि ऋषि वामदेव को संगीत का सूत्रपात करने के लिए जाना जाता है. वामदेव गौतम ऋषि के बेटे थे जो वामदेव को जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता से जाना जाता है.
7-शौनक– यह कहा जाता है कि ऋषि शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के लिए एक गुरुकुल चलाया था जिसमें विशाल गुरुकुल व्यवस्था के लिए उन्हें कुलपति का सम्मान प्राप्त हुआ थायह भी कहा गया है कि वैदिक धर्म में ऋषि शौनक के अलावा यह सम्मान किसी को नहीं मिला था.